Report
उत्तर प्रदेश सरकार की ग्राम पंचायतों को 'क्लाइमेट स्मार्ट' बनाने की योजना कितनी सही?
उत्तर प्रदेश सरकार जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना पर काम कर रही है. इसके तहत राज्य की 27 ग्राम पंचायतों को नेट जीरो यानी क्लाइमेट स्मार्ट बनाने पर अक्टूबर से पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया जाएगा. नेट जीरो का मतलब इंसानी गतिविधियों से होने वाले ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को शून्य पर लाना है. अगले पांच सालों में हर जिले के एक-एक विकास खंड को इस योजना के दायरे में लाया जाएगा.
प्रदेश सरकार ने पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक जलवायु परिवर्तन अधिवेशन, कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज के तर्ज पर कॉन्फ्रेंस ऑफ पंचायत कॉप यूपी-2022 (कॉपयूपी2022) की शुरुआत की. इसके तहत राज्य की कुल 58,194 ग्राम पंचायतों को चरणबद्ध तरीके से क्लाइमेट स्मार्ट बनाना है.
क्लाइमेट स्मार्ट पंचायत की योजना दो पहलुओं पर टिकी है, पहला है क्लाइमेट अडाप्शन (जलवायु शमन) और दूसरा है क्लाइमेंट मिटिगेशन जिसे जलवायु अनुकूलन भी कहते हैं. जलवायु अनुकूलन में पंचायतें खुद को बाढ़, सूखा, बढ़ते तापमान आदि प्राकृतिक आपदाओं, जलवायु संबंधी खतरों और दुर्घटनाओं से निपटने के लिए तैयार करेंगी. इसके लिए जरूरी क्षमता का निर्माण किया जाएगा. वहीं जलवायु शमन के जरिए कार्बन जीरो पर काम किया जाएगा जिसमें कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने की कोशिश की जाएगी.
अधिकारियों की मानें तो इसके तहत पंचायत को ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण, सरकारी अभियान के साथ ही निजी तौर पर लोगों को पेड़, बागवानी और कृषि वानिकी के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा. रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक खेती की जगह गाय और गोबर आधारित जैविक-प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जाएगा. किसानों को जलवायु अनूकुल बीज और तकनीकी दी जाएगी. ग्राम पंचायत में जल का संरक्षण, दो अमृत सरोवर और उसके आसपास 75 वृक्ष, जिन्हें सुरक्षित रखने की भी व्यवस्था करनी होगी. गांव में बिजली की जगह सोलर स्ट्रीट लाइट, किसान के लिए सोलर पंप, मौसम की निगरानी संबंधी सूचनाओं को बढ़ावा दिया जाएगा. मुख्य फोकस पेड़ लगाने और जल संरक्षित के साथ सॉलिड वेस्ट मैनेजमंट पर रहेगा.
‘प्राकृतिक आपदाओं से गांव ज्यादा प्रभावित इसलिए क्लाइमेंट स्मार्ट गांव की जरूरत”
लखनऊ में आयोजित प्रोग्राम में आए एक अधिकारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया कि ग्लासगो जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के बाद हर मंत्रालय-विभाग को अपनी कार्य योजना बनाने के लिए कहा गया था. सरकार के मुताबिक योजनाएं तैयार हो चुकी हैं. योजनाओं को जमीन पर उतारने के लिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग को नोडल विभाग बनाया गया है, बाकी विभाग उनका साथ देंगे.
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के सचिव आशीष तिवारी ने कहा, “क्लाइमेंट स्मार्ट गांव बनाने के दो वर्टिकल होते हैं, एक नेट जीरो, दूसरा जलवायु अनुकूलन. जलवायु अनुकूलन लंबे वक्त का काम है. अब जैसे हमारी कृषि उत्पादकता घट रही है तो आप ऐसे क्लाइमेंट रिजिलिएंट (जलवायु के अनुकूल) किस्में लेकर आएंगे, गेहूं का ऐसा बीज देना होगा, जिससे बढ़ती गर्मी में भी उत्पादकता कम न हो. इसके अलावा किसान को माइक्रो एग्रो क्लाइमेंटिक जोन के लेवल पर जलवायु और मौसम की जानकारी हो. इस बार बारिश कैसी होगी, 15 दिन में मानसून कैसा होगा. ताकि उसकी फसल का नुकसान न हो.” राज्य के पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के मुताबिक उनके क्लाइमेंट स्मार्ट गांव में नेट जीरो क्लाइमेंट मिटिगेशन सिर्फ एक भाग है, जबकि उनका पूरा जोर जलवायु अनुकूलन पर है.
पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन विभाग के सचिव ने हमसे कहा, “हम लोगों ने जिन संवेदशनशील 27 जिलों से 27 ग्राम पंचायतों को चुना है, उन गांवों की पायलट योजना तैयार कर रहे हैं जो अक्टूबर तक बन जाएगी. इस पर पर्यावरण विभाग और एक एजेंसी (वसुधा फाउंडेशन) मिलकर काम कर रहे हैं. पहले चरण का काम एक साल में पूरा करेंगे. एक बार ये पंचायतें सक्रिय हो जाएंगी तो दूसरों को प्रेरणा मिलेगी. अगले पांच वर्षों में हम प्रत्येक 75 जिलों के एक एक विकास खंड को क्लाइमेंट स्मार्ट विकास खंड बनाएंगे. इस संबंध में विभाग मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने प्रजेटेंशन दे चुका है.”
क्लाइमेंट स्मार्ट गांव बनाने के लिए कहां से आएग बजट?
लेकिन बड़ा सवाल ये है कि इसके लिए बजट कहां से आएगा. इस पर सचिव आशीष तिवारी ने बताया, “बजट तीन तरीकों से अर्जित किया जाएगा. पहला होगा कनवर्जन ऑफ गांव गवर्नमेंट स्कीम (मनेरगा, नेडा, कृषि की पानी बचाने वाली योजना है, प्राकृतिक खेती की योजना) तो उन योजनाओं को हम ग्राम पंचायत विकास कार्यक्रम (जीपीडीपी) में शामिल करेंगे. इसके बाद अगर कहीं आर्थिक मुश्किल आती है तो सरकार ने पीपीपी (प्राइवेंट पंचायत पार्टनरशिप) के तहत कंपनी सामाजिक दायित्व (सीएसआर) के तहत प्राइवेट सेक्टर गांव के विकास में मदद करेगा. यहां तक कि इसके लिए 27 ग्राम पंचायतों के लिए बहुत सारी कंपनियों ने एमओयू हो गए हैं या हो रहे हैं. आर्थिक संसाधन जुटाने का तीसरा तरीका है ग्लोबल फंड, जिसमें विश्व बैंक, ग्रीन एनवायरन्मेंट फंड, और कुछ सामाजिक सरोकार के तहत गांव में पैसा लगाएंगे तो फंड की कमी नहीं होने देंगे.”
कृषि वानिकी, वृक्षारोपण पर जोर
कॉन्फ्रेंस ऑफ पंचायत (कॉपयूपी 2022) को आयोजित करने वाले मेजबान विभाग पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन उत्तर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव मनोज सिंह ने कहा था, “यूपी में 70 फीसदी ऐसे खेत हैं, जहां कोई पेड़ नहीं हैं. हमारा उद्देश्य किसानों को भी पेड़ लगाने के लिए प्रेरित करना है. एग्रो फॉरस्ट्री बढ़ेगी तो किसान की आमदनी बढ़ेगी, आक्सीजन मिलेगी, कार्बन डाई आक्साइड कम होगी और क्लाइमेट की समस्या का हल होगा.”
उन्होंने आगे कहा, “जब तक गांव के लोग जागरूक नहीं होंगे, ग्राम पंचायत स्तर पर काम नहीं होगा, तब तक योजना सफल नहीं हो पाएगी. हमारे गांव कार्बन न्यूट्रल विलेज बन सकते हैं. कृषि वानिकी को प्रोत्सासन दे सकते हैं.”
संयुक्त राष्ट्र की संस्था इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की हालिया रिपोर्ट मुताबिक कृषि, वानिकी और अन्य भूमि उपयोग (एएफओएलयू) क्षेत्र का कुल ग्रीनहाउस गैस में 13-21% योगदान है. 2010 और 2019 के बीच उत्सर्जन, “नीति निर्माताओं और निवेशकों से लेकर जमीन के मालिक और प्रबंधकों तक, सभी हितधारकों द्वारा संयुक्त, तीव्र और निरंतर प्रयास” द्वारा ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए काफी अवसर प्रदान करता है.
आईपीसीसी के अनुसार, एएफओएलयू 2050 तक 1.5 या 2 डिग्री सेल्सियस तक वैश्विक तापमान रोकने में 20% से 30% का योगदान कर सकता है. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) संस्थानों के वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन की रफ्तार कम करने की क्षमता परखने के लिए कर्नाटक, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और बिहार में गांवों की समीक्षा की. यहां के गावों में आईसीएआर के नेशनल इनोवेशन इन क्लाइमेट रेजिलिएंट एग्रीकल्चर (एनआईसीआरए) परियोजना के तहत काम किया गया था.
कार्बन सकारात्मक, नेट जोरी, कार्बन स्मार्ट गांव भारत के लिए नए शब्द हैं. कार्बन सकारात्मकता या तटस्थता के उदाहरणों में जम्मू-कश्मीर का पाली विलेज, केरल का मीनांगडी, मणिपुर का फायेंग और कर्नाटक के दुर्गादा नागनहल्ली गांव का जिक्र किया जाता है. इसके अलावा मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, तमिलनाडु में राज्य सरकारों ने 2018 और 2019 में कुछ-कुछ गांवों में जलवायु स्मार्ट गांव के संबंध में पायलट प्रोजेक्ट शुरू किए थे.
जलवायु अनुकूलन और स्थानीय लोग सबसे महत्वपूर्ण
भूमि आधारित क्लाइमेंट मिटिगेशन की विशेषज्ञ इंदु मूर्ति के मुताबिक पंचायत के स्तर से देखें तो उत्सर्जन कम करके कार्बन सिंक करने के मुद्दे पर ज्यादा चर्चा का कोई मतलब नहीं रह जाता है क्योंकि एक तो वहां उत्सर्जन कम है दूसरा वहां ये काम बहुत छोटे स्तर पर होगा. तो पेड़ लगाताकर और एग्रो फॉरेस्ट्री (कृषि वानिकी) के जरिए कर सकते हैं.
उन्होंने हमसे कहा, “यहां (गांव स्तर पर) पर जलवायु शमन से ज्यादा अहम जलवायु अनुकूलन है. अगर वो जलवायु के अनुकूल बीज और तकनीकी की बात करते हैं, जो सूखे, बाढ़ का सामना कर सकें. बाढ़ प्रबंधन के उपाय पर काम करते हैं तो ये अच्छी बात हैं क्योंकि सिर्फ जलवायु शमन से फायदा नहीं है.”
दूसरे राज्यों में चल रहे ऐसे प्रयोगों और पायलट प्रोजेक्ट के बारे में पूछने पर इंदू मूर्ति कहती हैं, “मैं केरल की मीनांगडी पंयाचत गई हूं. वहां कार्बन न्यूट्रल बनाने के लिए कचरे के प्रबंधन और वनीकरण पर अच्छा काम हुआ है और हो रहा है. जैसा यूपी का प्लान है वैसा कुछ तमिलनाडु और केरल में भी चल रहा है. अरुणाचल प्रदेश में भी क्लाइमेंट अनुकूल पर चर्चा सुनाई दी, लेकिन जमीन पर कहीं कुछ वैसा नजर नहीं आया है.“
स्थानीय लोगों के महत्व को समझाते हुए पर्यावरण और जलवायु पर शोध का काम करने वाली संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट में प्रोगाम मैनेजर (जलवायु परिवर्तन) अवंतिका गोस्वामी हमसे बताती हैं, “जलवायु परिवर्तन को देखते हुए ऐसे सारे उपाय जरुरी हैं. ग्राम पंचायत स्तर पर प्रयास हो रहे हैं, ये अच्छी बात है. हालांकि इस दौरान हमें ध्यान रखना होगा जो कुछ प्रयास हों वो स्थानीय लोगों की सहूलियत के हिसाब से हों, उनकी सेहत और आजीविका को ध्यान में रखकर हों. ऐसा न हो कि इस तरह के निर्माण किए जाएं, प्रोजेक्ट चलाए जाएं जिससे लोगों की आजीविका जाए या पलायन की नौबत आए.”
(साभार- MONGABAY हिंदी)
Also Read
-
Corruption woes and CPIM-Congress alliance: The TMC’s hard road in Murshidabad
-
Is the Nitish factor dying down in BJP’s battle for Bihar?
-
Manipur, misinformation, Revanna: Three issues ignored by Big Media this election season
-
Presenting NewsAble: The Newslaundry website and app are now accessible
-
Supreme Court says it ‘may consider interim bail’ for Kejriwal because of Lok Sabha polls