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अंतिम जन: गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति की पत्रिका में सावरकर का महिमामंडन

गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति (जीएसडीएस) गांधी विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए 'अंतिम जन' नाम की पत्रिका प्रकाशित करती है. इस मासिक पत्रिका का ताजा अंक विनायक दामोदर सावरकर को समर्पित किया गया है. इस अंक में सावरकर के काम को महात्मा गांधी के समतुल्य बताया गया है. जीएसडीएस संस्कृति मंत्रालय के अधीन काम करती है. इसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उपाध्यक्ष भाजपा नेता विजय गोयल हैं.

पत्रिका में सावरकर पर आधारित कुल 12 लेख हैं. 64 पन्नों की पत्रिका का एक तिहाई हिस्सा सावरकर को समर्पित किया गया है. ये लेख सावरकर के विचार और उनके जीवन पर केंद्रित हैं. पत्रिका में 'गांधी एवं सावरकर का संबंध,' 'वीर सावरकर और महात्मा गांधी', और 'देश भक्त सावरकर' जैसे लेख प्रकाशित हैं.

पत्रिका में अटल बिहारी वाजपेयी का लेख 'एक चिंगारी थे सावरकर' को भी फिर से छापा गया है. इसमें बताया गया है कि गांधी सावरकर के विचारों से प्रभावित थे और उन्हें 'सच्चा देशभक्त' मानते थे.

पत्रिका के पहले पन्ने पर विजय गोयल का एक संदेश भी छपा है. इस संदेश की शुरुआत में वे लिखते हैं, 'विनायक दामोदर सावरकर एक महान देशभक्त, स्वातंत्र्य वीर, अदम्य साहस के परिचायक, अद्भुत लेखक व कमाल के वक्ता थे. जब-जब भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना सर्वस्व लुटाने वालों की बात होगी, तब ये नाम बड़े ही सम्मान और अदब के साथ लिया जाएगा.'

अपने संदेश में गोयल लिखते हैं, 'यह देखकर दुख होता है कि जिन लोगों ने एक दिन जेल नहीं काटी, यातनाएं नहीं सही. देश-समाज के लिए कुछ कार्य नहीं किया, वे सावरकर जैसे देशभक्त बलिदानी की आलोचना करते हैं. जबकि सावरकर का इतिहास में स्थान व स्वतंत्रता आंदोलन में उनका सम्मान महात्मा गांधी से कम नहीं है.”

गोयल ने इस संदेश के आखिरी में यह भी बताया कि सावरकर पर केंद्रित यह अंक जरूरी क्यों था. वह लिखते हैं, 'माननीय प्रधानमंत्रीजी की प्रेरणा से देश इन दिनों आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. इस अवसर पर हमें वीर सावरकर जैसे अन्य महान सेनानियों की स्मृतियों को भी याद करना चाहिए. 'अंतिम जन' के इस अंक में सावरकर के बहुआयामी व्यक्तित्व को संजोया गया है.'

कई बुद्धिजीवी और गांधीवादी इस अंक की आलोचना कर रहे हैं. सावरकार के किरदार और भूमिका हमेशा से विवादों में रही है. खासकर महात्मा गांधी की हत्या के मामले में सावरकर की भूमिका और उन पर कपूर कमीशन की टिप्पणियों की रौशनी में यह बात कही सुनी जाती रही है कि उन्होंने गांधी हत्या की साजिश रची. सावरकर ताउम्र महात्मा गांधी की हत्या के आरोप से मुक्त नहीं हो सके. हत्या करने वाले जिन आठ आरोपियों पर मुकदमा चला उनमें सावरकर का नाम भी शामिल है.

बता दें कि हत्या के पांच दिन बाद पांच फरवरी 1948 को सावरकर को हिरासत में ले लिया गया था. इन नामों में दिगंबर रामचंद्र बडगे का नाम भी शामिल था लेकिन वह बाद में सरकारी गवाह बन गए. अदालत में बडगे की गवाही के आधार पर ही सावरकर का नाम इस मामले से जुड़ा था.

हालांकि कोर्ट में सावरकर को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया लेकिन कपूर कमीशन की रिपोर्ट में साफ तौर पर उन्हें सावरकर को मुख्य साजिशकर्ता माना गया और पुलिस द्वारा जांच में लापरवाही करने की बात कही गई. इसके बाद से देश में एक धड़ा वह भी मौजूद है जो सावरकर को वीर और देशभक्त बताता है.

इतिहासकार अशोक कुमार पांडेय सावरकर पर दो किताबें लिख चुके हैं. वह न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, "इस पत्रिका के पहले ही पन्ने पर विजय गोयल के लेख में कई गलतियां हैं. उसमें लिखा है कि सावरकर 1906 में लंदन में श्यामा प्रसाद मुखर्जी से मिले थे. जबकि श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म ही 1901 में हुआ था. इस पत्रिका में उन पर गांधी की हत्या का आरोप गलत साबित करने का प्रयास किया गया है. सावरकर को बाइज्जत बरी नहीं किया गया था. जब कपूर कमीशन ने जांच की तब उन्होंने कहा था कि पुख्ता गवाहियों के अभाव में उन्हें छोड़ा गया. जब कपूर कमीशन ने जांच की तब गवाहियां मिली और वो भी उनके करीबियों की थी. कपूर कमीशन ने साफ कह दिया था कि गांधी हत्या के लिए सावरकर और उनका गैंग ही जिम्मेदार है. वह रिपोर्ट क्यों नहीं सार्वजनिक की गई ये एक रहस्य है."

1921 में अंडमान की सेलुलर जेल से रिहा होने के बाद सावरकर का इतिहास कट्टर हिंदूवादी और अंग्रेजपरस्त व्यक्ति का इतिहास है. एक भाषण में सावरकर ने कहा था कि जो अंग्रेजों के लिए बुरा है वो हमारे लिए भी बुरा है. अंतिम जन पत्रिका में छपे लेखों के बारे में पांडेय कहते हैं, “इस पत्रिका में भी अंग्रेजों के खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं लिखी गई है. यह सिर्फ हिंदू-मुसलमान को बांटने और कांग्रेस की बुराई करने का मामला है."

वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने ट्वीट कर लिखा, “गांधीजी की जांच के सिलसिले में गठित जस्टिस कपूर आयोग ने अपने अंतिम निष्कर्ष में "सावरकर और उनकी मंडली (ग्रुप)" को गांधीजी की हत्या का षड्यंत्र रचने का गुनहगार ठहराया था. तमाशा देखिए कि गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति सावरकर को गांधीजी की ही ओट देकर इज़्ज़त दिलाने की कोशिश कर रही है.”

इस मुद्दे पर गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा, "गांधी स्मृति और दर्शन समिति सरकार की संस्था है. जिसमें गांधी का नाम जुड़ा हुआ है लेकिन उसका गांधी से कोई वास्ता नहीं है. जीएसडीएस एक ऐसा बाजार है जिसने गांधी का बोर्ड लगाकर अपना माल बेचने की कोशिश की है. इसलिए मुझे कोई आश्चर्य नहीं है. ये लोग (भाजपा) गांधी विरोधी विचारधारा के प्रतिनिधि हैं. इनके पास जो सस्थाएं हैं उनका इस्तेमाल कर रहे हैं. जीएसडीएस भी एक ऐसा ही संस्थान है. पीएम उसके अध्यक्ष हैं. एक आरएसएस का व्यक्ति उसका उपाध्यक्ष बना दिया गया है. ये लोग जीएसडीएस का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं."

न्यूज़लॉन्ड्री ने आरजेडी प्रवक्ता और दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति के प्रोफेसर सुबोध कुमार मेहता से भी बात की. इससे पहले उन्होंने ट्वीट कर लिखा था, “गांधीजी की अहिंसावादी विरासत को संजोने के उद्देश्य से बनी गांधी दर्शन और स्मृति समिति ने पत्रिका 'अंतिम जन' का सावरकर पर केंद्रित विशेषांक प्रकाशित कर निश्चित ही गांधीजी के अहिंसा जैसे मूल्य का क्रूर परिहास बनाया है...'

सुबोध कुमार हमें बताते हैं, "गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति गांधी के विचारों और मूल्यों को समाज में प्रचारित करने के लिए स्थापित किया गया था. अंतिम जन में सावरकर की तुलना गांधी से करना केवल गांधी ही नहीं संविधान के निर्माताओं का भी अपमान है क्योंकि संविधान में भी गांधी मूल्यों को जगह दी गई. यह भारतीय मूल्यों के भी विपरीत है. गांधीजी ने जेल में रहकर भी आंदोलन किए. सावरकर जेल से माफीनामा लिख रहे थे. दोनों की तुलना ही नहीं की जा सकती है."

इस पूरे मामले में महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी ने द हिंदू से कहा, "मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि इस तरह की बात अब अक्सर होती रहेंगी. गांधीजी की हत्या के पीछे की विचारधारा सत्ता में है. वे सावरकर पर विवादों को मिटाने की पूरी कोशिश करेंगे."

तुषार गांधी, महात्मा गांधी पर कई किताबें लिख चुके हैं. इन किताबों में 'लेट्स किल गांधी: ए क्रॉनिकल ऑफ हिज लास्ट डेज', 'द कॉन्सपिरेसी', 'मर्डर', 'इन्वेस्टिगेशन', 'ट्रायल्स एंड द कपूर कमीशन' शामिल हैं.

तुषार कहते हैं, "गांधीवादी संस्थाओं को नियंत्रित किया जा रहा है. यहीं पर गांधी की विचारधारा पर हावी होने वाली राजनीतिक विचारधारा का खतरा मौजूद है. हम इसका विरोध करते रहे हैं. यह सावरकर की तुलना गांधी के साथ करने की उनकी हताशा को भी दर्शाता है. यह गांधीवादी विचारधारा को भ्रष्ट करने और एक नया आख्यान बनाने की बहुत ही सुनियोजित रणनीति को दिखाता है."

कांग्रेस सोशल मीडिया प्रभारी सुप्रिया श्रीनेत कहती हैं, "अगर सावरकर की जय-जयकार करनी थी तो ऑर्गनाइजर या पांचजन्य में लेख प्रकाशित कराते. गांधी से मान्यता क्यों चाहिए? स्वतंत्रता के लिए गांधी और सावरकर का योगदान एक बराबर है यह बात गले के नीचे नहीं उतरेगी. सावरकर 1910 में जेल गए और उसके बाद से माफीनामा लिखने लगे कि उन्हें छोड़ दें वह स्वतंत्रता संग्राम से कोई वास्ता नहीं रखेंगे. डांडी मार्च, भारत छोड़ो आंदोलन आदि में सावरकर ने किसी भी आंदोलन में भाग नहीं लिया. सावरकर ने कभी दलितों की बात नहीं की. वह अंग्रेजों के महल में रहे. उनसे पेंशन ली."

पत्रिका में किसके लेख शामिल?

पिछले साल सितंबर में पीएम मोदी ने भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय गोयल को गांधी स्मृति और दर्शन समिति का उपाध्यक्ष नियुक्त किया था. उस दौरान विजय गोयल ने कहा था, “पीएम नरेंद्र मोदी ने यह पद देकर मुझ पर भरोसा किया और जिम्मेदारी दी है. हम महात्मा गांधी की शिक्षा और दर्शन के प्रचार-प्रसार में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे.”

पत्रिका 'अंतिम जन ' में लेखक और एंडोक्रिनोलॉजिस्ट डॉ. श्रीरंग गोडबोले ने 'महात्मा गांधी हत्या अभियोग' शीर्षक से लेख लिखा है. इस लेख में उन्होंने कपूर आयोग द्वारा मर्यादा उल्लंघन का आरोप लगाते हुए सावरकर के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया को गलत साबित करने का प्रयास किया है. साथ ही उनका चरित्र और विचारों के बारे में भी लिखा है. श्रीरंग गोडबोले कई सालों से आरएसएस के सक्रिय सदस्य हैं. वह सावरकर पर कई किताबें लिख चुके हैं. गोडबोले ने सावरकर पर लिखी कई पुस्तकों का अंग्रेजी अनुवाद भी किया है. वह सावरकर से जुड़े कई कार्यक्रमों में वक्ता के रूप में जाते हैं.

गोडबोले ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "सावरकर पर जो आरोप लगाए गए थे वे सिद्ध नहीं हुए. मैंने अपने लेख में तथ्यों के साथ बात की है. जिसे भी आपत्ति है वह तथ्यों के साथ इसका विरोध कर सकता है. यह एक गुट है जो सावरकर का विरोध करना चाहता है."

इस पत्रिका में डॉ कन्हैया त्रिपाठी ने एक लेख ‘वीर सावरकर का मूल्यबोध' लिखा है. वह न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, "सावरकर के बारे में कई विवाद होते हैं. गांधीवादी लोग या अहिंसक विचारधारा के लोग अगर अंतिम जन में लिखते हैं तो सावरकर को लेकर मिथ खत्म हो जाते हैं. मैं यह मानता हूं कि अगर देश को स्वतंत्रता दिलाने में किसी भी व्यक्ति का योगदान है तो उसे पढ़ा जाना चाहिए."

कन्हैया त्रिपाठी प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान उनके विशेष कार्य अधिकारी (ओएसडी) रह चुके हैं. उन्होंने महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय से पीएचडी की है. उनकी पढ़ाई अहिंसा और गांधीवाद पर हुई है.

हमने इस मामले में गांधी स्मृति और दर्शन समिति के उपाध्यक्ष विजय गोयल से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उनसे संपर्क नहीं हुआ.

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