Report

दिखावे का पर्यावरणीय जुर्माना: जुर्माना लगता है लेकिन प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड वसूलता नहीं

पंजाब में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 और अन्य पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन करने के लिए पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नियमों का उल्लंघन करने वाले शहरी नगर निकायों पर दो साल में कुल 130 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया, लेकिन निकायों से महज 17 करोड़ रुपए ही सरकार के द्वारा वसूला जा सका.

डाउन टू अर्थ के आरटीआई खुलासे के बाद एक बार फिर से यह साक्ष्य सामने आया है जिससे इस बात की पुष्टि होती है कि ‘नख और शिख विहीन’ प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरणीय जुर्माना लगाते जरूर हैं लेकिन उनकी वसूली में फिसड्डी साबित होते हैं.

डाउन टू अर्थ ने अपनी आरटीआई के जवाब में सीपीसीबी से यह जाना कि बीते तीस वर्षों में, नामी-गिरामी कंपनियों जैसे कोका-कोला, पेप्सिको, अदानी समूह, रिलायंस समूह से एक रुपए का भी पर्यावरणीय जुर्माना नहीं वसूला गया है. न ही सीपीसीबी को यह जानकारी है कि विभिन्न अदालतों ने उसे किस-किस मामले में इन कंपनियों से पर्यावरणीय जुर्माना वसूलने का निर्देश दिया है.

डाउन टू अर्थ को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की ओर से गठित, कचरा प्रबंधन के आदेशों की निगरानी करने वाली जस्टिस जसबीर सिंह की समिति की रिपोर्ट से यह जानकारी मिली.

रिपोर्ट में कहा गया, "पंजाब के विभिन्न नगर निकायों पर सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 के नियमों का पालन न करने के लिए, 01 जुलाई 2020 से लेकर 31 मार्च 2021 तक की अवधि के बीच 17.01 करोड़ रुपए का पर्यावरणीय जुर्माना और 01 अप्रैल 2021 से 28 फरवरी 2022 तक 20.35 करोड़ रुपए का पर्यावरणीय जुर्माना लगाया गया."

रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि, "नालों (ड्रेन) के साइट रेमिडेशन (मरम्मत) को न अपनाने और एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) न लगाने के लिए, 01 जुलाई 2020 से 28 फरवरी 2022 की अवधि के बीच पंजाब के नगर निकायों पर 93.22 करोड़ रुपए का पर्यावरणीय जुर्माना लगाया गया."

समिति की रिपोर्ट बताती है कि सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 के नियमों का पालन करने वाले मामले में राज्य सरकार ने सिर्फ 17 करोड़ रुपए का पर्यावरणीय जुर्माना राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास जमा किया है. रिपोर्ट कहती है, "राज्य सरकार के जरिए अदा की गई पर्यावरणीय जुर्माने की यह रकम बहुत कम है."

जस्टिस जसबीर सिंह की समिति ने, लुधियाना में कूड़े के ढेर में जलकर मरने वाले 7 व्यक्तियों के एक मामले में एनजीटी में पेश की गई अपनी रिपोर्ट में कहा कि निगरानी समिति यह सिफारिश करती है कि, सरकार को आदेश दिया जाए कि वह पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के जरिए लगाए गए विभिन्न पर्यावरणीय आर्थिक दंडों का भुगतान करें, जो कि 100 करोड़ रुपए से अधिक हैं.

पॉल्यूटर पेज प्रिंसिपल के तहत पर्यावरणीय जुर्माने का इस्तेमाल तात्कालिक राहत और दीर्घकालिक राहत के लिए किया जाता है. ऐसे में न सिर्फ बड़ी प्राइवेट कंपनियां बल्कि सरकार खुद भी पर्यावरणीय जुर्माने का मजाक बना रही हैं. वह भी तब, जब पर्यावरण प्रदूषण जानलेवा और खतरनाक होता जा रहा है.

2017 में दिल्ली के गाजीपुर लैंडफिल साइट से दो लोगों की मौत के बाद भी कोई सबक नहीं लिया जा सका. इसके बाद 2022 में लुधियाना के ताजपुर में एक ही परिवार के सात लोग कचरे के ढेर में जलकर मर गए, और हरियाणा के मानेसर में एक अधेड़ उम्र की महिला की प्लास्टिक कचरे में जलकर मृत्यु हो गई.

सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 के तहत न सिर्फ कचरे का प्रबंधन, बल्कि पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाना ही सरकारों का दायित्व है. अदालतें कई बार अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए लोगों के बुनियादी अधिकारों को संरक्षित और सुरक्षित करने का आदेश देती रहती हैं. इस दिशा में पर्यावरणीय जुर्माने का न वसूला जाना एक घातक संकेत है.

(डाउन टू अर्थ से साभार)

Also Read: 'ईपीआई इंडेक्स रिपोर्ट पर सवाल उठाने की बजाय सरकार को पर्यावरण से जुड़े विषयों को गंभीरता से लेना चाहिए'

Also Read: सारांश: दुनियाभर में प्रदूषण बना सबसे ज्यादा मौतों का कारण