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मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी के बाद ऑल्ट न्यूज़ का दफ्तर

22 वर्षीय कलीम अहमद के लिए 27 जून का दिन एक आम सोमवार की तरह ही था, जब वह कोलकाता में ऑल्ट न्यूज़ का अपना दफ्तर बंद करके घर पहुंचे. फिर उन्होंने अपनी स्क्रीन पर फैक्ट चेकिंग वेबसाइट की निदेशक निर्जरी सिन्हा का मैसेज देखा, जो उन्हें सूचित कर रहा था की ऑल्ट न्यूज़ के सह संस्थापक और कार्यकारी संपादक मोहम्मद जुबैर को गिरफ्तार कर लिया गया है.

जुबैर को 2020 के एक मामले में पूछताछ के लिए बुलाया गया था, जिसके लिए उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय से गिरफ्तारी को लेकर संरक्षण मिला हुआ था, लेकिन फिर उन्हें एक चार साल पुराने ट्वीट के लिए धार्मिक भावनाएं आहत करने और नफ़रत फैलाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया, जो एक अज्ञात ट्विटर खाते को अपमानजनक लगी थी. और अब वह खाता ट्विटर से गायब भी हो गया है. दिल्ली पुलिस ने बाद में आपराधिक साजिश सबूत मिटाने और विदेश से फंडिंग के नियमों का उल्लंघन करने के आरोपों को भी जोड़ दिया.

जुबैर, जिन पर पहले से ही पांच एफआईआर थीं, इस समय 14 दिन की न्यायिक हिरासत में हैं.

कलीम कहते हैं, "उस रात हम में से कोई भी ठीक से सो नहीं पाया. हम सब प्रतीक से पूछने लगे कि मदद करने के लिए हम क्या कर सकते हैं. उस समय हमें यह नहीं पता था की उन्हें गिरफ्तार क्यों किया गया है. हम सब ट्विटर पर उनके खिलाफ हो रही ट्वीट्स को ढूंढने, खंगालने और सूचीबद्ध करने में व्यस्त हो गए."

इस समय जब ऑल्ट न्यूज़ के संस्थापक प्रतीक सिन्हा कानूनी कार्यवाहियों और मीडिया के एक हिस्से के द्वारा लगाए गए आरोपों से जूझ रहे हैं, ऐसे में जुबैर के मामले ने न्यूज़रूम को हिला दिया है. ऑल्ट न्यूज़ का अहमदाबाद और कोलकाता में एक-एक दफ्तर है, जिनमें जनता के सहयोग से 12 लोग दिन-रात, इंटरनेट पर गलत सूचनाओं की बाढ़ की निगरानी का कम करते हैं.

ऑल्ट न्यूज़ में इस समय अंग्रेजी डिवीजन को देखने वाली पूजा चौधरी कहती हैं, "हालांकि इसको लेकर कुछ शंका थी, लेकिन तब भी मुझे धक्का लगा. तब से हम लोग बहुत दबाव में काम कर रहे हैं. बाकी की टीम काम संभाल रही है. कुछ खबरों में ज्यादा समय लग रहा है क्योंकि टीम के वरिष्ठ लोग जुबैर के मामले में व्यस्त हैं. इस बीच, हम सब हौसला बनाए रखने की भरसक कोशिश कर रहे हैं."

प्रतीक कहते हैं, "हमें बार-बार इस तरह के मामलों में लपेटते रहना, बहुत बोझिल कर देता है. जरा सोच कर देखिए, हमारी इतनी छोटी सी टीम है और मैं व जुबैर, जो टीम का नेतृत्व करते हैं पूरी तरह से इस मामले में लगे हुए हैं. यह हमारे ऊपर एक बड़ा आर्थिक बोझ भी है."

हालांकि कानूनी कार्रवाई का डर इस संस्थान के लिए नया नहीं है क्योंकि उन्हें कई कानूनी नोटिस मिल चुके हैं. लेकिन टीम के अंदर जुबैर ही इकलौते व्यक्ति हैं जिनके खिलाफ आपराधिक मामला चल रहा है. प्रतीक कहते हैं, "स्वाभाविक सी बात है कि इस मामले का उसकी मुस्लिम पहचान से बिलकुल लेना देना है."

27 मई को जुबैर ने नुपुर शर्मा का टाइम्स नाउ पर प्रसारित किया गया वह क्लिप ट्वीट किया था, जो बढ़ते-बढ़ते एक राजनयिक विवाद और देशभर में प्रदर्शनों में बदल गया. जुबैर की गिरफ्तारी की मांग ट्विटर पर ट्रेंड करने लगी थी. पूजा बताती हैं, "कुछ लोग उनकी पुरानी ट्वीट को ढूंढ कर निकालने लगे, कुछ ने तो उन पर मामला दाखिल करने के लिए इनाम की पेशकश भी की…हम सब चिंतित थे."

कुछ दिनों बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. प्रतीक इस बात पर दृढ़ हैं की यह गिरफ्तारी और बाकी कानूनी कार्यवाहियां, "उन्हें उनका कम करने से रोकने का एक प्रयास हैं."

हतोत्साह के माहौल के बीच संघर्ष

ऑल न्यूज़ के एक वरिष्ठ फैक्ट चेकर अर्चित मेहता के अनुसार, स्टाफ के सभी लोगों को ऑनलाइन प्रताड़ना झेलनी पड़ती है, लेकिन संस्थान और उसके निदेशक ऑनलाइन चलने वाली व्यापक झूठी खबरों की मुहिमों का निशाना‌ होते हैं. अर्चित कहते हैं, "इसके असल दुनिया में भी परिणाम हैं. जैसे की पत्रकारिता के सारे मूल्यों का पालन करते हुए भी, जो मुख्य धारा के मीडिया में नदारद हैं, देश का एक बड़ा हिस्सा यह समझता है की हम एंटी-नेशनल यानी राष्ट्र विरोधी हैं. अवधारणा प्रबंधन के इस चक्र में सोशल मीडिया की बड़ी-बड़ी कंपनियां भी फंस जाती हैं. ऑल्ट न्यूज़ के कई कर्मचारियों की प्रोफाइल वेरीफाई करने के लिए कई बार इंकार किया गया. इतना ही नहीं ट्विटर ने एक निदेशक की प्रोफाइल अभी तक वेरीफाई नहीं की है."

लेकिन यह ऑनलाइन नफरत आम जीवन में उतरने और कानूनी कार्रवाई के बावजूद पूजा चौधरी बताती हैं कि टीम अभी तक हतोत्साहित नहीं हुई है. "हमारी टीम के अंदर काफी स्वप्रेरणा है और हम अपने काम के महत्व और उपयोगिता को समझते हैं."

ऑल्ट न्यूज़ के हिंदी विभाग का नेतृत्व करने वाली प्रियंका झा कहती हैं, "2020 में जब जुबैर के खिलाफ मामले दाखिल होने शुरू हुए, तो इसने टीम के उत्साह पर असर किया. साथ ही, जुबैर ही टीम में सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा सक्रिय रहते हैं, इसलिए उनका यहां न होना टीम के हर सदस्य को अखरता है."

जुबैर के साथ लंदन में एक आदमी को स्टेडियम के बाहर फेंक दिए जाने की खबर पर काम कर चुके कलीम कहते हैं कि काम "थोड़ा धीमा हो जाता है." "सोमवार तक जब मैंने स्टोरी खत्म कर दी थी, जुबैर गिरफ्तार हो गए. आमतौर पर आखिरी सहमति प्रतीक देते हैं लेकिन इस बार चीजें अलग थीं, और हमें वह खबर अगले दिन प्रकाशित करनी पड़ी."

इस छोटी सी टीम का इरादा बड़ा है. मौजूदा 12 कर्मचारियों में से छह प्रकाशित की जाने वाली सामग्री को देखते हैं, जिसमें से दो लेखक हैं और दो वीडियो पर काम करते हैं. प्रतीक की मां निर्जरी सिन्हा सभी प्रशासनिक कामों को देखती हैं, सब चीजों की निगरानी की डेस्क को जुबैर और आकिब पठान संभालते हैं.

आमतौर पर जुबैर और आकिब, अपना दिन सोशल मीडिया पर वायरल या वायरल हो सकने वाली गलत जानकारी को ढूंढने से शुरू करते हैं. इसके बाद वह जानकारी एक लेखक को दी जाती है जो उसकी पुष्टि कर उसे प्रकाशित करता है. टीम में आकिब भी सबसे ज्यादा जुबेर से बात करते थे, और अब वह गलत जानकारियों के पूरे तंत्र पर अकेले नजर रख रहे हैं.

2020 में आल्ट न्यूज़ में आने के बाद जुबैर ने हीं आकिब को ट्रेंड किया, वह बताते हैं, "पिछले कुछ हफ्तों से मैं जुबेर के लिए बहुत ज्यादा परेशान था, लेकिन उसने हमेशा यही कहा की हम सत्य के पक्ष में हैं, इसलिए हमें किसी बात की चिंता करने की जरूरत नहीं. कई बार मैं उससे रात के 3:00 बजे भी बात करता था…उसी ने मुझे दिखाया की वह कौन से हैंडल हैं जो लगातार झूठी खबरें फैलाते हैं."

पूजा कहती हैं, "जब इतनी छोटी टीम जिसे इतनी ज्यादा गलत जानकारी को देखना हो, और उस टीम में जुबैर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हों, तो उनका यहां टीम के साथ न होना सभी को बोझिल कर देता है. कुछ जटिल कहानियों में हमें जुबेर और प्रतीक की समीक्षा की जरूरत पड़ती है. उदाहरण के लिए, हम लद्दाख में बौद्धों की मुसलमानों से एक झड़प की एक झूठी खबर का पर्दाफाश करने पर कम कर रहे थे. इसको प्रकाशित करने में सामान्य से ज्यादा समय लग गया क्योंकि जुबैर गिरफ्तार हैं और प्रतीक कानूनी काम में व्यस्त हैं. बिल्कुल, काम धीमा हो ही जाता है."

छोटी टीम बड़े इरादे

पूजा कहती हैं, "भारत में फैक्ट चेकिंग रिपोर्टिंग की तरह ही है. अक्सर आपको लोगों, पत्रकारों और जमीन पर स्टिंगर से तथ्यों को निकालने के लिए बात करनी पड़ती है. इसीलिए हमारी हर खबर कई स्तरों पर जांची जाती है." उन्होंने यह भी बताया की उनका संस्थान लगभग चार खबरें रोज प्रकाशित करता है.

लेकिन 2017 में बढ़ती हुई गलत जानकारी से लोगों को अवगत करने के लिए स्थापित किए गए ऑल्ट न्यूज़ का नजरिया, बदलने की कगार पर है क्योंकि प्रतीक असली कारण को समझ चुके हैं. वह कहते हैं, "जो कि इस तरह के प्रचार के लिए बातों में आ जाने वाले लोग हैं. हम यह समझ चुके हैं कि गलत जानकारी से पैदा होने वाले खतरों का इलाज पत्रकारिता में नहीं, बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में है."

पिछले कुछ महीनों से ऑल्ट न्यूज़ के संस्थापक, स्कूल के बच्चों के लिए वर्कशॉप चलाने के तरीकों और हर खबर की पुष्टि करने की आदत डालने से जुड़े कोर्स डिजाइन करने की मुहिम में लगे हैं. "इरादा है कि बच्चों को स्पष्ट रूप से सोचने के लिए सशक्त बनाया जाए."

इसी उद्देश्य को लेकर ही महामारी के बाद प्रतीक नया दफ्तर शुरू करने और शिक्षा के क्षेत्र पर ध्यान देने के लिए कोलकाता चले गए, वहीं जुबैर ने बेंगलुरु से कम करना जारी रखा.

काम के खतरे और प्रेरणा

घंटों तक, नफरत भरे अभियान, जो कई बार उनके खुद के लिए भी होते हैं, को देखते रहना टीम के लिए कठिन हो जाता है.

पूजा बताती हैं, "हम रोज इतनी नफरत देखते हैं की वह कई बार बहुत परेशान कर देती है. इसके बावजूद भी मैं कल्पना भी नहीं कर सकती की मुस्लिम समुदाय से आने वाले मेरे सहकर्मी किस तनाव से गुजर रहे होंगे."

आकिब कहते हैं कि नफरत और हिंसक सामग्री को नियमित तौर पर देखने की वजह से "उन्हें अक्सर नींद में परेशानी रहती है. जुबैर और मैं इस बारे में काफी बात किया करते थे."

दोनों बारी-बारी से कुछ समय स्क्रीन से दूर बिताया करते थे. इस तरह की परेशानियों की पुष्टि टीम के अन्य लोगों ने भी की, और बताया कि सब लोग नियमित तौर पर बारी-बारी से ब्रेक लेते हैं.

लेकिन टीम के सबसे छोटे सदस्य कालीन के अनुसार यही नफरत उन्हें प्रेरित भी करती है. उत्तरपूर्व भारत से आने वाले बंगाली मुसलमान होने के नाते कलीम बताते हैं, कि जिस तरह के डर और हिंसक भावना को वह देखते हैं वह उनके लिए झूठी खबरों का खुलासा करने के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन गया है. और उनके अनुसार सीएए प्रदर्शनों के दौरान उनके समुदाय की परेशानियों पर काफी चर्चा हुई, लेकिन उनका लक्ष्य "इस सारी नफरत का लेखा जोखा रखना है", जिससे की किसी दिन न्याय हो सके.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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