Report
बहते पानी के रास्ते में खड़े होते शहर
आपके चारों ओर घनी आबादी और वाहनों की बढ़ती संख्या केवल महानगरों में ही नहीं बल्कि छोटे और मझोले कस्बों में भी देखी जा सकती है. इसके साथ ही बेतरतीब शहरी फैलाव भी हुआ है. इसका सीधा असर पड़ा है वॉटर बॉडीज़ या प्राकृतिक जल स्रोतों पर, जो तेज़ी से खत्म हो रहे हैं. यही वॉटर बॉडीज़ हीटवेव से झुलसती धरती को ठंडा रखती हैं. लेकिन शहरों में जहां पेड़ और तालाब हुआ करते थे, आज वहां इमारतें खड़ी हो गई हैं और जहां बरसाती नाले और नहरें हैं, वहां सड़कों का जाल बिछ रहा है.
उत्तराखंड के सबसे बड़े कस्बों में से एक हल्द्वानी में सिंचाई के लिए बनाई गई नहरों को ढका जा रहा है ताकि वाहनों के लिए सड़कें चौड़ी की जा सकें. यहां के स्थानीय निवासी प्रमोद कहते हैं कि इससे तापमान और शोर दोनों बढ़ गया है. उनके मुताबिक, “नहर को कवर करने के बाद से यहां जो पहले शांति हुआ करती थी भंग हो गई. गाड़ियों की ही आवाज़ आती है बस. पहले हम जब छोटे थे हम यहां से घूमने जाते थे. किनारे में नहर चलती थी पानी की आवाज़ आती थी. वह सब बंद हो चुका है. अब कुछ सालों में ये जो नहर चल रही है इसे भी बंद करने का प्रपोजल है. शायद अगले दो-चार या दस सालों में ये भी बंद कर दी जाएगी.”
सैटेलाइट तस्वीरों से साफ पता चलता है हर जगह हरियाली और वॉटर बॉडीज़ तेज़ी से खत्म हुई हैं. इन्हीं पर कई पशु-पक्षियों, कीट पतंगों के जीवन चक्र के साथ एक पूरा इकोसिस्टम टिका होता है. पानी और नदियों के संरक्षण के लिए काम कर रहे विशेषज्ञ मनोज मिश्रा के मुताबिक बहते पानी के लिए उसमें घुली ऑक्सीजन प्राणों की तरह है. जब आप किसी वॉटर बॉडी को ढकते हैं तो वहां न केवल मीथेन और अन्य ज़हरीली गैसें बनती हैं, बल्कि प्रदूषकों को खत्म करने की ताकत भी चली जाती है.
उत्तराखंड सरकार के शहरी विकास निदेशालय में अधीक्षण अभियंता रवि पांडे भी मानते हैं कि ट्रैफिक और दूसरी शहरी जरूरतों के लिये वॉटर बॉडीज़ को ढकना ठीक नहीं है. उनके मुताबिक, “ट्रैफिक मैनेजमेंट सही रास्ता है न कि बहते पानी तो ढक कर सड़क बनाना. हमें कारों और तिपहिया वाहनों की संख्या सड़क से कम करके बीआरटी या मैट्रो जैसे परिवहन के तरीकों को अपनाना होगा.”
दिल्ली में कभी 200 से अधिक बरसाती नाले हुआ करते थे जो यमुना की सहायक जलधाराओं जैसे थे. आज ये स्टॉर्म वॉटर ड्रेन केवल सीवेज और ज़हरीला कचरा ढो रहे हैं, और प्रशासन इन्हें जहां-तहां ढकने में लगा है. पर्यावरण कार्यकर्ता राजीव सूरी कहते हैं कि इस मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने बाकायदा खुली वॉटर बॉडीज़ को न ढकने का आदेश दिया था.
सूरी बताते हैं, “एक समय दिल्ली में 200 स्टार्म वॉटर ड्रेन्स थे, और जब एनजीटी ने आखिरी बार इसे स्टडी किया तो पाया कि केवल 147 ड्रेन्स ही हैं. बाकी के 53 ड्रेन्स गायब हो गए थे. ये इनक्रोच हो गए थे या बिल्डर माफिया ने इन्हें कवर कर दिया था. एनजीटी ने इसका संज्ञान लेते हुए आदेश पास किया था कि आगे किसी नाले को कवर न किया जाए लेकिन जो बरसाती नाले कवर हो गए उन्हें कभी नहीं खोला गया. ऐसे यमुना को पुनर्जीवित नहीं किया जा सकेगा.”
हिल स्टेशन नैनीताल में करीब सवा सौ साल पहले अंग्रेज़ों ने उन स्टॉर्म वॉटर ड्रेन्स की अहमियत को पहचान लिया था जिन्हें आज हम खत्म कर रहे हैं. यहां 1880 में हुए भूस्खलन से तबाही के बाद ब्रिटिश राज में नैनीताल में स्टॉर्म वॉटर ड्रेन्स का जाल बिछाया गया, ताकि पानी के बहाव और उससे होने वाले नुकसान को नियंत्रित किया जा सके.
शहरी विकास के जानकार मनोज पांडे कहते हैं, “नैनीताल में जब लैंडस्लाइड आया था अंग्रेज़ों के वक्त में तो यह माना गया था कि वह लैंडस्लाइड पानी के ठीक से न बहने के कारण आ रहा है. तो उसे काउंटर करने के लिए इस तरीके के स्टॉर्म वॉटर ड्रेन अंग्रेज़ों ने चारों तरफ फैलाए. ये सारा का सारा पानी ये नीचे लेकर जाते हैं. लेकिन दुर्भाग्य का विषय यह है कि विगत कुछ सालों में इन नालों के बीच में भी निर्माण हुआ और इनके आरपार पाइप लाइन डाली गई हैं. जिसके कारण ठोस कचरा यहां फंस जाता है.”
उत्तराखंड आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र (DMMC) के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में 2015 से अब तक साढ़े सात हज़ार से अधिक अति वृष्टि की घटनाएं हो गई हैं. ऐसे में आपदा न आये, इसके लिए इन नालों की सेहत कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है.
Also Read
-
‘They find our faces disturbing’: Acid attack survivor’s 16-year quest for justice and a home
-
From J&K statehood to BHU polls: 699 Parliamentary assurances the government never delivered
-
Let Me Explain: How the Sangh mobilised Thiruparankundram unrest
-
TV Newsance 325 | Indigo delays, primetime 'dissent' and Vande Mataram marathon
-
The 2019 rule change that accelerated Indian aviation’s growth journey, helped fuel IndiGo’s supremacy