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भारतीय जनऔषधि परियोजना: हर बीमारी की एक दवा 'भाजपा'
भारतीय जनता पार्टी को बीजेपी भी कहा जाता है. लेकिन भारतीय जनऔषधि परियोजना को भी संक्षेप में बीजेपी कह सकते हैं. जो कि नरेंद्र मोदी सरकार के लिए एक खुशनुमा इत्तेफाक है.
भारतीय जनऔषधि परियोजना जनता को सस्ती जेनेरिक दवाइयां मुहैया कराने की एक योजना है. इसकी शुरुआत 2008 में मनमोहन सिंह सरकार ने जन औषधि योजना के नाम से की थी. 2015 में मोदी सरकार ने इसका नाम बदलकर प्रधानमंत्री जन औषधि योजना कर दिया. फिर नवंबर 2016 में इसका नाम एक बार फिर बदलकर प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना कर दिया गया, जिससे कि इसका नाम संक्षिप्त में "बीजेपी या भाजप" हो सके.
इसके बाद भी अगर स्पष्ट न हो, तो दवाओं की पैकिंग शक की कोई गुंजाइश नहीं छोड़तीं. दवाओं पर योजना के नाम के पहले अक्षर देवनागरी में "भा" "ज" "प" अलग से केसरिया रंग में लिखे हुए हैं, तथा बाकी अक्षर हरे और नीले रंग में हैं. केसरिया रंग, भाजपा का अपने दल की पहचान के लिए चुना हुआ रंग भी है.
यह दवाइयां, प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र नाम के दवाखानों पर देश भर में बेची जाती हैं. प्रधानमंत्री शब्द योजना के नाम में 2016 के नामांकन में जोड़ा गया था, और अब दवाखानों पर प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे वाले बोर्ड, करीब पांच लाख लोगों का हर रोज स्वागत करते हैं. भाजपा के सत्ता में आने से पहले ऐसे 80 दवाखाने ही थे, आज देश में ऐसे लगभग 8700 दवाखाने हैं. इस योजना को लागू करने वाली केंद्रीय एजेंसी, फार्मास्यूटिकल्स एंड मेडिकल डिवाइसेज ब्यूरो ऑफ इंडिया के अनुसार इन दवाखानों में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाली करीब 1600 दवाइयां और 240 सर्जिकल उपकरण उपलब्ध कराए जाते हैं. दवाखानों का स्टॉक लगातार बढ़ ही रहा है.
ब्यूरो के सीईओ रवि दधीच का कहना है कि "भाजप" योजना से पिछले साल मरीजों के करीब 4760 करोड़ रुपए बचे हैं, क्योंकि इन दवाखानों पर दवाइयां अपने ब्रांडेड संस्करणों से 50 से 90 प्रतिशत तक सस्ती बेची जाती हैं. उदाहरण के लिए अम्लोडिपाइन नाम की दवा का 10 गोलियों वाला पत्ता 5.50 रुपए का बेचा जाता है जबकि वहीं पत्ता बाजार में 28 रुपए का मिलता है.
दधीच ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि सरकार की योजना अगले साल तक 10,000 जन औषधि केंद्र खोलने की है और दूरगामी लक्ष्य के रूप में प्रति एक लाख व्यक्ति पर एक दवाखाना खोलने की मंशा है.
योजना के "भाजप या बीजेपी" नामांकन पर दधीच ने टिप्पणी करने से इंकार कर दिया. लेकिन दोबारा नामांतरण का नेतृत्व करने वाले रसायन व उर्वरक मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह निर्णय शीर्षस्थ "राजनीतिक प्रतिनिधियों" के द्वारा लिया गया था. रसायन व उर्वरक मंत्री मनसुख मनदेविया ने इस पर टिप्पणी लेने के हमारे प्रयास का कोई जवाब नहीं दिया.
लेकिन इस तरह की ब्रांडिंग पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं है. क्योंकि तकनीकी तौर पर यह राजनीतिक विज्ञापन की श्रेणी में नहीं आता जिसका निर्धारण सरकारी विज्ञापनों का विनियमन करने वाली कमेटी करती है.
2016 में उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर बनाई गई पीस कमेटी का काम यह निर्धारित करना है कि जनता के टैक्स के पैसे से दिए जा रहे हैं. ज्ञापन केवल सरकार की जिम्मेदारियों से जुड़े हों, राजनीतिक हितों को न बढ़ाते हों, उनकी सामग्री विषयानुरूप हो और वे कानूनी और आर्थिक मानकों पर खरे उतरते हों.
इस चैनल पर "संदेह से परे निष्पक्षता और तटस्थता" रखने वाले तीन सदस्य अपेक्षित हैं लेकिन इसके बावजूद पक्षपात के आरोप लगते रहे हैं, खास तौर पर आम आदमी पार्टी की तरफ से. लेकिन दिसंबर 2021 तक कमेटी के चेयरमैन का कार्यभार संभालने वाले पूर्व चुनाव आयुक्त ओपी रावत आरोपों को खारिज करते हैं. वह इस बात की ओर भी ध्यान दिलाते हैं कि उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने के लिए उन्होंने "कई भाजपा सरकारों" को भी नोटिस जारी किए थे.
जनहित की योजनाओं को अपने नेता और पार्टी के प्रचार के लिए इस्तेमाल करने का मोदी सरकार का इतिहास रहा है. उसने कई पुरानी योजनाओं का नामांकरण दोबारा से दीनदयाल उपाध्याय जैसे संघ परिवार के विचारकों या योजनाओं के नामों में "प्रधानमंत्री" जोड़कर किया है.
लेकिन ऐसा करने वाली यह अकेली सरकार नहीं है. मायावती जब उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं तो बहुजन समाज पार्टी के चुनाव चिन्ह हाथी की मूर्तियां लगवाने को लेकर विवाद खड़ा हुआ था. उनके बाद बने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ऐसी कई योजनाएं शुरू कीं जिनके नाम में "समाजवादी" जुड़ा हुआ था और राशन कार्ड पर उनकी फोटो हुआ करती थी. उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बसों, जन शौचालय और स्कूल के बच्चों को भी केसरिया रंग में रंगवा दिया.
बंगाल में ममता बनर्जी सरकार ने, फ्लाईओवर और रेलिंगों को तृणमूल कांग्रेस पार्टी के सफेद और नीले रंगों से रंग दिया, और राज्य के सरकारी स्कूलों में नीले और सफेद रंग की वेशभूषा भी लागू कर दी.
दिल्ली में महालेखापरीक्षक और निरीक्षक या सीएजी ने 2016 में अरविंद केजरीवाल की सरकार पर जनता का पैसा टीवी पर ऐसा विज्ञापन दिखाने का आरोप लगाया जिसमें एक व्यक्ति आम आदमी पार्टी के चुनाव चिन्ह झाड़ू को लहरा रहा था, और "आपकी सरकार" कह रहा था. जाहिर तौर पर सरकार के बजाय पार्टी का प्रचार हो रहा था. लेकिन केजरीवाल सरकार "आपकी सरकार" नारे का इस्तेमाल अभी भी जारी रखे हुए है.
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