Report
'ईपीआई इंडेक्स रिपोर्ट पर सवाल उठाने की बजाय सरकार को पर्यावरण से जुड़े विषयों को गंभीरता से लेना चाहिए'
अमेरिका के येल और कोलंबिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने हाल ही में अपनी नई रिपोर्ट- पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (ईपीआई इंडेक्स) 2022 प्रकाशित की. इस रिपोर्ट में इन शोधकर्ताओं ने 180 देशों को 40 मानकों के आधार पर रैंकिंग की है. इसमें भारत को 180वां रैंक मिला है. माने भारत इस रैंकिंग में सबसे नीचले पायदान पर है. हालांकि, भारत सरकार ने इस रिपोर्ट को अवैज्ञानिक करार दिया है.
ईपीआई रिपोर्ट ने मौजूद आंकड़ों और अनुमानों के आधार पर 180 देशों की रैंकिंग की है. इसमें जंगल के जमीन की हानि, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, 2050 तक होने वाला अनुमानित उत्सर्जन, वायु की गुणवत्ता, जैव-विविधता, वातावरण से जुड़े स्वास्थ्य इत्यादि को ध्यान में रखा गया.
भारत के खराब स्कोर के पीछे मुख्यतः खराब होती वायु की गुणवत्ता और ग्रीनहाउस गैस के बढ़ते उत्सर्जन को बताया गया है. इस रिपोर्ट में अधिकतर दक्षिण एशियाई देशों की खराब रैंकिंग की गई है. इस रिपोर्ट की माने तो 2050 के अंत तक विश्व का 80 प्रतिशत उत्सर्जन चार बड़े देशों-चीन, रूस, भारत और अमेरिका द्वारा होगा. यह रिपोर्ट कहती है कि 2021 के ग्लासगो शिखर सम्मेलन के प्रतिबद्धताओं के विपरीत 2050 तक बहुत कम देश ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को कम कर पाएंगे. चीन, रूस और भारत के बारे में कहा गया है कि ये देश विपरीत दिशा में जाते दिख रहे हैं. इस रिपोर्ट में सबसे अच्छी रैंकिंग डेनमार्क, इंग्लैंड और फिनलैंड को मिली है.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की खराब रैंकिंग की वजह गिरती वायु गुणवत्ता और जैव-विविधता है. ग्लोबल डिज़ीज़ बर्डन रिपोर्ट से भी इसक पुष्टि होती है. ईपीआई 2022 की रिपोर्ट कहती है कि देश में वायु प्रदूषण से हर साल कई मौत होती है. इस रिपोर्ट में भी देश में जलवायु परिवर्तन को रोकने और नेट जीरो (उत्सर्जन-मुक्त) के लिए किए गए प्रयासों पर भी सवाल खड़ा किया है.
“जलवायु परिवर्तन एक और क्षेत्र है जहां भारत की स्थिति नाजुक है. भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ग्रीनहाउस उत्सर्जन करने वाला देश है. इसके सामने जलवायु परिवर्तन को रोकने की कुछ बाधाएं भी हैं. इस देश में नवीन ऊर्जा को प्रोत्साहित करने के लिए उठाए गए कदम, काबिले तारीफ हैं. लेकिन इस देश को कार्बन मुक्त बनाने के लिए वर्तमान में जो निवेश हो रहा है वह काफी नहीं है. पिछले 10 सालों के उत्सर्जन और 2050 तक होने वाले अनुमानित उत्सर्जन के आंकड़ों को देख कर ईपीआई के शोधकर्ताओं को नहीं लगता है कि भारत और विश्व के बहुत से देश 2050 तक नेट जीरो का लक्ष्य हासिल कर पाएंगे. 2021 में आयोजित ग्लासगो शिखर सम्मेलन में नेट जीरो का लक्ष्य निर्धारित किया गया था,” शोधकर्ताओं ने अपने वक्तव्य में कहा.
हालांकि, भारत सरकार ने इस रैंकिंग से असहमति जताई है और एक औपचारिक स्टेटमेंट जारी किया है. इसमें कहा गया है कि इस रैंकिंग के लिए कई अनुमान को आधार बनाया गया है. यानी बहुत से मानक अनुमान पर आधारित हैं. कई मानकों को बढ़ा-चढ़ा कर और अवैज्ञानिक तरीके से प्रस्तुत किया गया है, भारत सरकार का कहना है.
सरकार ने यह भी कहा कि इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए देश मे 10 साल के उत्सर्जन के आंकड़ों को ध्यान में रखा गया पर जंगल और आर्द्रभूमि (वेटलैंड) जो कार्बन को सोखने का काम करते हैं, उसपर ध्यान नहीं दिया गया. उसी तरह प्रति व्यक्ति उत्सर्जन को ध्यान में नहीं रखा गया. देश के नवीन ऊर्जा के क्षेत्र में हुई प्रगति को भी नजरंदाज कर दिया गया है.
इस रिपोर्ट को बनाने वाले शोधकर्ताओं अपनी सफाई में कहते हैं कि इस पूरी प्रक्रिया का उद्देश्य इतना भर है कि देश सही दिशा में अपनी नीति बनाए. इसका उद्देश्य आरोप-प्रत्यारोप करना नहीं है. “ईपीआई का मुख्य उद्देश्य सटीक तरीके से आंकलन कर देशों के नीति निर्माताओं को ऐसे जानकारी देने की थी कि वो अपनी नीतियों में सुधार कर सकें. इस सूचकांक के माध्यम से हम देशों के पर्यावरण के क्षेत्र में देश के प्रदर्शन को बेहतर करने में सहयोग देना चाहते थे जो जटिल पर्यावरण समस्याओं को उजागर करने से ही संभव था ताकि इसका ध्यान देशों के नीति निर्माताओं तक पहुंचे और देश पर्यावरण के क्षेत्र में और बेहतर कर सके,”अमेरिका में रह रहे मार्टिन वोल्फ ने बताया. वोल्फ ईपीआई 2022 के प्रमुख पर्यवेक्षक हैं.
वोल्फ यह भी कहते है, “पिछले कुछ दशकों में बहुत से पिछड़े रैंक वाले देशों ने इस रिपोर्ट को एक मौके और चुनौती के रूप में लिया और सही नीति के साथ पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं पर काम किया और अपनी रैकिंग अच्छी की. इस रिपोर्ट को अवैज्ञानिक या पक्षपातपूर्ण कहना, जैसा भारत सरकार ने किया, किसी के लिए हितकारी नहीं होगा. ईपीआई टीम चाहेगी की भारतीय नीति निर्माता भी इस रिपोर्ट और रैंकिंग को एक ऐसे मौके के रूप मे देखे जिसका इस्तेमाल वो देश को सही रास्ते मे ले जाने में कर सकते हैं. इससे आने वाला भविष्य ज्यादा सेहतमंद और वातावरण के लिहाज से ज्यादा लाभदायक हो सकेगा.”
भारतीय शोधकर्ता भी उठा रहें है रिपोर्ट पर सवाल
सिर्फ भारत सरकार ही नहीं बल्कि बहुत से शोधकर्ता और विशेषज्ञों का मानना है कि जिस प्रकार से मानकों का चयन इस सूचकांक को बनाने में लगा है वो सवालों के घेरे में हैं. चन्द्र भूषण, ई-फॉरेस्ट नाम की संस्था के प्रमुख हैं और यह संस्था वातावरण से जुड़े मुद्दों पर काम करती है. चंद्रभूषण करीब एक दशक तक भारतीय उद्योगों की रैंकिंग का भी हिस्सा रहे हैं.
उन्होने बताया कि लगभग सारे रैंकिंग या ऐसी रिपोर्ट सब्जेक्टिव मानकों पर तैयार किए जाते हैं. अच्छी रिपोर्ट वही मानी जाती है जिसमें कम से कम सब्जेक्टिविटी शामिल हो. वस्तुनिष्ठ मानकों पर तैयार रिपोर्ट को अच्छा माना जाता है.
“मौजूदा ईपीआई रिपोर्ट में सब्जेक्टिविटी बहुत है. तुलना करने की विधि भी ठीक नहीं है. आप हरियाली की कमी के आंकड़ों को ही लीजिए. इस रिपोर्ट के हिसाब से इस मामले में सबसे बेहतर प्रदर्शन (सबसे कम हरियाली की हानि) एरिट्रिया नाम के एक छोटे से देश में हुई जिसके पास केवल 50 एकड़ की जंगल की जमीन है. अगर भारत की बात करे तो लुटियन्स दिल्ली में इससे ज्यादा पेड़ मिल जाएंगे. क्या हम ऐसे दो देशों में होने वाले हरियाली के हानि की तुलना कर सकते हैं? एरिट्रिया के पास खोने के लिए कुछ है ही नहीं,” चन्द्र भूषण ने बताया.
उन्होने यह भी बताया कि ज्यादातर दक्षिण एशियाई देशों और ज्यादा जनसंख्या वालें देशों को बुरे रैंक मिले हैं. यह गलत मानकों के चयन के कारण हुआ है. चंद्र भूषण ने पिछले साल के जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक का भी उदाहरण दिया जिसमें भारत को 64 देशों में से दसवां स्थान मिला था जो प्रति व्यक्ति उत्सर्जन पर आधारित था.
उल्का केलकर वर्ल्ड रिसौर्सेस इंस्टीट्यूट (डबल्यूआरआई) की जलवायु नीति विभाग की निदेशक हैं. उन्होने बताया, “इस रिपोर्ट में अभी हो रहे कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन और भविष्य में होने वाले उत्सर्जन को सही से नहीं आंका गया है. इसमें बड़े देशों के भौगोलिक आकार को नजरंदाज किया गया है. यही वजह है कि यह रिपोर्ट, देश की नीतियों में कमी को ठीक से उजागर करने मे सक्षम नहीं है. इसमें न तो देशों का भूगोल और ना ही भूतकाल में हुए उत्सर्जन पर ध्यान दिया गया है.”
केलकर ने यह भी कहा की मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) एक महत्वपूर्ण आधार है. इसे पूरे विश्व में स्वास्थ्य और शिक्षा की स्थिति समझने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. यह सूचनकांक भी प्रति व्यक्ति उत्सर्जन को शामिल करता है और बड़े और छोटे देशों को एक तराजू से नहीं तौलता. हालांकि इस रिपोर्ट मे यह नहीं किया गया है.
रंजन पांडा, नदी, जल और जलवायु परिवर्तन पर काम करते हैं. उनका कहना है कि सरकार को ईपीआई इंडेक्स के रिपोर्ट को नजरंदाज करने की बजाय देश में पर्यावरण से जुड़े विषयों को गंभीरता से लेना चाहिए. “बहुत से लोग इस रिपोर्ट के मानकों पर प्रश्न उठा सकते हैं लेकिन सच्चाई यह है कि भारत पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियों को झेल रहा है. कोयले के खनन का विस्तार करना, अंधा-धुंध विकास, शहरी इलाकों का लगातार विस्तार इत्यादि से हमारे जंगल, आद्रभूमि और पूरा पर्यावरण प्रभावित हो रहा है. इसलिए इस रिपोर्ट को हमे गंभीरता से लेना चाहिए और ऐसी नीति बनानी चाहिए ताकि हवा, पानी और स्वास्थ्य सब बेहतर हो सके. यह सबके लिए हितकारी होगा.” पांडा मे बताया.
पिछले कुछ सालों में ईपीआई इंडेक्स में भी भारत पीछे
लगभग दो दशक पहले ईपीआई इंडेक्स की शुरुआत येल और कोलंबिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने की. तब देशों की दशा-दिशा समझने के लिए सयुक्त राष्ट्र के मिलेनियम डेवेलपमेंट गोल्स के आंकड़ों का ही इस्तेमाल होता था.
इस सूचकांक में भारत को अक्सर खराब रैंकिंग ही मिली है. ईपीआई रिपोर्ट हर दो साल में एक बार प्रकाशित होती है.
2006 के ईपीआई इंडेक्स रिपोर्ट में 133 देशों का आंकलन किया गया जिसमें भारत को 118वां स्थान मिला. 2014 से इस रिपोर्ट में 180 देशों को शामिल किया जाने लगा. 2014 में 180 देशों में भारत को 141वां स्थान मिला. यह 2018 में 117 हो गया और 2022 में देश सबसे नीचे, 180वें स्थान पर जा पहुंचा.
2010 में 163 देशों में से भारत का स्थान 123वां था. भारत सरकार ने उस समय अपनी पिछड़ी रैंकिंग के लिए अधिक जनसंख्या को जिम्मेदार ठहराया था. हालांकि 2022 के रिपोर्ट आने के बाद मौजूदा सरकार ने इसके मानकों के चयन और पूरी रिपोर्ट को ही अवैज्ञानिक बता दिया.
(साभार- MONGABAY हिंदी)
Also Read
-
How Muslims struggle to buy property in Gujarat
-
A flurry of new voters? The curious case of Kamthi, where the Maha BJP chief won
-
क्लाउड सीडिंग से बारिश या भ्रम? जानिए पूरी प्रक्रिया
-
टीवी रेटिंग प्रणाली में बदलाव की तैयारी, सरकार लाई नया प्रस्ताव
-
I&B proposes to amend TV rating rules, invite more players besides BARC