Khabar Baazi
वॉशिंगटन पोस्ट संपादकीय: भारत में सांप्रदायिक असहिष्णुता बेरोकटोक है, अमेरिका को दबाव बढ़ाना चाहिए
भारत में 'बेरोकटोक' बढ़ती सांप्रदायिक 'असहिष्णुता' को लेकर, वॉशिंगटन पोस्ट अखबार ने एक संपादकीय लिखा. संपादकीय में इसकी तीखी आलोचना करते हुए अमेरिकी सरकार से देश में 'बढ़ती हुई इस्लाम से नफरत' का विरोध करने की सलाह दी.
पैगंबर मोहम्मद पर हुई टिप्पणी के बाद पैदा हुए राजनीतिक विवाद के हवाले से संपादकीय में कहा गया कि इस "विरोध से कुछ परिणाम मिले." संपादकीय में यह भी इंगित किया गया कि नरेंद्र मोदी सरकार ने भाजपा प्रवक्ताओं को निकाल दिया, लेकिन "प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा ने इस प्रकार प्रशासन नहीं चलाया है."
"मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में, अनाप-शनाप कारणों पर बुलडोजरों ने मकान ढहा दिए हैं, साथ ही स्थानीय प्रशासन ने इसको लेकर अपनी पीठ भी थपथपाई है. कर्नाटक की भाजपा सरकार ने स्कूलों में हिजाब पर बैन लगा दिया, जिस पर मार्च में राज्य की अदालत ने भी मुहर लगा दी. हर साल सैकड़ों की तादाद में भारतीय मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ अपराध होते हैं, और स्थानीय व प्रदेश स्तर के भाजपा नेता खुद भी नफरत भरे बयान देते हैं. इस सबके बीच, प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के अन्य राष्ट्रीय नेता अब तक चुप्पी साधे रहे हैं."
"उनके इतिहास को देखते हुए, इसकी संभावना कम है कि भाजपा के अच्छे दिखने वाले वक्तव्य सांप्रदायिक असहिष्णुता के लिए अचानक पैदा हुई चिंता व्यक्त करते हैं. पिछले शुक्रवार प्रदर्शनकारियों की भीड़ पर पुलिस के काबू पाने के प्रयास में दो लोग मारे गए और दर्जनों घायल हो गए."
वाशिंगटन पोस्ट ने कहा कि सरकार के द्वारा सांप्रदायिक असहिष्णुता की हालिया आलोचना, "मध्य पूर्व के देशों को विमुख करने की उनकी चिंता दिखाती है, क्योंकि भारत इन देशों पर प्राकृतिक गैस, आर्थिक सहयोग, इंफ्रास्ट्रक्चर योजनाओं, आतंकवाद विरोधी अभियानों और खुफिया जानकारी के लिए बहुत ज्यादा निर्भर करता है. करोड़ों भारतीय खाड़ी देशों में रहकर काम करते हैं और बड़ी मात्रा में पूंजी वापस घर भेजते हैं. मोदी भारत को वैश्विक मंच पर लीडर बनाना चाहते हैं. हाल ही में हुआ विरोध दिखाता है कि वे और उनकी पार्टी, दूसरे देशों के द्वारा भारत में उनकी पार्टी के द्वारा प्रोत्साहित व नजरअंदाज किए जा रहे खुले मुस्लिम विरोध पर आपत्ति जताने का संज्ञान ले सकते हैं."
अखबार ने यह भी कहा कि अमेरिकी सरकार को भारत सरकार पर "दबाव बढ़ाना चाहिए." वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा, "विदेश मंत्री (सेक्रेटरी ऑफ स्टेट) एंटनी ब्लिंकन ने अप्रैल में कहा था कि वार्डन प्रशासन भारत में मानवाधिकार हनन पर नजर रख रहा है, इस महीने उन्होंने भारत को घटती हुई धार्मिक आजादी वाले देश के रूप में चिन्हित किया. लेकिन हालिया विवाद के दौरान वाइट हाउस चुप्पी साधे रहा है. भारत एक विविधतापूर्ण जनतंत्र या कलुषित असहिष्णु राष्ट्रवाद का देश हो सकता है. संयुक्त राज्य अमेरिका को इनमें से पहले विकल्प के लिए सक्रिय रूप से काम करना चाहिए."
Also Read
-
Supreme Court’s stray dog ruling: Extremely grim, against rules, barely rational
-
Mathura CCTV footage blows holes in UP’s ‘Operation Langda’
-
Few questions on Gaza, fewer on media access: Inside Indian media’s Israel junket
-
Wanted: Menacing dogs for TV thumbnails
-
चुनाव आयोग का फ़ज़ीता, राहुल गांधी की प्रेस कॉन्फ्रेंस और धराली आपदा का सच