Opinion

एक नागरिक के तीन पहर

यह जन सामान्य की समझदारी पर आक्रमण का समय है. बच सकते हों तो बच जाइए अन्यथा बच सकना इस कुटिल समय का सबसे मुश्किल काम है. आपको बचने नहीं दिया जाएगा. आपकी सुबह जिस योग से होगी वह योग केवल योग मात्र नहीं होगा. उसकी पीठ बाजार और राष्ट्रवाद दोनों के बोझ से दबी होगी. वह फोन जिसे आपने रात में निर्बाधित नींद लेने के लिए स्विच ऑफ किया होगा, खुलते ही तड़ातड़ मीम की मिसाइलों के हमले झेलेगा. उसमें उगते हुए सूरज और डाल पर बैठी हुई चिड़िया ही नहीं होगी, ये मीम-मिसाइल पहले आपको ‘दुर्बल हिंदू’ होने की कोफ्त से भरेंगे.

ये आपको आपस में ‘बंटे’ होने के लिए कोसेंगे और धीरे से बिना पानी के घृणा की दो तीन प्रातःकालीन टेबलेट निगलने के लिए दे देंगे. मीठी लगने के कारण आप उन्हें तसल्ली से निगल भी लेंगे. यदि आप सुबह की सैर के शौकीन हैं तो घृणा की यह गोलियां आपको हाथों-हाथ अपनी सोसाइटी के रिटायर्ड अंकल लोगों से मिल जाएंगी.

घृणा की इन गोलियों में ‘राष्ट्र गौरव’ के कल्पनिक लवण मिले होंगे. ये कल्पनाएं तथ्यों के दांत तोड़कर हासिल की गई होंगी. अपने बच्चों को यूएस में ‘सेटल’ कर चुकने के बाद इन अंकल लोगों की ये कल्पनाएं इस देश के आम नागरिकों के बच्चों से यह उम्मीद करेंगी कि मध्यकालीन भारत के मुस्लिम शासकों के युग में हुए ‘अत्याचारों’ का बदला वह 21वीं सदी की इसी सुबह ले ले.

सुबह की सैर से लौट कर जैसे ही आप घर में घुसेंगे तो पाएंगे कि ज़हर की अगली खुराक को गोल गोल बंडल बनाकर किवाड़ों के नीचे से आपके घर में सरकाया जा चुका है. यह छपा हुआ जहर होगा. इसे इस देश में बोली जाने वाली सबसे बड़ी भाषा में हर दिन की पिछली आधी रात तक तैयार कर लिया जाता है और सवेरे-सवेरे आपके खाली पेट में न भेजकर पहले से ही संतृप्त दिमाग की रक्त शिराओं में घुलने के लिए भेज दिया जाता है.

आपके मुंह में सैंडविच होगा. इन अखबारों में खबरों को कुछ इस तरह लगाया गया होगा कि आप ऑफिस जाने से पहले अपने खून में सांप्रदायिकता और धर्मोन्माद का हारमोन महसूस करेंगे. सैंडविच खाते-खाते आपके दांत भिंच जाएंगे. आपके इस तरह दांत भींचते ही जहर के निर्माता अर्थात संपादकों का पूरा दिन आपके द्वारा अप्रत्यक्षतः सफल बना दिया जाएगा. इस तरह आपकी दिनचर्या का ‘अथ प्रथम पहर’ समाप्त होगा.

अगला पहर सामाजिकता का लिटमस परीक्षण होगा. आप अपने कार्यालयों या किसी भी तरह के कार्य-स्थलों के बीच सहकर्मियों और साथियों से घिरे होंगे. रोज-रोज माथे पर पर तिलक लगा कर आने वाला बॉस टोपी-दाढ़ी आदि धार्मिक प्रतीक धारण करने वालों की दैनिक कट्टरता पर एक आख्यान देगा जो आपको आपके उदार होने के बावजूद कम से कम 50 प्रतिशत तक सही लगेगा. यार दोस्त इस पहर को आगे बढ़ाएंगे. आपकी नसें भन्नाएंगी. आंखों के आगे मुंबइया फिल्मों में दिखाए जाने वाला धुआं छा जाएगा.

आप इतिहास के फ्लैश बैक में घुस जाएंगे. दफ्तर की दीवारें मीनारें बन जाएंगी. छत के बीम महराबों में बदल जाएंगे. आप को लगने लगेगा कि अब तक आप जिस जगह खामोशी से काम करते रहे वो जगह वस्तुतः एक गुंबद है. पूरा दफ्तर आपके खिलाफ इतिहास की एक साजिश है. दस्तखतों में रोज साथ देने वाली आपकी कलम जेसीबी बुलडोज़र बन जाएगी. आप पूरा दफ्तर तोड़ डालना चाहेंगे. यह पहर आपके टिफिन के ठंडाने और चेतना के गर्माने पर दम तोड़ेगा.

अपरान्ह होते-होते आप थकने को होंगे. ऊर्जाशोषी होने के कारण घृणा आपको थका देगी. मुमकिन है कि मुक्तिबोध की कहानी ‘क्लाड ईथरली’ के नायक की तरह मध्यवर्गीय अपराध बोध आपको सालने लगे. इस वेला में मन प्रेम और घृणा दोनों से ऊबने की संभावनाएं लिए होता है. यह बात विष-उत्पादकों को पता होती है. इसलिए इस दिनचर्या का अंत जहरखुरानी की सबसे अभूतपूर्व तैयारियों से होता है. अखबार, व्हाट्सएप और इतर सोशल मीडियाओं से होते हुए आपकी दिनचर्या का सूरज अब टीवी के स्टूडियोज में कैद कर लिया जाता है.

यह बेहद दर्द के क्षण होते हैं. वह ठंडाना चाहता है. दिन भर के श्रम से पराभूत हो डूब जाना चाहता है. उसके यह तापीय आग्रह ठुकरा दिए जाते हैं. यह उसके ठंडे होने का पल नहीं है. उसे और जलना है. पर्दों पर ज्वालाएं अवतरित होती हैं. टीवी स्विच और सर्किट खुद को जलने से रोक देने में अपना पूरा यौवन झोंक देते हैं.

इस पल के टेलीविजन यंत्र का तापमान उसे बनाने वाले इंजीनियरों की डिग्रियों का भी टेस्ट होता है. घात-प्रतिघात, थूक-प्रत्थूक, वार-पलटवार, टीवी का पर्दा रोम का कोलेजियम बन जाता है. कत्ल, कत्ल नहीं रहता. मनोरंजन बन जाता है. देश का दर्शक इस वर्चुअल कोलेजियम में प्रवेश पा जाता है. वह रक्तहीन मनोरंजन से घृणा करने लगता है. वह उन्माद चाहता है.

धीरे-धीरे बोलने वाले लोग कायर और रोम के विरोधी लगने लगते हैं. वह सीख नहीं चीख चाहता है. वह हिंसक शर्तों पर मनोरंजित होना चाहता है. एक उच्च तापमान के साथ अंतिम पहर खत्म होता है. अगले दिन के लिए और उच्चतर तापमान हासिल करने की साध लिए. आपके सपनों पर बस इतना तरस खाया जाता है. उन्हें तराइन का मैदान बनने के लिए छोड़ दिया जाता है.

Also Read: संघ समर्पित मीडिया का पत्रकारिता अवार्ड और खुशकिस्मत चेहरे

Also Read: भारत विरोधी कंटेंट को लेकर यूट्यूब ने बैन किए 20 चैनल