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मूसेवाला के गांव से: 'मिस यू उस्ताद, अब हम इस खेत में कभी फसल नहीं उगाएंगे'
शाम को करीब 6 बजे, ढलते हुए सूरज की रोशनी में एक खाली खेत में पेड़ के नीचे कुछ लोग बैठे हुए थे और एक ताजा बनी समाधी की ओर देख रहे थे. वहीं कुछ लोग उस समाधी पर लगे फोटो को देखकर हाथ जोड़ रहे थे. जिसपर लिखा हुआ था, “मिस यू उस्ताद”.
कुर्सी पर गमगीन बैठे मूसे गांव के रहने वाले संदीप सिंह, वहां मौजूद अन्य लोगों को अपने जिगरी दोस्त शुभदीप सिंह सिद्धू उर्फ सिद्धू मूसेवाला के बारे में बता रहे थे. वह कहते हैं, “मैं भी उसके साथ कार में जाने वाला था. लेकिन मैं पांच मिनट लेट हो गया और वह चला गया.”
29 मई को पंजाबी सिंगर सिद्धू मूसेवाला अपने दो दोस्तों के साथ, मानसा में रहने वाली अपनी मौसी के घर जा रहे थे. शाम को करीब 4:30 बजे, पहले से पीछा कर रही दो गाड़ियों में बैठे अज्ञात हमलावरों ने जवाहरके गांव में सिद्धू की कार को घेर लिया और अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. फायरिंग में सिद्धू की मौत हो गई और उनके दोनों दोस्त घायल हो गए.
सिद्धू की हत्या से एक दिन पहले पंजाब सरकार ने प्रदेश के 424 वीआईपी लोगों की सुरक्षा में कटौती की थी, जिनमें सिद्धू भी शामिल थे. सरकार ने सिद्धू को मिले चार कमांडो में से दो को वापस ले लिया था. मूसेवाला के दोस्त गुरविंदर सिंह हमले वाले दिन कार में ही थे. वह बताते हैं कि महिंद्रा थार एसयूवी में पांच लोगों के बैठने में मुश्किल होती है, इसलिए वह अपने बॉडीगार्ड्स को साथ नहीं ले गए.
संदीप कहते हैं, “जब भी वह कहीं आसपास जाता था तब वह बॉडीगार्ड्स और बुलेटप्रूफ गाड़ी को साथ नहीं ले जाता था. यह आम बात है.” सिद्धू के पास बुलेटप्रूफ फॉर्च्यूनर कार भी थी लेकिन घटना वाले दिन वह इस कार को लेकर नहीं गए थे.
घटना के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए पंजाब के डीजीपी वीके भवरा ने कहा कि ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी और अगले महीने “घल्लुघारा सप्ताह” के कारण सुरक्षा कम की गई थी. हालांकि अब पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार को सुरक्षा से वंचित किए गए लोगों को फिर से सुरक्षा मुहैया कराने का आदेश दिया है और सुरक्षा रिपोर्ट के लीक होने पर फटकार भी लगाई है.
न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद सिद्धू मूसेवाला की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि सिद्धू को कुल 19 गोलियां लगी थीं और उसकी मौत 15 मिनट के भीतर ही हो गई थी. सिद्धू के घायल दोस्त अभी भी अस्पताल में हैं और अब खतरे से बाहर हैं.
जवाहरके गांव में जिस सड़क पर सिद्धू की हत्या हुई उसके आस-पास बहुत से घर और मंदिर हैं. उसी रोड पर नितिन सिंह (बदला हुआ नाम) की पंचर की दुकान भी है. वह बताते हैं, “हमेशा मंदिर में कम से कम 6-7 लोग तो रहते ही हैं, लेकिन घटना वाले दिन कोई नहीं था.” जब सिद्धू की कार पर हमला हुआ तब वह अपनी दुकान के बाहर बैठे हुए थे.
नितिन कहते हैं, ”करीब 6-7 लोग कार से निकले और फायरिंग शुरू कर दी. गोलियों के डर से मैं वहां से भागने लगा. जैसे ही मैंने अपने फोन को हाथ में लिया, हमलावरों को लगा कि मैं रिकॉर्डिंग कर रहा हूं और उन्होंने मेरी तरफ गोली चला दी. मैंने फोन को छोड़ दिया और जान बचाने के लिए दौड़ते हुए अपने घर में चला गया.”
नितिन के घर और उनके पास में स्थित दूसरे घरों पर गोलियों के निशान अभी भी मौजूद हैं. एक अन्य बुजुर्ग ग्रामीण जो घटनास्थल से कुछ दूरी पर किराने की दुकान चलाते हैं. कहते हैं, “पहले तो हमें लगा की कोई आतिशबाजी हो रही है. लेकिन बाद में गोलियों की आवाज आने लगी तो हमने डर के कारण दुकान बंद कर दी. यह गोलीबारी सिर्फ तीन-चार मिनट चली.” जब गोलियों की आवाज आनी बंद हो गई तो ग्रामीण घटनास्थल पर पहुंचे और उन्हें पता चला की कार में सिद्धू मूसेवाला है.
जब सिद्धू अपने घर से निकल गए थे तब संदीप उनके घर ही रुक गए और परिवार वालों के साथ बातचीत करने लगे. संदीप कहते हैं, “कुछ देर बाद एक दोस्त का फोन आया कि सिद्धू पर फायरिंग हुई है. मैं अस्पताल जाने लगा लेकिन मुझे इस बात का अंदाजा नहीं था कि सिद्धू की मौत हो जाएगी. क्योंकि पहले भी उसपर फायरिंग हुई है तो हमें लगा की उसे हल्की चोट लगी होगी.”
संदीप आगे कहते हैं, “काश मैं उसके साथ जा पाता या उसकी कार को फॉलो करते हुए साथ जाता या उसे मैं मना पाता कि वह अपने बॉडीगार्ड्स को साथ ले जाए. तो शायद ऐसा नहीं हुआ होता.”
संदीप आगे कहते हैं कि हम अब इस खेत में कभी भी अनाज नहीं उगाएंगे और यहां पर सिद्धू की याद में एक बड़ी समाधी बनाएंगे.
सिद्धू पर हुई फायरिंग की सूचना के बाद सिद्धू के पिता और अन्य दोस्तों के साथ संदीप मानसा के जिला अस्पताल पहुंचे. तब उन्हें पता चला कि उनकी पांच साल की दोस्ती खत्म हो गई.
मूसेवाला की हत्या और गैंगवार
सिद्धू मूसेवाला की हत्या के मात्र तीन घंटे के अंदर ही लॉरेंस बिश्नोई के गैंग ने इस घटना की जिम्मेदारी ली. गैंगस्टर गोल्डी बरार ने फेसबुक पोस्ट में लिखा, “मेरे साथी की हत्या के मामले में सिद्धू मूसेवाला का नाम आया था, लेकिन अपनी पहुंच के चलते वो बच गया था. सरकार ने उसे सजा नहीं दी थी इसलिए हत्या को अंजाम दिया गया है.”
बरार कनाडा में रहते है और वह जेल में बंद बिश्नोई के करीबी हैं. गोल्डी का असली नाम सतिंदर सिंह है. बरार के खिलाफ पंजाब में कई केस दर्ज हैं. पंजाब के डीजीपी ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि सिद्धू मूसेवाला की हत्या गैंगवार की लड़ाई में हुई है.
द हिंदू की एक रिपोर्ट में बताया गया कि बिश्नोई के पास देशभर में करीब 700 शूटर हैं जो उसके कहने पर किसी की भी हत्या कर सकते हैं. दिल्ली पुलिस की पूछताछ में बिश्नोई ने हत्या की बात तो नहीं कबूली लेकिन उसने इतना कहा कि उसके गैंग ने प्लानिंग से बदला लेने के लिए यह हत्या की है. फिलहाल बिश्नोई साल 2021 से तिहाड़ जेल में बंद है. मूसेवाला की हत्या के बाद दिल्ली पुलिस उससे पूछताछ कर रही है.
अपनी फेसबुक पोस्ट में बिश्नोई गैंग और गोल्डी बरार ने सिद्धू मूसेवाला की हत्या के जरिए विक्की मिड्डूखेड़ा की हत्या का बदला लेने की बात कही. अकाली दल के नेता विक्की की 2021 में हत्या कर दी गई थी. इस हत्या में सिद्धू के मैनेजर शगुनप्रीत का नाम आया था. आरोप है कि मूसेवाला ने विक्की को मारने आए शूटरों को पनाह दी थी. बताया जाता है कि विक्की, बिश्नोई गैंग से जुड़ा हुआ था.
मूसेवाले की हत्या के बाद बंबीहा गैंग का नाम भी सामने आया. बताया जा रहा है की सिद्धू का बंबीहा गैंग से कनेक्शन था. और इसी गैंग ने अकाली नेता और बिश्नोई गैंग से जुड़े विक्की मिड्डूखेड़ा की हत्या की थी. इन दोनों गैंग के बीच पंजाब में काफी समय से गैंगवार जारी है. सिद्धू की मौत के बाद बंबीहा गैंग ने एक फेसबुक पोस्ट में बताया की सिद्धू का उनके गैंग से कोई जुड़ाव नहीं था इसके बावजूद अगर मूसेवाला को उनके साथ जोड़ा जा रहा है तो वह बदला जरूर लेंगे. इसी गैंग ने पंजाबी सिंगर मनकीरत औलख पर आरोप लगाए थे कि मूसेवाला हत्याकांड के पीछे मनकीरत औलख है. मनकीरत गैंगस्टर लॉरेंस का करीबी है.
एक फेसबुक पोस्ट के जरिए नीरज बवाना गैंग की तरफ से लिखा गया, “सिद्धू मूसेवाला हमारा दिल का भाई था और दो दिन के अंदर परिणाम दे देंगे”. फिलहाल नीरज बवाना तिहाड़ जेल में बंद है. उसके खिलाफ हत्या और फिरौती के कई मामले दर्ज हैं.
जून 2020 में सिद्धू मूसेवाला और सिंगर अमृत मान ने ‘बंबीहा बोले’ नाम से एक गाना रिलीज किया, जिसके बाद से बंबीहा गैंग से सिद्धू के नजदीकियों की बात होनी शुरू हो गई थी.
गाने के बोल हैं..
“किते हड वैरी दे पोले
आधी रात पुलिस जेहि टोले
हो गया मर्डर तूंत दे ओले नी
नी बंबीहा बोले
बोले नी बंबीहा बोले”
जिसका अर्थ है…. “मैंने अपने दुश्मनों की हड्डियां तोड़ी हुई हैं. पुलिस मुझे आधी रात भी ढूंढ़ रही है. मर्डर हो गया शहतूत के पीछे, बंबीहा बोले.”
हालांकि सिद्धू के बचपन के दोस्त 28 वर्षीय अखिल जिंदल, गाने के शब्दों का बंबीहा गैंग से जुड़े होने से इंकार करते है. वह कहते हैं, “गाने के बोल बंबीहा पक्षी के नाम पर हैं, जिसकी आवाज दूर तक जाती है. इसका बंबीहा गैंग से कोई लेना-देना नहीं है.”
अखिल और सिद्धू नर्सरी से 10वीं कक्षा तक, मानसा के स्थिति संघ के स्कूल सरदार चेतन विद्या मंदिर में साथ-साथ पढ़े थे. अखिल बताते हैं कि वे और सिद्धू बहुत पक्के दोस्त थे. दोनों क्लास में आखिरी सीट पर बैठते थे और बैकबेंचर्स के नाम से जाने जाते थे. 10वीं के बाद सिद्धू दूसरे स्कूल में चले गए लेकिन अखिल वहीं पढ़े और बाद में मुंबई चले गए.
अखिल कहते हैं, “सिद्धू जब 5वीं में था तब से ही वह स्कूल के कार्यक्रम में शामिल हुआ करता था.” स्कूल की शिक्षिका 46 वर्षीय भूपिंदर कौर बताती हैं, “जब भी स्कूल में कोई कार्यक्रम होता था, वह अपना नाम परफॉर्म करने वाली लिस्ट में लिखवाने के लिए हमारे पीछे पड़ जाता था.”
हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार रहे सिद्धू के घर लोहड़ी पर स्कूल के सभी दोस्त मिले थे. अखिल कहते हैं, “उसे पता था कि वह चुनाव नहीं जीतेगा, दूसरे नंबर पर आएगा. लेकिन उसने तय कर लिया था कि वह समाज के लिए कुछ करना चाहता है इसलिए वह राजनीति में आया.”
दोस्तों के साथ उस मुलाकात में मूसेवाला ने कहा था कि उसे बहुत सारी धमकियां मिल रही थीं. अखिल के मुताबिक, “उसे पहले भी फोन पर बहुत सी धमकियां मिलती थीं, लेकिन चुनावों के दौरान वह थोड़ा चिंतित था. सुरक्षा के कारण वह कई बार अपनी गाड़ियों का रूट भी बदल लेता था.”
मूसेवाला पर पहले भी कई हमले हुए थे.
लुधियाना के गुरु नानक देव इंजीनियरिंग कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद संगीत जगत में काम करने के लिए सिद्धू कनाडा चले गए थे. कनाडा में बड़ी संख्या में पंजाबी गायक रहते हैं और साथ ही अधिकतर गानों के वीडियो भी वहीं शूट होते हैं.
23 साल की उम्र में सिद्धू ने ‘सो हाई’ गाना गाया था, जो काफी पसंद किया गया और सिद्धू चर्चित हो गए. अखिल कहते हैं, “यह गाना 2017 में गाया था. उसी साल कनाडा में सिद्धू पर हमला हुआ. उस घटना में वह मामूली रूप से घायल हुआ था.”
यह सिद्धू पर हुआ पहला हमला था.
अखिल के मुताबिक 2018 में, कनाडा से वापस आने के बाद मूसेवाला ने लाइसेंसी बंदूक ली थी. सिद्धू को गानों के अलावा, बंदूक, ट्रैक्टर और कार का शौक था.
अखिल बताते हैं, “सिद्धू ने 2018 के बाद यह सब इकट्ठा करना शुरू कर दिया. उसे गन का क्रेज था, लेकिन उसने इसका इस्तेमाल कभी भी किसी को डराने या धमकाने के लिए नहीं किया. हम आरएसएस के स्कूल में पढ़े हैं जहां हमें सब्र या संयम रखने की शिक्षा दी जाती है. यह बंदूकें सिर्फ स्टाइल के लिए थीं और कुछ नहीं.”
सिद्धू जिस स्कूल में पढ़े, वहां के प्रिंसिपल जगदीप सिंह हमें बताते हैं कि चुनाव में नामांकन करने के बाद सिद्धू स्कूल आया जाया करते थे. वह बताते हैं, “एक बार मैंने सोचा उसे बोल दूं कि बंदूक और हिंसा के बारे में इतना गाना नहीं गाना चाहिए. क्योंकि स्कूल में हर बच्चा उसके गाने सुनता है और बच्चों पर ऐसे गानों का गलत असर पड़ता है. लेकिन क्या कर सकते हैं? यहां गन रखना आम बात है. बंदूक रखने का मतलब हमेशा यह नहीं होता की वह व्यक्ति हिंसक है. यह बात यहां काफी सामान्य है.”
अखिल का मानना है कि सिद्धू मूसेवाला पंजाब के संगीत उद्योग में गहरी जड़ें जमा चुके माफिया का शिकार हो गए. गायकों, निर्माता कंपनियों और लेखकों को ये गैंग पैसे वसूलने के लिए धमकाते हैं. उनका कहना है, “मैं किसी का नाम नहीं ले सकता लेकिन माफिया के बारे में सब जानते है, लेकिन कोई बोलता नहीं है. इंडस्ट्री में फिरौती मांगने वालों को पैसा देना होता है. नहीं तो मार दिए जाएंगे या हमेशा डर के साए में रहेंगे.”
प्रिंसिपल जगदीप सिंह कहते हैं, “बार्डर इलाका होने के कारण यहां गैंगस्टर्स का प्रभाव है. ऐसा नहीं है कि स्कूल के बच्चे इन गैंग्स की तरफ आकर्षित होते हैं.”
जगदीप का भी मानना है कि मानसा-भटिंडा सीमा क्षेत्र, आपराधिक गिरोहों की गतिविधियों से भरा हुआ है. वह कहते हैं "ऐसा नहीं है कि स्कूल के बच्चे किसी गिरोह में शामिल हो रहे हों. लेकिन हां, ये गिरोह सक्रिय हैं, जो म्यूजिक इंडस्ट्री और पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री से वसूली करते है.”
सिद्धू के अलावा, मानसा जिले के ही आर नेत और कोरला मान दो अन्य प्रसिद्ध गायक हैं. स्कूल में, करोला मान सिद्धू के जूनियर थे. प्रिंसिपल कहते हैं, “सिद्धू के बाद कई बच्चे उसको देखकर प्रेरित हुए. उसने (सिद्धू) यह महसूस कराया कि भले ही आप छोटे शहर से हों, लेकिन आप फेमस हो सकते हो.”
हमने आर नेत और कोरला मान से बात करने की कोशिश की लेकिन दोनों ने न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत करने से इंकार कर दिया. म्यूजिक इंडस्ट्री से किसी भी गायक के मीडिया से बात नहीं करने पर अखिल कहते हैं, “अभी हर कोई गैंग्स की राजनीति में घसीटे जाने से डर रहा है. इसलिए कोई भी मीडिया से बात नहीं करना चाहता है.”
पिछले कुछ सालों में पंजाब के संगीतकारों पर हमले बढ़े हैं साथ ही उन्हें ज्यादा धमकियां भी दी जाती हैं. मूसेवाला को गाने के लिए पहला मौका देने वाले गिप्पी गरेवाल ने भी 2018 में धमकियों की शिकायत की थी. उसी साल पंजाबी गायक नवजोत सिंह की पांच गोलियां मार कर हत्या कर दी गई थी. 2018 में ही गायक परमीश वर्मा पर मोहाली में हमला हुआ था जिसमें उनके पैर पर चोट लगी थी. इस हमले की जिम्मेदारी गैंगस्टर दिलप्रीत सिंह ने ली थी. वर्मा के अलावा बलकार सिद्धू, करण औजला, आर नेत, मनकीरत औलख जैसे कई अन्य कलाकारों ने भी धमकी मिलने की शिकायत की है.
मूसा और मानसा का मान
सिद्धू की हत्या के करीब पांच दिनों बाद से उनके प्रशंसकों, दोस्तों, ग्रामीणों और राजनेताओं का मूसा गांव में आना-जाना लगा हुआ है. मूसेवाला का परिवार करीब 15 दिन पहले ही इस नए घर में आया था. इससे पहले वे गांव के पुराने घर में ही रहते थे जहां अभी भी कांग्रेस का झंडा और पोस्टर लगा हुआ है.
सिद्धू अपने मां-बाप की इकलौती संतान थे. पिता बलकार सिंह कुछ समय सेना में रहने के बाद, चोट लगने के कारण सेना से रिटायर हो गए और दमकल विभाग में काम करने लगे. उनकी मां चरण कौर 2018 में, करीब 600 वोटों से जीत हासिल करने के बाद मूसा गांव की सरपंच बनीं. सिद्धू की शादी भी होने वाली थी. पहले उनकी शादी अप्रैल में होनी थी लेकिन चुनावों के कारण उसे अक्टूबर तक टाल दिया गया. उनकी शादी संगरूर जिले के एक अकाली दल के नेता की बेटी से होने वाली थी, दोनों की सगाई हो चुकी थी.
अपने इकलौते बेटे को खो चुके परिवार ने मीडिया से दूरी बनाई हुई है. पुलिस की टीम किसी भी मीडियाकर्मी को घर के आंगन में नहीं जाने दे रही. आंगन में ही एक टेंट लगा है जहां सभी रिश्तेदार, दोस्त और नेता शोक व्यक्त करने के लिए आते हैं. बलकार सिंह ज्यादातर समय टेंट में ही रिश्तेदारों और वहां आ रहे लोगों से मुलाकात में काट देते हैं. लेकिन चरण कौर की तबीयत खराब होने के कारण घर के अंदर आराम कर रही थीं.
टेंट में शोक व्यक्त कर रहे लोगों में मूसेवाला की 13 वर्षीय भतीजी गुरलीन कौर भी मौजूद थीं. गुरलीन कहती हैं, "वह (सिद्धू) हमारे घर आ रहे थे, जिस दिन उन्हें गोली मारी गई. ज्यादातर समय वह अपने बॉडीगार्ड्स के साथ ही आया करते थे लेकिन कभी-कभी वह खुद ही आ जाते थे और फिर वह मुझे गोल गप्पे खिलाने के लिए बाहर ले जाते थे.”
मूसा गांव के लोगों का मानना है कि सिद्धू मूसेवाला ने ही उनके जिले और गांव का नाम रौशन किया है. उसके कारण ही लोग आज मानसा और मूसा दोनों को जानने लगे हैं. टेंट में मौजूद गांव के ही नवदीप सिंह कहते हैं, “मानसा बहुत पिछड़ा हुआ इलाका है, लेकिन अब लोग जानने लगे हैं.”
मालवा क्षेत्र में आने वाले मानसा जिले में पानी की गुणवत्ता बहुत खराब है. देश में सबसे ज्यादा कैंसर के मरीज इसी जिले से हैं. जिले की साक्षरता दर 58 प्रतिशत है.
मूसा गांव की 60 वर्षीय अमरजीत कौर और 55 वर्षीय शिंदर कौर कहती हैं, “सिद्धू मूसेवाला ने मानसा और यहां तक कि मूसा गांव को भी प्रसिद्ध किया. इससे पहले किसी को हमारे गांव के बारे में पता भी नहीं होगा.”
घर में मातम मनाने वालों में 40 वर्षीय कांग्रेस कार्यकर्ता मंजीत कौर भी थीं, जिन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान मूसेवाला के साथ काम किया था. वह कहती हैं, "वह (सिद्धू) अपने गांव में विकास कार्य करने पर बहुत ध्यान केंद्रित कर रहा था. वह जिस जगह से आता है, उसे उस पर भी बहुत गर्व था. यदि आप ध्यान दें, भले ही वह हिंदी बोलता है, लेकिन शायद ही आपको उसका हिंदी में कोई इंटरव्यू मिलेगा. वह हमेशा पंजाबी में बात करते थे. एक शुद्ध जट्ट लड़के की तरह.”
नवदीप सिंह समझाते हुए बताते हैं कि वह अन्य गायकों से काफी अलग था. “अधिकतर गायक प्रसिद्ध होने के बाद चंडीगढ़ या मुंबई चले जाते हैं लेकिन सिद्धू अपने गांव में ही रहा. अगर वह किसी काम से नहीं जा रहे होते तो वह हमेशा अपने गांव में रहते थे.”
वह कहते है कि मूसेवाला भले ही चुनाव हार गए लेकिन वह समाज सेवा कर रहे थे. उनकी मां सरपंच हैं तो उन्होंने कई सालों से खाली मैदान पर स्टेडियम और जिम बनवाना शुरू किया था. वह हर साल गांव में कैंसर के लिए कैंप भी लगवाते थे.
नवदीप सिंह कहते है, “सिद्धू अपने गांव के लोगों के लिए एक कैंसर अस्पताल भी बनाना चाहता था.”
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने सिद्धू के परिवार से मिलने के बाद सिद्धू मूसेवाला के नाम पर कैंसर अस्पताल और स्पोर्ट्स स्टेडियम बनवाने की घोषणा की.
हरियाणा के सिरसा से शोक व्यक्त करने सिद्धू के घर आए उनके फैन मनदीप कहते हैं, “सिद्धू की एक खासियत जो उसे सबसे अलग बनाती थी, कि वह साधारण तरीके से रहते थे और सबसे मुलाकात करते थे.”
मीडिया से चुप्पी और राजनीतिक संदेश
मूसा गांव के लोग मीडिया से काफी सतर्कता के साथ बात कर रहे हैं. नवदीप सिंह कहते हैं, "हम नहीं चाहते कि मीडिया इस मामले में कुछ भी सनसनीखेज खबर फैलाए. वैसे भी मीडिया चैनलों को इसे एक बड़ा मुद्दा बनाने के लिए केवल एक छोटे से ट्रिगर की जरूरत है. एक परिवार ने अपना बेटा खो दिया. वे मीडिया से क्या बात करें? इसलिए हम लोग मीडिया के तमाशे में भाग नहीं लेना चाहते.”
सिद्धू के घर पर कवरेज के लिए आए स्थानीय पत्रकारों में से एक आनलाइन चैनल के पत्रकार कहते हैं, “ऐसा नहीं है कि लोग मीडिया से गुस्सा हैं. लेकिन उन्हें डर है कि मीडिया इस त्रासदी को तोड़-मरोड़ कर पेश न कर दे. इसलिए कोई भी बोलना से मना कर रहा है. वैसे भी किसान विरोध-प्रदर्शन के दौरान सबने देखा की कैसे मीडिया ने सब कुछ तोड़ मरोड़ कर पेश किया.”
एक अन्य पंजाबी पत्रकार कहते हैं, "ऐसा नहीं है कि गुस्सा है. हम स्थानीय पत्रकारों ने किसान आंदोलन में इन लोगों का समर्थन किया था. वो हमें जानते हैं, लेकिन दाह-संस्कार किए जाने वाले दिन किसी भी मीडिया को अंतिम संस्कार के स्थल में जाने की अनुमति नहीं थी. हम सबने दूर के एक घर से शूट किया. परिवार सिर्फ प्राइवेसी चाहता है.”
3 जून के दिन ग्रामीणों ने सीएम भगवंत मान के दौरे का विरोध प्रदर्शन किया. ग्रामीण आम आदमी पार्टी की सरकार से नाराज हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि सुरक्षा कटौती के कारण ही सिद्धू की मौत हुई, और इसलिए वह सीएम को आने नहीं देना चाहते थे. मुख्यमंत्री मान को पहले 8 बजे आना था लेकिन विरोध प्रदर्शन के कारण उन्हें देरी से आना पड़ा. वहीं आम आदमी पार्टी के विधायक गुरप्रीत सिंह बनावली को मजबूर होकर माफी मांगनी पड़ी और गांव से लौटना पड़ा.
ग्रामीणों के विरोध के बाद जिला कलेक्टर ने सिद्धू के परिवार से बातचीत कर सीएम के दौरे के दौरान लोगों को विरोध प्रदर्शन नहीं करने को कहा. इसके बाद सुबह करीब 10 बजे भगवंत मान गांव पहुंचे और करीब 1 घंटा परिवार के साथ रहे. वहीं 4 जून को गृह मंत्री अमित शाह से मिलने सिद्धू मूसेवाला का परिवार चंडीगढ़ पहुंचा.
ग्रामीणों ने दावा किया कि मूसेवाला का घर राजनीतिक जंग का मैदान बन गया है. अखिल कहते हैं, “कांग्रेस पार्टी ‘आप सरकार’ के खिलाफ राजनीति करने के लिए दौरा कर रही है. वहीं ‘आप’ के नेता डैमेज कंट्रोल के लिए जा रहे हैं.”
माना जा रहा है कि मूसेवाला का परिवार इस बार के संगरूर लोकसभा उप चुनावों में जिस भी पार्टी का समर्थन करेगा, उसे सिद्धू के मौत के कारण सहानुभूति लहर से चुनाव जीतने में मदद मिलेगी.
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