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'हमने पहले दिन से ही दर्शकों को बांध लिया था': टीवी- 9 भारतवर्ष का युद्ध कवरेज उसे शीर्ष पर कैसे ले गया

टीवी- 9 के सीईओ बरुन दास का कहना है, "15 सालों में पहली बार एक असल युद्ध छिड़ा, और दूसरों के मुकाबले हमारी तैयारी पहले से थी. यही हमारी संपादकीय श्रेष्ठता है, कि हम आने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान लगा पाए."

यही वह संपादकीय श्रेष्ठता थी, जिसने हिंदी समाचार चैनल टीवी- 9 भारतवर्ष के रशिया-यूक्रेन युद्ध के चर्चित कवरेज का नेतृत्व किया. रशिया ने यूक्रेन पर 24 फरवरी को हमला बोला और चैनल ने तुरंत ही युद्धस्थल से सीधी अपडेट प्रसारित करनी शुरू कर दीं, यह खबरें आइटम बम लड़ाकू जहाजों और दर्शकों को दुनिया के अंत से आगाह करती हेडलाइनों के ग्राफिक्स से भरी पड़ी थीं. और ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल या बार्क के द्वारा दी गई रेटिंग के हिसाब से दर्शक भी यही चाहते हैं.

5 मार्च से 13 मई के बीच, साल के 10वें हफ्ते से 19वें हफ्ते तक, टीवी- 9 भारतवर्ष पूरे देश में 15 साल और उससे ऊपर की आयु वाले लोगों के बीच शीर्ष स्थान पर रहा. यह श्रेणी हिंदी बोलने वाले बाजार क्षेत्रों की है और इसमें शहरी और ग्रामीण दोनों ही प्रकार के दर्शक आते हैं. 13 मई को आई ताजा रेटिंग में टीवी- 9 भारतवर्ष 15.3 प्रतिशत हिस्से के साथ बाजार में शीर्ष पर रहा, 12.2 प्रतिशत के साथ इंडिया टीवी दूसरे स्थान पर और 11.9 प्रतिशत के साथ आज तक तीसरे स्थान पर रहा.

टीवी- 9 भारतवर्ष का यह प्रभुत्व बार्क के द्वारा, 17 महीने के विराम के बाद मार्च में न्यूज़ रेटिंग दोबारा शुरू करने के बाद स्थापित हुआ. बार्क के अनुसार यह 17 महीने का समय उन्होंने रेटिंग प्रक्रिया की समीक्षा और बेहतरी के लिए इस्तेमाल किया, जब मुंबई पुलिस ने उससे पहले "टीआरपी घोटाले" का पता लगाया था.

लेकिन टीवी- 9 भारतवर्ष का सीधा शीर्ष पर पहुंच जाने से शंकाएं भी पैदा हुई हैं. अप्रैल में न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन कंपनी ने बार्क की रेटिंग्स में कई "कमियों और अनियमितताओं" को इंगित किया था, और टीवी- 9 भारतवर्ष के रेटिंग्स में "अप्राकृतिक उछाल" पर सवाल खड़े किए. इस कंपनी में इंडिया टुडे, एबीपी, टाइम्स नाउ, जी न्यूज़ और एनडीटीवी जैसे पुराने चैनल सदस्य हैं. एसोसिएशन ने अपने प्रेजेंटेशन में पूछा कि जब पंजाब में चुनाव परिणाम घोषित हो रहे थे, ऐसा कैसे हो सकता है कि तब भी दर्शक "टीवी- 9 भारतवर्ष के युद्ध कवरेज से चिपके रहे?"

लेकिन बरुन दास इस प्रेजेंटेशन से प्रभावित नहीं हुए, और उन्होंने इसे "सतही और तर्क विहीन" बताया.

उन्होंने कहा, "साफ है कि हमारे प्रतियोगियों में कुछ ऐसे भी हैं जिनके पास, शंका बढ़ाने की कोशिश में हमारी आलोचना और उल्टा सीधा कहने के अलावा कोई रणनीति नहीं है. अगर वह सीखना चाहते हैं कि नंबर 1 कैसे बनना है, तो उस पर बातचीत के लिए मैं तैयार हूं."

अपने "मूल दर्शकों" पर ध्यान

टीवी- 9 भारतवर्ष की शुरुआत 2019 में, एक बहुत सरल लक्ष्य को लेकर हुई थी. "अपने आक्रामक प्रस्तुतीकरण के विशेष स्टाइल को लोगों के अधिकारों पर केंद्रित खोजी पत्रकारिता के साथ मिलाकर, राष्ट्रीय टेलीविजन को बदल देना."

1 साल बाद, महामारी शुरू होने से कुछ पहले, चैनल फिर से लांच हुआ और उसने एक आक्रामक मार्केटिंग अभियान शुरू किया. इसके साथ चैनल की रेटिंग भी बढ़ गई.

2019 से टीवी- 9 के सीईओ दास का कहना है कि जितनी बार उन्होंने अंतरराष्ट्रीय खबरों को भारत के परिपेक्ष से कवर किया - चाहे वह कोविड में चीन की भूमिका हो, या चीन से टकराव या भारत और पाकिस्तान के बीच टकराव - उतनी बार चैनल की रेटिंग बढ़ी. दास ने दावा किया कि यह उनके "मूल दर्शकों" को पसंद है, "जिन्हें अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों में रुचि है."

इसीलिए जब रशिया और यूक्रेन के बीच युद्ध के बादल लहराते दिखने लगे, तो टीवी- 9 भारतवर्ष में अपने दर्शकों को युद्ध का "लगातार कवरेज" प्रस्तुत किया. इसके लिए उन्होंने अपने संवाददाताओं अभिषेक उपाध्याय, मनीष झा और आशीष कुमार सिन्हा को यूक्रेन और आसपास के इलाकों में भेजा.

वे बताते हैं, "पहले दिन से हमने दर्शकों को बांध लिया था. हमारे संवाददाता युद्ध स्थल पर ही मौजूद थे. बाकी चैनल, शुरू में हमारा मजाक उड़ाने के बाद देर से जागे, क्योंकि केवल टीवी- 9 भारतवर्ष और कुछ अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों को ही लग रहा था कि युद्ध होने वाला है."

टीवी- 9 भारतवर्ष युद्ध का कवरेज नहीं रुका तब भी जब उसके प्रतिद्वंद्वी और साथ ही चैनल ज्ञानवापी मस्जिद जैसे दूसरे मुद्दों पर आगे बढ़ गए. दास इसका कारण समझाते हैं, "हमने सोचा कि दर्शकों की रूचि युद्ध में अभी भी होगी क्योंकि यह ऐसी चीज है जो पूरी दुनिया के सामरिक परिवेश पर प्रभाव डालती है. दर्शकों का एक हिस्सा है जो अभी भी वैश्विक स्तर पर होने वाली सामरिक गतिविधियों में रुचि लेता है. यानी ऐसे लोग हैं जो यह सब जानने में रुचि रखते हैं और केवल हम ही हैं जो रुचि को पकड़ पा रहे हैं."

उन्होंने यह भी कहा, "जह हमारा संपादकीय निर्णय है. हम अपना ध्यान युद्ध पर लगाए हुए हैं, तब भी जब बाकी उससे आगे बढ़ गए हैं."

लेकिन इसमें भी कुछ भिन्नता है. उदाहरण के लिए दास बताते हैं, "युद्ध का कवरेज दक्षिण भारत में ज्यादा प्रचलित नहीं है, लेकिन उत्तर भारत में यह अभी भी दर्शक खींचता है." हालांकि टीवी- 9 भारतवर्ष ने खबरों के किसी खास हिस्से पर किसी विशेष वर्ग का अधिक झुकाव नहीं रिकॉर्ड किया, लेकिन दास का कहना है कि हिंदी समाचारों में अब महिला दर्शकों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो एक दशक पहले तक नहीं था.

दास मानते हैं कि उनके चैनल की ग्राउंड रिपोर्टिंग के साथ-साथ उनके एंकरों के "ज्ञान" और बातचीत की "बुद्धिमता" ने उन्हें बढ़त दी.

हालांकि है सब सुनने में बहुत अच्छा लगता है, लेकिन टीवी 9 भारतवर्ष का युद्ध कवरेज आपको चौंका सकता है. इस कवरेज में, "72 घंटे बाद पूरा यूक्रेन बर्बाद" और यह युद्ध दुनिया की तबाही का कारण बनेगा जैसी हेड लाइन स्क्रीन पर उड़ते हुए लड़ाकू जहाजों के ग्राफिक के साथ चलती थीं.

अप्रैल में सूचना व प्रसारण मंत्रालय ने भी इस पर ध्यान दिया और एक एडवाइजरी जारी की, जिसमें उन्होंने चैनलों को "झूठे दावे करने" और "सनसनीखेज हैडलाइन" इस्तेमाल करने के लिए चेतावनी दी.

लेकिन दास इसे ज्यादा तवज्जो नहीं देते, और इंगित करते हैं कि इस एडवाइजरी में अगर उनके चैनल के "तीन उदाहरण" थे, तो उसके साथ आज तक और रिपब्लिक भारत के भी तीन-तीन उदाहरण लिए गए थे.

जब उनसे पूछा गया कि एडवाइजरी क्यों जारी की गई तो दास ने कहा कि यह उन्हें नहीं मालूम. साथ में उन्होंने यह भी कहा, "मैंने सुना है कि कुछ दूसरे चैनलों ने, हमें पछाड़ने की नीति के अभाव में ऐसा कुछ किया जिससे यह हुआ, भले ही उनके नाम दिए गए. शायद यह उन्हीं लोगों का समूह है (एनबीडीए)."

उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि एडवाइजरी को "बहुत गंभीरता" से लिया गया था और उसके बाद चैनल ने एक "महत्वपूर्ण संपादकीय मीटिंग" की थी.

दास ने कहा, "हमने देखा कि कुछ चीजें थी तो हमने अपने संपादक को बताया. यह 24 घंटे चलने वाला चैनल है तो सीईओ तो छोड़िए संपादक भी हर मिनट चैनल को नहीं देखते. निश्चय किया कि अगर भविष्य में कोई एडवाइजरी आती है तो हम बेदाग रहने की कोशिश करेंगे. हमने उसे बहुत गंभीरता से लिया है और उस पर कवरेज के हिसाब से कदम उठाए हैं."

उन्होंने यह भी कहा कि कभी-कभी चैनल, "संस्थान के विचार से मेल न खाने" वाली चीजों को ठीक करने के लिए "एडवाइजरी की प्रतीक्षा" तक नहीं करता.

दास सोचते हैं कि युद्ध खत्म होने के बाद भी टीवी- 9 भारतवर्ष की बढ़त बनी रहेगी.

वे कहते हैं, "टीवी- 9 भारतवर्ष पर प्रस्तुत की जाने वाली सामग्री हमेशा यही दर्शकों को पसंद आई है क्योंकि इंडस्ट्री में औरों के अनुपात में हमारे चैनल पर दर्शक ज्यादा समय बिताता है, मतलब दर्शक को थामने की क्षमता बेहतर है. जो चैनल पर आता है वह उसे ज्यादा समय तक देखता है. चाहे युद्ध हो या न हो, मुझे लगता है कि हम शीर्ष पर बने रहेंगे."

सीएनएन न्यूज़ 18 का 'विवेकपूर्ण, संयमित कवरेज'

टीवी- 9 भारतवर्ष अकेला चैनल नहीं है जो बेहतर प्रदर्शन कर रहा है. अंग्रेजी भाषा के क्षेत्र में सीएनएन न्यूज़ 18 ने भी बाजार के कुछ हिस्सों में प्रभुत्व दिखाया है. कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार यह इस बात का सबूत है कि लोग केवल "बुद्धिहीन की चिल्लाहट में ही रुचि नहीं रखते."

सीएनएन न्यूज़ 18, 15 साल और उससे ऊपर की आयु के लोगों के बीच पूरे भारत में आगे चल रहा है, चाहे वह शहरी इलाके हों या ग्रामीण. 2 अप्रैल से 29 अप्रैल के बीच, साल के 14वें से 17वें हफ्ते में उसकी रैंक टाइम्स नाउ और रिपब्लिक टीवी से आगे रही. हालिया डाटा के अनुसार, 16वें हफ्ते से 19वें हफ्ते के बीच उसने बाजार के 29.3 प्रतिशत हिस्से पर पकड़ बनाए हुई थी.

29 अप्रैल को नेटवर्क एक टीम समूह के संपादक राहुल जोशी ने अपने सभी कार्यकारी संपादकों को प्रशंसा से भरी एक ईमेल भेजी, जिसमें उन्होंने संपादकों की "अलग-अलग क्षेत्र की खबरें मिलाने, स्पीड न्यूज़ के संयमित उपयोग, वाद विवाद और काउंटर प्रोग्रामिंग कदम उठाने" की नीति की अनुशंसा की थी.

जोशी ने लिखा, "यूक्रेन के लिए हमारे‌ विवेकपूर्ण वसई अमित कवरेज और श्रीलंका में बिगड़ते हालातों को जल्दी पकड़ लेने की भी मदद मिली. यह भी सही है कि मस्ती और मनोरंजन के कंटेंट के साथ ज्योतिष ने भी चमत्कार किया है… हमारे हालिया प्रदर्शन से यह साबित होता है कि आप वैश्विक घटनाओं के उन्मादी कवरेज और क्षेत्रों में वितरण के अवैध हथकंडे अपनाए बिना भी आगे रह सकते हैं."

फर्स्टपोस्ट ने, सीएनएन न्यूज़ 18 के कार्यकारी संपादक ज़ाका जेकब के हवाले से लिखा, "हमने हमेशा ही अपना स्तर बनाए रखने में विश्वास किया है, यानी आपको चीखने चिल्लाने की जरूरत नहीं है. यह हमारे खबरों के चुनाव और कार्यक्रम की रूपरेखा में भली प्रकार से प्रतिबिंबित होता है."

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