Report

जलवायु परिवर्तन: भारत और पाकिस्तान पर हीटवेव की आशंका 30 गुना अधिक

सोमवार को राजधानी समेत देश के कई हिस्सों में तेज हवा और बारिश की फुहारों ने मौसम को थोड़ी देर के लिए सुहावना बनाया, लेकिन हीटवेव से अभी तुरंत निजात नहीं मिलने वाली. इस साल मार्च से चल रही प्रचंड गर्मी का दौर अभी कुछ वक्त तक जारी रहेगा. इस बीच भारत समेत दुनिया के कई देशों के शोधकर्ताओं और जलवायु वैज्ञानिकों के समूह वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन इनिशिएटिव (डब्लूडब्लूए) ने अपने एक अध्ययन में कहा है कि क्लाइमेट चेंज के कारण इस साल जैसी हीटवेव – जो पहले कभी-कभार हुआ करती थी की संभावना 30 गुना अधिक हो गई है.

हीटवेव का सूखा और लंबा दौर

भारत में मार्च में इस साल पिछले 122 साल के इतिहास में सबसे अधिक रिकॉर्ड गर्मी दर्ज की गई. पड़ोसी पाकिस्तान में भी ज़बरदस्त लू चल रही है. दोनों ही देशों में मानसून से पहले हुई कम बारिश के कारण हालात और खराब हो गए. भारत में मानसून पूर्व बरसात सामान्य से 71% कम हुई, और पाकिस्तान में यह सामान्य से 62% कम रही.

विशेषज्ञों ने अध्ययन कर पता लगाने की कोशिश की है कि हीटवेव की इस घटना और क्लाइमेट चेंज के बीच क्या संबंध है. डब्ल्यूडब्ल्यूए के शोधकर्ता वैज्ञानिकों का कहना है कि दोनों देशों में इस साल कम से कम 90 लोगों की मौत इस असामान्य हीटवेव के कारण हुई. जहां भारत में आग की घटनाएं बढ़ी, वहीं पश्चिमी पाकिस्तान में इस असामान्य गर्मी से हिमनदीय झील भी फटी, जिसे वैज्ञानिक भाषा में ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (ग्लोफ) कहा जाता है.

यह शोध- जो कि भारत, पाकिस्तान, डेनमार्क, फ्रांस, नीदरलैंड, स्विट्जरलैंड, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका के विश्वविद्यालयों और मौसम संस्थानों के वैज्ञानिकों ने मिल कर किया – कहता है, “क्लाइमेट चेंज के कारण 2022 जैसी घटना (हीटवेव) की संभावना” 30 गुना तक बढ़ गई है. भविष्य में होने वाली ग्लोबल वार्मिंग से हीटवेव की अधिक घटनाएं होंगी और तापमान कहीं अधिक होगा.”

आईआईटी दिल्ली में सेंटर फॉर एटमॉस्फियरिक साइंस विभाग के प्रोफेसर कृष्णा अच्युत राव कहते हैं, “भारत और पाकिस्तान में ऐसे ऊंचे तापमान असामान्य नहीं हैं, लेकिन इस गर्मी का इतनी जल्दी आना और देर तक रहना असामान्य है. दोनों ही देशों में लोगों को कई हफ्तों तक इससे राहत नहीं मिली, जो खुले आकाश के नीचे काम करने वाले करोड़ों मजदूरों के लिए संकट की स्थिति है. हमें पता है जैसे-जैसे तापमान बढ़ेगा, यह घटनाएं भी बढ़ेंगी और हमें इसके लिए तैयारी करनी चाहिए.”

मरने वालों की संख्या का पता नहीं, आंकड़ों की कमी

डब्ल्यूडब्ल्यूए द्वारा की गई यह अपने प्रकार की पहली स्टडी है जिसमें उत्तर-पश्चिम भारत और दक्षिण-पूर्व पाकिस्तान के अधिकतम औसत तापमान का बारीकी से अध्ययन किया गया है. भारत और पाकिस्तान में हीटवेव पर क्लाइमेट चेंज का क्या प्रभाव है, यह जानने के लिए वैज्ञानिकों ने वेदर डाटा और कंप्यूटर सिमुलेशन का विश्लेषण किया ताकि यह तुलना हो सके कि 1850 के बाद से अब तक हुई 1.2 डिग्री तापमान वृद्धि पर जलवायु पुराने समय के मुकाबले कैसी है. पाए गए परिणामों की बारीकी से जांच की गई.

वैज्ञानिक कहते हैं कि उनके नतीजों में हीटवेव की मार के आंकड़े “संभवत: काफी कम” होंगे. उन्होंने चेतावनी दी है कि “भविष्य में ग्लोबल वार्मिंग के कारण इस तरह की हीटवेव की संख्या अधिक होंगी और तापमान अधिक ऊंचा रहेगा.” आईआईटी मुंबई की प्रोफेसर अर्पिता मंडल जो कि इस रिसर्च टीम का हिस्सा हैं मानती हैं कि हीटवेव से मरने वालों की संख्या की “अंडर रिपोर्टिंग” होती है यानी वह कम बताई जाती है और इस बारे में सार्वजनिक रूप से “शायद ही कोई आंकड़ा” उपलब्ध हो.

रिपोर्ट के मुताबिक धरती की तापमान वृद्धि अगर 2 डिग्री तक होती है (जो कि अभी 1.2 डिग्री मानी जा रही है) तो फिर हीटवेव की संख्या में दो से 20 गुना तक बढ़ोतरी हो सकती है.

हीटवेव क्लाइमेट आपदा से कम नहीं

वैज्ञानिक कहते हैं कि धरती का तापमान बढ़ने के साथ हीटवेव की मारक क्षमता और आवृत्ति इतनी बढ़ जाएगी की उन्हें जलवायु आपदा यानी क्लाइमेट डिजास्टर (जलवायु जनित आपदा) की श्रेणी में रखना होगा. इस साल जहां राजस्थान के कुछ शहरों और दिल्ली के कुछ हिस्सों में तापमान 49 डिग्री को पार कर गया, वहीं पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में यह 50 डिग्री तक पहुंच गया. भारत और पाकिस्तान में कुल मिलाकर 160 करोड़ लोग रहते हैं, यानी दुनिया की आबादी का पांचवा हिस्सा. इनमें आधे से ज्यादा लोग बहुत गरीब हैं. हीटवेव से मजदूरों, रेहड़ी-पटरी वालों या रिक्शावाले जैसे गरीब लोगों को सबसे ज़्यादा चोट पहुंचेगी, जो कि प्रतिदिन की कमाई पर जीते हैं और जिनके पास कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं है. इन लोगों के लिए हीटवेव न केवल उनकी रोज़ी-रोटी पर खतरा है, बल्कि स्वास्थ्य बिगड़ने की स्थिति में इनके पास उपचार का खर्च भी नहीं होगा.

इंपीरियल कॉलेज लंदन की डॉ फ्रेडरिक ऑटो कहती हैं, “जिन देशों के आंकड़े हमारे पास उपलब्ध हैं वहां पता चलता है कि हीटवेव एक्सट्रीम वेदर का सबसे घातक स्वरूप है. इसके साथ ही यह एक्सट्रीम वेदर की वे घटनाएं हैं जो गर्म होते ग्रह पर सबसे तेजी से बढ़ रही हैं. जब तक ग्रीन हाउस गैस एमीशन बढ़ेंगे यह आपदाएं आम होती जाएंगी.”

यह याद दिलाना भी महत्वपूर्ण है कि हीटवेव के दौरान ही हिमालयी जंगल धधक रहे थे. जानकार याद दिलाते हैं कि बढ़ता तापमान आपदाओं को और भयानक करेगा, जिसकी मार उन लोगों पर पड़नी है जिनका कार्बन उत्सर्जन में काफी कम हिस्सा है.

प्रो मंडल कहती हैं, “हीटवेव में जंगलों की आग और यहां तक कि सूखे की घटनाएं बढ़ाने की क्षमता है. हज़ारों लोग जो इन क्षेत्रों में रहते हैं और ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने में जिनका हाथ बहुत कम है, इसकी मार झेल रहे हैं और जब तक वैश्विक उत्सर्जन कम नहीं होंगे उनकी समस्याएं बनी रहेंगी.”

Also Read: जलवायु परिवर्तन: रियो समिट के 30 साल और संयुक्त राष्ट्र की खामोशी

Also Read: खाद्य-पदार्थों की बढ़ती कीमतों में जलवायु-परिवर्तन है बड़ी वजह