Report
ज्ञानवापी मस्जिद में मिले कथित शिवलिंग पर टिप्पणी के बाद प्रो रतन लाल को मिली जान से मारने की धमकियां
वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में मिले कथित शिवलिंग पर टिप्पणी करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रतन लाल विवादों में घिर गए हैं. दिल्ली पुलिस ने उनके खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करने के आरोप में एफआईआर दर्ज की है. साथ ही उनकी टिप्पणी के बाद उन्हें सोशल मीडिया पर जान से मारने की धमकियां भी दी जा रही हैं.
दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रतन लाल के खिलाफ दिल्ली के वकील विनीत जिंदल ने शिकायत दर्ज करवाई है. उन्होंने अपनी शिकायत में कहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में शिवलिंग मिलने के मुद्दे पर प्रोफेसर का बयान बेहद असंवेदनशील है जबकि मामला अभी अदालत में लंबित है.
रतन लाल के खिलाफ आईपीसी की धारा 153ए (विभिन्न समूहों के बीच धर्म, नस्ल, जन्मस्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर वैमनस्य को बढ़ावा देना) और धारा 295ए (किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक मान्यताओं को अपमानित कर जानबूझ कर भावनाएं आहत करने के इरादे से किए गए दुर्भावनापूर्ण कृत्य) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है.
न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में उन्होंने बताया कि उन्हें पुलिस या किसी प्रशासनिक अधिकारी की ओर से कार्रवाई की कोई सूचना नहीं दी गई गई है, उन्हें जो भी जानकारी मिली है वह सोशल मीडिया के जरिए मिली है.
उन्होंने कहा, "मैं इस मामले में किसी तरह की कानूनी सहायता अभी नहीं ले रहा हूं, न ही मैंने अग्रिम जमानत की कोई याचिका दाखिल की है. पुलिस का जो संदेश आएगा उसी के हिसाब से मैं कार्रवाई पर विचार करूंगा”
दलित समुदाय से आने वाले इतिहास के प्रोफेसर रतन लाल ने बताया कि इस घटना के सामने आने के बाद उन्हें लगातार जान से मारने की धमकियां दी जा रही हैं. सोशल मीडिया के अलग- अलग प्लेटफार्म पर लोग उन्हें यह धमकियां दे रहे हैं. साथ ही उनका कहना है कि उनके 20 वर्षीय बेटे को भी धमकियां मिल रही हैं जो कि एक चिंताजनक बात है.
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर उन्हें एके 56 राइफल धारी दो अंगरक्षक मुहैया कराये जाने, और यदि यह संभव नहीं है तो उचित प्राधिकारी को निर्देश देकर उनके लिए एके 56 राइफल का लाइसेंस जारी किए जाने की गुहार लगाई है.
प्रोफेसर रतन लाल ने अपनी टिप्पणी से लोगों की भावनाओं को आहत करने के आरोपों से भी इनकार किया है.
उन्होंने कहा, “हमारे रोजमर्रा के जीवन में व्यंग्य और कटाक्ष का एक स्थान होता है. मुझे बिलकुल उम्मीद नहीं थी कि मेरी इस बात से लोग इतने आहत हो जाएंगे कि मुझे धमकी देने पर उतारू हो जाएंगे.”
वहीं उन्होंने अपनी टिप्पणी के पीछे का मकसद हास्य और व्यंग के रूप में एक गंभीर संदेश देना बताया है.
उनका कहना है, “यदि कोई भी इस तरह की चीज कहीं मिलती है जिसके ऐतिहासिक साक्ष्य और प्रमाण हैं, तो यह तय करने का काम पुरातत्व विभाग का होना चाहिए, देश की अदालतों का होना चाहिए. जबकि हम जो देख रहे हैं कि पिछले तीन चार दिनों में, पंडित, मौलाना या फिर न्यूज़ स्टूडियो में बैठे कुछ अधकचरे पत्रकार हैं, जिन्होंने ये तय करना शुरू कर दिया है कि वास्तव में क्या चीज वहां मिली है या क्या उसकी प्रकृति है. इस स्थिति से पूरे समाज को बचना चाहिए कि बिना किसी जानकारी और जांच पड़ताल के अंतिम निष्कर्ष दे दिया जाए. उससे मुझे समस्या थी, इसलिए मैंने इस तरह की बात कही थी.”
जहां एक ओर प्रोफेसर रतन लाल को अपने बयान के लिए विरोध का सामना करना पड़ रहा है वहीं इस पूरे मामले पर कुछ बुद्धिजीवियों ने उनके पक्ष में अपनी अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं.
दलित मुद्दों पर मुखर रूप से बोलने वाले प्रोफेसर दिलीप मंडल ने ट्वीट करते हुए प्रोफेसर रतन लाल की टिप्पणी को इतिहास में दलितों के खिलाफ हुए शोषण की तुलना में बेहद हल्का बताया है. उन्होंने ट्वीट में लिखा, “बर्दाश्त करो. दलितों ने जितना झेला है हिंदू धर्म में, उसके मुकाबले ये बहुत तीखा नहीं है. उनको तो चाहिए कि हिंदू धर्म की धज्जियां उड़ा दें और फिर भी हिंदुओं को सिर झुकाकर दलितों की कि हुई आलोचना सुननी चाहिए. सैकड़ों साल के पाप का हिसाब चुकाना है आप लोगों को. ठीक है?”
वहीं वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने प्रोफेसर रतन लाल को दलित होने के नाते निशाना बनाए जाने की बात कही. उन्होंने ट्वीट कर लिखा, “लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रविकांत के बाद अब 'उनके' निशाने पर हैं दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रतनलाल. इन दिनों दलित समाज से आए बुद्धिजीवी 'उनके' निशाने पर क्यों हैं? सबकी बारी आनी है----- इतिहास गवाह है.”
बता दें कि हाल ही में लखनऊ यूनिवर्सिटी के हिंदी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर रविकांत द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर पर एक बयान देने के बाद, उनके खिलाफ लखनऊ के हसनगंज थाने में एबीवीपी प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य अमन दुबे ने धारा 153ए, 504, 505 (2) एवं 66 के तहत मुकदमा दर्ज कराया था. साथ ही छात्र संगठन एबीवीपी के सदस्यों ने उनके खिलाफ विश्वविद्यालय में विरोध प्रदर्शन भी किया.
इस मामले पर एक वीडियो जारी करते हुए प्रोफेसर रविकांत ने आरोप लगाया था कि दलित होने के नाते मेरी आवाज को दबाया जा रहा है.
उन्होंने वीडियो में कहा, “मैं दलित समुदाय से आता हूं और बाबा साहेब आंबेडकर और संविधान के जो मूल विचार हैं, उनका पालन करता हूं. मुझे लगता है दलित होने के नाते मेरी आवाज को दबाया जा रहा है और बाबा साहेब आंबेडकर के सपनों का जो भारत है उसको खत्म करने की कोशिश की जा रही है.”
Also Read
-
Reporter’s diary: Assam is better off than 2014, but can’t say the same for its citizens
-
‘INDIA coalition set to come to power’: RJD’s Tejashwi Yadav on polls, campaign and ECI
-
TV Newsance 251: TV media’s silence on Revanna ‘sex abuse’ case, Modi’s News18 interview
-
Kutch: Struggle for water in ‘har ghar jal’ Gujarat, salt workers fight for livelihoods
-
Hafta 483: Prajwal Revanna controversy, Modi’s speeches, Bihar politics