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एनएल चर्चा 213: अप्रैल में हीटवेव, कोरोना से मौतों का डब्ल्यूएचओ का आंकड़ा और प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में फिर फिसला भारत
एनएल चर्चा के इस अंक में पर्यावरण संकट, हीटवेव की स्थिति और लगातार बढ़ रहा तापमान हमारी बातचीत का मुख्य विषय रहा. इसके अलावा डब्ल्यूएचओ द्वारा भारत में कोरोना से हुई मौतों का आंकड़ा, प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत की गिरी रैंकिंग, सीएए संबंधी अमित शाह का बयान, विधायक जिग्नेश मेवाणी को सज़ा, प्रशांत किशोर की सियासी पारी को लेकर जारी उहापोह, संभाजी भिड़े को भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में क्लीन चिट और आरबीआई की ताज़ा रेपो रेट आदि विषयों पर चर्चा हुई.
चर्चा में इस हफ्ते वरिष्ठ पत्रकार हृदयेश जोशी, न्यूज़लॉन्ड्री के स्तंभकार आनंद वर्धन शामिल हुए. साथ ही न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस ने भी चर्चा में हिस्सा लिया. संचालन कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
अतुल ने चर्चा की शुरूआत हीटवेव के मुद्दे से की. वह हृदयेश से पूछते हैं, “पर्यावरण में ऐसा बदलाव आया है कि कुछ मौसम गायब हो गए है. मसलन बसंत ऋतु. अप्रैल के महीने में अचानक से हीटवेव आने के बाद ऐसा हुआ है. इस तरह मौसम में आए बदलाव का लोगों के जीवन और पर्यावरण पर क्या असर हो रहा है?”
हृदयेश कहते हैं, “जलवायु परिवर्तन के अपने प्रभाव हैं जो दिख रहे है. भारत में दिन और रात में होने वाली गर्मी में बढ़ोतरी हुई है. हमारे यहां हीटवेव के लिए अलग-अलग परिभाषा है. पहाड़ के लिए कुछ और, प्लेन एरिया के लिए कुछ और तटीय इलाकों के लिए अलग. दूसरा, हमारे स्वास्थ्य विभाग के पास ऐसी कोई तकनीक नहीं है जो यह दर्ज कर सके कि हीटवेव का क्या असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है या कितने लोगों की जान हीटवेव के कारण जा रही है. हमारा शहरी विकास भी ऐसा नहीं है जो हीटवेव को कम कर पाएं.”
वह आगे कहते हैं, “हीटवेव का असर समाज के अलग-अलग लोगों पर पड़ रहा है, खासकर गरीब और कमजोर तबकों के ऊपर. रिक्शेवाला, रेहड़ी पटरी पर दुकान लगाने वाले, दिहाड़ी मजदूर हीटवेव के कारण कम समय तक काम कर पाएंगे. इससे उनके रोजमर्रा के जीवन पर असर पडे़गा. इसका असर ये होगा कि खुले में जो काम करते हैं वो कर नहीं पाएंगे और उनकी आय कम होगी, दूसरी तरफ जो संपन्न हैं वह और अमीर होते जाएंगे.”
आनंद वर्धन इस विषय पर कहते हैं, “स्वास्थ्य विभाग का ऐसा कोई आकंड़ा नहीं है जो बता सके की हीटवेव से कितनी मौत हुई है लेकिन आईएमडी ने बताया है कि साल 1972 से 2022 तक देश में करीब 17 हजार मौतें हीटवेव से हुई हैं. दूसरा, गर्मी के कारण ऐसी कई लड़ाईयां होती है जो हमें सड़कों और गाड़ियों में देखने को मिलती है. यह छोटी बातें लग सकती है लेकिन यह सच्चाई है. इन छोटे-मोटे टकरावों में गर्मी की क्या भूमिका है, उसका भी मनोवैज्ञानिक आकलन करना चाहिए.”
मेघनाद कहते हैं, “आईपीसीसी की रिपोर्ट का जिक्र करना यहां जरूरी है. क्योंकि उसमें बताया गया कि कैसे पर्यावरण में बदलाव आ रहा है जो हमारे लिए चिंताजनक है. जिस तरह से पर्यावरण में बदलाव आ रहा है उससे भारत में हमें सभी प्रकार की प्रलयकारी घटनाएं देखने को मिल सकती है. मसलन जंगलों में आग लगना, सूखा पड़ना और ग्लेशियर पिघलना आदि. सरकार को इस पर ध्यान से सोचना चाहिए और जल्द कोई कदम उठाने चाहिए ताकि पर्यावरण को नियंत्रित किया जा सकें.”
इस विषय के अलावा डब्ल्यूएचओ द्वारा कोरोना से हुई मौत के आंकड़े पर भारत सरकार की प्रतिक्रिया पर भी चर्चा में विस्तार से बातचीत हुई. पूरी बातचीत सुनने के लिए हमारा यह पॉडकास्ट सुनें और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.
टाइमकोड
0:00- 4:20 - इंट्रो
4:24 - 9:12 - हेडलाइंस
9:12 - 12:05 - जरूरी सूचना
12:05 - 53:36 - हीटवेव और पर्यावरण परिवर्तन
53:36 - 1:14:16 - कोरोना से मौत के डब्ल्यूएचओ के आंकड़े
1:14:20 - 1:31:50 - प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत की गिरती रैंकिंग
1:31:50 - सलाह और सुझाव
पत्रकारों की राय, क्या देखा, पढ़ा और सुना जाए
मेघनाद एस
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आनंद वर्धन
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता - वह तोड़ती पत्थर
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इंडिया हीटवेव आर टेस्टिंग द लिमिट ऑफ ह्यूमन सर्वाइवल - लेख
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प्रोड्यूसर- रौनक भट्ट
एडिटिंग - उमराव सिंह
ट्रांसक्राइब - अश्वनी कुमार सिंह
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