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आईआईएमसी में नियुक्ति: कोई अहर्ता पूरा नहीं करता तो कोई डीजी का करीबी सहयोगी

भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) ने जनवरी 2021 में छह एसोसिएट और दो असिस्टेंट प्रोफेसरों की भर्तियां निकाली थीं. एसोसिएट के छह पदों में से दो जनरल, दो ओबीसी, एक दलित और एक ईडब्ल्यूएस कोटे के उम्मीदवारों के लिए थे. असिस्टेंट प्रोफेसर के दोनों पद जनरल कैटेगरी के लिए थे.

फरवरी-मार्च 2022 में इन सभी पदों पर नियुक्तियां हो गईं. इन भर्तियों में अब कई गड़बड़ियों की बात कही जा रही है. गड़बड़ियों की कुछ शिकायतें सूचना प्रसारण मंत्रालय में भी की गई हैं, क्योंकि आईआईएमसी इसी मंत्रालय के तहत आता है. न्यूज़लॉन्ड्री को इस विवाद के पड़ताल में कई जानकारियां मिली मसलन एक शख्स ने कोर्ट में भी नियुक्तियों की शिकायत की है. शिकायत यह है कि मनमाने तरीके से एक विचारधारा से जुड़े और अपने करीबी लोगों को नियुक्ति दी गई हैं.

बातचीत में शिकायतकर्ता बताते हैं कि आरएसएस और उसके अनुषांगिक संगठनों से जुड़े लोगों को इन पदों पर भर्ती किया गया. इसी तरह ईडब्ल्यूएस कोटे के तहत जिनको एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति दी गई है वो आईआईएमसी के मौजूदा महानिदेशक संजय द्विवेदी की पूर्व सहयोगी हैं.

एसोसिएट प्रोफेसर के लिए जनरल कैटेगरी में रचना शर्मा और राकेश कुमार उपाध्याय, ओबीसी कैटेगरी में दिलीप कुमार और राजेश कुमार कुशवाहा, एससी कैटेगरी में पवन कौंडल और ईडब्ल्यूएस के तहत मीता उज्जैन का चयन हुआ है. वहीं असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए नरेंद्र कुमार पांडुरंग और विनीत कुमार झा उत्पल चयनित हुए हैं. जानकारी के मुताबिक नरेंद्र कुमार पांडुरंग के अलावा सभी ने ज्वाइन भी कर लिया है.

अमित शाह की शान में कसीदे पढ़ने वाले…

17 अक्टूबर, 2019 को गृहमंत्री अमित शाह वाराणसी में थे. ‘गुप्तवंशक-वीर: स्कंदगुप्त विक्रमादित्य’ विषय पर यहां दो दिन का सेमिनार था. उद्घाटन के समय मंच संचालक ने अमित शाह की शान में जमीन-आसमान एक कर दिया. ऐसा लग रहा था कि शब्दकोष से तलाश-तलाश कर विशेषण लाए गए थे. अमित शाह के सामने ही मंच से उनकी तारीफों की झड़ी लगा दी गई, तब शाह ने केंद्रीय मंत्री महेंद्र नाथ पांडेय से उस मंच संचालक को चुप करवाया. यह घटना बीएचयू के छात्रों के बीच दैनंदिन चर्चा का विषय रहती है.

इस कार्यक्रम के वीडियो में भी दिखता है कि 24वें मिनट पर अमित शाह, महेंद्र नाथ पांडेय को पास बुलाकर कुछ कहते हैं. जिसके कुछ ही सेकेंड बाद पांडेय कुर्सी से उठकर जाते हैं.

मंच संचालक का नाम जानने से पहले उनके द्वारा अमित शाह की प्रशंसा में कही गई कुछ बातें जान लीजिए-

"हम जानते हैं, आजादी के इतिहास में अपने एक सरदार थे, लेकिन आज हमारे बीच जो उपस्थित है. संसार में भारत के सबसे असरदार गृहमंत्री होने जा रहे हैं. जिनका नाम सुनकर, जिनका भाल देखकर मां भारती को चाहने वालों की प्रसन्नता बढ़ती है. और जिनका रूप देखकर, संसद में जिनके वचनों को सुनकर के देश के शत्रुओं का दिल दहलता है."

अगले 20 मिनट तक संचालक महोदय शाह की शान में कसीदे पढ़ते रहे. संचालक महोदय आगे कहते हैं, ‘‘वो जो पांच अगस्त (कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने की घटना का जिक्र) को ध्वनि सुनाई पड़ी थी, लोकसभा के भीतर, जान दे देंगे क्या बात करते हो कश्मीर नहीं देंगे. इंच-इंच खाली कराएंगे. यही ध्वनि है जो स्कंदगुप्त के सुर से निकली थी जब पाटलीपुत्र का सिंहासन कांप रहा था. वैसे ही स्वर मैंने टेलीविजन पर देखा तो मेरे मुंह से बरबस ही निकल पड़ा, अमित शाह विक्रमादित्य."

अब हम आपको संचालक का नाम बता देते हैं. इनका नाम है, राकेश कुमार उपाध्याय. उपाध्याय तब बीएचयू के भारत अध्ययन केंद्र के चेयर प्रोफेसर थे. इसी अध्ययन केंद्र ने 2017 में लोकगायिका मालिनी अवस्थी को चेयर प्रोफेसर बनाया था.

उपाध्याय का चयन बीते दिनों आईआईएमसी में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में हुआ है. यूपी चुनाव के समय सपा प्रमुख अखिलेश यादव के खिलाफ ट्वीट करने वाले, भाजपा की तारीफ में कसीदे पढ़ने वाले और हिंदुत्व का प्रचार-प्रसार करने वाले उपाध्याय आईआईएमसी में पॉलिटिकल रिपोर्टिंग पढ़ाते हैं.

उपाध्याय के फेसबुक पर दी गई जानकारी के मुताबिक पूर्व में वे आज तक, ज़ी न्यूज़, न्यूज़ 24 समेत दूसरे संस्थानों के लिए पत्रकारिता कर चुके हैं. आरएसएस का मुखपत्र कहे जाने वाले पाञ्चजन्य के संपादकीय विभाग से भी वे जुड़े रहे हैं. गाहे-बगाहे आज भी पाञ्चजन्य के लिए लेख लिखते रहते हैं.

दिसंबर 21-जनवरी, 2022 में पाञ्चजन्य ने उत्तर प्रदेश विशेषांक निकाला था. यह यूपी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले का समय था. पत्रिका के कवर पर योगी आदित्यनाथ की बड़ी-सी तस्वीर के साथ लिखा है-

काम कर रहे हैं,

सही चुना था

लोग कह रहे हैं

सही चुनेंगे

मन बना चुकी है प्रदेश की जनता

यही चुना था यही चुनेंगे.

यह विशेषांक योगी सरकार के स्तुतिगान के लिए छपा था. उपाध्याय इस अंक के मानद संपादक थे. इसमें काशी में हुए बदलाव को लेकर उपाध्याय ने भी एक लेख लिखा था. वे लिखते हैं, ‘‘वाराणसी के सांसद और देश के प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के अस्सी घाट पर स्वच्छता की जो झाड़ू 2014 में हाथ ली, मानो वह काशी के करवट का नया अध्याय था. हमारे स्वतंत्रता नायकों और सामान्य लोगों की आंखों में जो सपना था, उसे उस दिन नई संजीवनी मिली. और जैसे ही 2017 में उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने शपथ ली, पुरातन काशी नई ज्योति से प्रदीप्त हो गई.’’

दिसंबर 21-जनवरी 2022 में पाञ्चजन्य ने उत्तर प्रदेश विशेषांक निकाला था.
पाञ्चजन्य में राकेश कुमार उपाध्याय द्वारा लिखा गया लेख.

बीएचयू में हिंदू स्टडी में एमए कोर्स शुरू कराने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है. उपाध्याय ने 2016 के आखिर तक आज तक में पत्रकारिता की है. पत्रकारिता के दौरान भी इन्होंने आरएसएस और पीएम मोदी से जुड़ी खबरें ही लिखी हैं. उदाहरण के तौर पर इन खबरों को देख सकते हैं.

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आज तक-इंडिया टुडे से नौकरी छोड़ने के बाद उपाध्याय भारतीय अध्ययन केंद्र के चेयर प्रोफेसर बने. इस केंद्र की स्थापना बीएचयू के तत्कालीन वॉइस चांसलर प्रो गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने की थी. ऐसा माना जाता है कि त्रिपाठी ही इनको बीएचयू में ले आए थे.

बीएचयू से जुड़े एक शिक्षक बताते हैं कि राकेश उपाध्याय, भारतीय अध्ययन केंद्र में पांच साल के लिए चेयर प्रोफेसर चयनित हुए थे. इन्हें हर महीने एक लाख रुपए मिलते थे.

वहीं अध्ययन केंद्र से जुड़े एक अधिकारी बताते हैं, ‘‘बीते साल नवंबर महीने में उनका पांच साल का कार्यकाल पूरा हो गया. एक्सटेंशन के लिए फाइल भेजी गई है. हालांकि संस्थान से उनका बौद्धिक जुड़ाव तो है ही इसलिए अभी भी वो हिंदू स्टडी की क्लास लेने कभी-कभार आते हैं.’’

भारतीय अध्ययन केंद्र की स्थापना का उदेश्य प्राचीन भारतीय संस्कृति, साहित्य व ज्ञान पर अध्ययन व शोध बताया गया है. पांच सालों तक उपाध्याय ने हिंदू धर्म और प्राचीन भारतीय इतिहास से जुड़े विषयों को पढ़ाया है ऐसे में उन्हें आईआईएमसी में पत्रकारिता पढ़ाने की जिम्मेदारी दे दी गई. वो भी पोलिटिकल रिपोर्टिंग. इसको लेकर न्यूज़लॉन्ड्री ने आईआईएमसी के महानिदेशक संजय द्विवेदी से कुछ सवाल भेजा था, लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया.

एसोसिएट प्रोफेसर की नियुक्ति की योग्यता में आठ साल पढ़ाने या रिसर्च का अनुभव शामिल था. उपाध्याय 2016 तक पत्रकारिता में थे और वहां से निकलकर वे भारतीय अध्ययन केंद्र से जुड़ गए. ऐसे में उनका पढ़ाने का अनुभव पांच साल का ही हुआ. इसको लेकर न्यूज़लॉन्ड्री ने जब उपाध्याय से बात की तो वे कहते हैं, ‘‘जो अहर्ता आईआईएमसी ने मांगी थी उसे मैं पूरा करता हूं. बाकी इसके बारे में मुझे कुछ नहीं कहना है.’’

2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में भी उपाध्याय शामिल हो चुके हैं. 27 अप्रैल को ( न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत के बाद ) उन्होंने सोशल मीडिया पर आईआईएमसी ज्वाइन करने की जानकारी साझा की. हालांकि वे वहां पढ़ा रहे थे और यहां होने वाले शैक्षिक गतिविधियों में भी शामिल हो रहे थे. 27 अप्रैल को आईआईएमसी में एक कार्यक्रम हुआ था. जिसमें सूचना मंत्री अनुराग ठाकुर आने वाले थे, हालांकि बाद में वे नहीं आए. इस कार्यक्रम में उपाध्याय ने बिहार और उत्तर प्रदेश के संवाद इतिहास पर विचार रखा.

27 अप्रैल को आईआईएमसी में आयोजित कार्यक्रम में राकेश उपाध्याय

आईआईएमसी में उपाध्याय हिंदी पत्रकारिता, रेडियो और टेलीविजन के छात्रों को पॉलिटिकल रिपोर्टिंग और अंग्रेजी पत्रकारिता के छात्रों को विज्ञापन पढ़ाते हैं. रेडियो और टेलीविजन के एक छात्र ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, ‘‘अक्सर ही वो वर्तमान सरकार का गुणगान करने लगते हैं. कई बार वो संतुलन बनाने की कोशिश करते नज़र आते हैं.’’

उपाध्याय हिंदी भाषा में पढ़ाते हैं, जिस कारण अंग्रेजी पत्रकारिता के कुछ छात्रों ने विरोध दर्ज कराया था. इसके बाद उनकी क्लास बंद कर दी गई. यहां पढ़ने वाले एक छात्र ने बताया, ‘‘हमारी क्लास में केरल और दूसरे राज्यों के भी छात्र हैं. जिन्हें हिंदी समझ में नहीं आती है. उन्होंने ही विरोध किया था. हालांकि मुझे उनकी क्लास ठीक लगी. प्रैक्टिकल तरीके से पढ़ाते हैं.’’

ईडब्ल्यूएस कोटा पर संजय द्विवेदी की पूर्व सहयोगी का चयन

ईडब्ल्यूएस यानी इकोनॉमिकली वीकर सेक्शन कोटे में मीता उज्जैन का चयन हुआ है. न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद डॉक्यूमेंट में लिखा है, ‘‘ईडब्ल्यूएस कोटे के तहत किसी उम्मीदवार ने अप्लाई नहीं किया. जिसके बाद चयन समिति ने सिफारिश की है कि भारत सरकार के मौजूदा निर्देश के तहत इस पद पर जनरल कैटेगरी की वेटिंग लिस्ट में मौजूद पहले उम्मीदवार का चयन किया जा सकता है.’’

जनरल कैटेगरी में मीता उज्जैन और धीरज शुक्ला वेटिंग लिस्ट में थे. उज्जैन पहले नंबर पर थीं, इस तरह उन्हें चुन लिया गया. मीता 2005 से माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में विज्ञापन और पीआर विभाग में सहायक प्रोफेसर थीं. बाद में उन्हें संस्थान के नोएडा कैंपस की भी जिम्मेदारी दी गई. 2020 में यूजीसी के प्रावधानों के तहत नोएडा कैंपस बंद कर दिया गया तो वो वापस भोपाल चली गईं.

आपको बता दें कि आईआईएमसी के वर्तमान महानिदेशक संजय द्विवेदी 10 वर्ष से अधिक समय तक इसी माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग के अध्यक्ष रहे हैं. बताया जाता है कि 2018 में मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के इन्हें कुछ मुश्किलों का सामना करना पड़ा. लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा ज्वाइन करने और बाद में कमलनाथ की सरकार गिरने के बाद 2020 में इन्हें माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय कुलपति नियुक्त कर दिया गया. कुछ ही दिनों बाद द्विवेदी आईआईएमसी के डीजी बनकर दिल्ली आ गए.

नाम गोपनीय रखने की शर्त पर माखनलाल कैंपस से जुड़े एक शिक्षक बताते हैं, "मीता जी, द्विवेदीजी की करीबी हैं. दोनों ने लंबे समय तक साथ में कामकाज किया है. हर आदमी अपने लोगों को फायदा पहुंचाता है."

आईआईएमसी चयनित प्रोफेसरों की लिस्ट

आईआईएमसी का कहना है कि एसोसिएट प्रोफेसर के लिए कोई ईडब्ल्यूएस कोटे का उम्मीदवार नहीं मिला. इसमें भी एक पेंच है जिसकी वजह से कोई उम्मीदवार नहीं मिला. दरअसल एसोसिएट प्रोफेसर के लिए फॉर्म भरने वाले कुछ लोगों को इंटरव्यू में इसलिए शामिल नहीं किया गया क्योंकि इसकी योग्यता पे-स्केल 10 थी. यानी इसके लिए वहीं पात्र माना जाएगा जिसका पे स्केल 10 हो. अब देखिए आईआईएमसी ने अपने यहां असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए जो वेतन का मानक 10 पे-स्केल रखा है. 10 पे-स्केल का अर्थ है 57,700 रुपए से 1,82,400 रुपए प्रतिमाह वेतन. अगर आप ईडब्ल्यूएस कोटे के लिए सरकार के तय मानक की बात करें तो इसका लाभ उन्हीं को मिल सकता है जिनके पूरे परिवार की सलाना आमदनी आठ लाख हो. यह सरकार की नीतियों में मौजूद खामियों और मनमानियों का सबूत है. एक तरफ आप पे स्केल 10 रखते हैं, दूसरी तरफ ईडब्ल्यूएस कोटा की सीमाएं भी तय हैं. इस गड़बड़ी के कारण ईडब्ल्यूएस कोटे में योग्य उम्मीदवार मिल ही नहीं सकता था.

प्रोफेसर अपूर्वानंद एसोसिएट प्रोफेसर की नियुक्ति को लेकर कहते हैं, ‘‘एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर ईडब्ल्यूएस कोटा अर्थविहीन हो जाता है. ईडब्ल्यूएस में जो इनकम सीलिंग है, असिस्टेंट प्रोफेसर की सैलरी में ही वह सीलिंग खत्म हो जाती है. अब कोई पहले असिस्टेंट प्रोफेसर होगा उसके बाद ही एसोसिएट प्रोफेसर बनेगा. ऐसे में यह एक मजाक भर है.’’

जहां एसी-एसटी के लिए आरक्षित पदों पर नियुक्ति नहीं होती तो उस पद को अगले साल भरने की प्रक्रिया है, वहीं नियम के मुताबिक ईडब्ल्यूएस के लिए आरक्षित पद अगर खाली रहता है तो उसे अगले साल नहीं भरा जा सकता है.

31 जनवरी, 2019 को कार्मिक मंत्रालय द्वारा ईडब्ल्यूएस को लेकर जारी डॉक्यूमेंट के 6.3 पॉइंट पर लिखा है, अगर किसी भी भर्ती वर्ष में ईडब्ल्यूएस की पोस्ट उपयुक्त उम्मीदवार की कमी के कारण नहीं भरी जाती तो उस विशेष भर्ती वर्ष के लिए ऐसी रिक्तियों को अगले भर्ती वर्ष में बैकलॉग के रूप में आगे नहीं बढ़ाया जाएगा.

कार्मिक मंत्रालय द्वारा ईडब्ल्यूएस को लेकर जारी डॉक्यूमेंट

लेकिन क्या ईडब्ल्यूएस की पोस्ट पर जनरल कैटेगरी के वेटिंग वाले उम्मीदवार को लाया जा सकता है. इसको लेकर कोई स्पष्ट दिशानिर्देश सामने नहीं आया है. अलग-अलग विश्वविद्यालयों में उच्च पदों पर बैठे प्रोफेसरों और अधिकारियों की इसको लेकर अलहदा राय है. ज्यादातर का मानना है कि ऐसा मुमकिन नहीं है. वहीं कुछ का कहना है कि ईडब्ल्यूएस बिलकुल नया है, सरकार खुद इसको लेकर स्पष्ट नहीं है.

नियुक्ति को लेकर शिकायत

न्यूज़लॉन्ड्री को मिली जानकारी के मुताबिक आईआईएमसी में हुई नियुक्ति को लेकर दो शिकायतें अब तक दर्ज की गई हैं. एक शिकायत भोपाल के रहने वाले शैलेन्द्र सिंह ने की है.

सूचना और प्रसारण मंत्रालय को लिखे पत्र में सिंह ने आरोप लगाया है कि आईआईएमसी में सह-अध्यापक और सहायक अध्यापक की नियुक्तियों में अनियमितता का मामला सामने आया है. अपनी शिकायत में सिंह पवन कौंडल की नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए लिखते हैं, "सह अध्यापक पद के लिए स्क्रूटनी कमेटी द्वारा रेगुलर पे-स्केल (लेवल 10) नहीं होने का हवाला देकर मुझे इंटरव्यू के लिए आमंत्रित नहीं किया गया. परंतु एक अन्य अभ्यार्थी डॉक्टर पवन कौंडल को रेगुलर पे-स्केल (लेवल-10) की पात्रता नहीं होने पर भी साक्षात्कार के लिए आमंत्रित किया गया एवं उन्हें नियुक्ति भी दे दी गई."

पवन कौंडल की नियुक्ति एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में आरक्षित एससी कैटेगरी में हुई है. सिंह ने हमें आईआईएमसी से प्राप्त मेल भी दिखाया जिसमें लिखा गया है, ‘‘सहायक प्राध्यापक, स्तर 10 के पद पर नियमित वेतनमान में आठ वर्ष के शिक्षण अनुभव/उद्योग के अनुभव का प्रमाण पत्र संलग्न नहीं है.’’

सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर के साथ पवन कौंडल

कौंडल के साथ काम करने वाले एक कर्मचारी नाम नहीं छापने की शर्त पर न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘कौंडल की नियुक्ति आईआईएमसी की पत्रिका के लिए असिस्टेंट एडिटर के तौर पर हुई थी. उनका वेतन कितना था यह तो नहीं बता सकते लेकिन एसोसिएट प्रोफेसर नियुक्त होने से पहले तक वे असिस्टेंट एडिटर ही थे. कैंपस में रहते हुए जरूर गेस्ट फैकल्टी के रूप में उन्होंने क्लास ली थी, लेकिन इस पोस्ट के लिए पात्रता में आठ साल का पढ़ाने या रिसर्च के अनुभव की मांग की गई है. अब जब इनका चयन ही असिस्टेंट एडिटर के तौर पर हुआ है तो इनको जॉब क्यों दी गई यह समझ से परे हैं.’’

इसी पोस्ट के लिए अप्लाई करने वाले एक उम्मीदवार न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘इनकी नियुक्ति 2011 में असिस्टेंट एडिटर के तौर पर आईआईएमसी के जनरल में हुई थी. आईआईएमसी का जो जनरल है वो एकेडमिक रिसर्च नहीं है. एकेडमिक रिसर्च का मतलब होता है, मान लीजिए मेरे तहत आईसीएचआर का प्रोजेक्ट चल रहा हो, और मैंने किसी को रिसर्च असिस्टेंट या रिसर्च एसोसिएट नियुक्त कर लिया. उसे एकेडमिक रिसर्च पोजीशन कहते हैं और इसे अनुभव में शामिल किया जाता है. एक रिसर्च पर आधारित जनरल का असिस्टेंट एडिटर होने के कारण उसको आप एकेडमिक रिसर्च का अनुभव नहीं मान सकते हैं. मुझे समझ नहीं आ रहा कि उन्हें इंटरव्यू के लिए क्यों बुलाया गया.’’

उम्मीदवार बताते हैं कि भले ही पवन का चयन एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में किया गया है लेकिन वो अब भी अपनी पुरानी भूमिका में ही हैं. उन्हें पब्लिकेशन डिवीजन में रखा गया है. अगर उनसे वहीं काम कराना था तो बतौर एसोसिएट प्रोफेसर क्यों ज्वाइन कराया गया?

इसको लेकर न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद डॉक्यूमेंट में लिखा है कि डॉ कौंडल प्रकाशन विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर तैनात हैं. वे राजभाषा विभाग के भी प्रभारी होंगे.

शिकायकर्ताओं का कहना है कि कौंडल का पे-स्केल 10 नहीं था, जबकि ज्वाइन करने के बाद पे-स्केल 13 मिल रहा है. इसको लेकर न्यूज़लॉन्ड्री ने पवन कौंडल से बात की. उन्होंने आरोप के बारे में जानकारी होने से इंकार कर दिया.

नियुक्तियों में हुई गड़बड़ियों और शिकायतों को लेकर आईआईएमसी के महानिदेशक संजय द्विवेदी को हमने कुछ सवाल भेजे हैं. इनका जवाब उन्होंने एक वाक्य में दिया. उन्होंने लिखा, ‘‘सभी चयन नियमानुसार हुए हैं. स्क्रूटनी कमेटी और चयन समिति ने सभी नियमों को देखकर ही नियुक्तियां की हैं.’’

आईआईएमसी से जुड़े लोगों का मानना है कि संजय द्विवेदी के आने के बाद आईआईएमसी वर्तमान सरकार के एजेंडे को बढ़ाने में लगा हुआ है. चाहे वो विदेशी मीडिया को लेकर किया जाने वाला रिसर्च हो या यहां होने वाले कार्यक्रम. यहां होने वाली नियुक्तियों में हर जगह सरकार की छाप साफ नजर आती है.

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