NL Charcha
एनएल चर्चा 210: रामनवमी पर हिंसा, प्रधानमंत्री संग्रहालय, अखंड भारत और हिंदी
एनएल चर्चा के इस अंक में रामनवमी के दौरान देश के अलहदा हिस्सों में हुई बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा पर विशेष बातचीत हुई. साथ में द्वारका में गौरक्षकों द्वारा छः लोगों की पिटाई, एक व्यक्ति की मौत, दिल्ली पुलिस द्वारा हिन्दू युवा वाहिनी को हेट स्पीच मामले में क्लीन चिट, मोहन भागवत का अखंड भारत बनाने का बयान, प्रधानमंत्री द्वारा प्रधानमंत्री संग्रहालय का उद्घाटन और हिंदी भाषा को देश की संपर्क भाषा बनाने का ऐलान आदि विषयों का भी जिक्र हुआ.
चर्चा में इस हफ्ते बतौर मेहमान दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद और स्वतंत्र पत्रकार अर्शी क़ुरैशी मुंबई से शामिल हुईं. साथ ही न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस ने भी इस चर्चा में हिस्सा लिया. चर्चा का संचालन कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
अतुल ने चर्चा की शुरुआत करते हुए बीते हफ्ते देश के अलग-अलग राज्यों में हुई सांप्रदायिक हिंसा की ख़बरों का मसला उठाया, "हमारे देश में सांप्रदायिकता का जो रूप है, उसने सात आठ सालों में नया आकार लिया है या फिर यह पहले से चली आ रही सांप्रदायिकता का विस्तार है? क्या इसमें कोई नया आयाम जुड़ा है?”
अपूर्वानंद इस प्रश्न का जवाब देते हुए कहते हैं, "पिछले 10 दिनों से जो हो रहा है उससे किसी को भी फ़िक्र होनी चाहिए. रामनवमी पर ऐसे जुलूस हमने पहले भी देखे मगर इस दफा खास बात यह है कि कानून व्यवस्था पूरे देश में बुरी तरह से ध्वस्त हुई है. इन जुलूसों के समय प्रशासन या पुलिस क्या कर रहे थे यह बहुत बड़ा प्रश्न है. यह हमारे लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय होना चाहिए कि देश से कानून का राज ख़त्म हो रहा है. दो चीज़ें हैं, एक उग्र जुलूसों का निकलना, उनको ऐसे रास्तों से जाने की इजाज़त देना जिन रास्तों को संवेदनशील माना जाता है और जहां उपद्रव करने की मंशा से जाने की इच्छा होती है. प्रशासन ने यह क्यों होने दिया? एक प्रश्न यह है और दूसरा यह कि प्रशासन ने पर्याप्त पुलिस बन्दोबस्त क्यों नहीं किया? और तीसरा प्रश्न यह कि जब हिंसा हुई तो उस हिंसा की जांच करने से पहले ही आपने मुसलमानों के घर पर बुलडोज़र चलाकर क्यों गिरवा दिए? यह जो उग्र भीड़ या जुलूस है उनकी और प्रशासन की मिलीभगत है. इसका अर्थ है कि कानून का राज गुंडे एक तरफ खत्म कर रहे हैं लेकिन अब प्रशासन और गुंडों में कोई फ़र्क़ नहीं रह गया है.”
वो आगे कहते हैं, “जहां तक रामनवमी के मौके का सवाल है रामनवमी हमेशा ही बेहद तनाव भरा अवसर रहा है. यह ऐसा मौका होता है जब पुलिस और प्रशासन अतिरिक्त रूप से सावधान रहते हैं. छुट्टियां रद्द कर दी जाती हैं. रामनवमी के जुलूसों के समय या ताज़िया निकलने के समय पुलिस बहुत चुस्त रहती है.”
अपूर्वानंद आगे कहते हैं, "आपको मैं याद दिला दूं कि रामनवमी के मौके का इस्तेमाल कैसे किया जाता है और यह कोई नई बात नहीं है. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ इसका इस्तेमाल हमेशा अपने शक्ति प्रदर्शन के लिए करता है. अधिकांश हिन्दू इसमें उत्सव मनाने के लिए शामिल होते हैं. सौ वर्षों में जो कुंठा रही है कि आपको शक्ति प्रदर्शन मुसलमानों के सामने करना है. हमेशा इन जुलूसों का प्रयास रहता है कि मुस्लिम इलाक़ों से निकलें या मस्जिद के सामने से जाएं और वहां ठहरकर कुछ देर अपना शक्ति प्रदर्शन करें. और प्रशासन उसके लिए रास्ता तैयार करता है.”
इस मुद्दे पर अपने विचार व्यक्त करते हुए अर्शी कहती हैं, "मैंने अभी हाल ही में गुजरात के खंबात में जहां हिंसा हुई थी वहां रिपोर्टिंग की थी. उस दौरान मैंने वहां के स्थानीय लोगों और अन्य रिपोर्टर्स से बात की. सबसे ज़्यादा हैरान करने वाली बात सामने निकल कर आई कि कि जब अटैक हुआ तब पुलिस वहां पर खड़ी थी. जब उग्र भीड़ उकसाऊ गाने बजाते हुए हथियारों के साथ गुज़री तब पुलिस देख रही थी, मगर किसी भी पुलिस वाले ने मना नहीं किया. हिंसा के बाद मुसलमानों को ही पुलिस ने उठाना शुरू कर दिया.”
देश भर में हो रह सांप्रदायिक हिंसाओं पर मेघनाद कहते हैं, “सात राज्य ऐसे हैं जिनके बारे में हमें जानकारी है या जो मुख्यधारा के मीडिया में आए हैं, जहां हिंसा की घटनाएं हुई हैं. लेकिन ऐसी पता नहीं कितनी छिटपुट घटनाएं होंगी जिनकी जानकारी हमें नहीं है. यह समस्या गहराती जा रही है. पिछले दो सालों में जब यूपी में इस तरह की घटनाएं हुईं, हिंसा हुई पत्थरबाज़ी हुई तो मुसलमानों के घरों पर बुलडोज़र चला दिया गया. योगी आदित्यनाथ को बुलडोज़र बाबा कहा जाने लगा आज वही चीज़ मध्य प्रदेश में हो रही है. ऐसा कोई कानून नहीं है भारत में जो यह कहता है कि कोई भी अपराध करे तो आप उसका घर तोड़ देंगे. अतिक्रमण के नियम अलग होते हैं लेकिन यह एक बहुत ही सोचे समझे तरीके से और जानबूझ कर किया गया हमला है.”
इस विषय के अलावा मौजूदा अशांति के माहौल पर विश्व समुदाय की भूमिका को लेकर भी चर्चा में विस्तार से बातचीत हुई. पूरी बातचीत सुनने के लिए हमारा यह पॉडकास्ट सुनें और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.
टाइमकोड
00- 0:50 - इंट्रो
0:50 - 07:15 - हेडलाइंस
7:12 - 47:50 - रामनवमी के दिन देशभर में हुई हिंसा
47:50 - 1:06:26 - भारत में धार्मिक घटनाए और उस पर विश्व की नजर
1:06:26 - 1:27:40 - भाषा को लेकर जारी बहस
1:27:45 - सलाह और सुझाव
पत्रकारों की राय, क्या देखा, पढ़ा और सुना जाए
मेघनाद एस
वेब 3.0: अ लिबर्टेरियन डिस्टोपिया
एमसीडी चुनावों में केजरीवाल की स्थिति- संसद वॉच
मोदी सरकार द्वारा जनता को दी जारी फ्री चीजें
अर्शी कुरैशी
गुजरात में मुस्लिम इलाके में हिंदू भीड़ द्वारा लगाए नारे और निकाली गई रैली
अपूर्वानंद
रिस्टोर इंडिया हेरिटेज ऑफ ए शेयर्स पीपल हुड - द हिंदू में प्रकाशित गोपाल कृष्ण गांधी का लेख
द टेलीग्राफ अखबार पर देवदन मित्रा का प्रकाशित लेख - झूठा भगवान
अतुल चौरसिया
नेहरू संग्रहालय पर एनडीटीवी की रिपोर्ट
***
***
प्रोड्यूसर- रौनक भट्ट
एडिटिंग - उमराव सिंह
ट्रांसक्राइब - तस्नीम फातिमा
Also Read
-
In Pulwama’s ‘village of doctors’, shock over terror probe, ‘Doctor Doom’ headlines
-
6 great ideas to make Indian media more inclusive: The Media Rumble’s closing panel
-
Friends on a bike, pharmacist who left early: Those who never came home after Red Fort blast
-
‘They all wear Islamic topis…beard’: When reporting turns into profiling
-
‘दाढ़ी, टोपी... तो सवाल भी उन्हीं से होगा..’: जब रिपोर्टिंग छोड़ बदनाम करने पर उतर आए चैनल और पत्रकार