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महू में आंबेडकर जयंती: विश्व हिंदू परिषद, एंग्री हनुमान और जय श्रीराम

"महर्षि अरबिंदो, स्वामी विवेकानंद के सपनों का भारत अगले 10-15 सालों में हिंदू राष्ट्र बन जाएगा. जो साथ आएंगे वे आगे बढ़ेंगे और जो इसका विरोध करेंगे वे खत्म हो जाएंगे या हटा दिए जाएंगे. जो भी हो लेकिन अब ये रुकेगा नहीं. इस गाड़ी में एक्सीलेटर तो है लेकिन ब्रेक नहीं." राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत का यह बयान डॉ. भीमराव आंबेडकर के 131वें जन्मदिवस पर हरिद्वार के एक कार्यकर्ता सम्मेलन में दिया गया है.

एक तरफ देश बाबा साहब आंबेडकर का जन्मदिन मना रहा था, दूसरी तरफ आरएसएस हिंदू राष्ट्र बनने में लगने वाले समय को बता रहा है. मोहन भागवत के बयान की सबसे बड़ी चीज वह टाईमिंग है जिससे बदली हुई परिस्थितियों का अंदाजा लगाया जा सकता है. आरएसएस उन आंबेडकर को अपना बनाने की कोशिश में लगा हुआ है जो हिंदू राष्ट्र जैसे किसी विचार का समर्थन नहीं करते थे. बाबा साहब ने 82 साल पहले 1940 में ही इस विचार का विरोध किया था. इसके विरोध में उन्होंने लिखा था- "हिंदुत्व आजादी, समानता भाईचारे के साथ लोकतंत्र के लिए भी खतरा है. इसको रोकने के लिए हमें प्रयास करने होंगे."

अपनी शुरुआत से ही हिंदूराष्ट्र के विचार को पोषित कर रहा आरएसएस डॉ. भीमराव आंबेडकर को भी खुद से जोड़ने का प्रयास कर रहा है. बाबा साहब के जन्मदिवस (14अप्रैल) से ठीक एक महीने पहले, बीते 13 मार्च 2022 को आरएसएस के आनुषांगिक संगठन विश्व हिंदू परिषद ने स्वराज के 75वां अमृत महोत्सव मनाया. इस महोत्सव में इंदौर से महू (बाबा साहब की जन्मस्थली) तक संविधान सम्मान यात्रा का आयोजन किया गया.

इस यात्रा में इंदौर से लेकर महू (डॉक्टर आंबेडकर नगर) के बीच करीब 25 किलोमीटर की मोटरसाइकिल यात्रा निकाली गई. इसमें एक खुली जीप पर संविधान की दो प्रतियां (एक हिंदी में और एक अंग्रेजी में) रखी गई थीं और इस जीप को चारों तरफ से भगवा झंडों से सजाया गया था. इसमें कुछ लोग बैठे हुए थे, जो संविधान की प्रतियों पर फूल-माला चढ़ा रहे थे. जीप के पीछे हजारों मोटरसाइकिल सवार लोगों की भीड़ थी, जो देशभक्ति के गानों के साथ आगे बढ़ रही थी.

संविधान के सम्मान में निकली इस पूरी यात्रा में भारत के राष्ट्रीय ध्वज को खोजना भी मुश्किल था. पूरी यात्रा के दौरान, बीच में कहीं केवल एक जगह तिरंगा दिखाई दे रहा था, जबकि इसके उलट एंग्री हनुमान और भगवान राम की तस्वीर छपे भगवा झंडों की पूरी यात्रा में भरमार थी. अगर उस एक खुली जीप को हटा दिया जाए, जिसमें संविधान की प्रतियां रखी थीं, तो पूरी यात्रा आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद की दूसरी रैलियों से अलग नहीं थी.

विश्व हिंदू परिषद द्वारा आयोजित इस यात्रा के पोस्टर अभी भी कई जगहों पर लगे हुए हैं. इनमें बाबा साहब की फोटो, विश्व हिंदू परिषद का लोगो और रैली के आयोजक अनिल वर्मा का नाम छपा हुआ है. ऐसा ही एक पोस्टर है, जिसमें एक तरफ बाबा साहब की फोटो लगाई गई है. दूसरी तरफ एक रेखा चित्र उकेरा गया है, जिसके नीचे मोटे-मोटे अक्षरों में संविधान के भाग-13 के प्रारंभ में राजा भागीरथ द्वारा गंगा को धरती पर लाने के प्रसंग का उदाहरण दिया गया है. ऐसे होर्डिंग लगाने का केवल एक ही उद्देश्य था कि डॉ. भीमराव आंबेडकर को हिंदू धर्म का अनुयाई घोषित किया जा सके.

बाबा साहब से जुड़ी तारीखों को महू में किसी त्योहार की तरह मनाया जाता है. उनकी जन्मस्थली पर ऐसा पहली बार हो रहा है जब आरएसएस से जुड़े किसी संगठन ने महू में इस तरह का आयोजन किया हो, जिसमें 'जय संविधान और जय श्रीराम' के विरोधाभासी नारे एक साथ लगे हों.

बाबा साहब भीमराव आंबेडकर स्मारक समिति के सदस्य और पूर्व में उसके रोजमर्रा के कार्यों से जुड़े रहने वाले मोहन राव वाकुडे कहते हैं, "यह स्मारक पवित्र स्थल है, यहां बाबा साहब को मानने वाले लोग आते हैं. वे भले ही किसी दूसरे विचार के हों, मगर सभी की आस्था संविधान में है. इसमें सामाजिक संगठनों से लेकर राजनीतिक दलों के लोग भी होते हैं, जो बाबा साहब से प्रेरणा लेकर यहां आते हैं. उन्हें विश्वास होता है कि वे आज जो भी हैं बाबा साहब की वजह से हैं."

महू में रहने वाले और नई दुनिया अखबार के पूर्व पत्रकार आदित्य सिंह अपने साथ घटी एक घटना याद करते हुए बताते हैं, "एक समय था, जब बाबा साहब की जन्मस्थली स्मारक में महाराष्ट्र से आए कुछ लोगों ने मुझे इसलिए रोक लिया था, क्योंकि मेरे हाथ में कलावा बंधा था और मुझसे पूछताछ की गई थी. वहीं, एक आज का दिन है कि बाबा साहब की तस्वीर के साथ जोर-शोर से एक यात्रा निकाली जा रही है, जय श्रीराम के नारे लगाये जा रहे हैं और कोई रोकने वाला नहीं है."

आदित्य सिंह कहते हैं कि विश्व हिंदू परिषद की इस यात्रा के बाद महू और यहां आने वाले लोगों के मन में आशंकाएं तो हैं कि आरएसएस बाबा साहब का भगवाकरण कर रही है, लेकिन इस बात का जवाब देने वाला यहां कोई नहीं है.

संविधान सम्मान यात्रा का आयोजन करने वाले अनिल वर्मा विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता हैं. फोन पर हुई बातचीत में वह कहते हैं, "पूरा देश बाबा साहब का सम्मान करता है, हम भी करते हैं. लेकिन ये कितनी खराब बात है कि जिस व्यक्ति ने संविधान लिखा, उसकी जन्मभूमि पर बने स्मारक में ही उसका लिखा संविधान नहीं है."

संविधान सम्मान यात्रा के बारे में बताते हुए अनिल कहते हैं, "स्मारक बने हुए इतने साल हो गए, लेकिन वहां संविधान की एक प्रति तक नहीं है, तब हमने सोचा कि क्यों न विश्व हिंदू परिषद संविधान की प्रति वहां रखे, जिसे वहां आने वाले लोग देख सकें. इसके लिए हमने सभी जगहों से अनुमति ली, फिर इस कार्यक्रम को तय किया."

विश्व हिंदू परिषद के प्रांत संगठन मंत्री नंददास दंतोडिया, क्षेत्रीय संगठन मंत्री राजेश तिवारी और विभाग संगठन मंत्री दीपक मकवाना के नेतृत्व में इस यात्रा का आयोजन किया गया.

वह आगे कहते हैं, "केंद्रीय मंत्री भानुप्रताप वर्मा के लिखे पत्र के जरिए हमने लोकसभा से संविधान की मूल प्रति खरीदीं. यात्रा के दौरान, इसी प्रति को रथ पर लोगों के दर्शन के लिए रखा गया था. हमारी यात्रा इंदौर के चिमनबाग से महू के बीच हुई, जिसमें हजारों लोग शामिल हुए. इसे पूरे रास्ते खूब प्यार मिला. 100 से ज्यादा जगहों पर हमारी यात्रा का स्वागत किया गया. स्वागत करने वालों में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी के लोग भी शामिल थे. महू पहुंचकर हमने बाबा साहब स्मारक समिति के उपाध्यक्ष राजेंद्र वाघमारे को समिति के अन्य सदस्यों की उपस्थिति में यह प्रति सौंपी, जिसे उन्होंने स्मारक में जगह दी. हमें जानकारी मिली है कि समिति ने उस समय तो संविधान की प्रति वहां रखवा दी थी, लेकिन बाद में उसे वहां से हटा दिया गया. हमारी जानकारी सही हुई, तो हम इस पर कार्रवाई करेंगे."

संविधान सम्मान की यात्रा में जय श्रीराम के नारे लगाए जाने और भगवा झंडे फहराए जाने को लेकर यात्रा के आयोजक अनिल वर्मा का कहना था, "यह तो हमारे संगठन की पहचान है. धर्म के खिलाफ तो बाबा साहब भी नहीं थे. संविधान की मूल प्रति में ही धार्मिक विवरण दिए गए हैं. जब ये प्रसंग चित्रित किए जा रहे थे, तब भी बाबा साहब को कोई आपत्ति नहीं थी."

समिति के पूर्व सदस्य मोहनराव वाकुड़े अपनी भावनाएं व्यक्त करते हैं, "मैं बहुत दुखी हूं और निराश भी. अब तक के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है, जब इस तरह की कोई यात्रा आंबेडकर स्मारक स्थल के सामने निकाली गई हो. बीते दो सालों में हुई कुछ घटनाएं इस बात की सुबूत हैं कि डॉ. आंबेडकर साहब की विचारधारा को नष्ट करने की कोशिश की जा रही है. मैं हैरान हूं कि स्मारक समिति क्या तीन हजार रुपए भी खर्च नहीं कर सकती, जिससे स्मारक स्थल पर संविधान की प्रति रखी जा सकें? अगर समिति इतना कर देती, तो विश्व हिंदू परिषद को इतनी बड़ी रैली निकालने का मौका नहीं मिलता."

मोहनराव वाकुड़े कहते हैं कि वर्तमान समिति बाबा साहब के मिशन के विपरीत कार्य कर रही है. वे बताते हैं, "बाबा साहब के निर्वाण दिवस 6 दिसंबर को हर साल समता सैनिक दल के कार्यकर्ता यहां गार्ड ऑफ ऑनर देते हैं. 2020 में समता सैनिक दल के सदस्यों को ऐसा करने से रोका गया. अगले साल 26 नवंबर के दिन स्मारक के दरवाजे बंद कर दिए गए. बाहर से आने वाले दर्शनार्थियों को स्मारक के दर्शन करने तक से रोका जा रहा है. स्मारक कुछ लोगों की निजी संपत्ति बनकर रह गया है. ये लोग जिसे चाहते हैं उसे समिति में रखते या निकालते रहते हैं. 2019 में ऐसे ही कुछ लोगों को समिति का सदस्य बनाया गया है जो उनके कहे अनुसार काम करें. ये सभी सदस्य बाबा साहब की विचारधारा के विपरीत और राष्ट्रीय स्वयं संघ के कार्यकर्ता के तौर पर कार्य कर रहे हैं. यह जानकारी भी मिली है कि स्मारक परिसर में संघ और उससे जुड़े संगठनों की बैठकें हो रही हैं, जो पूरी तरह से बाबा साहब के विचारों के विपरीत है."

25-27 फरवरी 2022 को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने एक प्रांत शारीरिक शिविर का आयोजन किया, जिसमें बाबा साहब आंबेडकर स्मारक की फोटो लगाई गई. इस पोस्टर में शिविर के आयोजन स्थल का पता नहीं दिया गया है. इस बात को लेकर बाबा साहब के अनुयाइयों का मानना है कि इस शिविर का आयोजन स्मारक परिसर में ही किया गया था.

संघ के स्वयं सेवक और दलित स्कॉलर भगवानदास गोंडा ने फोन पर हुई बातचीत में आंबेडकर के भगवाकरण के सवाल पर कहते हैं, "ऐसा कुछ नहीं है. संघ बहुत पहले से बाबा साहब को मानता आ रहा है. महू में संघ बाबा साहब का स्मारक बनने के दौर से जुड़ा हुआ है. इसकी शुरुआत हुई 1977 में, जब मध्य प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार बनी. तब स्मारक निर्माण के प्रयास में तेजी आई. इस आंदोलन को भी संघ पीछे रहकर समर्थन देता रहा, लेकिन कभी क्रेडिट लेने के लिए सामने नहीं आया. संघ का मानना है कि जो वास्तविक लोग इससे जुड़े हैं, क्रेडिट भी उन्हें ही मिलना चाहिए. संघ के स्वयं सेवक देश के नायकों का हर रोज प्रातः स्मरण करते हैं. उनमें बाबा साहब प्रमुख हैं. उन्हें मानने वाले लोग जब सोकर भी नहीं उठते हैं, स्वयं सेवक उनका स्मरण करते हैं. देश की महान विभूतियों को याद करने के लिए संघ ने एकात्मता श्रोत लिखे हैं, जिसमें डॉ. आंबेडकर और उनके गुरू ज्योतिबा फुले को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है."

स्मारक समिति के उपाध्यक्ष राजेंद्र वाघमारे लंबे समय से आंबेडकर स्मारक समिति से जुड़े हुए हैं. यहां हो रहे बदलावों पर वे कहते हैं, "हम राजनीति से दूर हैं. हमारा काम स्मारक की देखभाल करना है, जो हम कर रहे हैं."

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा बाबा साहब के भगवाकरण करने की कोशिशों पर वे कहते हैं, "यहां जो भी आएगा उसका हम सम्मान करेंगे. सभी धर्मों का सम्मान करेंगे, लेकिन बाबा साहब के स्मारक स्थल को किसी भी सूरत में राजनीति का अखाड़ा नहीं बनने देंगे. हम बाबा साहब को मानने वाले लोग हैं जय श्रीराम के नारे कैसे स्वीकार कर पाएंगे?"

आरएसएस-भाजपा द्वारा बाबा साहब का भगवाकरण करने की कोशिश पर वे कहते हैं, "सरकारें उनकी हैं, वे चाहें तो कुछ भी कर सकते हैं. उनकी तो कोशिश ही है कि बाबा साहब के विचारों को खत्म किया जाए. हम भी आखिरी सांस तक लड़ेंगे. वे जो कर रहे हैं इस बात को तो पूरी दुनिया जानती है. हम अपने स्तर से विरोध करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं."

13 मार्च की रैली और स्मारक समिति से जुड़े तमाम मसलों पर हमने समिति के सचिव राजेश वानखेड़े से जब बात की, तो उनका कहना था, "संविधान सबका है. ऐसे में विश्व हिंदू परिषद के सदस्य हों या फिर कोई और, लोग यहां आते रहते हैं. जो भी लोग रैली यात्रा लेकर आते हैं वे स्मारक परिसर में उसका समापन करते हैं."

विश्व हिंदू परिषद को इस रैली के आयोजन की अनुमति किसने दी. इस पर राजेश वानखेड़े कहते हैं, "बाबा साहब को मानने वाले लोग कुछ भी करें, इससे समिति का कोई लेना देना नहीं है और स्मारक समिति इसमें किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं कर सकती है. ऐसे में हमारी अनुमति की जरूरत ही नहीं है. हमारी जिम्मेदारी केवल स्मारक परिसर तक है. उसके बाहर कोई कुछ भी करे, हम उसमें दखल नहीं दे सकते. फिर वो आरएसएस, भाजपा से जुड़ा संगठन हो या फिर कांग्रेस या किसी और पार्टी का."

समिति के सचिव राजेश वानखेड़े राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता और भाजपा के सदस्य हैं. वे भाजपा के टिकट पर इंदौर नगर निगम के लिए पार्षद का चुनाव भी लड़ चुके हैं. समिति के पूर्व और वर्तमान सदस्य एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्मारक स्थल को लेकर चीजें ठीक नहीं चल रही हैं. यह भी साफ दिख रहा है कि सदस्यों की इस आपसी लड़ाई से बाबा साहब के विचारों के विरोधी संगठन को अपनी जड़ें जमाने का मौका मिल रहा है.

बाबा साहब के 131वें जन्मदिवस के अवसर पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जन्मस्थली को सरकार की तीर्थ दर्शन यात्रा में शामिल किया है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि संघ और भाजपा बाबा साहब को अपनाने के लिए किस हद तक आतुर हैं.

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