Report
लोकसभा में मोदी सरकार ने सीवर की सफाई के दौरान मरे सफाई कर्मियों के दिए गलत आंकड़े
22 मार्च को लोकसभा में एक सवाल के जवाब में सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले ने बताया कि बीते पांच सालों में भारत में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान 325 सफाई कर्मियों की मौत हुई है.
आंकड़ों के मुताबिक सफाई कर्मियों की सबसे ज्यादा मौतें उत्तर प्रदेश और उसके बाद दिल्ली में हुई हैं. देश में सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य यूपी में इस दौरान 52, तो महज दो करोड़ की आबादी वाले राज्य दिल्ली में 42 सफाई कर्मियों की मौत हुई हैं.
चार सांसद, वांगा गीता विश्वनाथ, ए राजा, वाई एस अविनाश रेड्डी और कोथा प्रभाकर रेड्डी ने लोकसभा में सफाई कर्मियों की मौत और उन्हें मिलने वाले मुआवजे को लेकर सवाल किया था. इसका लिखित जवाब मंगलवार, 22 मार्च को रामदास अठावले ने दिया. अठावले ने बताया कि साल 2017 में 93, 2018 में 70, 2019 में 118, 2020 में 19 और 2021 में 24 सफाई कर्मियों की मौत हुईं है.
यह मौतें सिर्फ 22 राज्यों में हुई हैं. अगर अलग-अलग राज्यों की बात करें तो उत्तर प्रदेश में पांच सालों में 52, दिल्ली में 42, तमिलनाडु में 40, हरियाणा में 35, महाराष्ट्र में 30, गुजरात में 28, कर्नाटक में 26, पंजाब में 17, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और आंध्र प्रदेश में 13-13, तेलंगना में छह, चंडीगढ़ में तीन, ओडिशा और बिहार में दो-दो, केरल, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में एक-एक, वहीं उत्तराखंड, पुंडुचेरी, त्रिपुरा और गोवा में कोई मौत नहीं हुई है.
सरकार के ही दो आंकड़ों में भारी अंतर
केंद्र सरकार ने मृतकों के जो आंकड़ें जारी किए हैं वो राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (एनसीएसके) द्वारा दिए गए आंकड़ों से अलग हैं.
आरटीआई के जरिए आयोग ने साल 2020 में बीते तीन सालों में काम के दौरान मरे सफाई कर्मियों का आंकड़ा जारी किया था. समाचार एजेंसी पीटीआई को मिले जवाब के मुताबिक 2019 में 110, 2018 में 68 और 2017 में 193 लोगों की मौतें हुईं हैं.
2017 में जहां राज्य मंत्री अठावले सिर्फ 93 सफाई कर्मियों की मौत का जिक्र करते हैं वहीं राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग 193 बताता है. यानी पूरे 100 कम. दूसरी तरफ 2018 में अठावले दो मौत ज्यादा बताते हैं. वहीं 2019 में दोनों के बीच आठ मौतों का अंतर है.
राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग, केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की ही संस्था है. यानी एक ही संस्थान से दो-दो आंकड़ें जारी किए गए हैं.
मौतों की जानकारी छिपाई गई?
इसके अलावा भी कुछ बड़े राज्यों के आंकड़ें हैरान करते हैं. जैसे मध्य प्रदेश. केंद्र सरकार द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक मध्य प्रदेश में बीते पांच सालों में सिर्फ एक सफाई कर्मी की मौत हुई है. यह मौत 2019 में हुई थी. हालांकि अलग-अलग समय में मीडिया में छपी खबरें सरकार के इस दावे पर सवाल खड़े करती हैं.
मोदी सरकार के मुताबिक 2021 मध्य प्रदेश में किसी भी सफाई कर्मी की मौत नहीं हुई है. वहीं एनडीटीवी ने 14 दिसंबर 2021 को एक रिपोर्ट में बताया था कि भोपाल में सीवेज टैंक में उतरने से दो लोगों की मौत हो गई थी.
खबर के मुताबिक सीवेज लाइन में बारिश और घरों से निकलने वाला गंदा पानी भर गया था. जिसके बाद एक निजी कंपनी के इंजीनियर दीपक सिंह और एक 18 वर्षीय मजदूर जांच करने के लिए गए थे, सफाई के दौरान ही दोनों की सीवेज में ही मौत हो गई. इनके शव को रस्सी से बांधकर निकाला गया था.
एनडीटीवी ने ही 25 सितंबर 2021 को तीन सफाई कर्मियों की मौत पर खबर प्रकाशित की है. खबर के मुताबिक राज्य के सिंगरौली जिले के कचनी गांव में अंडरग्राउंड सीवर टैंक की मरम्मत का काम चल रहा था. जिसमें कन्हैया लाल यादव, इंद्रभान सिंह और नागेंद्र रजक की मौत हो गई. स्थानीय नगरपालिका के एक कांट्रैक्टर ने इन्हें सीवर टैंक में उतरने को कहा था.
ऐसे ही केंद्र सरकार ने बिहार में सफाई कर्मियों की मौत का आंकड़ा बीते पांच साल में दो बताया है. यह दोनों मौतें 2017 में हुई थीं. जबकि साल 2021 के मई महीने में ही नाले की सफाई के दौरान दो मजदूरों की मौत हो गई थी. दैनिक जागरण की खबर के मुताबिक पटना के बेउर में नमामि गंगे के तहत एलएनटी द्वारा नाला निर्माण के दौरान चैंबर में उतरे दो मजदूरों की मौत दम घुटने से हो गई थी. मृतक पश्चिम बंगाल के मुर्शीदाबाद के रहने वाले इदरीस और मोहम्मद इकबाल थे.
यहां के मुजफ्फरपुर में सीवर की सफाई के दौरान 2019 में चार मजदूरों की मौत हो गई थी.
ऐसे ही पश्चिम बंगाल को लेकर केंद्रीय राज्यमंत्री ने बताया कि यहां 2020 और 2021 में किसी भी सफाईकर्मी की मौत नहीं हुई है. मीडिया रिपोर्टर्स के मुताबिक फरवरी 2021 में कोलकता के कूधघाट इलाके में सीवर की सफाई करने उतरे चार मजदूरों की मौत हो गई थी.
मृतकों की पहचान जहांगीर आलम, लियाकत अली, साबिर हुसैन और मोहम्मद आलमगीर के रूप में हुई थी. मृतकों के परिजनों को पांच लाख का मुआजवा और एक परिजन को नौकरी देने का वादा किया गया था. हादसे की जगह पर तब बंगाल सरकार के मंत्री अरूप विश्वास भी मौके पर पहुंचे थे.
सबसे ज्यादा मौत वाले राज्य उत्तर प्रदेश के आंकड़ों में भी गड़बड़ी नजर आती है. अठावले द्वारा दिए गए जवाब में बताया गया कि 2021 में एक भी सफाई कर्मी की मौत नहीं हुई. वहीं अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स में 2021 में सफाई कर्मियों की मौत की खबरें प्रकाशित हुई हैं.
एनबीटी में प्रकाशित खबर के मुताबिक 28 मई 2021 को ग्रेटर नोएडा के बेगमपुर गांव में नाले की सफाई के दौरान एक मजदूर की मौत हो गई थी. इस दौरान मजदूर को बिना सुरक्षा के सीवर में उतारने का आरोप ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के एक ठेकेदार पर लगा था.
यही नहीं अयोध्या में भी 2021 में एक सफाईकर्मी मनोज सिंह की मौत सीवर साफ करने के दौरान हो गई थी.
मैग्ससे विजेता बेजवाड़ा विल्सन के नेतृत्व में चलने वाले सफाई कर्मचारी आंदोलन ने भी आंकड़े इकठ्ठे किए हैं. वो आंकड़ें भी सरकार के आंकड़े से ज्यादा हैं. संस्था से जुड़े विश्वजीत न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘हमने अपने सीमित संसाधन में जो आंकड़े इकठ्ठा किए हैं उसके मुताबिक बीते पांच सालों में 481 सफाई कर्मचारियों की मौत काम के दौरान हुई है. इनका पूरा रिकॉर्ड हमारे पास है. आंकड़े इससे ज्यादा ही होंगे क्योंकि हम हर जगह नहीं पहुंच सकते हैं.’’
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जहां सरकार के मुताबिक पांच सालों में एक मौत हुई है वहीं सफाई कर्मचारी आंदोलन के पास मौजूद आंकड़ों के मुताबिक क्रमशः 11 और 17 सफाई कर्मियों की मौत हुई है. ऐसे ही सरकार के मुताबिक बिहार और ओडिशा में पांच सालों में दो मौत हुई हैं, वहीं सफाई कर्मचारी आंदोलन के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में 39 और ओडिशा में 15 सफाई कर्मियों की मौत इस दौरान हुई है.
सरकार के मुताबिक उत्तराखंड, पुंडुचेरी, त्रिपुरा और गोवा में कोई भी मौत नहीं हुई हैं. विश्वजीत के मुताबिक त्रिपुरा में दो, उत्तराखंड में दो सफाई कर्मियों की मौत इस दौरान हुई. गोवा में कोई मौत नहीं हुई. वहीं गुजरात में सरकार के मुताबिक 28 सफाई कर्मियों की मौत हुई वहीं सफाई कर्मचारी आंदोलन के मुताबिक इस दौरान 39 मौतें हुई है.
अठावले द्वारा लोकसभा में दी गई जानकारी के मुताबिक महाराष्ट्र में 30 सफाई कर्मियों की मौत हुई है, वहीं सफाई कर्मचारी आंदोलन के मुताबिक इस दौरान 57 लोगों मौतें हुई है.
सरकार आखिर आंकड़ें कम क्यों बताती है. इस सवाल के जवाब में विश्वजीत कहते हैं, ‘‘जब उनके (सरकार के) खुद के आंकड़ों में इतना अंतर है तो आप सफाई कर्मियों की मौत को लेकर सरकार की गंभीरता को समझ सकते हैं. अगर हम आंकड़े इकठ्ठा कर रहे हैं. ऐसे में यह तो कहना मुश्किल है कि सरकार यह नहीं कर सकती है. अगर आंकड़ें सही देंगे तो जिम्मेदारी बढ़ जाएगी. सरकार को परेशानी खत्म नहीं करना है न. सफाई कर्मियों की मौत शायद सरकार के लिए मायने नहीं रखती है.’’
मुआवजा भी सबको नहीं मिलता?
अपने जवाब में रामदास अठावले ने मृतकों के साथ-साथ मृतकों के परिजनों के मिलने वाले मुआवजे की भी जानकारी दी है. जवाब के मुताबिक 325 मृतकों में से केवल 276 लोगों के परिजनों को मुआवजा मिला है. यानी 49 मृतकों के परिजनों को अब तक मुआवजा नहीं मिल पाया है. उत्तर प्रदेश में 52 मृतकों में से 45 तो दिल्ली में 42 में से 37 को मुआवजा मिला है.
सुप्रीम कोर्ट ने साल 2014 के अपने फैसले में कहा था कि किसी व्यक्ति की सीवर सफाई के दौरान मौत होती है तो पीड़ित के परिजनों को 10 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाएगा. कोर्ट ने यह आदेश सफाई कर्मचारी आंदोलन बनाम भारत सरकार मामले में दिया था. आदेश में यह भी था कि पूर्व में जिन सफाई कर्मियों की मौत हुई है, उनके परिजनों की पहचान कर उन्हें भी 10 लाख का मुआवजा दिया जाए.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद भी ऐसा नहीं हुआ. वायर को आरटीआई से मिली जानकारी के आधार पर 2019 में एक खबर प्रकाशित की थी जिसमें सामने आया था कि साल 1993 से 5 जुलाई 2019 तक देशभर में 814 सफाई कर्मियों की मौत हुई लेकिन सिर्फ 455 मृतकों के परिजनों को ही 10 लाख का मुआवजा मिला है.
मुआवजे के सवाल पर विश्वजीत कहते हैं, ‘‘सफाई कर्मी सरकार की प्राथमिकता में शामिल नहीं हैं. वे प्रिवलेज क्लास से ताल्लुक नहीं रखते हैं. सबसे जरूरी बात यह है कि सरकार पहले स्वीकार तो करे कि यह मौतें उनकी लापरवाही की वजह से होती है.’’
विश्वजीत एक और जरूरी मुद्दे की तरफ ध्यान दिलाते हैं वो पुनर्वास है. वे कहते हैं, ‘‘सरकार पुनर्वास को लेकर कोई काम नहीं कर रही है. सरकार को इनके पुनर्वास पर काम करना चाहिए. अगर उन्हें दूसरा काम मिल जाएगा तो वे सीवर में क्यों घुसने जाएंगे. मजदूरों को भी मालूम है कि सीवर में जाने से उनकी मौत हो सकती है, लेकिन कभी मजबूरी में तो कई बार दबाव में उन्हें काम करना पड़ता है. पुनर्वास को लेकर कानून भी है.’’
एक तरफ जहां पीएम नरेंद्र मोदी सफाई कर्मियों का पैर धोते नजर आते हैं वहीं उनके नेतृत्व वाली सरकार साल दर साल इनके पुनर्वास के बजट में कटौती करती आ रही है. साल 2021 के बजट में जहां मैला ढोने वालों के पुनर्वास फंड में 73 फीसदी की कटौती हुई थी, वहीं 2022 के बजट में 30 प्रतिशत की कटौती हुई है.
Also Read: दिल्ली, यमुना की अपराधी
Also Read
-
Amid curbs, TV journalists say unable to record P2Cs or track who’s meeting officials at EC office
-
How hate drove a Muslim flower-seller to death in a Maharashtra village
-
Incredible India? How traveling to Southeast Asia is shattering our delusions of progress
-
Confusion in Belhar: JDU kin contesting for RJD, RJD kin contesting for JDU
-
TV Newsance 320: Bihar elections turn into a meme fest