NL Tippani
टीआरपी और कश्मीर फाइल्स की भेंट चढ़ी खबरिया चैनलों की पत्रकारिता
पिछले हफ्ते टेलीविज़न की दुनिया में ज़लज़ला आ गया. 17 महीने बाद बार्क ने फिर से टीआरपी जारी की. टीवी चैनलों पर खुशी का यह मौका झोंटानोचौउवल का बायस बन गया. ये आई तो दरबारी मीडिया के हुड़कचुल्लुओं में गाली-गलौज शुरू हो गई. राष्ट्रीय स्तर पर जतन से तैयार किए गए दरबारी मीडिया का गठन यह सोचकर नहीं किया गया था कि दो कौड़ी की टीआरपी के चक्कर में चैनल वाले कुकुरझौंझौं करें. लेकिन अर्णब गोस्वामी का तो कुत्ता ही फेल हो गया. उन्होंने दरबारी मीडिया के एक वरिष्ठ सदस्य आज तक का नाम ले-लेकर कर्तन मर्दन किया.
एक सज्जन हैं जो हर साल न्यूज़ ब्रॉडकास्ट मीडिया वालों को अवार्ड देते हैं. सारे चैनल एंट्री फीस देकर अवार्ड के लिए नामांकन करवाते हैं. जैसे ही कोई एंट्री फीस भरता है, उसे अवार्ड मिलना तय हो जाता है. थोक के भाव झउवा के झउवा अवार्ड बांटता है, वैसे ही जैसे जूते में दाल बंटती है. बिल्कुल उसी तर्ज पर बार्क टीआरपी बांट रहा है. मतलब इस रेटिंग की विश्वसनीयता का आलम ये है कि हर चैनल अपने आपको नंबर एक बता रहा है.
बीता हफ्ता खबरिया चैनलों ने कश्मीर फाइल्स को भी समर्पित किया. इस एक ख़बर में हिंदू-मुसलमान की अप्रतिम संभावनाएं थी, राष्ट्रवाद बनाम कांग्रेस की बाइनरी में खेलने का असीमित मैदान था. सो यह खेल पूरे हफ्ते जमकर खेला गया.
कश्मीरी पंडितों का दर्द बहुत जायज है, उस पर फिल्म का बनना भी अच्छी पहल है बशर्ते उसकी नीयत भी उतनी ही साफ हो. कश्मीर के आतंकवाद के दौर में मारे गए मुसलमानों को नज़रअंदाज करने के भी निहित खतरे हैं. ये वो मुसलमान थे जो हिंदुस्तान का झंडा घाटी में उठाते थे. ये मारे ही इसलिए गए क्योंकि ये कश्मीरी हिंदुओं और हिंदुस्तान के साथ खड़े थे. इनको भुलाकर कही गई कोई भी बात अधूरी और भ्रामक है.
इसी के इर्द-गिर्द इस हफ्ते की टिप्पणी.
Also Read
-
Gurugram’s waste crisis worsens as garbage collection stalls
-
Two years on, ‘peace’ in Gaza is at the price of dignity and freedom
-
4 ml of poison, four times a day: Inside the Coldrif tragedy that claimed 17 children
-
Delhi shut its thermal plants, but chokes from neighbouring ones
-
Hafta x South Central feat. Josy Joseph: A crossover episode on the future of media