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द कश्मीर फाइल्स: एनसीआर के सिनेमाघरों में नफरत और नारेबाजी का उभार
कोरोना का असर कम होने के बाद फिर से लोग सिनेमाघरों का रुख कर रहे हैं. लेकिन विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ ने इस दूरी को झटके में खत्म कर दिया है. क्योंकि देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री समेत तमाम नेता परोक्ष-अपरोक्ष रूप से फिल्म का प्रचार कर रहे हैं. बड़ी संख्या में राज्य इसे टैक्स फ्री कर रहे हैं. मंत्री-मुख्यमंत्री स्वयं और विधायकों को भी फिल्म दिखा रहे हैं.
इस बीच बीते कुछ दिनों के दौरान सोशल मीडिया पर अलग-अलग सिनेमा हॉल से आए वीडियो चिंता पैदा करते हैं. मुस्लिम समुदाय के खिलाफ आपत्तिजनक नारेबाजी के वीडियो वायरल हो रहे हैं. न्यूज़लॉन्ड्री के तीन रिपोर्टर्स ने दिल्ली-एनसीआर के अलग-अलग सिनेमाघरों में जाकर फिल्म और वहां के माहौल का जायजा लिया. सिनेमा हॉल खचाखच भरे हुए थे जो कि कोरोना के बाद पहली बार देखने को मिला है. एक बात साफ दिखी कि फिल्म देखने वालों में बड़ी संख्या हिंदूवादी संगठनों के कार्यकर्ताओं की थी जो गले में भगवा पट्टी डाल कर पपहुंचे थे. इसके अलावा रिटायर अधेड़ उम्र के भावुक बुजुर्ग और नौकरीशुदा नौजवान भी नजर आए.
बातचीत में साफ हुआ कि बहुतेरे लोगों को कश्मीर की घटनाओं की ज्यादा जानकारी नहीं थी. वे इस फिल्म के माध्यम से जानना चाहते थे.
नोएडा सेक्टर 18, मंगलवार शाम 7:30 बजे
नोएडा का वेव मॉल, जहां एक दिन पहले ही युवाओं ने फिल्म देखने के दौरान 'भारत माता की जय' और 'जय श्रीराम' के नारे लगाए थे. यह वीडियो सोशल मीडिया पर काफी प्रसारित हुआ. हालांकि मंगलवार को जब हम फिल्म देखने पहुंचे तो ऐसा कुछ तो नहीं हुआ लेकिन कुछ हैरान करने वाली घटनाएं जरूर हुईं.
7:30 बजे का शो हाउसफुल था. 5 बजे के स्लॉट में कुछ ही सीटें खाली थीं. ऐसा लग रहा था कि मॉल में ज्यादातर लोग सिर्फ कश्मीर फाइल्स के लिए आए थे. विवेक अग्निहोत्री की यह फिल्म मॉल में रोजाना आठ स्लॉट में चल रही है. जबकि बैटमैन के छह और गंगूबाई के केवल चार शो चल रहे हैं.
फिल्म के दौरान दर्शकों ने भावनात्मक और गुस्सा, दोनों प्रतिक्रियाएं दीं. मेरी बगल में बैठी एक बुजुर्ग महिला तब रोने लगीं, जब फिल्म में पुष्कर नाथ पंडित (अनुपम खेर) एक शरणार्थी शिविर में रो रहे होते हैं, और एक पंडित महिला दूर चीखते हुए मर जाती है. बैकग्राउंड में घर वापस लौटने का गीत चल रहा होता है. उस बुजुर्ग महिला के आंसू उनके पति ने पोछा.
एक नौजवान लड़का जो बुजुर्ग महिला के सामने वाली शीट पर बैठा था. वो फिल्म के दौरान मुसलमानों को गाली देने लगा. ‘मुल्ला ही मरता तो मजा आता है.’ यह टिप्पणी उसने तब की जब मुस्लिम आतंकवादियों ने एक दृश्य में पंडितों को लाइन में खड़ा कर गोली मार दी थी.
फिल्म में एक दृश्य है जहां एक मौलवी शरणार्थी शिविर में एक पंडित महिला को शादी के लिए कहता है. इस दृश्य को देखते हुए इस युवक ने कहा, ‘‘साला सूअर’’. फिल्म में 2016 के एक अन्य दृश्य में जब एक उग्रवादी नेता कहता है कि वर्तमान प्रधानमंत्री डराना चाहता है. उग्रवादी का इशारा पीएम मोदी की तरफ होता है. इस दृश्य पर यह युवक चिल्लाते हुए कहता हैं, ‘‘हां तुम्हें डरना होगा, बेशक.’’
फिल्म के मध्यांतर में प्लेटिनम स्तर के ग्राहकों के लिए बने वॉशरूम में कुछ लोग आपस में बात करते नजर आए. इसमें से एक ने कहा, ‘‘लोग इतिहास नहीं पढ़ते हैं, यही समस्या है.’’ एक युवक ने अपने दोस्त से कहा, ‘‘हर चीज को मुख्यधारा के इतिहास में शामिल नहीं किया जा सकता है, इसलिए हमें ऐसी घटनाओं के बारे में बात करने के लिए फिल्मों की आवश्यकता है.’’
एम2के मॉल, पीतमपुरा, मंगलवार शाम, 7:50 बजे
विवेक अग्निहोत्री की फिल्म, कश्मीर फाइल्स लगभग हर सिनेमाघर में हाउसफुल है. फिर चाहे वीकेंड हो या आम दिन. पीतमपुरा स्थित एम 2 के मॉल में भी 15 मार्च की शाम 7:50 बजे का शो खचाखच भरा हुआ था. इसकी एक वजह यह भी रही कि आम लोगों के अलावा अलग-अलग हिंदूवादी संगठन के लोग झुंड में इस फिल्म को देखने आए थे.
फिल्म की शुरुआत से ही दर्शकों का एक समूह “भारत माता की जय” की नारेबाजी करता है. पूरी फिल्म के दौरान हर 15-20 मिनट के अंतराल पर यह नारा लगता रहता है. खास बात यह है कि नारा लगाने वाला चाहे आगे बैठा हो या पीछे, लेकिन हॉल में मौजूद सभी लोग तेज आवाज में नारेबाजी में शामिल होते हैं.
फिल्म में एक दृश्य है जहां पुष्कर (अनुपम खेर) अनुच्छेद 370 का बैनर लेकर खड़े नजर आते हैं. इस दृश्य को देखते ही आगे की सीट पर बैठा एक व्यक्ति चिल्लाता है, “मोदी जिंदाबाद.” उसके तुरंत बाद पीछे की सीटों से आवाज आती है, “जय श्रीराम.” यूं ही फिल्म के दौरान अलग-अलग दृश्यों पर नारे लगते रहे.
फिल्म में जेएनयू का नाम एएनयू दिखाया गया है. एएनयू के एक दृश्य में “आजादी” के नारे लगाते हुए छात्रों को दिखाया गया है. उसी समय हॉल में दर्शक आपस में बातचीत शुरू कर देते हैं. वे कहते हैं, “जेएनयू में देश-विरोधी पढ़ाई होती है,” पीछे वाली सीट पर बैठा एक शख्स अपने बगल वाले से कहता है, “कन्हैया कुमार वहीं का तो पढ़ा है.”
इंटरवल के बाद फिल्म में कुछ देर बाद ही एक तेज आवाज आगे से सुनाई देती है, “दोस्तों, अकेला मोदी कुछ नहीं कर सकता. हम सबको जिहाद के खिलाफ लड़ाई लड़नी है.” तब हॉल में बैठे कुछ लोग उसे टोकते हैं, “कृपया चुपचाप फिल्म देखिए.”
फिल्म का अंत होते ही कुछ लोगों का झुंड निकासी के रास्ते में खड़ा हो जाता है. इनका दावा था कि ये सुदर्शन वाहिनी नाम के किसी अनजान से संगठन के लोग थे. इनका एक सदस्य विनोद तेज आवाज में बोलना शुरू करता है, “अगर कन्यादान करते हो तो अपने घर की बेटियों और परिवारवालों को इस फिल्म का टिकट दो ताकि हमारी बेटियों को लव जिहाद से बचाया जा सके.”
एक व्यक्ति जिसने अपना नाम लाला माथुर बताया, वह स्क्रीन के ठीक सामने खड़ा होकर कुरान को गाली देने लगा. वो कहता है, “कुरान सिखाता है मारना-काटना. काफिरों का कत्ल करना, और अगर कोई इस्लाम स्वीकार कर ले तो उनका रास्ता छोड़ दो. जितने भी मुसलमान हैं वो सभी सनातनी थे. अपने प्राण बचाने के लिए वो मुसलमान बन गए और बदला लेने के बजाए उन्हीं की सेना में शामिल होकर हिंदुओं को मारने लगे.”
लाला माथुर आगे कहते हैं, “मुसलमान खतना कराते हैं, हलाला कराते हैं. जबकि सनातन धर्म कहता है कि सबकी मां-बेटी को अपनी मां-बेटी समझो. आज कोई मुसलमान यह नहीं बता सकता कि उसका पिता कौन है. क्या पता वह हलाला की पैदाइश हो? कुरान ही झगड़े की जड़ है.”
फिल्म देखने आए दर्शक इन भाषणों को गंभीरता से सुनते हैं. कुछ देर बाद सिक्योरिटी के कुछ लोग हॉल में आकर इस भीड़ को हटा देते हैं.
वीथ्रीएस मॉल लक्ष्मी नगर, बुधवार, दोपहर 12:20 बजे
लक्ष्मी नगर के वीथ्रीएस मॉल में धीरे-धीरे लोगों की भीड़ जमा होने लगी थी. फिल्म शुरू होने से पहले 10 अधेड़ उम्र के लोगों ने एक युवक से उन सबकी तस्वीर लेने के लिए कहा. ये लोग आईपी एक्सटेंसन में रहने वाले सीनियर सिटीजन हैं. इसमें से कुछ रिटायर हैं और कुछ रिटायरमेंट के बाद अपना बिजनेस करते हैं.
इस फिल्म को देखने का फैसला क्यों किया. इस सवाल के जवाब में ग्रुप के सदस्य पवन चेतल कहते हैं, ‘‘कश्मीरी पंडितों के साथ क्या हुआ. आखिर अब तक हम लोगों से क्या-क्या छुपाया गया. हमें नहीं पता. रोजी-रोटी के कारण समय ही नहीं मिला इस सब के बारे में पता करने का. इसलिए फिल्म को देखने आए हैं.’’
चेतल से बातचीत के दौरान सीनियर सिटीजन ग्रुप के एक सदस्य कहते हैं, ‘‘हमारे हिंदुओं के साथ क्या हुआ हम वो देखने आए हैं. अब तक हमें सुनी-सुनाई बातें पता हैं. तब कांग्रेस की सरकार थी. उन्होंने पंडितों को बचाने की कोशिश नहीं की.’’
जब हमने बताया कि तब तो वीपी सिंह की सरकार थी और उसे भाजपा का समर्थन प्राप्त था. इसपर ये सदस्य सिंह को अपशब्द कहते हुए बताते हैं, ‘‘वो भी कोई ठीक आदमी नहीं था. इसीलिए गुमनामी में मरा. उसकी मौत की खबर किसी अखबार में नहीं छपी और न ही टीवी में दिखाई गई.’’
चेतन इस सदस्य की बात को काटते हुए कहते हैं, ‘‘हमें हिंदू-मुस्लिम से नहीं मतलब. हम मानवता की बात करते हैं. हम किसी पार्टी के नहीं. देश हमारे लिए पहले है.’’
यहां मिले ज्यादातर लोगों की मानें तो आजतक कश्मीरी पंडितों के साथ जो कुछ हुआ देश से छुपाया गया.
फिल्म तय समय से कुछेक मिनट देरी से शुरू हुई. राष्ट्रगान खत्म होते ही एक कोने से ‘भारत माता की जय’ का जोरदार नारा लगा. इस नारे का किसी ने धीमे तो किसी ने तेज आवाज में समर्थन दिया. 170 मिनट की इस फिल्म के दौरान यह सब बीच-बीच में जारी रहा. किसी दृश्य को देखकर कोई रोने लगा तो किसी ने गाली दी.
खुद आईआईएमसी से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले फिल्म के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने फिल्म में भारतीय मीडिया के साथ-साथ विदेशी मीडिया पर भी निशाना साधा है. भारतीय मीडिया को फिल्म में ‘रखैल’, सड़कों पर घसीटकर पीटने की बात की गई है. वहीं विदेशी मीडिया के कवरेज को संदिग्ध बताया गया है. इन डॉयलाग पर सिनेमा हॉल में बैठे लोग सहमति जताते हुए हंसते हैं. हैरानी कि बात यह है कि फिल्म भी अखबारों में छपी खबरों के आधार पर बनी है. ऐसा दावा है. फिल्म में मिथुन चक्रवर्ती का किरदार अखबारों की कटिंग्स इकठ्ठा करने वाला है. जिसका नाम ‘द कश्मीर फाइल्स’ है.
अग्निहोत्री की फिल्म में कश्मीरी पंडितों की ६ासदी से अधिक कुछ संस्थानों को बदनाम करने की कोशिश नजर आती है. जैसे जेएनयू. पिछले कुछ सालों से जेएनयू को देश विरोधी होने की छवि सत्ता पक्ष और उनके सहयोगियों द्वारा फैलाई गई. यह फिल्म इसे और बढ़ावा देती है. फिल्म का किरदार कृष्णा, जिसे दर्शन कुमार ने निभाया है. वो अपने दादा (अनुपम खेर ने किरदार निभाया है) के दोस्तों से कश्मीर में पंडितों के नसंहार नहीं होने पर बहस कर रहे होते हैं. तभी सिनेमा हॉल से एक इंसान चिल्लाता है, ‘जेएनयू से पढ़ा है न… साला.’’
फिल्म का एक दृश्य देखकर सिनेमा हॉल में मौजूद एक दर्शक चिल्ला कर कहता है, ‘‘मार बहन#$% को, जूता मार इसे.’’
फिल्म के कई दृश्यों में आसपास बैठे लोग रोते दिखे. फिल्म के आखिरी दृश्य में जब 23 लोगों को खड़ा कर आंतकियों ने गोली मारी. उसमें महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे सब थे. इस दृश्य ने ज्यादातर की आंखों में आंसू भर दिए.
फिल्म खत्म होने के बाद जय श्री राम के नारों के बीच एक शख्स ने कहा, ‘‘फ्री बिजली चाहिए हिंदुओं, देख लो.’’ यह कहने वाले गाजियाबाद के अमित सिंह थे. सिंह अपने साथियों के साथ फिल्म देखने आए थे. इन तमाम साथियों ने फिल्म देखने के लिए छुट्टी ली थी.
दरअसल सिंह, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर निशाना साध रहे थे. यह समझ से परे था कि इस फिल्म को देखकर केजरीवाल पर निशाना क्यों. जब हमने उनसे पूछा तो वे भाजपा की तारीफ करने लगे. उनकी नजर में मोदी ही देश को बचा सकते हैं. उनका दावा है, ‘‘वे यूपी में भी टैक्स फ्री फिल्म देख सकते थे लेकिन वे दिल्ली आए ताकि सरकार को ज्यादा टैक्स मिल सके.’’
आखिर में हमारी मुलाकात सीनियर सिटीजन ग्रुप से फिर हुई. उसके एक सदस्य कुलदीप सिंह काफी नाराज थे. वे कहते हैं, ‘‘आज हिंदू नहीं जागेगा तो खत्म हो जाएगा.’’
सिंह की भावना यहां फिल्म देखने आए ज्यादातर लोगों में थी. मुसलमान, जेएनयू, लिबरल के प्रति घृणा और हिंदुओं में कथित डर की भवना को यह फिल्म हवा देती है.
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