Opinion

महिला दिवस: कौन थीं क्लारा ज़ेट्किन?

1910 में जर्मनी की कम्यूनिस्ट लीडर, एक्टिविस्ट, महिला यूनियन अध्यक्ष क्लारा ज़ेट्किन ने पहली बार यह प्रस्ताव किया कि दुनिया के सभी देशों में कोई एक दिन महिला दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए. इस दिन हम अपनी-अपनी मांगें सरकारों के सामने रखेंगे. अंतरराष्ट्रीय समाजवादी महिला कांग्रेस की इस कांफ्रेंस में उपस्थित 17 देशों की विभिन्न समाजवादी पार्टियों, यूनियनों से जुड़ी महिला प्रतिनिधियों, कामकाजी महिला क्लबों की सदस्यों ने इस प्रस्ताव के लिए हामी भरी और 1911 में पहली बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया. 1913 के बाद से इसे 8 मार्च को मनाया जाने लगा.

क्लारा का संघर्षमय जीवन और क्रांतिकारी विचार

स्त्रीवादी आंदोलनों में सर्वहारा स्त्री के अधिकारों और लैंगिक-विभाजन की सम्पूर्ण संरचना को बदलने का सवाल समाजवादी स्त्रीवाद ने उठाया. स्त्री-मताधिकार, स्त्री के लिए समान वेतन का सवाल और काम की स्थितियों पर क्लारा ज़ेट्किन ने स्पष्ट विचार सामने रखे. क्लारा का जन्म 1857 में हुआ. वह जर्मनी की कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्य थीं. उनकी मां भी जर्मनी के आरम्भिक स्त्री आंदोलन में सक्रिय थीं. ऑसिप ज़ेट्किन और क्लारा का कभी विवाह नहीं हुआ था लेकिन वे जीवन-साथी थे. लिंग-भेदी वैवाहिक नियमों और कानूनों में उनका विश्वास नहीं था. उनके दो पुत्र हुए और काम व मातृत्व के बीच के संघर्ष उनके निजी संघर्ष भी रहे थे जिन्होंने उन्हें एक कामकाजी सर्वहारा स्त्री की स्थिति के प्रति और भी सचेत किया. जीवन साथी की मृत्यु के बाद क्लारा का राजनीतिक विकास और भी अड़चनों से घिर गया. वह अकेली कमाने वाली सदस्य रह गई थीं जिसे अपनी दो संतानों को भी पालना था और राजनीतिक जिम्मेदारियां भी निभानी थीं.

लैंगिक-श्रम विभाजन को लेकर क्लारा की चिंता

क्लारा का मानना था कि स्त्रियों के जीवन का सबसे बड़ा संकट यह है कि घर और बाहर का स्पष्ट विभाजन, पब्लिक मैन और प्राइवेट वुमन, ने पुरुषों को सामाजिक पूंजी जुटाने के बहुत अवसर दिए हैं और मर्दों ने उसका इस्तेमाल भी किया है. एक ऐतिहासिक दबाव के तहत जब स्त्रियां घरों से बाहर कमाने निकली भी तब भी घर-बाहर का लैंगिक-श्रम विभाजन वैसा का वैसा बना रहा.

गृहकार्यों में पुरुष की कोई सहभागिता नहीं रही और सामाजिक उत्पादन में स्त्रियां पिछड़ी रहीं. स्त्री मुक्ति के लिए यह जरूरी है कि रसोई और कार्यक्षेत्र के बीच की रेखा मिटा दी जाए. औरतों के आने से मर्दों की नौकरियां, उनकी जगहें कम हो जाती हैं ऐसा आरोप लगाने वालों को क्लारा का स्पष्ट जवाब था कि यह स्त्रियों का नहीं पूंजीवादी व्यवस्था का दोष है.

ऐसे ही देखा जाए तो अगर मर्दों का वेतन स्त्रियों ने कम किया है तो स्त्रियों का वेतन बाल-मजदूरों ने; कम वेतन और अधिक काम के घंटे पूंजीवादी मुनाफे को बढ़ाने के काम आए. स्त्री-श्रम का इस्तेमाल इस व्यवस्था ने स्त्री के भले का सोचकर नहीं किया. साथ ही स्त्रियां न केवल मर्दों से ज्यादा समय श्रम करती हैं, बल्कि मर्दों की तुलना में उनका पारिश्रमिक भी कम होता है. श्रम की पूंजीवाद से मुक्ति के बिना स्त्री मुक्ति नहीं होगी. इतिहास में पहली बार ‘समान काम के लिए समान वेतन’ का मुद्दा उठा.

जरूरी है स्त्रियों का वर्क फोर्स में आना

मजदूर संघ को संबोधित करते हुए वे अक्सर यह सवाल पुरुषों के सामने रखती थीं कि स्त्रियों का वर्क फोर्स में आना, सामाजिक उत्पादन की प्रक्रिया में शामिल होना कितना जरूरी है. अपनी ही पार्टी के पुरुष मजदूरों के भेद-भाव पूर्ण रवैये को वह देख रही थीं और स्त्री मजदूरों को संगठित कर रही थीं. यहां स्त्री मताधिकार पर उनके 1907 में दिए भाषण को पढ़ते हुए उनकी चिंताओं को विस्तार से समझा जा सकता है.

स्त्री मताधिकार

(18 अगस्त, 1907 को स्टटगार्ड, बर्लिन में अंतरराष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में दिए गए भाषण का एक अंश)

स्त्री मताधिकार कमीशन की कार्यवाही के बारे में मुझे आप सबको बताना चाहिए और वह प्रस्ताव आप सबके सामने रखना चाहिए जिसे पहली अंतरराष्ट्रीय समाजवादी कांफ्रेंस में अंगीकार किया गया 47 वोटों से (11 विपक्ष में) समाजवादी स्त्रियां मताधिकार को सबसे जरूरी सवाल की तरह नहीं मानतीं, जो स्त्रियों की आजादी और सामंजस्यपूर्ण विकास के रास्ते की सभी बाधाएं दूर कर देगा. यह इसलिए कि यह वह सबसे गहरी वजह को छूता भी नहीं है. निजी सम्पत्ति, जो एक मनुष्य की दूसरे मनुष्य के शोषण और दमन की वजह है. यह और भी साफ हो जाता है उन सर्वहारा पुरुषों को देखकर जो राजनीतिक रूप से तो बंधनमुक्त हैं लेकिन सामाजिक रूप से दमित और शोषित हैं.

स्त्री मताधिकार दिया जाना शोषक और शोषित के बीच वर्ग विभाजन को खत्म नहीं करता जहां से सर्वहारा स्त्री के सामंजस्यपूर्ण विकास की राह की रुकावटें पैदा होती हैं. यह उन संघर्षों को भी समाप्त नहीं करता है जो पूंजीवादी व्यवस्था के भीतर पुरुषों और महिलाओं के बीच होने वाले सामाजिक अंतर्विरोध से उनके लिंग के सदस्यों के रूप में महिलाओं के लिए पैदा होते हैं.

इसके विपरीत स्त्री लिंग की पूर्ण राजनीतिक समानता वह आधार तैयार करती है जिस पर संघर्षों को सबसे तीव्रता से लड़ा जाएगा. ये संघर्ष विविध हैं लेकिन सबसे गम्भीर और दर्दनाक है पेशेवर काम और मातृत्व के बीच का संघर्ष. हम समाजवादियों के लिए इसलिए महिला मताधिकार अंतिम लक्ष्य नहीं हो सकता क्योंकि यह बुर्जुआ महिलाओं के लिए है. हालांकि हम अपने अंतिम लक्ष्य की ओर लड़ाई के एक चरण के रूप में इसके अधिग्रहण के लिए सबसे अधिक उत्सुकता से रहे हैं.

मताधिकार प्राप्त करने से बुर्जुआ महिलाओं को पुरुष विशेषाधिकारों के रूप में बाधाओं को दूर करने में मदद मिलेगी जो उनके शैक्षिक और व्यवसायिक अवसरों को सीमित करता है. यह महिला सर्वहारा वर्ग को वर्ग शोषण और वर्ग शासन के खिलाफ उनकी पूरी मानवता हासिल करने के प्रयास में हथियारों से लैस करती है. यह उन्हें सर्वहारा वर्ग द्वारा राजनीतिक सत्ता हासिल करने में पहले की तुलना में कहीं ज्यादा भाग लेने में सक्षम बनाता है, ताकि एक समाजवादी व्यवस्था को खड़ा किया जा सके जो अकेले स्त्री प्रश्न का समाधान कर सकती है.

दुनिया की स्त्रियों, एक हो

अपने तमाम भाषणों में क्लारा दुनिया भर की स्त्रियों को संबोधित करती हैं. उनका आह्वान आर्थिक और सामाजिक आजादी के लिए था सर्वहारा कामगर स्त्री को उनका कहना था- कॉमरेड्स! सिस्टर्स! अपमानपूर्ण दासता से, शिशुपालन और रसोई के नीरस जीवन से निकलकर सामाजिक उत्पादन का हिस्सा बनो. वर्किंग क्लास के भीतर पुरुष प्रभुत्व से आजादी पाना श्रमिक स्त्री के लिए एक बड़ी चुनौती थी.

(स्त्रीवादी लेखक, कवि, असोसिएट प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय)

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