Assembly Elections 2022
यूपी चुनाव: आवारा पशुओं पर यूपी सरकार ने दिया विरोधाभासी जवाब
पिछले मंगलवार को लखनऊ से सटे बाराबंकी में जिस मैदान में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रैली होनी थी वहां ग्रामीणों ने सैकड़ों की संख्या में आवारा पशु छोड़ दिए. लोगों ने सरकार का ध्यान खींचने के लिए यह तरीका अपनाया. सत्ताधारी पार्टी के लिए यह खतरे की घंटी की तरह था, क्योंकि राज्य में आवारा पशु किसानों के लिए बहुत बड़ी समस्या बन गए हैं. यहां कच्चे-पक्के रास्तों और हाईवे पर आवारा पशुओं का दिखना आम है. सड़क चलते खेतों के किनारे धोतियों, रस्सियों और कंटीले तारों की बाड़, और रात में पहरे के लिए बनी मचान दिखाई दे जाती है. सर्द रातों में, इन्हीं खेतों पर किसान पहरा देते हैं और उन्हें खटिया से उठकर जानवरों के पीछे भागना पड़ता है.
लखनऊ से करीब 100 किलोमीटर दूर अपने खेतों में पहरा देते 48 साल के मनोहर सिंह का दिल खेती से उकता गया है. वह कहते हैं, “जानवर इस खेत से उस खेत में फिरते हैं. गन्ना बोया नहीं, धान चला गया और गेहूं है नहीं. जो था वो जानवर चर गए.”
आवारा मवेशियों पर यूपी सरकार के विरोधाभासी जवाब
इस रास्ते में हमारी मुलाकात मनोहर सिंह जैसे कई किसानों और खेतीहर मजदूरों से हुई. लखीमपुर के पास एक गांव में 52 साल के सियाराम बोध कहते हैं, “पिछले कुछ सालों में यह समस्या बहुत बढ़ी है. अगर जानवर सब कुछ खा जाएंगे तो हम क्या करेंगे?”
लेकिन ऐसा नहीं है कि छुट्टे जानवरों को लेकर किसानों और कृषि की दुर्दशा का जनप्रतिनिधियों को पता न हो. झांसी की गरौठा सीट से बीजेपी के विधायक जवाहरलाल राजपूत ने 2019 और 2021 में विधानसभा में इस पर सवाल पूछा तो सरकार ने उन्हें अलग-अलग जवाब दिए.
जब 2019 में राजपूत ने पशुधन मंत्री से पूछा कि क्या छुट्टा जानवर फसलों की बर्बादी, किसानों द्वारा रात में पहरेदारी, खेतों की घेराबंदी और सड़क दुर्घटना का कारण बने हुए हैं तो उन्हें जवाब मिला: “कतिपय सूचना प्रकाश में आई है.”
हैरान करने वाली बात है कि पिछले साल इसी विधायक ने जब यही सवाल उसी मंत्रालय से पूछा तो उन्हें जवाब दिया गया: “जी नहीं”
महत्वपूर्ण है कि दोनों बार जवाब देने वाले पशुधन मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी ही थे. जहां 2019 में उन्होंने इस समस्या से छुटकारा दिलाए जाने के लिए “अस्थाई गोवंश आश्रय स्थल की स्थापना” का जिक्र किया, वहीं 2021 में किसी नीति के बनाए जाने पर साफ कहा कि प्रश्न ही नहीं उठता.
राजपूत एक बार फिर से झांसी के गरौठा से चुनाव लड़ रहे हैं. न्यूज़लॉन्ड्री ने जब उनसे संपर्क किया तो उन्हें कहा कि छुट्टा पशुओं को लेकर योगी सरकार बनने के तुरंत बाद 2017 में भी उन्होंने सवाल उठाया था, लेकिन अभी इसका “सौ प्रतिशत हल” नहीं हो पाया है.
उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा, “यह समस्या निरंतर चली आ रही है. इस पर (किसानों की समस्या हल करने के लिए) सरकार प्रयास कर रही है. हमने खुद 3-4 करोड़ रुपया अपने इलाके में खर्च किया है और कई गांवों में गौशालाएं बनाई हैं.”
किसान की अर्थव्यवस्था पर चोट
तीन साल पहले डाउन टू अर्थ मैग्ज़ीन में किए गए एक आंकलन के मुताबिक, साल 2019 की शुरुआत में उत्तर प्रदेश में आवारा पशुओं की संख्या 11 लाख से अधिक थी. देश भर में छुट्टे पशुओं को पालने का सालाना खर्च 11,000 करोड़ से अधिक है. गोवंश की हत्या पर पाबंदी और गौरक्षकों के डर से आवारा पशुओं की समस्या तेजी से बढ़ी है, और किसानों के लिए दूध न देने वाले पशुओं को पालना भारी पड़ रहा है. इसका खमियाजा उन्हें खेती को हो रहे नुकसान से चुकाना पड़ रहा है.
इंडियन एक्सप्रेस में छपी इस रिपोर्ट के हिसाब से, एक बीघा जमीन की घेराबंदी में किसानों को 16,000 रुपए खर्च करने पड़ते हैं. यूपी सरकार गौशाला में रखने के लिए 30 रुपए प्रतिदिन/प्रति जानवर के हिसाब से खर्च दे रही है. आवारा पशुओं के हिसाब से पर्याप्त गौशालाएं न होने के कारण जानवर प्लास्टिक और गंदगी खाते देखे जा सकते हैं.
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में भी स्पष्ट लिखा गया है कि जानवरों से होने वाले नुकसान की भरपाई फसल बीमा के तहत कवर नहीं की जाएगी.
भाजपा नेताओं में फिक्र
यूपी में पश्चिम से पूर्व की ओर बढ़ते चुनाव में भाजपा के लिए छुट्टा पशुओं की समस्या भी बढ़ रही है. नेताओं को लगता है कि इससे होने वाली समस्या और नाराजगी राजनीतिक रूप से भारी पड़ सकती है. इसीलिए पिछले हफ्ते उन्नाव की अपनी रैली में प्रधानमंत्री ने कहा कि आवारा पशुओं पर नियंत्रण के लिए 10 मार्च के बाद नई नीति लागू होगी और आवारा पशु के गोबर से भी किसान धन कमा सकेंगे.
यहां यह जानना महत्वपूर्ण है कि यूपी में भारतीय जनता पार्टी के 16 पन्नों के घोषणापत्र में कहीं भी आवारा पशुओं से होने वाली समस्या और उसके समाधान का जिक्र नहीं है. स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री की चुनावी घोषणा, राज्य में किसानों के बढ़ते गुस्से को देखते हुए आनन-फानन में की गई है.
मंगलवार को जब ग्रामीणों ने बाराबंकी में मुख्यमंत्री के रैली ग्राउंड में जानवर छोड़े तो आदित्यनाथ को पीएम के इसी बयान को ट्वीट करना पड़ा. उधर केशव प्रसाद मौर्य ने गुरुवार को ट्वीट किया, “गोवंश के गर्दन पर खंजर न चलने देंगे! किसानों का खेत चरने भी न देंगे! गोवंश को भूखे-प्यासे मरने भी न देंगे!
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