Assembly Elections 2022
लखीमपुर खीरी: चुनावी नारों के बीच तिकुनिया कांड के पीड़ितों को इंसाफ का इंतजार
लखनऊ से कोई 175 किलोमीटर दूर लखीमपुर के तिकुनिया गांव में साढ़े चार महीने पहले हुई घटना के निशान जिंदा हैं. पिछले साल 3 अक्टूबर को जहां तेज रफ्तार दौड़ती थार जीप ने प्रदर्शनकारी किसानों को कुचला वहां सड़क के दोनों ओर पुलिस द्वारा की गई अब भी घेराबंदी और कार के टूटे हिस्से दिखते हैं. तिकुनिया गांव खीरी जिले की निघासन विधानसभा का हिस्सा है. खीरी के सांसद और केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र उर्फ टेनी का घर घटनास्थल से बहुत दूर नहीं है लेकिन इन चुनावों में टेनी कहीं प्रचार में नहीं दिखते.
चुनाव से पहले पीड़ित परिवारों का दुख
तिकुनिया से कुछ किलोमीटर दूर चौकड़ा फार्म गांव में 45 साल के सतनाम सिंह के परिवार के बाहर पुलिस का पहरा है. सतनाम सिंह का 19 साल का बेटा लवप्रीत पिछली 3 अक्टूबर को किसान प्रदर्शन में शामिल था जब एक जीप ने उसे कुचल दिया. पिछले मंगलवार को जिस दिन न्यूज़लॉन्ड्री की टीम लवप्रीत के घर पहुंची उसी दिन केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र का बेटा आशीष- जो इस कांड में मुख्य आरोपी है जेल से रिहा हुआ. सदमे से उबरने की कोशिश कर रहे लवप्रीत के माता-पिता और उसकी दो बहनों के लिए ये किसी झटके से कम नहीं है.
सतनाम सिंह ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा, “उस घटना के बाद जब एसआईटी बनाई गई थी तो हमें लगता था कि हम लोगों को न्याय मिलेगा. अब जिस तरह से उसे जमानत दी गई और रिहाई की गई है वह बहुत दुख की बात है. इतना बड़ा घटनाक्रम होने के बाद चार महीने में जमानत मिलना पीड़ित परिवारों के लिए बहुत दुखद है.”
सतनाम बताते हैं कि उनका बेटा लवप्रीत पढ़ाई कर कनाडा जाना चाहता था लेकिन अब उनकी “दुनिया बर्बाद” हो गई है. लवप्रीत के अलावा तीन अन्य किसान और एक पत्रकार भी कुचल कर मरे जिनमें धौरहरा गांव के नक्षत्र सिंह शामिल हैं. उनके बेटे जगदीप सरकार पर “तानाशानी” का आरोप लगाते हैं. वह कहते हैं, “सरकार सिर्फ मजाक कर रही है. 750 किसान पहले मरे और तिकुनिया कांड की खबर तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चली. उसके बाद भी किसी भी तरह की कोई सुनवाई नहीं है और सरकार सिर्फ वादाखिलाफी कर रही है.”
तिकुनिया कांड के बाद तीन कृषि कानूनों पर अड़ी बीजेपी सरकार रक्षात्मक मुद्रा में आई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान किया. सतनाम सिंह कहते हैं, “पहले हम लोग बीजेपी के साथ थे और इन्हें इसलिए वोट दिया गया था कि पार्टी विकास करेगी. जब बीजेपी सत्ता में आ गई तो उन्होंने मनमर्जी शुरू कर दी. दिल्ली में एक साल से कृषि कानूनों को लेकर धरना प्रदर्शन चल रहा था और करीब 700 से अधिक किसान मरे और जब इलेक्शन पास आए तब जाकर सरकार ने बिल वापस लेने की बात की. अगर यही कानून पहले वापस ले लिए जाते तो न 700 किसान वहां मरते न लखीमपुर का कांड होता.”
बीजेपी के गढ़ में संघर्ष
पिछले विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने खीरी जिले की सभी आठ सीटों पर जीत हासिल की लेकिन इस बार हवा एकतरफा नहीं दिखती. सभी पार्टियां चुनाव में जोर लगा रही हैं. समाजवादी पार्टी छोड़कर बीएसपी में गए आरए उस्मानी निघासन सीट से उतरे हैं तो पूर्व ब्लॉक प्रमुख अटल शुक्ला कांग्रेस की ओर से मैदान में हैं. लेकिन मुख्य टक्कर बीजेपी के शशांक वर्मा और समाजवादी पार्टी के आरएस कुशवाहा के बीच दिखती है.
पूरे राज्य की तरह समाजवादी पार्टी यहां मुस्लिम-यादव गठजोड़ के साथ अन्य जातियों के वोट जोड़ने की कोशिश कर रही है. उसने जातीय समीकरणों को ध्यान में रखकर टिकट बांटें हैं. खीरी जिले में एक स्पष्ट बदलाव सिख आबादी का बीजेपी के खिलाफ रुझान है. तराई क्षेत्र की इन सीटों पर सिख अच्छी संख्या में हैं और वह बीजेपी को वोट देते आए हैं. विशेष रूप से पलिया, निघासन, लखीमपुर और गोला सीट पर सिखों की आबादी चुनावी गणित में महत्व रखती है लेकिन इस बार सिखों का बड़ा हिस्सा खुलकर कमल के खिलाफ बोल रहा है.
तिकुनिया कांड के गवाह और स्थानीय निवासी सिमरनजीत सिंह कहते हैं, “यहां (तिकुनिया कांड की वजह से) बहुत गुस्सा है और जिसका इजहार लोग वोट के जरिए करेंगे क्योंकि लोकतंत्र में यही हथियार उनके पास है.”
निघासन के बाजार में 75 साल के इन्दर सिंह भी कहते हैं कि इस बार महंगाई और छुट्टे जानवरों द्वारा फसलों को हो रहे नुकसान जैसे मुद्दों के साथ “किसानों के साथ अत्याचार” का मुद्दा जुड़ गया है. उनके मुताबिक इसका असर चुनावों में साफ दिखेगा.
नाराजगी दूसरी ओर भी
तिकुनिया से करीब 15 किलोमीटर दूर सिंघाई गांव में 75 साल के बालकराम और उनकी पत्नी फूलमती के सामने अभी अस्तित्व का संकट है. 3 अक्टूबर की घटना में उत्तेजित किसानों ने जीप में सवार जिन तीन लोगों को मार डाला था उनमें बालकराम के बेटे श्याम सुंदर निषाद भी थे. बीजेपी के स्थानीय नेता श्याम सुंदर ठेकेदारी करते थे लेकिन अब उनके परिवार के पास आय का कोई साधन नहीं है. बालकराम की दो बेटियां घर पर हैं और दोनों बेटे बेरोजगार हैं.
श्याम सुंदर के छोटे भाई संजय का कहना है कि भाई की मौत के बाद पार्टी ने उनकी कोई मदद नहीं की. उनके मुताबिक, “सरकारी नियमों के हिसाब से मुआवज़ा हमारी भाभी को मिला जो हमारे साथ नहीं रहती हैं. हमारा पूरा परिवार भाई (श्याम सुंदर) पर निर्भर था. उनके न रहने से हमारे लिए जीना मुश्किल हो गया है क्योंकि कोई रोजगार नहीं है. पार्टी के लोग कोई मदद नहीं कर रहे. हमने मंत्री अजय मिश्र टेनी से बात की. उन्होंने कहा कि हम तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकते.”
कांटे की लड़ाई के लिए बीजेपी तैयार
पिछली बार 2017 के विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठजोड़ के बावजूद बीजेपी ने इस क्षेत्र की सभी सीटें अच्छे अंतर से जीतीं. पलिया विधानसभा में तो जीत का अंतर करीब 30% रहा. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के अजय मिश्र टेनी ने समाजवादी पार्टी की पूर्वी वर्मा को 2.18 लाख से अधिक वोटों से हराया. फिर भी तिकुनिया कांड के बाद बीजेपी ने चुनावी रणनीति के तहत टेनी को प्रचार से तकरीबन बाहर ही रखा है.
वैसे बीजेपी ध्रुवीकरण, कानून व्यवस्था, राशन की डिलीवरी और मोदी-योगी की छवि के साथ इस क्षेत्र में जीत का दावा कर रही है. विधायक शशांक वर्मा कहते हैं कि तिकुनिया कांड का कोई असर नहीं पड़ेगा और लोग नरेंद्र मोदी के सबका साथ सबका विकास के नारे के साथ हैं. जमीन पर बीजेपी समर्थकों के अलावा जनता के एक हिस्से में पार्टी के लिए समर्थन है.
निघासन में चाय की दुकान पर 40 साल के रामविलास योगी सरकार के काम से खुश हैं और कहते हैं कि वह हर कीमत पर वोट बीजेपी को देंगे. उनका कहना है, “तिकुनिया कांड में जिन लोगों ने गलत किया उन्हें सजा मिल रही है लेकिन सरकार ने राशन बांटने से लेकर महामारी में अच्छा काम किया है और हम बीजेपी को वोट देंगे”
बीजेपी के स्थानीय नेता और किसान मोर्चा के मंडल अध्यक्ष रमेश चंद्र तिवारी कहते हैं कि पार्टी की बूथ मैनेजमेंट और कार्यकर्ताओं का नेटवर्क बहुत मजबूत है. उनके मुताबिक सभी किसान और सिख बिरादरी उनके साथ है और चुनाव में किसी तरह की दिक्कत नहीं होगी.
तिवारी कहते हैं, “पार्टी की कोई छवि खराब नहीं हुई है. जो तिकुनिया में कांड हुआ उसमें सांसद या कैबिनेट मंत्री (अजय मिश्र) की कोई गलती नहीं थी. उसमें किसानों के साथ अराजक तत्व थे जो दंगा और बवाल करना चाहते थे और उन्होंने किया. इससे भारती जनता पार्टी (के प्रदर्शन) पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा.”
Also Read
-
2006 Mumbai blasts are a stark reminder of glaring gaps in terror reportage
-
How money bills are being used to evade parliamentary debate on crucial matters
-
Protocol snub, impeachment motion: Why Dhankhar called it quits
-
In a Delhi neighbourhood, the pedestrian zone wears chains
-
Fake press cards, forged govt seals: Self-styled envoy of ‘West Arctica’ held in UP