Assembly Elections 2022
यूपी चुनाव 2022: मिर्जापुर- जाति आगे, विकास पीछे
मिर्जापुर उत्तर प्रदेश का एक चर्चित जिला है. एक चर्चित वेब सीरीज की वजह से भी यह नाम अधिक जाना जाने लगा है. लेकिन मिर्जापुर की पहचान किसी वेब सीरीज से नहीं है. यहां गैर-यादव कुर्मी और आदिवासी कोल जाति का महत्वपूर्ण वोट बैंक रहता है. आज हम आपको मिर्जापुर की दो विधानसभा क्षेत्रों की जानकारी देंगे जहां विकास के पैमाने और जाति की मांगे बिल्कुल अलग हैं.
उत्तर प्रदेश में करीब 6 से 8 प्रतिशत वोट कुर्मियों के हैं. यह एक गैर-यादव वोट बैंक है जिसका फायदा भाजपा को मिलता है. इस वोट को पाने के लिए, भाजपा यहां अनुप्रिया पटेल की पार्टी अपना दल के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही हैं. न्यूज़लॉन्ड्री ने पाया कि यहां के लोग अनुप्रिया पटेल से भले ही खुश हों, लेकिन वे भाजपा सरकार के काम को पसंद नहीं करते.
मड़िहान विधानसभा क्षेत्र में बेरोजगार युवा, नौकरी न मिलने और जातिगत मतगणना न होने के कारण योगी सरकार से खफा हैं. वहीं यहां की महिलाएं अब शिक्षा और लघु उद्योग पर खड़ा होना चाहती हैं लेकिन उनका कहना है कि इन पांच सालों में अपना दल और भाजपा ने उनके बारे में ऐसा कुछ नहीं सोचा. सरकारी योजनाओं की बात करें तो यहां के निवासी और कालीन बुनकर मुमताज अहमद ने, पिछले साल यूपी सरकार की महत्वाकांक्षी “एक जनपद – एक उत्पाद” या ओडीओपी योजना के लिए आवेदन किया था. इस योजना का मकसद उत्तर प्रदेश के सभी जिलों का अपना एक उत्पाद बनाना है, जो उस जिले की पहचान बनेगा. लेकिन मिर्जापुर में कालीन बुनकरों को अब तक इसका लाभ नहीं पहुंच पाया है. हालांकि गांव में लोग मुफ्त राशन और पीएम किसान निधि योजना से मिलने वाले लाभ से संतुष्ट हैं, लेकिन फिर भी कुर्मी समाज का मानना है कि अपना दल को हिन्दू- मुस्लिम की राजनीति करने वाली भाजपा को छोड़ देना चाहिए.
वहीं दूसरी तरफ छानबे विधानसभा भी राजनितिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां कोल आदिवासियों का अच्छा-खासा वोट बैंक है. इसके बावजूद ये समुदाय विकास से अब भी कोसों दूर है. यहां सड़क न होने के कारण कई बार गर्भवती महिलाओं की रास्ते में ही मौत हो गई और सड़क न होने की वजह से समुदाय की कई लड़कियां स्कूल नहीं जातीं. गांव में रोजगार और शिक्षा का कोई अवसर नहीं है. शौचालय न होने के कारण गांव की महिलाएं अब भी खुले में शौच जाने को मजबूर हैं.
मिर्जापुर यूपी का एक ऐसा पिछड़ा इलाका है, जहां नेताओं ने लोगों को वर्षों से सिर्फ एक सत्ता का वोट बैंक बना रखा है.
इस सबके बावजूद कुर्मी समाज के लोग अनुप्रिया पटेल पर क्यों विश्वास करते हैं, और कोल आदिवासी समाज को किस पार्टी पर भरोसा है? क्या एक बार फिर गैर-जाटव (अनुसूचित जातियां) और गैर-यादव (ओबीसी) का समीकरण भारतीय जनता पार्टी को जीत दिलाएगा? जानने के लिए देखिए हमारी ग्राउंड रिपोर्ट.
Also Read
-
Two-thirds of Delhi does not have reliable air quality data
-
FIR against Gandhis: Decoding the National Herald case
-
TV Newsance 323 | Distraction Files: India is choking. But TV news is distracting
-
‘Talks without him not acceptable to Ladakh’: Sonam Wangchuk’s wife on reality of normalcy in Ladakh
-
Public money skewing the news ecosystem? Delhi’s English dailies bag lion’s share of govt print ads