Assembly Elections 2022
पंजाब: सोशल मीडिया का बेजा इस्तेमाल कर ‘जिंदगी को जहन्नुम’ बनाने वाला यूएपीए कानून
“जिस उम्र में मुझे अपने मां-बाप को बैठाकर खिलाना था, उस उम्र में वह काम कर रहे हैं ताकि मैं यहां अपना केस लड़ सकूं” यह कहते हुए मनदीप का चेहरा उदास हो जाता है.
वह दो मिनट चुप होकर आगे कहते हैं, “पुलिस का कहना है कि मैं हत्या करने के उद्देश्य से कनाडा से पंजाब आया. जब मैं वहां (कनाडा) अपनी अच्छी जिंदगी जी रहा था तो वहां से पंजाब आकर मैं किसी के कहने पर किसी की हत्या क्यों करुंगा?”
हत्या करने, हमला करने की साजिश रचने, प्रदेश और देश में अंशाति फैलाने जैसे कई आरोप लगाकर न सिर्फ मनदीप सिंह धालीवाल को, बल्कि कई और लोगों को भी पंजाब में यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया है. देश के लगभग हर प्रदेश में यही हाल है. लोगों की आवाज को दबाने के लिए बेजा तौर पर उपयोग होने वाले इस कानून को लेकर, कई बार सुप्रीम कोर्ट ने भी टिप्पणी की है लेकिन फिर भी इसका उपयोग बदस्तूर जारी है.
यूएपीए के तहत गिरफ्तार लोगों की कहानी आम जनता तक नहीं पहुंच पाती हैं क्योंकि इसे चुनावों में कभी उठाया नहीं जाता. यह ऐसा कानून है जिसे हर सरकार अपने विरोधियों की आवाज को दबाने के लिए भी उपयोग करती है. इसीलिए इसके खिलाफ कोई पार्टी चुनावों में बात नहीं करती. लेकिन ऐसे कई हजार अभागे लोग भी इस देश में हैं जो यूएपीए के तहत कई साल जेल में रहे. जिन्हें मानसिक और शारीरिक तौर पर प्रताड़ित किया गया. सामाजिक तौर पर भेदभाव का सामाना करना पड़ा, लोग इन्हें निर्दोष होने के बावजूद भी शक की नजर से देखते हैं और बहुतों के खिलाफ कई सालों से केस चल रहा है लेकिन फैसला नहीं आ रहा है.
मनदीप सिंह: एक फोटो और सोशल मीडिया पोस्ट बना यूएपीए का कारण
32 वर्षीय मनदीप सिंह धालीवाल, लुधियाना के चक कलां गांव में अपनी पत्नी के साथ रहते हैं. गांव की पक्की सड़क से होते हुए मनदीप के घर जैसे ही पहुंचते हैं आसपास के लोग देखने लगते हैं. “आसपास के लोग बात नहीं करते. खुद के परिवार के सदस्य जो बगल में रहते हैं वह भी कोई हमसे वास्ता नहीं रखते” मनदीप न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं.
छह साल से मनदीप के खिलाफ यूएपीए का केस चल रहा है जिसके कारण न तो वह नौकरी कर पा रहे हैं, और न ही वापस कनाडा जा पा रहे हैं जहां उनके मां-बाप रहते हैं. उन्हें दिसंबर 2017 में कोर्ट ने तीन महीने के लिए कनाडा जाने की इजाजत पांच लाख रुपए के बांड पर दी थी. जब वह एयरपोर्ट पहुंचे तब अधिकारियों ने उनका वीजा रद्द कर दिया और उन्हें वापस भेज दिया. यह पूछे जाने पर की आपके पास तो कोर्ट का आदेश था? इस पर मनदीप कहते है, “यहां कोर्ट की मानता कौन है?”
मनदीप अपनी कहानी बताते हुए कहते हैं कि वह हर साल जनवरी में दो-तीन महीनों के लिए भारत आया करते थे. हर साल की तरह वह 22 जनवरी 2016 को भी आए लेकिन उन्हें पता नहीं था कि इसके बाद वह फिर वापस कनाडा नहीं जा पाएंगे. 16 मार्च 2016 को मनदीप की शादी हुई. पुलिस शादी से पहले और बाद में, कभी भी मनदीप के घर तलाशी लेने आया करती थी या कभी उन्हें थाने बुलाकर पूछताछ करती थी. अभी उनकी शादी को एक महीना ही हुआ था कि मनदीप को पुलिस ने 24 मई 2016 को गिरफ्तार कर लिया.
मनदीप कहते हैं, “जब पुलिस वाले मुझे मेरे घर से थाने बोलकर लेकर गए तब गांव के बाहर पुलिस की कई और गाड़ियां खड़ी थीं. वह मुझे थाने ले जाने के बजाय सीधे मोहाली स्थित खरड़ में पंजाब पुलिस के सीआईए (क्राइम इन्वेस्टीगेशन) के स्टाफ ऑफिस ले गए. वहां मुझे यातनाएं दी गईं. मुझे हरदीप सिंह निज्जर की फोटो दिखाकर सवाल किया. जब सब कुछ बता दिया तब वह मुझे थाने लेकर आए.”
लुधियाना जिले के दाखा पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर में “एक मुखबिर” के हवाले से बताया गया है कि मनदीप, आंतकी संगठन बब्बर खालसा इंटरनेशनल संस्था से जुड़ा हुआ है. साथ ही खालिस्तानी आंतकी हरदीप सिंह निज्जर का भी नजदीकी है. वह प्रदेश में आंतकी घटनाओं को अंजाम देने के उद्देश्य से आया है. एफआईआर में बंदूक का भी जिक्र है साथ ही धार्मिक किताब भी बरामद किया जाने का जिक्र है. धालीवाल पर यूएपीए की धारा 10, 16 और 18, शस्त्र अधिनियम की धारा 25 और भारतीय दंड संहिता के तहत देशद्रोह, आपराधिक साजिश और दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोपों के तहत केस दर्ज किया गया.
मनदीप से पुलिस पूछताछ की कहानी दरअसल हरदीप सिंह निज्जर से शुरू हुई. हरदीप सिंह निज्जर खालिस्तान टाइगर फोर्स का प्रमुख है. जो सिख धर्म के लिए अलग देश खालिस्तान की मांग करता है. साल 2012 से कनाडा में प्लंबिंग का काम कर रहे मनदीप कहते हैं, “वह भी (हरदीप) प्लंबिंग का काम करता था, मैं एक सप्लायर के यहां था जबकि वह खुद का काम करता था. काम के दौरान किसी ने हम दोनों की फोटो खींच ली और पंजाब पुलिस को भेज दी.”
पुलिस ने एफआईआर में मनदीप के सोशल मीडिया का भी जिक्र किया है. पुलिस के मुताबिक मनदीप पाकिस्तानी निवासी और 1981 में लाहौर विमान हाईजैक के आरोपी गजेंद्र सिंह के भी संपर्क में है. मनदीप के वकील जसपाल सिंह मंझपुर न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, “गजेंद्र सिंह फेसबुक पर मुझसे भी जुड़ा है, क्या मैं भी देश के खिलाफ साजिश रच रहा हूं? धालीवाल ने उसके एक सिख धर्म से जुड़े पोस्ट पर कमेंट किया था उसी को पाकिस्तान कनेक्शन के तौर पर जोड़ा जा रहा है.”
मनदीप ने बताया, जेल में आठ महीनों के दौरान पुलिस ने मुझे कई बार यातनाएं दीं. उन्हें मेरे खिलाफ कुछ नहीं मिला. सिर्फ चार धार्मिक किताब पुलिस को मिलीं जिसमें एक जरनैल सिंह भिंडरांवाले पर है. उन्होंने मुझे दूसरे मामलों में फंसना शुरू कर दिया. मुझे दो हत्या के अलग-अलग मामलों में पूछताछ के लिए रिमांड पर लिया, लेकिन वहां पूछताछ मेरे केस को लेकर ही करते थे.”
आखिरकार जनवरी 2017 में मनदीप को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने जमानत दे दी. कोर्ट ने कहा, “पुलिस के पास अपराध किए जाने को लेकर कोई सबूत नहीं हैं.”
मई 2018 में यह केस राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने ले लिया. एजेंसी ने केस लेने के बाद मनदीप को कई बार दिल्ली भी पूछताछ के लिए बुलाया गया. वह कहते है, “मैंने उन्हें भी बता दिया की मैं किसी साजिश का हिस्सा नहीं हूं. वह मुझपर दबाव बनाते हैं कि मैं निज्जर का नाम ले लूं. अभी हाल में एजेंसी ने निज्जर के खिलाफ कोर्ट में आरोपपत्र दाखिल कर दिया है, तब से मुझे पूछताछ के लिए नहीं बुलाया है.”
यह केस एनआईए के पास गए हुए तीन साल हो गए लेकिन अभी तक इस मामले में एजेंसी ने आरोप पत्र दाखिल नहीं किया है. वकील जसपाल सिंह कहते हैं, “हर सुनवाई में अधिकारी कहते हैं उन्हें जवाब दाखिल करने के लिए समय चाहिए क्योंकि अभी जांच चल रही है. ऐसे करते-करते तीन साल से ज्यादा समय बीत गया.”
अपने जीवन को लेकर मनदीप कहते हैं, “मेरे खिलाफ कोई सबूत नहीं है. मेरे चक्कर में मेरी पत्नी, मेरे माता-पिता सभी का जीवन अधर में है.” वह आरोप लगाते हुए कहते हैं, पूछताछ के दौरान मेरे गुप्तांगों पर हमला किया गया, जिससे मैं यौन रूप से अक्षम हो गया. मेरा अभी भी इलाज चल रहा है. अभी तक डेढ़ लाख रूपए इसके लिए खर्च कर चुका हूं.”
सोशल मीडिया कनेक्शन
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि साल 2020 में गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत देश में कुल 796 केस दर्ज किए गए जिनके तहत 1321 लोगों को गिरफ्तार किया गया. देश में सबसे ज्यादा मामले जम्मू कश्मीर में दर्ज किए गए. वहीं पंजाब इस लिस्ट में सातवें नबंर पर है जहां 19 मामले दर्ज किए गए.
यूएपीए कानून मुख्य तौर पर आतंकी गतिविधियों को रोकने के लिए लाया गया था. इस कानून के तहत ऐसे लोगों को पुलिस गिरफ्तार करती है जो आतंकी गतिविधियों में शामिल होते हैं या जिन पर फिर ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा देने का आरोप होता है. साल 2019 में गृहमंत्री अमित शाह ने एक महत्वपूर्ण संशोधन इस कानून में किया. संशोधन के बाद जांच एजेंसी किसी व्यक्ति को भी जांच के आधार पर आतंकवादी घोषित कर सकती है. सरकारी एजेंसी आरोप लगाकर तो गिरफ्तार कर लेती है, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि साल 2014 से लेकर 2020 तक 10,552 लोगों को यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया, लेकिन दोषी सिर्फ 253 लोग ही ठहराए गए. बाकियों का केस अभी तक चल रहा है.
धालीवाल की कहानी इनमें से एक है. हाल के वर्षों में, पंजाब पुलिस ने आरोप साबित करने के लिए आरोपियों के सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया है, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली. फेसबुक पोस्ट, चैट और कमेंट को चार्जशीट में शामिल किया गया. ऑनलाइन दोस्तों को सहयोगी के तौर पर जोड़ा जाता है और सोशल मीडिया पर जुड़ाव को आपराधिक साजिश के रूप में देखा जाता है.
न्यूज़लॉन्ड्री द्वारा अध्ययन किए गए पंजाब के तीन यूएपीए मामलों में, सोशल मीडिया को एक हथियार के तौर पर युवकों के खिलाफ केस दर्ज करने के लिए उपयोग किया गया. यह उन्हें गिरफ्तार करने के लिए पर्याप्त है लेकिन दोषी ठहराने के लिए नहीं.
अमरजीत सिंह- तरनतारन ब्लास्ट
29 वर्षीय अमरजीत सिंह की ब्लास्ट केस में 10 फरवरी को मोहाली स्थित एनआईए की स्पेशल कोर्ट में पेशी हुई. गुरदासपुर जिले के फतेहगढ़ चूड़ियां गांव के रहने वाले अमरजीत सुबह चार बजे अपने घर से सुनवाई के लिए निकले थे. कुछ समय के लिए वह कोर्टरूम के बाहर बैठे रहे जिसके बाद उनके वकील के कहने पर कोर्ट ने कहा कि वह घर जा सकते हैं.
दरअसल चार सितंबर 2019 में तरनतारन जिले के कनेरी गांव में एक बम विस्फोट हुआ था. जिसमें दो लोगों की मौत हो गई और एक जख्मी हो गया. पुलिस को इस रिपोर्ट में भी “एक मुखबिर” ने बताया कि तीनों लोग दिव्य ज्योति जागृति संस्थान डेरे पर हमला करने के लिए बम बना रहे थे, तभी धमाका हो गया. यह लोग खालिस्तानी विचारधारा से प्रभावित थे और अपने आकाओं के कहने पर इन लोगों ने पंजाब में अस्थिरता फैलाने के लिए एक गिरोह भी बनाया था. इन लोगों का मकसद पंजाब में जगह-जगह अशांति कायम करना था.
5 सितंबर 2019 को दर्ज एफआईआर में कुल 8 लोगों को आरोपी बनाया गया है. मस्सा सिंह, हरजीत सिंह, गुरजंट सिंह, मनप्रीत सिंह, बिक्रमजीत सिंह पंजवड़, चनदीप सिंह, मलकीत सिंह, अमरजीत सिंह व एक नाबालिग का नाम आरोप पत्र में शामिल है. सभी के खिलाफ यूएपीए की धारा 13,16,18,20 और 23 के अलावा विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 और 5 समेत आईपीसी की अन्य धाराएं जोड़ी गई हैं.
अमरजीत सिंह को पुलिस ने ब्लास्ट के मामले में 11 सितंबर 2021 को गिरफ्तार किया. वह कहते हैं, “पुलिस वाले एक घंटे के लिए पूछताछ करने के लिए बोलकर ले गए लेकिन मुझे नहीं मालूम था कि एक घंटा दो साल में बदल जाएगा.”
एनआईए द्वारा अमरजीत के खिलाफ लगाया गया यूएपीए का कारण विचित्र है. अपने आरोप पत्र में एजेंसी ने “नापाक इरादे और खालिस्तान सर्मथक” को स्थापित करने के लिए बताया कि अमरजीत के व्हाट्सएप पर एक व्यक्ति का स्टेटस “खालिस्तान जिंदाबाद” था और उसके फोन में एक नाम “गुरी खालिस्तानी” के नाम से सेव था.
इस केस में सोशल मीडिया गतिविधियों का ज्यादा उपयोग किया गया है. सह-आरोपी हरजीत सिंह के अभियोजन में, एनआईए ने खालिस्तान की ओर "झुकाव" स्थापित करने के लिए बताया कि उसके एक फेसबुक मित्र ने पोस्ट में लिखा था, "भारत एक आतंकवादी देश, खालिस्तान जिंदाबाद 2020". एक अन्य सह-आरोपी चनदीप सिंह ने फेसबुक पर अपने धार्मिक विचारों को "सिख खालिस्तानी" के रूप में लिखा जिसे चार्जशीट में शामिल कर लिया गया.
अमरजीत कहते हैं, “मेरे खिलाफ पुलिस के पास कोई सबूत नहीं मिले. उन्होंने गिरफ्तार करते ही मेरा फोन अपने कब्जे में ले लिया. मेरा कोई फेसबुक अकाउंट भी नहीं है. पैसों की लेनदेन का आरोप लगाया गया जबकि मेरा कॉलेज के दिनों का एक बैंक अकाउंट है जो बहुत समय से उपयोग ही नहीं हो रहा है”
वह आगे बताते हैं कि, मैं सिर्फ मलकित सिंह को पहले से जानता हूं. वह भी अमृतसर स्वर्ण मंदिर में सेवा करने आया करता था और मैं भी. मैं हफ्ते में एक बार जाया करता था. तब मेरी मलकित से दोस्ती हुई.
“मुझपर हिरासत में पुलिस दबाव बनाती थी कि मैं कबूल करूं की मैं मलकित के साथ साजिश में शामिल था.” वह कहते है.
यूएपीए के तहत गिरफ्तार होने पर अमरजीत कहते हैं, “भविष्य खराब हो गया. आस-पड़ोस वाले बातचीत नहीं करते. गांव में मेरे हमउम्र लोग बहुत आगे बढ़ गए, मैं वहीं रह गया. सामाजिक तौर पर भी कई ताने सुनने को मिलते हैं. केस के कारण न नौकरी कर सकता हूं और न ही शादी.”
हिरासत में मारपीट और अपमानित करने का आरोप लगाते हुए वह कहते हैं, “हिरासत में मेरे साथ मारपीट की गई, गाली गलौज की और टायलेट वाले नल से पानी पीने के लिए कहा गया. जब मेरा कंघा गिर गया तो उन्होंने उसे पैरों से दबा दिया, बोले तुम इस लायक नहीं हो.” बता दें कि सिख धर्म में जो पगड़ी पहनते हैं उन्हें लकड़ी का एक कंघा दिया जाता है.
वकील जसपाल सिंह कहते हैं, पुलिस डेरे पर हमले की साजिश और खालिस्तानी विचारधारा का आरोप लगाती है. जबकि कोर्ट में धमाके में मारे गए हरप्रीत सिंह हैप्पी के चचेरे भाई ने कबूल किया उनका भाई ईसाई धर्म को मानता था.
वहीं दूसरे मृतक विकर सिंह के सगे भाई सविंदर सिंह ने कोर्ट में बताया कि उनका भाई दिव्य ज्योति जागरण डेरा का फॉलोवर था.
जसपाल सिंह पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि एनआईए ने कोर्ट में, पूर्व में हुए धमाकों को भी गिरफ्तार लोगों से जोड़ दिया. एजेंसी ने जिस केस को इन लोगों से जोड़ा उन एफआईआर में बम फेंकने को लेकर कोई धारा नहीं जोड़ी गई है. वहीं 2016 के एक मामले में मनप्रीत सिंह को धमाका करने का आरोपी बताया गया. जबकि उसके वीजा के मुताबिक वह नवंबर 2015 से अगस्त 2016 तक बहरीन में था.
19 जनवरी 2022 को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने अमरजीत को जमानत दे दी. कोर्ट ने कहा, “जांच एजेंसी ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं पेश कर पाई जिससे यह साबित हो सके कि अपीलकर्ता किसी आंतकवादी ग्रुप से जुड़ा हो.”
यूएपीए का इतिहास और पंजाब में उग्रवाद
पंजाब स्थित मानवाधिकार कार्यकर्ता सरबजीत सिंह वेरका जिन पर 1992 में टेररिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टिविटीज एक्ट (टाडा) के तहत केस दर्ज किया गया था. वह कहते हैं, “आज भी पंजाब पुलिस उसी मानसिकता के साथ काम करती है जो पंजाब में उग्रवाद के दौरान विकसित हुई थी.”
1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार और सिख जनसंहार के बाद सिख समुदाय के कुछ लोगों ने कठोर पुलिस कार्रवाईयों, फर्जी मुठभेड़ों और उत्पीड़न के बीच, खालिस्तानी विद्रोहियों और आतंकवादियों का समर्थन करना शुरू कर दिया था.
सरबजीत सिंह कहते हैं, “यह वह समय था जब पंजाब पुलिस ने आतंकवाद विरोधी कानूनों को अंधाधुंध तरीके से सिख समुदाय के खिलाफ लागू करना शुरू कर दिया. टाडा जैसे कानून उसी समय लाए गए थे क्योंकि पुलिस को कार्रवाई करने के लिए ज्यादा शक्तियां चाहिए थीं. चूंकि पुलिस के पास ज्यादातर मौकों पर आरोपी साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं होते थे और बिना सबूत वह लोगों को जेल में नहीं डाल सकती, इसलिए टाडा ने उनके लिए समाधान के तौर पर काम किया.”
वेरका कहते हैं, “आखिरकार 1992 के बाद यह स्पष्ट हो गया कि टाडा का दुरुपयोग किया जा रहा था. कानून के तहत बहुत ही कम लोगों को सजा हुई.”
कानून के दुरुपयोग की आलोचना के कारण 1995 में टाडा कानून को खत्म कर दिया गया. साल 2001 में अटल वाजपेयी की सरकार आतंकवाद निरोधक अधिनियम (पोटा) कानून लेकर आई जिसमें कमोबेश टाडा जैसे ही प्रावधान थे.
हालांकि इस कानून के दुरुपयोग के खिलाफ जन आक्रोश के कारण चार साल में पोटा को भी रद्द कर दिया गया. इसके बाद मनमोहन सिंह की सरकार 1967 के यूएपीए कानून में संशोधन कर आंतकवाद निरोधक कानून लेकर आई. मुंबई हमलों के बाद साल 2008 में कानून में संशोधन कर इसे और मजबूत बनाया गया और अंत में, साल 2019 में मोदी सरकार ने संशोधन किया, जिसके मुताबिक किसी भी व्यक्ति को आंतकी घोषित किया जा सकता है.
वेरका कहते हैं, “कानून का नाम यूएपीए से टाडा, टाडा से पोटा और फिर पोटा से यूएपीए हो गया लेकिन प्रावधान वही रहे- असहमति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने के लिए बिना सबूत के गिरफ्तारी.”
उन्होंने आगे कहा, “पंजाब में, यूएपीए का लगातार उपयोग इस बात को भी दर्शाता है कि पंजाब पुलिस का नेतृत्व किसने किया. केपीएस गिल और सुमेध सिंह सैनी जैसे आईपीएस अधिकारियों के समय में टाडा का उपयोग लोगों के गायब होने और फर्जी मुठभेड़ के मामलों में बढ़ोतरी हुई. बाद में आईपीएस सुरेश अरोड़ा के दौरान चीजें बेहतर हुईं. लेकिन एक बार फिर जब कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में दिनकर गुप्ता को पंजाब पुलिस का प्रधान बनाया गया, तो पंजाब में यूएपीए के मामले फिर से शुरू हो गए.”
हमने इस पर सुमेध सिंह सैनी से टिप्पणी लेने के लिए संपर्क किया, लेकिन उनका फोन नंबर बंद था, वहीं दिनकर गुप्ता ने जवाब देने से यह कहकर मना कर दिया कि वह अब पंजाब के डीजीपी नहीं हैं. हमने पंजाब पुलिस को भी उनके जवाब के लिए संपर्क किया है. जवाब आने पर स्टोरी को अपडेट कर दिया जाएगा.
क्या कहते हैं आंकड़े?
यूपपीए मामलों को लेकर जो दावे सरबजीत सिंह वेरदा दावा करते हैं, वही आंकड़े भी दर्शाते हैं. लोकसभा में गृह मंत्रालय द्वारा 2021 में दिए गए एक जवाब के मुताबिक पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने, शिरोमणि अकाली दल की सरकार के तुलना में कहीं अधिक यूएपीए का उपयोग किया है. साल 2017 से 2019 तक यूएपीए के तहत 18 मामले दर्ज किए गए, जिनमें लगभग 100 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जबकि 2015 से 2016 तक केवल चार मामले ही दर्ज किए गए जिनमें सात लोगों को गिरफ्तार किया गया.
दिसंबर 2021 में राज्यसभा में गृहमंत्रालय द्वारा दिए गए एक जबाव के मुताबिक, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने 2021 में पंजाब में सात देशद्रोह और यूएपीए के केस दर्ज किए हैं, जो देश में सबसे अधिक हैं.(आंकड़ों के अनुसार पंजाब और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर दोनों में सात-सात मामले हैं)
वेरका कहते हैं, “यह कानून एक बार फिर राज्य के लिए जरूरी है क्योंकि तमाम कोशिशों के बावजूद वह सोशल मीडिया पर लोगों को नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं. अमृतसर से लेकर टोरंटो तक कोई भी सोशल मीडिया पर अपनी बात रख सकता है. पुलिस का इस पर कोई कंट्रोल नहीं है. खुद को असहाय महसूस कर रही सरकार ने फिर से ऐसे कानूनों का सहारा लेना शुरू कर दिया, जिनके जरिए सबूतों के आभाव में भी लोगों को गिरफ्तार किया जा सकता है.”
अदालत के आदेशों, जेल रिकॉर्ड और मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर जुटाए गए वकील जसपाल सिंह मंझपुर के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2009 से पंजाब में 112 यूएपीए के मामले दर्ज किए गए. 2009 में ही सिंह भी करीब 18 महीने इस कानून के तहत जेल में रहे. साल 2014 में कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया. अब वह पंजाब के अधिकांश यूएपीए मामलों में उन अभियुक्तों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनकी पहुंच वकीलों तक नहीं है.
पिछले एक दशक में, जसपाल सिंह पंजाब में यूएपीए के मामलों में एक पैटर्न देखते हैं. वह कहते हैं, “अगर हम यूएपीए मामलों की संरचना को देखें, तो पाएंगे कि सरकार ने एक खाका तैयार किया है जिसके तहत मामले दर्ज किए जाते हैं. अधिकतर मामलों में आरोप भी एक जैसे होते हैं, मानों उन्हें कंप्यूटर पर कॉपी और पेस्ट कर दिया हो.”
सिंह के आंकड़ों के मुताबिक पंजाब में यूएपीए के 112 मामलों में से केवल तीन में ही आरोप सिद्ध हो पाए हैं. इन तीनों में से भी दो को पंजाब और हरियाणा होईकोर्ट ने बरी कर दिया. जबकि एक मामले की अपील हाईकोर्ट में लंबित है.
वह कहते हैं कि आतंकवाद कानून के साथ होने वाली कैद में न्यायपालिका की मिलीभगत है. “यूएपीए का मामला दर्ज करने, जांच करने और अदालत में चालान पेश करने के कई महत्वपूर्ण निर्देश हैं, लेकिन आमतौर पर इसका पालन नहीं किया जाता”.
जसपाल सिंह बताते हैं, “उदाहरण के लिए, यूएपीए मामले की जांच डीएसपी पद के नीचे के अधिकारी नहीं कर सकते. सरकार के बिना मंजूरी के अदालतें आरोप नहीं लगा सकतीं. मंजूरी का समय भी निश्चित है लेकिन सभी अदालतें इन निर्देशों पर सही से ध्यान नहीं देती हैं, जिसके कारण अदालतों में मामले लंबित हैं और अभियुक्त जेल में.”
यूएपीए के संदर्भ में पंजाब की राजनीति
पंजाब में यूएपीए के बढ़ते मामलों के बीच, 2020 में तब के पंजाब एकता पार्टी के नेता सुखपाल सिंह खैरा के नेतृत्व में पांच विपक्षी विधायकों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें “झूठे आरोपों और यूएपीए के तहत सिख युवकों की गिरफ्तारी” की जांच की मांग की गई थी.
खैरा के ज्ञापन के बाद, अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह, जो सिख धर्म के सबसे बड़े धार्मिक संस्था के नेता हैं, ने केंद्र सरकार और राज्य सरकार से सिख युवाओं के खिलाफ आतंकवादी कानून का उपयोग बंद करने के लिए कहा.
मार्च 2021 में, जब प्रवर्तन निदेशालय(ईडी) ने खैरा पर छापा मारा तो उन्होंने ट्विटर पर कहा कि आतंकी कानून के खिलाफ उनकी सक्रियता के कारण उन्हें निशाना बनाया जा रहा है.
पंजाब एकता पार्टी का कांग्रेस में विलय करने वाले सुखपाल खैरा कहते हैं कि पंजाब में यूएपीए के मामलों में केंद्र की भी भूमिका होती है. न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में वह आरोप लगाते हुए कहते हैं, ”पंजाब एक सीमावर्ती राज्य है और भाजपा झूठा डर पैदा करना चाहती है. वह एक नैरेटिव बनाना चाहते हैं कि पंजाब में 'पाकिस्तान', 'आतंकवाद', 'भारत विरोधी ताकतें' और 'खालिस्तान' सक्रिय हैं. ये यूएपीए के मामले, ड्रोन, हथियारों की बरामदगी और अब सोशल मीडिया पोस्ट उस नैरेटिव को बनाने के तरीके हैं. ज्यादातर दलितों पर आतंकवाद के आरोपों के तहत मामला दर्ज किया जाता है, जिनके पास पैरवी करने के लिए वकील भी नहीं होते हैं. उनका बलिदान किसी भेड़ के बच्चे से कम नहीं है.”
खैरा दावा करते हैं कि पंजाब के डीजीपी के रूप में दिनकर गुप्ता की नियुक्ति राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल द्वारा की गई थी. वह कहते हैं, “यह राज्य की अघोषित नीति से मेल खाता है. पंजाब, जम्मू और कश्मीर में यह ताकतें अविश्वास का माहौल बनाए रखना चाहती हैं. दोनों सीमावर्ती राज्य हैं और इनमें अल्पसंख्यक समुदाय हैं. यह चाहते हैं कि यह मामले ऐसे ही उबलते रहें.”
लुधियाना के रहने वाले मनदीप को न सिर्फ आंतक के आरोप में फंसाया गया बल्कि उनके शौक को भी आंतकवाद से जोड़ा गया. बचपन से ही कबूतरबाजी का शौक रखने वाले मनदीप, कई राज्यों में जाकर कबूतरबाजी प्रतियोगिता में हिस्सा लेते रहे और उन्होंने कई अवार्ड भी जीते हैं.
लेकिन पंजाब में जहां कबूतरों पर भी केस दर्ज कर, उन्हें संदिग्ध करार दिया जाता है, वहां मनदीप के बचपन के शौक को भी संदिग्ध करार दिया गया. उन्होंने कहा, “पुलिस ने कहा कि मैं पाकिस्तान में आतंकवादियों के संपर्क में रहने के लिए कबूतरों का इस्तेमाल करता हूं.अब मैं इस पर क्या कहूं.”
पंजाब में सोशल मीडिया को लेकर यूएपीए का सबसे पहला केस 2013 में दर्ज किया गया था. पंजाब पुलिस ने फतेहगढ़ साहिब में एक आतंकी घटना की साजिश रचने के आरोप में 16 लोगों - 15 वयस्कों और एक नाबालिग को गिरफ्तार किया था. पुलिस ने सबूत के तौर पर फेसबुक चैट का इस्तेमाल किया. न्यूज़लॉन्ड्री को मिले फैसले की कॉपी के मुताबिक, साल 2017 में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने नाबालिग को बरी कर दिया क्योंकि जांच एजेंसी, ”संदिग्ध गतिविधियों के अलावा नाबालिग का आरोप साबित करने में विफल रही.” एक जमानत पर रिहा है, एक आरोपी ने आत्महत्या कर ली और जबकि एक की मौत कोरोना वायरस से हो गई. केस अभी भी चल रहा है.
इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के वकील अभिनव सेखरी कहते हैं कि रोजमर्रा की जिंदगी में सोशल मीडिया की मौजूदगी के कारण ये स्वाभाविक है कि अब यह आपराधिक जांच, सूचना और सबूत का हिस्सा बन गया है. वह कहते हैं, “हालांकि जिस तरह से पुलिस जांच होती है, उसे उचित निगरानी और समीक्षा की जरूरत है. कभी-कभी ऐसा लगता है कि सोशल मीडिया के आधार पर कोई आपराधिक एंगल है लेकिन असलियत में वैसा कुछ होता नहीं है.”
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