NL Charcha
एनएल चर्चा 202: बजट का गुणा-गणित और विधानसभा चुनाव
एनएल चर्चा के इस अंक में वित्तमंत्री ने पेश किया आम बजट, असदुद्दीन ओवैसी पर हमला, बजट से नाखुश संयुक्त किसान मोर्चा, राहुल गांधी का लोकसभा में भाषण, तृणमूल कांग्रेस ने दिया अखिलेश यादव को समर्थन, मैरिटल रेप पर जारी बहस समेत आदि विषयों पर बातचीत हुई.
चर्चा में इस हफ्ते बतौर मेहमान आर्थिक मामलों के पत्रकार विवेक कौल और मिताली मुखर्जी शामिल हुईं. न्यूज़लॉन्ड्री के स्तंभकार आनंद वर्धन और न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस ने भी हिस्सा लिया. चर्चा का संचालन कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
बजट के विषय पर अतुल चर्चा की शुरुआत करते हुए विवेक से कहते हैं, हमेशा बजट आने के बाद बताया जाता है कि मिडिल क्लास को क्या मिला, शिक्षा के लिए क्या है? लेकिन अगर आप हमें इस बजट की कुछ ऐसी चीजों के बारे में बताएं जिसके भविष्य में सकारात्मक नतीजे देखने को मिलेंगे या हम पीछे की ओर जाएंगे.”
विवेक कहते हैं, “मेरा मानना है कि सरकार को बजट में ये बताने की कोशिश करनी चाहिए कि सरकार ने साल भर कैसे और कितना खर्चा किया और आने वाले साल में किन चीजों पर कैसे खर्चा होगा. सरकार ने इस मूल बिंदु पर ध्यान देना बंद कर दिया है. इस साल के बजट में मध्यम वर्ग के लोगों के लिए कुछ खास नहीं था. टैक्स स्लैब और टैक्स रेट पहले जैसा ही बने हुए हैं. हालांकि इस बार टैक्स वसूली पिछले साल से ज्यादा हुई है इसलिए आशा थी कि पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी को कम किया जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं. इसके अलावा सरकार ने हमें बताया है कि अगले साल पूंजीगत व्यय बढ़ेगा लेकिन जितना बताया जा रहा है उतना नहीं बढ़ेगा."
चर्चा को आगे बढ़ाते हुए अतुल, मितली से सवाल करते हैं, "पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं इसलिए उम्मीद की जा रही थी कि इस बार लोकलुभावन बजट पेश किया जा सकता है लेकिन ऐसा नहीं किया. चुनाव के बावजूद भी सरकार की तरफ से आम जन के लिए कोई खास घोषणा नहीं की गई. क्या सरकार का ये रवैया बताता है की देश की अर्थव्यवस्था संकट में है जिसकी वजह से सरकार कोई लोकप्रिय कदम नहीं उठा पा रही है."
सवाल का जवाब देते हुए मितली कहती हैं, "सरकार को विश्वास है कि चुनावों में वह बहुत अच्छा प्रदर्शन करने वाली है इसलिए उन्होंने इस तरह का बजट पेश किया. बजट बताता है कि लक्ष्य हासिल करने के लिए सरकार को किस पथ पर चलना है. लेकिन अगर हम बजट के भाषण को दोबारा सुने तो इस बार बजट में गरीबी, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा जैसे शब्द सुनने के बजाय डिजिटल, पूंजीगत व्यय, ड्रोन जैसे शब्द सुनने को मिले. यहां दो बातें हो सकती हैं या तो इन सबका कोई अस्तित्व नहीं है या ये सब चीजें सरकार के लिए कोई मायने नही रखती हैं."
मितली आगे कहती हैं, “वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि पूंजीगत व्यय से रोजगार मिलेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ है जो हमने पिछले कई सालों में देखा है. एक भारत है जो बहुत मुश्किलों से जूझ रहा है वहीं दूसरी तरफ पूंजीपति बढ़ते जा रहे हैं. ये सरकार के ऊपर है कि वह कौन से भारत की मदद करना चाहती है.”
इस विषय पर जवाब देते हुए आनंद कहते हैं, “चुनावी समय में भी इस तरह का बजट पेश करने का कारण है कि एक मध्यम वर्ग का वोट बैंक है जिसे केंद्रीय सरकार की अर्थव्यवस्था पर भरोसा है, ऐसा पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है. इस बजट में महंगाई कम करने वाला कोई कदम सरकार ने नहीं उठाया. मतदान के समय आर्थिक मामलों में निजीकरण के बजाय महंगाई ज्यादा प्रभाव डालती है. लगता है कि सरकार महंगाई का जोखिम उठाने को तैयार है. दूसरी बात गरीबी और बेरोजगारी बहुत बड़े मुद्दे है और मतदाता इसमें कोई तत्काल राहत नहीं खोज रहा है. इसी मानसिकता का सरकार फायदा उठा लेती है.”
इसी विषय पर मेघनाद टिप्पणी करते हुए कहते हैं, “बजट में सरकार ने कई बड़ी घोषणाएं की हैं. बच्चों पर खर्च होने वाला बजट और मनरेगा का बजट कम हो गया है. बजट के दौरान वित्त मंत्री ने वन क्लास टीवी चैनल की एक अजीब घोषणा की. उनका कहना है कि हम छात्रों के लिए 12 चैनल चला रहे हैं जिनको पढ़ाई में महामारी की वजह से नुकसान हुआ है और अब इन चैनलों को 200 तक बढ़ाने की बात कही गई है. हमको इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि ऑनलाइन क्लास की वजह से सबसे ज्यादा उन्हें नुकसान हुआ है जिनके पास फोन और इंटरनेट नहीं था. इसको लेकर हमें दीर्घकालिक दृष्टिकोण रखना चाहिए क्योंकि महामारी के चलते स्कूल बंद होने से बच्चों का पढ़ाई का जो नुकसान हुआ है उसके लिए कोई उपाय नहीं दिख रहा है. सरकार ने भी इसपर अभी तक कोई बात नहीं की है.”
इसके अलावा बजट के अन्य पहलूओं समेत बजट के नजरिए से विधानसभा चुनावों पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर भी चर्चा में विस्तार से बातचीत हुई. पूरी बातचीत सुनने के लिए हमारा यह पॉडकास्ट सुनें और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.
टाइमकोड
00.09 - 01:50 - इंट्रो
01:59 - 03:25 - जरूरी सूचना
03:29 - 07:00 - हेडलाइंस
07:10 - 1:06:10 - आम बजट
1:06:20 - 1:23:59 - चर्चा लेटर
1:24:05 - 1:30: 43 - सलाह और सुझाव
***
पत्रकारों की राय, क्या देखा, पढ़ा और सुना जाए
विवेक कौल
जेसन स्टेनली की किताब - हाऊ फासिज्म वर्क्स
जॉर्ज आरवेल की किताब - ऑल आर्ट इज प्रोपेगेंडा
पीयूष मिश्रा की कविता - कुछ इश्क किया कुछ काम किया
आनंद वर्धन
आर्थिक स्थिरिता के लिए छोटे शहरों से बढ़े शहरों की तरफ पलयान करते लोग.
मेघनाद एस
केगो हिगाशिनो की किताब- साइलेंट परेड
नेटफ्लिक्स सीरीज- ऑल ऑफ अस आर डेड
सारा फेरर की किताब - नो फिल्टर: द इनसाइड स्टोरी ऑफ इंस्टाग्राम
मिताली मुखर्जी
लोरी गॉटलैब की किताब - मैय बी यू शुड टॉक टू समवन
नयनतारा सहगल की किताब - एनकाउंटर विद किरन
अतुल चौरसिया
फिल्म- माय बेस्ट फ्रेंड एना फ्रैंक
न्यूज़लॉन्ड्री का अनादर इलेक्शन शो को जरूर देखें
***
***
प्रोड्यूसर- रौनक भट्ट
एडिटिंग - उमराव सिंह
ट्रांसक्राइब - अश्वनी कुमार सिंह
Also Read
-
Two years on, ‘peace’ in Gaza is at the price of dignity and freedom
-
4 ml of poison, four times a day: Inside the Coldrif tragedy that claimed 17 children
-
Delhi shut its thermal plants, but chokes from neighbouring ones
-
Hafta x South Central feat. Josy Joseph: A crossover episode on the future of media
-
Encroachment menace in Bengaluru locality leaves pavements unusable for pedestrians