Assembly Elections 2022
हाथरस घटना में हुई यूपी सरकार की लापरवाही का चुनाव पर क्या है असर?
‘‘वो बात दिल से कैसे निकलेगी? हमारी दलित बहन थी. हमने 2017 में बीजेपी को वोट दिया. 2019 में भी दिया. तब लगा की राष्ट्रवादी पार्टी है, लेकिन हमारी बहन के साथ जो हुआ वो गलत था. हमें सबसे ज्यादा दुख इस बात का है कि उसे पुलिस वालों ने देर रात को जला दिया. उस दिन वहां, यहां आसपास के तमाम वाल्मीकि समुदाय के लोग गए थे. पुलिस ने बहुत मारा. मुझे भी पुलिस की मार लगी थी.’’
यह कहना है, हाथरस जिले के रहने वाले 36 वर्षीय रवि कुमार वाल्मीकि का. हाथरस रेलवे स्टेशन की बगल में मोहल्ला कर्र पड़ता है. यहां ज्यादातर वाल्मीकि समुदाय के लोग रहते हैं. मोहल्ले में जाने के रास्ते पर नाले खुले हैं. उसके आसपास महिलाएं बैठी हुई थीं. यहीं पर हमारी मुलाकात रवि कुमार से हुई. रवि सफाईकर्मी का काम करते हैं.
सितंबर 2020 में हाथरस के बुल गढ़ी गांव में वाल्मीकि समुदाय की एक लड़की की कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार के बाद मौत हो गई. इस वजह से लोगों में नाराजगी थी और इसी बीच प्रशासन ने, पीड़िता के परिजनों की सलाह के बिना देर रात में अंतिम संस्कार कर दिया जिससे नाराजगी और बढ़ गई. विपक्षी दलों के नेता यहां पहुंचने लगे. रामराज्य का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी की योगी सरकार घिरती नजर आई.
हालांकि विपक्ष के भारी दबाव और मीडिया कवरेज के बाद आरोपियों की गिरफ्तारी हुई. मामला अभी कोर्ट में लंबित है और पीड़िता का परिवार अभी भी सीआरपीएफ के मजबूत सुरक्षा घेरे में रहने को मजबूर है. सब्जी खरीदने के लिए भी उन्हें इन सुरक्षाकर्मियों के साथ ही जाना होता है. पीड़िता के भाई और भाभी की मानें तो घटना ने उनकी जिंदगी बदल दी. वे अपनी बहन को आखिरी बार देख भी नहीं पाए और आज चहारदीवारी से घिरे रहते हैं.
चुनाव प्रचार में भाजपा के तमाम नेता महिला सुरक्षा की बात कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री और मथुरा की छाता विधानसभा के विधायक चौधरी लक्ष्मीनारायण सिंह ने तो एक प्रचार के दौरान यह तक कहा कि योगी सरकार से पहले महिलाएं गहने पहनकर बाहर नहीं निकलती थीं. हालांकि जब न्यूज़लॉन्ड्री ने सिंह ने हाथरस और उन्नाव की घटना पर सवाल किया तो वे इंटरव्यू छोड़कर जाने लगे. इसके बाद उन्होंने हाथरस पर कुछ नहीं बोला लेकिन उन्नाव पर बोलते हुए गलत दावे किए कि हमारे बेचारे विधायक कुलदीप सेंगर को फंसाया गया और सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया है. जबकि हकीकत यह है कि सेंगर को सड़क दुर्घटना मामले में जमानत मिली है न कि बलात्कार मामले में.
ऐसे ही उत्तराखंड की पूर्व राज्यपाल और आगरा देहात से भाजपा की उम्मीदवार बेबी रानी मौर्य भी हाथरस के सवाल पर न्यूज़लॉन्ड्री का इंटरव्यू छोड़कर चली गईं, जबकि भाजपा उन्हें दलित चेहरा मानती हैं. ऐसे में लगता है कि भाजपा ने अपने उम्मीदवारों और नेताओं को हाथरस मामले पर कम बोलने की सलाह दी है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने हाथरस जिले के दलित मोहल्लों और दूसरे तबके के निवासियों से बात की. इस पूरे विवाद का चुनाव पर क्या असर होगा यह जानने के लिए हम कर्र मुहल्ला पहुंचे. यहां वाल्मीकि समुदाय के पांच हजार लोग रहते हैं जिनमें 1200 के करीब वोटर हैं. यह जानकारी स्थानीय निवासियों ने दी है.
रवि के घर से पीड़िता का घर तकरीबन सात किलोमीटर है. वे घटना वाले दिन अपने मोहल्ले के लोगों के साथ पीड़िता के गांव पहुंचे तो पुलिस ने लोगों को खूब मारा. उस दिन को याद करते हुए रवि कहते हैं, ‘‘वो भुलाने वाली घटना थोड़ी है. लड़ाई-झगड़ा हो तो लोग भूल भी जाते हैं, लेकिन यहां तो पहले शारीरिक शोषण किया गया, फिर उसके बाद वो व्यवहार हुआ जो नहीं होना चाहिए था. आज तक हिंदू रिवाज में दो बजे रात को किसी का अंतिम संस्कार हुआ है? हमारे लोगों पर मुकदमा दर्ज किया गया. लोगों को जेल में बंद किया. लाठी चार्ज की. आज भी लोग केस लड़ रहे हैं. इन सब चीजों को लेकर मन में टीस तो है. हम तो बदलाव ही चाहते हैं क्योंकि हमारे साथ गलत हुआ.’’
हाथरस घटना का चुनाव पर असर के सवाल पर रवि राजस्थान का उदहारण देते हुए कहते हैं, ‘‘जैसे राजस्थान के चुनाव में कहा गया था कि मोदी तुमसे बैर नहीं, वसुंधरा तुम्हारी खैर नहीं. वैसे ही हमें मोदी जी से कोई नाराजगी नहीं है, हमारी नाराजगी योगी आदित्यनाथ से है. उनके राज्य में हमारी बहन के साथ अन्याय हुआ. उन्हें तो हर चीज़ की जानकारी थी. वे कम से कम शव तो दे देते, पर ऐसा नहीं किया गया. इसलिए हम लोग इस बार अखिलेश यादव को वोट देंगे. हमें सरकार बदलनी है. यहां कुछ बीजेपी के कट्टर समर्थक हैं वो उसे ही देंगे. लेकिन समाज का मन इस बार अखिलेश की तरफ है.’’
रवि की बगल में खड़े 57 वर्षीय राजू वाल्मीकि हमसे सवाल करते हुए कहते हैं, ‘‘बताइए किसी की बहन-बेटी के साथ ऐसी घटना हुई, तो क्या वह भूल पाएगा? आपके साथ होता तो आप भूल जाते? भले लोग भूल जाएं, लेकिन वो हमारी बेटी थी. उसे हम कैसे भूल सकते हैं? वोट देते वक्त हम उस घटना को जरूर याद रखेंगे. हमारे यहां से एकमुश्त वोट बीजेपी को पड़ता था लेकिन अब माहौल बदल गया है. लोगों में नाराजगी है. इस नाराज़गी का खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ेगा.’’
हाथरस शहर में वाल्मीकि समुदाय की 12 बस्तियां हैं. रवि के मुताबिक इन बस्तियों में तकरीबन 30 हजार वाल्मीकि वोटर हैं. हाथरस जिले में तीन विधानसभा क्षेत्र हाथरस, सादाबाद और सिकन्दाराऊ हैं. इनमें से हाथरस अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है. यहां बहुजन समाज पार्टी की मजबूत पकड़ मानी जाती है. हालांकि 2017 के चुनाव में दो सीटों पर भाजपा को जीत मिली और एक सीट बसपा के पास आई. बसपा के रामवीर उपाध्याय सादाबाद से चुनाव जीते थे और इस बार वो भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं.
हाथरस विधानसभा क्षेत्र सुरक्षित है. यहां दलित समुदाय में सबसे ज्यादा आबादी जाटव समुदाय की है और बाकी में वाल्मीकि और दूसरी जातियां हैं. रवि कुमार की मानें तो यह नाराजगी सिर्फ वाल्मीकि समुदाय में नहीं बल्कि दूसरी दलित जातियों में भी है. वे कहते हैं, ‘‘चंद्रशेखर आजाद रावण नहीं आते तो यह मामला बढ़ता नहीं. उन्होंने हमारे लिए संघर्ष किया. समाजवादी पार्टी वाले आए. जयंत चौधरी आए. नहीं आए तो सिर्फ बीजेपी वाले.’’
यहां ‘भूरा का नगला’ गांव है. इस गांव में जाटव समुदाय की एक बड़ी आबादी है. यहां पहुंचने पर हमारी मुलाकात 22 वर्षीय सन्नी कुमार से हुई. हाथरस घटना को लेकर क्या सोचते हैं, पूछने पर कुमार कहते हैं, ‘‘सोचने का समय नहीं है. कमाएंगे नहीं तो खाएंगे कैसे. हमें तो बोलने तक का अधिकार नहीं है. मैं इलेटक्ट्रिशयन का काम करता हूं. शहर में तो फिर भी ठीक है लेकिन गांव में जब काम करने जाता हूं तो लोग कहते हैं कि जूता बाहर खोलकर अंदर आओ. अब मैं बिजली का काम करता हूं. ऐसे में बिना जूता जाने पर दुर्घटना हो सकती है. उन्हें समझता हूं और अगर वो नहीं समझते तो काम छोड़कर चला आता हूं.’’
लोगों को आपकी जाति कैसे पता चलती है. इस पर वे कहते हैं, ‘‘हमारा गांव जाटवों का है. यहां सब जानते हैं. ऐसे में उस घटना के बारे में सोचने का वक्त नहीं है हमारे पास. हम लोग तो बहन जी के वोटर हैं. उनको ही देंगे. वो हमारे गांव भी आ चुकी हैं.’’
यहां ज्यादातर लोग भाजपा सरकार से नाराज लगते हैं. नाराजगी की एक बड़ी वजह रोजगार की समस्या है. यहीं हमारी मुलाकात अमर कुमार से हुई. हाथरस मामले को लेकर वे कहते हैं, ‘‘नाराजगी तो है ही. इस सरकार में दलितों को कोई सुनने वाला नहीं है. अगर उच्च जाति का कोई होता तो इस तरह से व्यवहार नहीं होता. बीजेपी के कारण अब तक आरोपी बचे हुए हैं नहीं तो अब तक फांसी हो गई होती. वैसे यह चुनावी मुद्दे का विषय नहीं है, यह हमारे सम्मान की बात है. चुनावी मुद्दा रोजगार है. मैं बीएससी कर चुका हूं. रोजगार नहीं मिल रहा तो कारपेंटर का काम कर रहा हूं. आप यहां देखिए कितने लड़के डोल (घूम) रहे हैं. हम लोग रोज कमाने-खाने वाले हैं. काम बंद है.’’
भूरा का नगला गांव से थोड़ी दूरी पर तमानागढ़ी गांव है. यह भी एक जाटव बाहुल्य गांव है. यहां हमारी मुलाकात पेशे से वकील कुलदीप सिंह ने हुई. हाथरस घटना पर वे कहते हैं, ‘‘इस पर तो हर वर्ग के लोगों को नाराज होना चाहिए. यह घटना तो हाथरस के माथे पर कलंक की तरह है. 2017 में हमने बीजेपी को वोट किया था. हमने सोचा बदलाव होगा लेकिन हमें और परेशान किया गया. प्रशासन में हमें सुना नहीं जाता है. कोई शिकायत लेकर जाता है तो उल्टा उसी को डराया धमकाया जाता है.”
न्यूज़लॉन्ड्री की टीम हाथरस पीड़िता के गांव भी पहुंची. गांव में प्रवेश करते ही हमारी मुलाकात 76 वर्षीय बुजुर्ग रघुवीर सिंह से हुई. उन्हें हाथरस की घटना का अफसोस नहीं है. वे हंसते हुए कहते हैं, ‘‘लड़की की शादी करते तो इन्हें (पीड़िता के घर की तरफ इशारा कर) पैसे खर्च करने पड़ते, वो पैसे भी बच गए और सरकार से काफी पैसे भी मिले. हमें किस बात का दुख होगा. हम तो योगी की सरकार बनाएंगे. योगी आदित्यनाथ हमारी बिरादरी के हैं.’’
हमारे पूछने पर कि देर रात को जिस तरह से शव जलाया गया क्या वह जायज था, इस पर सिंह कहते हैं, ‘‘अगर पुलिस ऐसा नहीं करती तो यहां कोई राजपूत नहीं बचता. आसपास के वाल्मीकि इस गांव में आ चुके थे. प्रशासन ने बिल्कुल ठीक किया.’’
इस गांव के ज्यादातर राजपूत भाजपा सरकार के पक्ष में बोलते नजर आते है. यहां मिले एक राजपूत नौजवान कहते हैं, ‘‘वोट तो हम बीजेपी को ही देंगे लेकिन मैं सरकार से नाराज हूं. बेवजह मुझे जेल में रखा गया. मेरी जमीन को बीजेपी नेता के करीबी ने कब्जा लिया था. पुलिस में शिकायत किया. विधायकों के पास गया. किसी ने नहीं सुनी. उल्टा मुझे और मेरी पत्नी को जेल में डाल दिया गया. 15 दिन बिना गलती के जेल में रहना पड़ा. हम बीजेपी को वोट भी करेंगे और शिकायत भी. यहां के वाल्मीकि भी बीजेपी को ही वोट करेंगे.’’
हालांकि हाथरस पीड़िता के चाचा संतोष वाल्मीकि इससे इत्तेफाक नहीं रखते हैं. अपने जर्जर मकान को दिखाते हुए वह कहते हैं, ‘‘हमें तो घर तक नहीं मिला है. टूटे घर में रहते हैं. गैस कनेक्शन मिला था. वो भी खत्म हो गया. चूल्हे पर खाना बनाते हैं. सरकार की तरफ से राशन मिलता है लेकिन क्या सिर्फ राशन से पेट भर जाएगा? हमें सरकार से कोई लाभ नहीं मिला है.’’
हाथरस से बसपा के दो बार के विधायक गेंदालाल चौधरी के बेटे पंकज चौधरी यहां से जिला पंचायत सदस्य रह चुके हैं. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए चौधरी कहते हैं, ‘‘बुल गढ़ी घटना के बाद हाथरस की देश विदेश में जो बदनामी हुई है, वो इस बात से नहीं हुई कि उस लड़की के साथ बलात्कार हुआ. मरने के उपरांत जो प्रशासनिक कार्रवाई उस लड़की और उसके परिजनों के साथ की गई, उससे बदनामी हुई. न्यायपालिका अपना काम करेगी कि कौन दोषी है या नहीं. अगर बसपा की सरकार होती तो ये काम नहीं होते. प्रशासन इस तरह से काम नहीं करता.’’
हाथरस की घटना से लोगों में गुस्से के सवाल पर चौधरी कहते हैं, ‘‘मुझे नहीं लगता कि लोगों में गुस्सा है. अपर कास्ट के लोग तो भूल चुके हैं. उनको तो फर्क नहीं पड़ा. प्रशासन ने क्या किया, अगर उसको लेकर यहां के लोग आक्रोशित नहीं है तो आप सोच सकते हैं. हालांकि बसपा के लोगों में इसका गुस्सा दिखेगा.’’
न्यूज़लॉन्ड्री ने हाथरस में चाय दुकानों, रेहड़ी पटरी पर दुकान लगाने वाले कई लोगों से बात की. दलित तबके के लोगों को छोड़ दें तो ज्यादातर लोगों के लिए हाथरस की घटना बड़ा मुद्दा नहीं है. इसकी वजह पंकज चौधरी बताते हैं, ‘‘हमारे यहां घटना से पहले पीड़ित और आरोपी की जाति देखी जाती है. यह अफसोस की बात है पर सत्य है. यह दिल्ली नहीं है कि निर्भया की जाति जाने बगैर लोग सड़कों पर आ गए थे. यह यूपी है.’’
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