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ग्राउंड रिपोर्ट: जेवर एयरपोर्ट के लिए जमीन देने वाले किसान क्यों कह रहे हैं कि हमारा विनाश हो गया
नोएडा के जेवर में बन रहे एयरपोर्ट को योगी आदित्यनाथ सरकार एक बड़ी उपलब्धि के रूप में बताती है. इसके निर्माण के बाद रोजगार को लेकर अलग-अलग मीडिया संस्थानों ने अलग-अलग दावे किए. वहीं यह भी कहा गया कि किसान इससे बेहद खुश हैं. उन्होंने खुशी-खुशी अपनी जमीन दी है.
जेवर के भाजपा विधायक धीरेन्द्र सिंह कहते हैं, ‘‘जिस क्षेत्र में दो इंच जमीन के लिए गोलियां चलती थीं, वहां के किसानों ने क्षेत्र के विकास के लिए, नौजवानों के भविष्य के लिए, आगे आकर अपनी जमीनों में एयरपोर्ट बनाने की सहमति दी.’’
लेकिन यह हकीकत नहीं है. एक तरफ जहां आनन-फानन में एयरपोर्ट का निर्माण जारी है वहीं कई किसान टेंट में रहने को मजबूर हैं. उनका दावा है कि उनकी जमीन और घर का ठीक मुआवजा नहीं मिला. इनके घर तोड़ दिए गए. कई किसान मुआवजे की मांग को लेकर हाईकोर्ट भी पहुंच गए हैं.
यहां के छह गांव किशोरपुर, रूही, नगला गणेशी, नगला शरीफ, नगला छीतर और दयालपुर खेड़ा के किसानों से जमीन ली गई है. न्यूज़लॉन्ड्री की टीम किशोरपुर गांव पहुंची तो कुछ मजदूर टूटे घर की ईंटें साफ कर रहे थे. बगल में उस घर के मालिक 48 वर्षीय राकेश कुमार खड़े थे. वे कहते हैं, ‘‘घर को तोड़ने से पहले हमें नोटिस तक नहीं दिया गया. हम रोक भी नहीं सकते थे क्योंकि काफी संख्या में पुलिस वाले मौजूद थे. हमारा गांव में एक छोटा सा घर है. परिवार में लोगों की संख्या बढ़ने पर 12 साल पहले हम इस घर में आ गए. अब यह टूट गया तो उस छोटे घर में हम 14 लोग रह रहे हैं. घर के बदले सरकार को हमें प्लॉट देना था लेकिन अब तक प्लॉट नहीं मिला है. मेरे गांव में 48 लोगों के घर तोड़े गए उसमें से सिर्फ 12 लोगों को अब तक प्लॉट मिला है. बाकी लोग सड़क पर ही हैं.’’
एयरपोर्ट के लिए सरकार ने कुमार की 30 बीघा जमीन और घर का अधिग्रहण किया है. उन्होंने अपनी जमीन के बदले मुआवजा नहीं लिया और हाईकोर्ट चले गए.
यह कहानी सिर्फ राकेश कुमार की नहीं है. यहां जगह-जगह वैधानिक चेतवानी का बोर्ड लगा नजर आता है. जिस पर लिखा है, ‘‘यह भूमि नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट, जेवर हेतु अधिग्रहण कर ‘नागरिक उड्डयन विभाग’ उत्तर प्रदेश शासन के नाम कब्जा प्राप्त है. इस भूमि पर किसी प्रकार का अतिक्रमण दंडनीय अपराध है.’’
इस सड़क के किनारे एक टूटे घर के सामने चाय की दुकान चलाने वाले अरविंद कुमार से हमारी मुलाकात हुई. वे बताते हैं, ‘‘मेरा बड़ा भाई फौजी था. रिटायर होने के बाद जो पैसे मिले उससे यह बारात घर बनवाया था. चार गुना मुआवजे की हमारी मांग नहीं मानी और हमारा बारात घर तोड़ दिया. हम घर से बेघर हो गए. आपके सामने चाय की दुकान खोल रखी है. हमारे क्षेत्र को शहरी घोषित कर दिया जिस वजह से हमें मुआवजा कम मिला. यहां एयरपोर्ट बनने से कोई खुश नहीं है. क्यों खुश हो? जिसका घर उजड़ गया उसकी तो दुनिया उजड़ गई. हम किसान लोग थे, अब तो भैंस भी नहीं रख सकते हैं.’’
अरविंद कुमार के भाई महेंद्र कुमार सेना में थे. महेंद्र कुमार भी चार गुना मुआवजे की मांग के साथ हाईकोर्ट गए हैं. वे बताते हैं, ‘‘मेरा बारात घर तोड़ दिया. वहां मैं अपने परिवार के साथ रहता था. मवेशी रखता था. हम तीन भाई हैं. एयरपोर्ट के अंदर हमारी 30 बीघा जमीन आ रही है. मैंने अपनी जमीन का कब्जा नहीं दिया है. उसमें मैं खेती कर रहा हूं. जब भी अधिकारी आते हैं तो मैं उनसे अधिग्रहण के कागज मांगता हूं. हमारे यहां किसानों से छल किया गया. एयरपोर्ट बनाने की सहमति मांगने के बहाने जमीन लेने की सहमति ले ली गई. चार गुना मुआवजा मिलने पर ही मैं अपनी जमीन दूंगा.’’
जेवर के विधायक धीरेन्द्र सिंह, भट्टा परसौल भूमि अधिग्रहण के समय आंदोलन करने वालों में से प्रमुख थे. तब वे कांग्रेस पार्टी में थे और कांग्रेस नेता राहुल गांधी को अपनी बाइक पर बैठाकर किसानों के बीच लेकर गए थे. जब हमने उनसे पूछा कि आपके रहते किसानों को मुआवजे के लिए क्यों भटकना पड़ रहा है, तो वे कहते हैं, ‘‘तकरीबन 611 किसान मैंने चिन्हित कराए थे, जिनमें से 400 किसानों की समस्याएं हम दूर करा चुके हैं. 211 की जो समस्याएं हैं, उसमें कुछ ऐसे लोग हैं जो 40-50 साल पहले इलाका छोड़कर चले गए थे. कुछ लोगों के बर्थ सर्टिफिकेट उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं. उनकी उम्र की तस्दीक नहीं हो पा रही है. हम प्रयासरत हैं कि जो शेष 211 लोग बचे हैं, उनकी भी समस्याओं का समाधन कराएं.’’
211 की संख्या कम नहीं है. कई लोग ऐसे हैं जिनके घर तोड़ दिए गए. वे टेंट डालकर रह रहे हैं. उनके पशुओं की मौत हो रही है. क्या यह बड़ी समस्या नहीं है, ‘‘निश्चित ही यह बड़ी समस्या है और हम इसके लिए प्रयासरत हैं. यह दुनिया का पहला ऐसा अधिग्रहण है जो टाइम लाइन से जारी है. इसलिए किसान भाइयों को इसमें थोड़ी बहुत दिक्क्त आई है उसके लिए मैं क्षमा चाहता हूं.’’
जिन किसानों के घर तोड़ दिए गए उनमें से कुछ को जेवर शहर में प्लॉट दिए गए हैं. यहां रह रहे लोग भी सरकार से नाराजगी जाहिर करते हैं. यहां गांव के हिसाब से गलियां बनी हुई हैं और लोगों को घर दिए गए हैं. यहां हमारी मुलाकात प्रवीण कुमार छोकड़ से हुई. वे कहते हैं, ‘‘गांव उठाने से पहले उन्हें हमारे मकानों के पैसे देने चाहिए थे. उसके बाद छह महीने या साल भर का समय देते ताकि हम अपना घर बना लेते. तब हमारा घर तोड़ते. यहां न सीवर लाइन है, न नाली साफ है, न लाइट है. यहां कुछ भी नहीं है. गंद बचा हुआ है. यहां जो सड़कें हैं, वो आधे से ज्यादा टूट चुकी हैं. कुछ समय बाद यह कच्ची हो जाएंगी.’’
यहां लोग खुले में शौच जाने के लिए मजबूर हैं क्योंकि यहां सीवर का इंतजाम नहीं है. छोकड़ कहते हैं, ‘‘शौच के लिए गाड़ी लाकर रख देते हैं. उसमें कितने लोग शौच कर सकते हैं? इसलिए हमें खुले में खेत में जाना पड़ता है. जहां खेत वाला हमें डंडे लेकर भागता है. कभी हमारे बड़े-बड़े घर हुआ करते थे और अब हम बंध गए हैं. हम किसान हैं. घर पर मवेशी रखते थे. यहां तो मवेशी भी नहीं रख सकते हैं. इस सरकार ने जो कहा वो नहीं किया और जो किया वो कहा ही नहीं. हमारे यहां कोई वोट मांगने अब तक नहीं आया. सपा, बसपा, कांग्रेस या बीजेपी किसी भी पार्टी का कोई भी आएगा तो उसे हमारे सवालों का जवाब देना होगा.’’
भारतीय जनता पार्टी या प्रदेश की योगी सरकार के दावों से इतर यहां किसान परेशान हैं. जेवर एयरपोर्ट बनने के बाद रोजगार मिलेगा, इस दावे से इतर वे खुद को अभी बर्बाद बता रहे हैं.
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यह स्टोरी एनएल सेना प्रोजेक्ट का हिस्सा है जिसमें हमारे पाठकों ने योगदान दिया है. यह संजयकुमार, देवकी खन्ना, सुभ्रजीत चक्रवर्ती, सोमोक गुप्ता रॉय, सत्य, शुभंकर मोंडल, सौरव अग्रवाल, कार्तिक, सुदर्शन मुखोपाध्याय, उमा राजगोपालन, एचएस काहलों, श्रेया सेतुरमन, विनोद गुब्बाला, अनिर्बन भट्टाचार्जी, राहुल गुप्ता, राहुल गुप्ता, रेजिथ राजन, अभिषेक ठाकुर, रथींद्रनाथ दास, फरजाना हसन, अनिमेष नारायण, एजे, निधि मनचंदा, राहुल भारद्वाज, कीर्ति मिश्रा, सचिन तोमर, राघव नायक, रूपा बनर्जी, आकाश मिश्रा, सचिन चौधरी, उदयन आनंद, करण मुजो, गौरव एस दत्ता, जयंत बसु, अभिजनन झा, आशुतोष मित्तल, साहित कोगंती, अंकुर, सिंधु कासुकुर्थी, मानस, अक्षय शर्मा, मंगेश शर्मा, विवेक मान, संदीप कुमार, रूपा मुकुंदन, पी आनंद, नीलकंठ कुमार, नूर मोहम्मद, शशि घोष, विजेश चंदेरा, राहुल कोहली, जान्हवी जी, डॉ प्रखर कुमार, आशुतोष सिंह, सैकत गोस्वामी, शेषा साई टीवी, श्रीकांत शुक्ला, अभिषेक ठाकुर, नागार्जुन रेड्डी, जिजो जॉर्ज, अभिजीत, राहुल दिक्षित, प्रवीण सुरेंद्र, माधव कौशिश, वर्षा चिदंबरम, पंकज, मनदीप कौर समरा, दिब्येंदु तपदार, हितेश वेकारिया, अक्षित कुमार, देववर्त पोदर, अमित यादव, हर्षित राज, लक्ष्मी श्रीनिवासन, अतिंद्रपाल सिंह, जया मित्रा, राज परब, अशरफ जमाल, आसिफ खान, मनीष कुमार यादव, सौम्य पाराशर, नवीन कुमार प्रभाकर, लेज़ो, संजय डे, अहमद ज़मान, मोहसिन जाबिर, सबीना, सुरेश उप्पलपति, भास्कर दासगुप्ता, प्रद्युत कुमार, साई सिंधुजा, स्वप्निल डे, सूरज, अपराजित वर्की, ब्रेंडन जोसेफ डिसूजा, ज़ैनब जाबरी, तनय अरोड़ा, ज्योति सिंह, एम. मित्रा, आश्रय आगूर, इमरान, डॉ. आनंद कुलकर्णी, सागर कुमार, संदीप बानिक, मोहम्मद सलमान, साक्षी, नवांशु वाधवानी, अरविंद भानुमूर्ति, धीरेन माहेश्वरी, संजीव मेनन, अंजलि दांडेकर, फरीना अली कुरबरवाला, अबीरा दुबे, रमेश झा, नम्रता, प्रणव कुमार, अमर नाथ, आंचल, साहिबा लाल, जुगराज सिंह, नागेश हेब्बर, आशुतोष म्हापने, साई कृष्णा, दीपम गुप्ता, अंजू चौहान, सिद्धार्थ जैन, अवनीश दुरेहा, वरुन सिंघल, अक्षय, साईनाथ जाधव, श्रेयस सिंह, रंजीत समद, विनी नायर, वत्सल मिश्रा, आदित्य चौधरी, जसवीन, प्रदीप, नीलेश वैरागड़े, मनोहर राज, तान्या धीर, शालीन कुमार शर्मा, प्रशांत कल्वापल्ले, आशुतोष झा, आरोन डिसूजा, शक्ति वर्मा, संयुक्ता, पंत, अश्विनी, फिरदौस कुरैशी, सोहम जोशी, अंकिता बॉस्को, अर्जुन कलूरी, रोहित शर्मा, बेट्टी राचेल मैथ्यू, सुशांत टुडू, प्रदीप कुमार पुनिया, दिलीप कुमार यादव, नेहा खान, ओंकार , वंदना भल्ला, सुरेंद्र कुमार, संजय चाको, अब्दुल्ला, आयुष गर्ग, मुकर्रम सुल्तान, अभिषेक भाटिया, ताजुद्दीन खान, विश्वास देशपांडे, मोहम्मद अशरफ, जयती सूद, आदित्य गर्ग, नितिन जोशी, पार्थ पटशानी, एंटोन विनी, सागर राउत, विवेक चांडक, दीप चुडासमा, खुशबू मटवानी, वीरेंद्र बग्गा और एनएल सेना के अन्य सदस्यों के सहयोग के कारण संभव हो पाया है.
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