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गैंग्स ऑफ पिम्परी चिंचवड़

नवम्बर 2018 के पहले हफ्ते की एक शाम थी, तीन महीने पहले ही बनाए गए पिम्परी चिंचवड़ पुलिस कमिश्नरेट के पहले पुलिस कमिश्नर आरके पद्मनाभन चिखली पुलिस स्टेशन का उद्घाटन करने पहुंचे थे. पुणे जिले में पड़ने वाला पिम्परी चिंचवड़ शहर पहले तो पुणे पुलिस के अधिकार क्षेत्र में ही आता था लेकिन बढ़ती आबादी और इलाके को देखते हुए नया पिम्परी चिंचवड़ पुलिस कमिश्नरेट बना दिया गया. तत्कालीन पुलिस कमिश्नर ने जब उद्धघाटन करने के बाद वहां मौजूद पुलिस अफसरों से पूछा कि उस इलाके का सबसे खतरनाक गैंगस्टर कौन है, तो जवाब सुनकर वो हैरान रह गए थे, क्योंकि उस इलाके का सबसे खतरनाक गुंडा एक साढ़े सोलह साल का नाबालिग लड़का आक्या बॉन्ड था.

एंटी-गुंडा स्क्वाड का दफ्तर

आकुर्डी इलाके की एक बस्ती में मौजूद 'कर' संकलन भवन की पुरानी इमारत में पिम्परी चिंचवड़ पुलिस कमिश्नरेट के एंटी-गुंडा स्क्वाड का दफ्तर है. दफ्तर में घुसते ही एक बड़ा सा हॉल है जिसकी एक तरफ की दीवारों पर पिम्परी-चिंचवड़ पुलिस कमिश्नरेट के तहत आने वाले इलाकों के गिरोहों और उनके कुछ मेम्बरानों के नाम लिखे हैं.

जब आप इन नामों पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि इनमें से 70 फीसदी साढ़े सत्रह से 24 साल के युवा हैं. कुछ जेलों में हैं, कुछ जमानत पर हैं, कुछ मारे जा चुके हैं. इन नामों से आपको पता चलेगा कि कैसे भटके हुए, मशहूर होने की ललक, पैसे की चाह और झूठी शान दिखाने की बेचैनी में कम उम्र के युवा सोशल मीडिया के जरिए दहशत का बायस बन गए हैं. सोशल मीडिया पर फॉलोअर्स बनाने का चस्का इनकी एक बड़ी प्रेरणा बन गया है. यह पिम्परी -चिंचवड़ की बस्तियों में रहने वाले छोटी उम्र के अपराधियों की कहानी है.

गणेश मोटे के माता- पिता, वंदना और हनुमंत मोटे

न्यू सांगवी की कावड़े नगर बस्ती में 42 साल की वंदना मोटे डेढ़ सौ फीट के एक किराए के कमरे रहती है. वो दूसरे घरों में घरेलू काम करती हैं. पति हनुमंत मोटे सब्जी बेचते हैं. 18 दिसंबर 2021 को उनके 21 साल के बेटे गणेश ने योगेश जगताप नाम के एक आदतन अपराधी की पास के ही काटेपुरम चौक में गोली मारकर हत्या कर दी.

इसके बाद गणेश फरार हो गया. 26 दिसम्बर की रात पुलिस ने उसे और उसके दो साथियों 21 वर्षीय अश्विन चव्हाण और 23 वर्षीय महेश माने को गिरफ्तार कर लिया.

गणेश सितम्बर 2021 को ही येड़वाड़ा जेल में ढाई साल गुजारने के बाद रिहा हुआ था. रिहाई के तुरंत बाद उसे पुलिस ने तड़ीपार कर दिया था. रिहाई के तीसरे ही महीने उसने जगताप की गोली मारकर हत्या कर दी.

गौरतलब है कि जगताप की हत्या करने के बाद गणेश ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर महानता फिल्म के गाने 'टपका रे टपका एक और टपका का वीडियो पोस्ट किया था.

गणेश के पिता हनुमंत कहते हैं, "जब मैंने सुना कि जगताप को गोली मारी गई है तब मैंने ही डांगे पुलिस को फोन करके बताया था, लेकिन तब मुझे नहीं पता था कि गोली मेरे बेटे ने ही मारी है. मेरा बेटा जगताप से परेशान हो चुका था. वो हमेशा अपने लड़कों से उसे पिटवाता रहता था. एक बार उसके चेहरे पर 40 से ज्यादा टांके आए थे. जब गणेश जेल में था उस दौरान मुझे भी जगताप ने दो बार पीटा. इसीलिए गणेश उसे मारा होगा."

गणेश की मां वंदना कहती हैं, "मेरे बेटे के 10वीं में 70% नंबर आए थे. वो पढ़ने में अच्छा था लेकिन पता नहीं यह सब क्या हो गया. मेरा बेटा कभी भी अपराधी नहीं बनाना चाहता था. लेकिन जगताप की बदौलत वह अपराधी बनता चला गया. गणेश की हमने 14 बार जमानत करवाई थी. जगताप के लोग कई मामलों में उसका झूठा नाम बता कर फंसवा देते थे.”

जगताप की हत्या के लगभग पांच दिन बाद पिम्परी चिंचवड़ के तलेगांव-दाभाड़े में एक और हत्या हुई. एक 17 साल के लड़के दशान्त परदेशी को उसके ही 20 साल के चचेरे भाई कमलेश परदेशी और उसके 19 साल के दोस्त प्रकाश लोहार ने जान से मार दिया. हत्या का कारण था एक इंस्टाग्राम पोस्ट. असल में कुछ दिन पहले दशान्त की कमलेश और प्रकाश से हाथापाई हुई थी. जिसके बाद दशान्त ने अपने इंस्टाग्राम पर बंदूक के इमोजी के साथ एक पोस्ट डाली थी जिसमें लिखा था 302 हंड्रेड परसेंट. दशान्त की इस पोस्ट को देखकर कमलेश और प्रकाश को ऐसा लगा कि वो अब उनको जान से मार डालेगा और इसी के चलते उन दोनों ने उसकी हत्या कर दी.

पिम्परी चिंचवड़ में छोटी उम्र के लड़कों का हत्यारा बनने या उनकी हत्या होने का सिलसिला पिछले 10-12 सालों में बहुत ज्यादा बढ़ गया है. अगर पिछले दो सालों के आकड़ें देखें तो पिम्परी चिंचवड़ पुलिस कमिश्नरेट के तहत आने वाले इलाकों में 156 हत्याएं हुई हैं. पुलिस के अनुसार इनमें से 50 प्रतिशत से ज्यादा मरने वाले या हत्या करने वाले छोटी उम्र के लड़के हैं, जिनमें से कई नाबालिग भी हैं.

बेरोजगारी, बेवजह खून और सोशल मीडिया

क्राइम ब्रांच के एंटी-गुंडा स्क्वाड के इंचार्ज हरीश माने पिछले नौ सालों से पिम्परी-चिंचवड़ में क्राइम ब्रांच के अलग अलग विभागों में काम करते आ रहे हैं. छोटी उम्र के इन लड़कों के अपराधी गतिविधियों में शामिल होने के बारे में वो कहते हैं, "पिम्परी चिंचवड़ की झोपड़-पट्टियों में रहने वाले ज्यादातर लोग यहां के कारखानों में काम करते थे. हर घर से मां-बाप बाहर काम पर चले जाते हैं, इसलिए बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाते. इनमें से कई स्कूल जाना छोड़ देते हैं और इनके खुद के इलाकों में छोटे-छोटे गुट बन जाते हैं. इसके अलावा पिछले 10-12 सालों में बहुत से कारखाने यहां से हटकर चाकन चले गए हैं. इससे बेरोजगारी बहुत बढ़ गई है. यहां की नौकरियां लगभग आधी हो गई हैं. जिसका सीधा असर इन युवाओं पर पड़ा है. काम न होने की वजह से ऐसे बेरोजगार बड़ी आसानी से अपराध की तरफ चले जाते हैं. इसमें सोशल मीडिया एक अहम् भूमिका निभाता है.”

वह आगे कहते हैं, "ऐसा भी नहीं है कि यह लोग कोई माफिया या ऑर्गनाइज्ड क्राइम (संघटित अपराध) करने वाले गैंगस्टर हैं. यह सिर्फ मामूली लड़के हैं जिन्हें टशन दिखाना होता है. आमतौर पर ऑर्गनाइज्ड क्राइम में मर्डर पैसे, धंधों पर कब्जे, वजूद या बदला लेने के लिए होते हैं. लेकिन पिम्परी चिंचवड़ में यह लड़के बेवजह एक दूसरे का खून कर देते हैं. सिर्फ घूरने के चलते यहां खून हो चुके हैं, दारू नहीं पिलाई तो खून कर दिया, एक बार एक वेटर का सिर्फ इसलिए मर्डर कर दिया था क्योंकि उसने नींबू नहीं दिया था. यहां अधिकतर लड़के नशा करने के बाद हत्या करते हैं. इनमें से कई जब हत्या, हत्या का प्रयास जैसे आरोपों में जमानत पर आते हैं, तो उनका नाम हो जाता है. फिर सोशल मीडिया पर वो या उनके दोस्त उनकी पोस्ट डालते हैं. कभी हथियारों के साथ, कभी फिल्मी डायलॉग के साथ या कभी 100-200 लड़कों के साथ शक्ति प्रदर्शन करते हुए. वो यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि वो बहुत बड़े भाई या दादा हैं."

हरीश माने

माने बताते हैं, "इनमें से बहुत से ऐसे भी हैं जिन्होंने सिर्फ दोस्ती के चक्कर में अपराध की दुनिया में कदम रखा है. अक्सर लड़ाई झगड़े के लिए यह लड़के चॉपर्स का इस्तेमाल करते हैं, कुछ सालों से मध्य प्रदेश से बंदूकें भी मंगवाते हैं. इनमें से 80 फीसदी युवा बहुत गरीब परिवारों से होते हैं और अपना जीवन तबाह कर लेते हैं."

रावण साम्राज्य ग्रुप, आक्या बॉन्ड टोली, एसके (सोन्या कालभोर) ग्रुप, गोल्डन ग्रुप, बॉबी यादव उर्फ बी वाय बॉयज और इसी तरह के नामों से कई इंस्टाग्राम अकाउंट, फेसबुक अकाउंट हैं. इनके ग्रुपों में यूट्यूब पर भी कई वीडियो मौजूद हैं. ऐसे ग्रुप्स के मुखियाओं का महिमामंडन करने वाली ऐसी पोस्ट्स को देखकर बहुत से युवा इन्हें लाइक करते हैं, शेयर करते हैं, कमेंट भी करते हैं. बहुत से प्रेरित होकर हथियारों के साथ या खुद को भाई, दादा, डॉन या किंग बताते हुए वीडियो या इंस्टाग्राम स्टोरी साझा करते हैं.

गौरतलब है इनमें से कई ग्रुपों के मुखिया की या तो हत्या हो गई हैं या फिर वो जेल में हैं. इनमे से कई पर महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट के तहत मामले दर्ज हैं.

रावण साम्राज्य इन सभी ग्रुपों में सबसे ज्यादा मशहूर है. पिम्परी चिंचवड़ के अलावा महाराष्ट्र के अन्य कई शहरों जैसे सतारा, हिंगोली, नासिक, शाहदा आदि में इस ग्रुप को मानने वाले हैं. इस ग्रुप के मुखिया का नाम अनिकेत जाधव था. जिसकी नवंबर 2017 में सिर्फ 22 साल की उम्र में महाकाली ग्रुप के हनुमंत शिंदे और एस के ग्रुप के सोन्या कालभोर ने अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर हत्या कर दी थी. उसकी हत्या के बाद आज भी उसको मानने वाले बहुत से युवा उसके बारे में सोशल मीडिया पर पोस्ट साझा करते रहते हैं. कई वीडियो में तो कुछ युवा उसका फोटो दिखाते हुए उसे अपना भगवान तक कहते हैं. गौरतलब है कि अनिकेत पर हत्या का प्रयास, आर्म्स एक्ट, दंगा करने जैसी धाराओं के तहत पुलिस ने लगभग 10 अपराध दर्ज किए थे.

माने कहते हैं, "ये युवा कुछ इस तरह की स्टोरी वहां साझा करते हैं जैसे की यह शहर के कोई डॉन हों, बहुत बड़े भाई हों और किसी का भी खात्मा कर सकते हैं. पिछले आठ महीनों में हमने ऐसी कई टोलियों को सोशल मीडिया से हटवाया है. इंस्टाग्राम पर भाईगिरी के पोस्ट डालने वालों से संबंधित 30 आपराधिक मामले दर्ज किए हैं और तकरीबन 70 लोगों को गिरफ्तार किया था. इनमें से कई कॉलेज के छात्र भी थे जो क्राइम तो नहीं करते लेकिन इस तरह के ग्रुप्स को फॉलो करते हैं और प्रमोट करते हैं. ऐसे लोगों को ग्रुप वाले बॉयलर्स कहते हैं."

पिम्परी चिंचवड के पहले पुलिस कमिश्नर (आयुक्त) आरके पद्मनाभन ने इस चलन को तोड़ने के लिए विशेष पुलिस टीम बनाई थी जो न सिर्फ ऐसे युवाओं के इन आपराधिक गिरोहों के सोशल मीडिया अकाउंट को दिन रात मॉनिटर करती थी बल्कि उन्हें भी पकड़ती थी जो ऐसी पोस्ट्स को लाइक, शेयर या उस पर कमेंट करते थे.

पुलिस सेवा से रिटायर हो चुके पद्मनाभन कहते हैं, "पिम्परी चिंचवड़ के इलाकों में छोटे-छोटे इन लड़कों का क्रिमिनल बनने या क्राइम की तरफ आकर्षित होने पर मेरा ध्यान सबसे पहले तब गया था जब मुझे पता चला कि पिम्परी-चिंचवड़ के एक इलाके चिखली का सबसे बड़ा गैंगस्टर एक साढ़े सोलह साल का छोटा सा लड़का आक्या बॉन्ड है. वो उस वक्त नाबालिग था और उस इलाके में सब उससे डरते थे. इसके बाद जब हमने इस बात को लेकर जांच-पड़ताल की तो पता चला कि पिम्परी चिंचवड़ में बहुत से क्रिमिनल छोटी उम्र के लड़के हैं, जिनके खुद के हमउम्र लड़कों के गैंग्स हैं. यह सभी सोशल मीडिया पर बहुत एक्टिव थे.”

जिस आक्या बॉन्ड का पूर्व पुलिस कमिश्नर पद्मनाभन ने जिक्र किया है उसका असली नाम सुमित मोहल है और उसके गिरोह पर हत्या, हत्या का प्रयास, दंगा करने, जैसे 18 संगीन अपराध दर्ज हैं. मई 2020 में जब उसके ग्रुप के एक सदस्य अनिकेत रणदिवे की हत्या हो गई थी तो उसके विरोध में आक्या बॉन्ड और उसकी गैंग के सदस्यों ने चिखली के इलाके में आम लोगों की कई गाड़ियां तोड़ डाली थीं. दो महीने बाद जिन लोगों ने रणदिवे की हत्या की थी उनमें से दो लोगों को आक्या बॉन्ड के ग्रुप वालों ने मौत के घाट उतार दिया था. मौजूदा तारीख में आक्या बॉन्ड की उम्र महज साढ़े 19 साल है और वो फिलहाल येरवाड़ा जेल में है. उस पर महाराष्ट्र आर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट के तहत भी मामला दर्ज है.

सोनाली काले पेशे से मनोवैज्ञानिक हैं. वह कहती हैं, "सोशल मीडिया पर इस तरह के पोस्ट डालकर ये बच्चे यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि उनका कुछ वजूद है, हथियारों के साथ या खुद का महिमामंडन करने से उन्हें ताकतवर होने का अहसास होता है. उनक हम उम्र लोग जो इस तरह की पोस्ट देखते हैं वो उनको फॉलो करने लगते हैं. इस तरह के ग्रुप्स को फॉलो करते-करते वो अपराधियों को ही अपना आदर्श मानने लगते हैं और धीरे-धीरे अपराध की और बढ़ते जाते हैं."

गुनाह, ग्रुप और वापसी

27 साल के अजय कालभोर अपने समर्थकों और सोशल मीडिया पर एके के नाम से मशहूर है. आकुर्डी में उनके ठिकाने पर लड़कों का मजमा लगा रहता है. जब वो महज 17 साल के थे तब उनके हाथों पहला मर्डर हो गया था.

अजय कालभोरइ

अजय कहते हैं, "आकुर्डी में मेरे एक दोस्त का कुछ लड़कों से झगड़ा हो गया था. उस लड़ाई के दौरान गलती से मैंने एक लड़के के पेट में रेम्बो नाइफ मार दिया था और उसकी मौत हो गयी थी. मैं नाबालिग था तो 28 दिन बाद रिहा हो गया था. बाहर आने के बाद मेरा नाम मशहूर हो गया. बहुत से लड़के मुझसे मिलने के लिए आने लगे थे. पहले सिर्फ 14-15 खास दोस्त ही थे लेकिन फिर धीरे-धीरे ग्रुप बड़ा होता गया. आज की तारीख में मेरे ग्रुप में लगभग ढाई से तीन हजार लोग हैं. 2015 में मैं सोशल मीडिया पर एक्टिव हुआ इसके जरिए मुझसे कई लोग जुड़ते चले गए. मेरे नाम से 10-12 अकाउंट फेसबुक पर थे, मुझे खुद नहीं पता था कि कौन-कौन मेरे नाम से अकाउंट चला रहा है."

साल 2016 में अजय पर महाराष्ट्र प्रिवेंशन ऑफ डेंजरस एक्टिविटीज एक्ट (एमपीडीए) के तहत मामला दर्ज हुआ था, सात महीने वो मुंबई की आर्थर रोड जेल में थे और फिर सितम्बर 2017 में वहां से रिहा हुए.अजय पर मकोका (महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट) के तहत भी मामला दर्ज हुआ था.

अजय आगे कहते हैं, "साल 2018 के बाद से मेरे ऊपर एक भी मामला दर्ज नहीं हुआ है और न ही मैं अब किसी भी तरह के अपराध में फंसना चाहता हूं. अब मेरी दहशत से ज्यादा इज्जत है, मैंने कभी भी गरीब लोगों को तंग नहीं किया है."

गौरतलब है कि पिछले साल 19 मई को अपने जन्मदिन के दिन दो फेसबुक पोस्ट के चलते वो फिर मुश्किल में आ गए थे. वह कहते हैं, "पिछले साल मेरे जन्मदिन पर मेरे ही नाम से बने एक अकाउंट से मेरे एक फॉलोअर ने दो पोस्ट किए थे. एक में लिखा था- "भाऊ आमचा, बाप तुमचा" (भाई हमारा, बाप तुम्हारा) और दूसरे में लिखा था कि पिम्परी-चिंचवड़ में धमाका करते हैं. इन दो पोस्ट्स के चलते पुलिस ने मुझे बुलाया था, लेकिन जांच-पड़ताल करने पर उन्हें पता चल गया था कि मैंने वो पोस्ट नहीं लिखी हैं. पुलिस ने मेरे घर की भी तलाशी ली थी."

इस मामले के अगले ही दिन पुलिस ने अजय को एक महीने के लिए तड़ीपार कर दिया था और अब जनवरी में फिर से उन्हें दो साल के लिए तड़ीपार करने के आदेश जारी हुए हैं, वह कहते हैं, "मैं अपने ग्रुप के हर लड़के से मना करता हूं कि वो हथियारों के साथ या भाईगिरी के डायलॉग बोलते हुए कोई भी पोस्ट सोशल मीडिया पर साझा नहीं करें. मेरे पास कोई आता है तो मैं यही सलाह देता हूं कि अपराध से दूर रहें वरना जिंदगी खराब हो जाएगी. मेरे नाम से बहुत से अकाउंट बने हैं जिनमें से मेरा सिर्फ एक अकाउंट, अगर उन अकाउंट्स के जरिए कोई गलत पोस्ट जाती है तो मैं मुश्किल में पड़ जाता हूं.”

अविष्कार सालुंखे

26 साल के अविष्कार सालुंखे रावण ग्रुप के सदस्य थे. येड़वाड़ा जेल में ढाई साल सजा काटने के बाद वो 2020 में रिहा हुए थे और तब से आरटीओ में एजेंट का काम करते हैं. वह कहते हैं, "रावण ग्रुप अब एक्टिव नहीं है. लेकिन रावण ग्रुप को मानने वाले बहुत से अनिकेत के खून का बदला लेंगे वगैरह जैसी पोस्ट रावण ग्रुप के नाम से सोशल मीडिया पर पोस्ट कर देते हैं, जिसकी वजह से हम पुलिस के निशाने पर आ जाते है. इस तरह की पोस्ट डालने वाले यह लोग अनिकेत से कभी मिले भी नहीं हैं और न ही रावण ग्रुप का हिस्सा थे लेकिन रावण ग्रुप को सोशल मीडिया पर फॉलो करने वाले लड़के पूरे महाराष्ट्र में हैं. पुलिस जांच नहीं करती कि ऐसी पोस्ट्स कौन डालता है और सीधा हम पर ऊंगली उठाती है. फेसबुक, इंस्टाग्राम पर हथियारों के साथ पोस्ट्स डालने वाले लड़के जाने-अनजाने क्राइम की तरफ बढ़ जाते हैं."

मृतक अनिकेत जाधव की बहन अंकिता कहती हैं, "मेरे बड़े भाई की मौत के बाद हमें ही अपने घर को संभालना है. मैंने एक किराने की दुकान खोली है उसी से हमारा गुजारा चलता है. मेरे भाई के नाम पर अनजान लोग सोशल मीडिया पर पोस्ट्स डालते रहते हैं. हमें पता भी नहीं है कि यह कौन लोग हैं और हमें इस तरह के पोस्ट्स बिल्कुल पसंद नहीं हैं. लेकिन हम कुछ नहीं कर सकते."

27 साल के आदित्य आहिरराव खुद का रेस्टोरेंट चलाते हैं, उनके पिता पेशे से डॉक्टर हैं. लेकिन एक जमाना था जब आदित्य भी इस तरह के युवाओं के आपराधिक ग्रुप के सदस्य थे. उन्होंने हमसे गुजारिश की है कि हम उस ग्रुप का नाम इस कहानी में ना लिखें.

आदित्य आहिरराव

आदित्य कहते हैं, “जब मैं 17 साल का था तब मैं उस ग्रुप से जुड़ गया था. उस ग्रुप में लगभग दो हजार लड़के थे. जब उस ग्रुप के लीडर और मैंने एक बीयर बार में एक व्यक्ति को मारा था तब मेरे ऊपर 307 का मामला दर्ज हुआ था. मुझे पुलिस ने पहली दफा जब कोर्ट में पेश किया तो तकरीबन 100 से ज्यादा लड़के कोर्ट में मिलने आए थे, उनसे जान पहचान बढ़ी और बस उसके बाद मुझ पर केस पर केस दर्ज होते चले गए. 2015 में मुझ पर गोलियां चली थीं, लेकिन मैं बच गया था. 2016 तक मुझ पर एटेम्पट टू मर्डर से लेकर आर्म्स एक्ट तक 11 मामले दर्ज हो चुके थे. वो एक ऐसा दौर था कि जब मैं घर से बाहर निकलता था तो लोग देखते थे, बोलते थे यह आदित्य है, उस ग्रुप का सदस्य है. पॉलिटिशियंस हमारी मदद लेते थे, कानूनी मदद, पैसे मुहैया कराते थे. एक दहशत हो गई थी हमारे नाम की. ताकतवर महसूस होता था और इन्हीं सब बातों के चलते मैं क्राइम में घुसता चला गया."

साल 2016 के बाद आदित्य ने आपराधिक गतिविधियों से अपने आपको बिल्कुल दूर कर लिया है. वह कहते हैं, "मैं नहीं चाहता कि लड़के अपराध से जुड़ें क्योंकि मुझे पता है कि इसका अंजाम कितना बुरा होता है. मेरी वजह से मेरे परिवार ने बहुत भुगता है, मेरा परिवार संपन्न था इसलिए झेल गया लेकिन ये बच्चे बहुत गरीब परिवारों से हैं इनके साथ-साथ इनके परिवार भी तबाह हो जाएंगे.”

ऐसे अनगिनत बेरोजगार, कम पढ़े-लिखे लड़के अभी भी तुरत-फुरत में मिलने वाली पहचान, सोशल मीडिया की चकाचौंध से आकर्षित होकर जरायम की इस दुनिया का हिस्सा बन रहे हैं.

न्यूज़लॉन्ड्री ने इस पूरे मसले को लेकर पिम्परी-चिंचवड़ के पुलिस कमिश्नर कृष्णा प्रकाश से भी बात करने की कोशिश की लेकिन अभी उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला है. उनकी तरफ से जवाब आने पर उसे कहानी में जोड़ दिया जाएगा.

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