Opinion
अलग वैक्सीन का बूस्टर डोज शायद ज्यादा प्रभावी हो?
25 दिसंबर, 2021 को हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने स्वास्थ्य कर्मियों, अग्रिम मोर्चे के अन्य कर्मियों और वरिष्ठ नागरिकों के लिए कोरोना विषाणु के टीके की 'एहतियाती खुराक' की घोषणा की. इसके साथ ही उन्होंने, 15-18 वर्ष के आयु वर्ग के किशोरों को भी कोविड टीके की पहली खुराक लेने को हरी झंडी दिखा दी है, जो कि एक प्रशंसनीय एवं स्वागत योग्य कदम है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि यह टीकाकरण अभियान का विस्तार का निर्णय उपलब्ध वैज्ञानिक साक्ष्यों की गहन जांच के बाद लिया गया है.
एक दिन पहले, टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (एनटीएजीआई), राष्ट्रीय टीकाकरण नीति निर्धारित करने वाली सर्वोच्च वैज्ञानिक समिति ने जनवरी 2022 के पहले सप्ताह तक बूस्टर खुराक पर अपनी बैठक स्थगित कर दी थी. अब इन फैसलों से जुड़े विस्तृत तर्काधार तो इस सर्वोच्च समिति की बैठक के बाद ही पता चल पाएंगे. ताजा मीडिया रिपोर्ट में डॉ वीके पॉल, का एक बयान छपा है जो नीति आयोग के सदस्य हैं, उन्होंने बताया कि ‘एहतियाती खुराक’ में लोगों को वही टीका लगेगा जिसकी पहले दो खुराकें लग चुकी हैं. जिन लोगों ने कोवैक्सीन प्राप्त किया है उन्हें कोवैक्सीन लगेगा और जिन्हें कोविशील्ड की पहली दो खुराकें प्राप्त हुई है, उन्हें कोविशील्ड ही दिया जायेगा.
यह 'एहतियाती खुराक' क्या है? मीडिया में छपी खबरों के अनुसार, बूस्टर खुराक को एक एहतियात के रूप में पेश किया जा रहा है, क्योंकि एक दृष्टिकोण यह है, कि भारतीयों में पहले से हो चुके संक्रमण और हमारे अब तक के लगभग 145 करोड़ खुराकों वाले विश्व के विशालतम टीकाकरण अभियान के फलस्वरूप हमारी जनसंख्या के एक बड़े भाग में संभावित रूप से इस विषाणु के खिलाफ प्रतिरक्षा उत्पन्न हो चुकी है. आम तौर पर टीके तो स्वस्थ लोगों को ही दिए जाते हैं. वे हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को विभिन्न रोगाणुओं को पहचानने और उन्हें नष्ट करने के लिए प्रशिक्षित करते हैं. हमारे शरीर को ये भविष्य की विशिष्ट रोगजनक संक्रमण मुठभेड़ों के लिए तैयार करते है. सभी प्रकार के टीकों की खुराक एहतियाती खुराक ही होती है. ये गंभीर बीमारी से हमारा बचाव करती है, और कई मामलों में, होने वाले संक्रमण से भी बचाव कर सकती है.
भारत में बूस्टर खुराक 10 जनवरी से उपलब्ध हो जाएगी. प्राप्त जानकारी के अनुसार दूसरी खुराक के नौ महीने पूरा होने के बाद ये लगवाई जा सकती है. लोगों को उसी टीके की बूस्टर खुराक मिलेगी जो उन्हें मूल रूप से दी गई थी, हालांकि, इस नीति के साथ कुछ दुश्वारियां हैं. भारत में टीकाकरण करने के बाद के नैदानिक अनुवर्ती आंकड़े बहुत कम उपलब्ध हैं.
अक्टूबर, 2021 में ‘वैक्सीन’ जर्नल में प्रकाशित 515 स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं पर एक अध्ययन जिसका नाम कोवेट (कोरोनावायरस वैक्सीन-इंड्यूस्ड एंटीबॉडी टाइटर) है, उससे पता चला है कि, कोविशील्ड टीका कोवैक्सीन टीके की तुलना में अधिक एंटीबॉडी उत्पन्न करने में सक्षम है. इसके साथ-साथ, 60 से अधिक उम्र के लोग, युवा लोगों की तुलना में कम एंटीबॉडी उत्पन्न कर पाते हैं.
एक अन्य अध्ययन जो की ‘फ्रंटियर्स इन मेडिसिन’ पत्रिका में दिसंबर 2021 में छपा है, उसमें ओडिशा से 614 स्वास्थ्य कर्मियों के टीकाकरण के आंकड़े प्रकाशित हुए हैं. इस अध्ययन में हर चार सप्ताह के बाद उनके शरीर में कोरोना विषाणु के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता को मापा गया है, जिसमें ये पुष्टि हुई कि कोविशील्ड टीकाकरण वाले व्यक्तियों ने कोवैक्सीन टीकाकरण वाले व्यक्तियों की तुलना में अपने शरीर में अधिक मात्रा में एंटीबॉडी का निर्माण किया था.
साथ ही, इस अध्ययन में यह भी बताया गया, कि कोवैक्सीन टीकाकरण वाले व्यक्तियों में 12 सप्ताह के बाद और कोविशील्ड टीकाकरण वाले व्यक्तियों में 16 सप्ताह के बाद एंटीबॉडी का स्तर कम हो गया था. इसलिए, दूसरी खुराक के नौ महीने बाद बूस्टर खुराक देना वैज्ञानिक रूप से थोड़ा उचित नहीं लगता है. बूस्टर टीके के लिए पहले दी गई किसी टीके की दो खुराकों से भिन्न टीके दिए जाने पर भी, अभी तक भारत से कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं.
हालांकि, प्रतिरक्षाविज्ञान के सिद्धांतों और उपलब्ध वैश्विक आंकड़ों से पता चलता है, कि बूस्टर खुराक में पहले दिए गए टीके से भिन्न टीके को देने से अधिक मजबूत प्रतिरक्षा उत्पन्न होती है. दिसंबर 2021 में ‘दी लैंसेट’ जर्नल में प्रकाशित कोव-बूस्ट नामक अध्ययन के चरण-2 में ब्रिटेन के लोगों में बूस्टर खुराक के रूप में सात अलग-अलग टीकों की तुलना की गई, जिनको पहली दो खुराकों में या तो एस्ट्राजेनेका (भारत में, कोविशील्ड के नाम से उपलब्ध) या फाइजर टीका दिया गया था.
कोविशील्ड की दो खुराक के बाद, इसके तीसरे बूस्टर खुराक से उत्पन्न एंटीबॉडी में 3.25 गुना की वृद्धि देखी गई. लेकिन जिन लोगों को नोवावैक्स कंपनी के प्रोटीन टीके (कोवोवैक्स) की आधी खुराक या पूरी खुराक दी गई थी, उनमें एंटीबॉडी में क्रमशः 5.82 गुना या 8.75 गुना की वृद्धि देखी गई. इन अंतरों को प्रयोगशाला अध्ययनों में कोरोना विषाणु के पूर्व रूपों बीटा और डेल्टा कणों के साथ मिलाकर, टीकाकृत लोगों के रक्त से निकले सीरम में मिलाकर ये देखा गया की सीरम में मौजूद एंटीबॉडी इन विषाणु कणों को बांध पाने में सफल हो रही है या नहीं. इसके साथ-साथ टीकाकरण के बाद उत्पन्न कोशिका-जनित प्रतिरोधक क्षमता की भी जांच की गई, जो कि दूसरे परिणामों से मेल खाती है.
इस परिदृश्य में, भारत में वर्तमान में निर्मित दो कम लागत वाले प्रोटीन टीके, कोवोवैक्स और कॉर्बेवैक्स-ई, जिन्होंने चरण तीन का नैदानिक परीक्षण पूरा कर लिया था, और ये लगभग 90% टीकाकरण वाले भारतीयों के लिए आदर्श बूस्टर टीके साबित होंगे, जिन्होंने कोविशील्ड की दो खुराकें प्राप्त की हैं.
मंगलवार 28 दिसंबर को, ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीजीसीआई) ने कोवोवैक्स और कॉर्बेवैक्स-ई दोनों को आपातकालीन उपयोग की मंजूरी दी है, जो स्वागत योग्य और सराहनीय है. कोवोवैक्स टीका, अमेरिकी कंपनी नोवावैक्स के लिए सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) द्वारा निर्मित किया जा रहा है. यह एक रेकॉम्बीनैंट प्रोटीन का बना नैनोकण टीका है, जिसमें कोरोना विषाणु की स्पाइक प्रोटीन के साथ-साथ एक एडजुवन्ट (प्रतिरक्षाजनकता बढ़ाने में सहायक) अवयव शामिल है. ब्रिटेन, अमेरिका और मैक्सिको में तीसरे चरण के नैदानिक परीक्षणों में, इसने लगभग 90% प्रभावकारिता एवं मध्यम और गंभीर बीमारी के खिलाफ पूर्ण सुरक्षा दिखाई थी.
यह टीका विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा भी अनुमोदित है, और पहले से ही इंडोनेशिया और फिलीपींस में इस्तेमाल किया जा रहा है, इन देशों में एसआईआई पूर्व में पांच करोड़ खुराकों का निर्यात कर चूका है. जून में, एसआईआई ने घोषणा की कि कोवोवैक्स की पहली खेप का उत्पादन शुरू हो गया है और दिसंबर 2021 तक वह भारत को 20 करोड़ खुराक तक उपलब्ध करा देगा.
कॉर्बेवैक्स-ई का निर्माण हैदराबाद की बायोलॉजिकल-इ कंपनी ने अमेरिका के ह्यूस्टन में स्थित बेलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन के सहयोग से किया है. यह भी स्पाइक प्रोटीन के रिसेप्टर बाइंडिंग डोमेन (आरबीडी) से बना है, और एक रेकॉम्बीनैंट प्रोटीन टीका है. आरबीडी स्पाइक प्रोटीन का वह हिस्सा है, जो कि इसका सबसे अधिक महत्वपूर्ण घटक है. स्पाइक प्रोटीन का यही भाग मानव कोशिकाओं की सतह पर पाए जाने वाले रिसेप्टर से मिलकर कोरोना विषाणु को मानव कोशिकाओं में प्रवेश कराता है.
कंपनी की एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार वे प्रति माह 7.5 करोड़ खुराक बना पाने की क्षमता का दावा करती है, जिसे फरवरी 2022 तक प्रति माह 10 करोड़ से अधिक खुराक तक बढ़ाया जाएगा. एस्ट्राजेनेका (कोविशील्ड) टीके की दो खुराक प्राप्त करने वाले लोगों में बूस्टर खुराक के रूप में कोवोवैक्स टीके का प्रभाव उत्साहजनक है.
हालांकि, कॉर्बेवैक्स-ई के लिए ऐसा कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. अन्य टीकों में पूर्ण स्पाइक प्रोटीन से अलग, कॉर्बेवैक्स-ई में स्पाइक प्रोटीन का सिर्फ आरबीडी भाग है, जो शायद विषाणु के ओमिक्रॉन संस्करण के खिलाफ शक्तिशाली प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया और प्रतिरक्षा स्मृति को नहीं बढ़ा पाएगा, क्योंकि अब ये सर्वविदित है कि ओमिक्रॉन संस्करण में मूल वुहान विषाणु की तुलना में इसी भाग (आरबीडी) में 10 म्यूटेशन हैं. जिसकी वजह से यह कॉर्बेवैक्स-ई को अपने आप में अकेले टीके के रूप में प्रभावी नहीं होने देगा, फिर भी यह उन लोगों में एक अच्छी बूस्टर खुराक के रूप में इस्तेमाल हो सकता है, जिन्होंने अन्य टीके प्राप्त किए हैं. लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए भी, हमें इस पर वैज्ञानिक शोध और नैदानिक परीक्षण के आंकड़ों की आवश्यकता होगी.
समय के साथ जैसे-जैसे हमारे पास नए टीका विकल्प पैदा हो रहे हैं, टीकाकरण के बाद मिलने वाले अनुवर्ती नैदानिक आंकड़ों के अभिलेख और विभिन्न टीकों के एक दूसरे के साथ मिला कर इस्तेमाल करने वाले नैदानिक शोध के आंकड़ों की कमी परेशान करने वाली है. इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि इस विषाणु के ओमिक्रॉन संस्करण या उससे आगे आने वाले अन्य संस्करण से लड़ने के लिए, हम एक ठोस नीति के साथ मैदान में उतर सकें.
(डॉयूसुफ़ अख़्तर, बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, के बायोटेक्नोलॉजी विभाग में अध्यापनरत हैं. )
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