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अरावली में कैसे गौशालाएं और मंदिर अवैध निर्माण करने का जरिया बने?
अरावली को लेकर न्यूज़लॉन्ड्री के एनएल सेना सीरीज के पहले भाग में आपने पढ़ा कि कैसे अरावली में भारतीय जनता पार्टी के नेता और हरियाणा सरकार के पूर्व पर्यावरण मंत्री विपुल गोयल, कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री महेंद्र प्रताप सिंह और दूसरे नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश और दूसरे नियमों को ताक पर रखकर निर्माण कार्य किया है. न्यूज़लॉन्ड्री द्वारा हासिल किए गए वन विभाग के कागजात में लिखा है कि विपुल गोयल फार्म हाउस बनवा रहे थे वहीं गोयल दावा करते हैं कि उनकी जमीन में गौशाला थी.
ऐसे ही बीजेपी नेता और फरीदाबाद के मेवला महराजपुर के पार्षद रहे कैलाश बैसला के फार्म हाउस के बाहर गौशाला का पोस्टर लगा है. बैसला भी गौशाला होने का दावा करते हैं, लेकिन वहां महज दो गायें हैं.
अरावली क्षेत्र में अवैध निर्माण करने वालों द्वारा गायों की देखभाल की बात करने वाले गोयल और बैसला अकेले नहीं हैं. हरियाणा के फरीदाबाद जिले का अंखिर और मेवला महाराजपुर गांव गौशाला उद्योग के रूप में उभरा है. जिनमें से ज्यादातर का निर्माण 'पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम’ (पीएलपीए) के तहत संरक्षित जमीन पर हुआ है. पीएलपीए में ‘‘’गैर-वानिकी’’ गतिविधियों पर रोक है.
आखिर ये नेता फार्म हाउस में गौशाला होने का दावा क्यों करते हैं?
जिन जमीनों पर अवैध निर्माण साफ-साफ नजर आता है वहां आखिर नेता या उसके मालिक गौशाला होने का दावा क्यों करते हैं? इस सवाल पर नाम नहीं छापने की शर्त पर फरीदाबाद के एक सामाजिक कार्यकर्ता न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘अवैध कब्जा करने का सबसे आसान और सुरक्षित तरीका धार्मिक स्थल या गौशाला का निर्माण करना है.”
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद विभाग द्वारा की गई कार्रवाई से भी इस बात को बल मिलता है.
दरअसल जून 2020 में फरीदाबाद जिले के वन्यजीव और वन विभाग के डिप्टी कमिश्नर ने अवैध निर्माण करने वालों की जो सूची तैयार की थी उसमें 11 मंदिर और गौशाला है. इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के विश्व हिन्दू परिषद का विशालयकाय गौशाला और कई बड़े-बड़े मंदिर और आश्रम हैं. कोर्ट के आदेश के बाद जहां फार्म हाउस और दूसरे अवैध निर्माण को तोड़ा जा रहा है. वहीं इस दौरान मंदिरों और गौशालाओं को नोटिस दिया गया लेकिन इनमें से किसी को भी खाली कराने या हटाने वन विभाग नहीं गया. वो भी तब जब वन विभाग का मानना है कि यह अवैध निर्माण है. ऐसे में लोग अपने फार्म हाउस को बचाने के लिए गौशाला होने की बात कहते नजर आते हैं.
वीएचपी की विशालकाय गौशाला
फरीदाबाद-गुरुग्राम हाईवे पर श्री गोपाल गौशाला का बोर्ड लगा दिखता है. यह गौशाला विश्व हिन्दू परिषद द्वारा संचालित होती है. वीएचपी आरएसएस का एक संगठन है. सूरजकुंड-गुरुग्राम मुख्यमार्ग से एक रास्ता गौशाला की तरफ जाता है. यह रास्ता कुछ दूर तो ठीक-ठीक बना हुआ है, लेकिन आगे चलकर यह जर्जर हो चुका है. सड़क के दोनों तरफ गोबर नजर आता है. थोड़ा आगे बढ़ने पर एक बड़ा गड्डा दिखता है. जिसे गोबर से भर दिया गया है. पर्यावरणविदों का मानना है कि ऐसे ही गड्ढों में बारिश का पानी जमा होता है. जिससे भू-जल स्तर बेहतर रहता है.
वीएचपी की गौशाला के बाहर एक विशालकाय गेट बना है. जिसके सामने लिखा है, श्री गोपाल गौशाला (रजि), संचालित-विश्व हिंदू परिषद. अंदर जाने पर टीन सेड के नीचे गायें खड़ी नजर आती हैं. यहां दो विशाल मंदिर हैं और कई दूसरे पक्के निर्माण किए गए हैं.
हरियाणा सरकार के अधिकारी द्वारा बनाई गई सूची में इसे भी अवैध निर्माण में रखा गया है. अधिकारियों द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक करीब नौ एकड़ जमीन पर गोपाल गौशाला बनी है. यह जमीन पीएलपीए के अंतर्गत आती है. यानी कि यहां कोई भी ठोस निर्माण नहीं हो सकता है. वन विभाग की तरफ से इन्हें तीन बार नोटिस भी दिया जा चुका है. सबसे पहले 2008 में फिर 2009 और फिर साल 2018 में. एक तरफ वन विभाग नोटिस देता रहा और दूसरी तरफ यहां निर्माण कार्य जारी रहा.
इसबार भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद गोपाल गौशाला को नोटिस भेजा गया. यह जानकारी हमें यहां के मंदिरों में पूजा पाठ करने वाले अनिल शास्त्री देते हैं. मध्य प्रदेश के दमोह जिले के रहने वाले शास्त्री बीते 15 साल से यहां रह रहे हैं. वे हमें बताते हैं, ‘‘नोटिस तो आया है. सबका फार्म हाउस और दूसरे निर्माण टूट रहे हैं तो डर तो हमें भी है, लेकिन हम ‘प्रॉफिट’ के लिए तो यहां काम नहीं कर रहे हैं. गो सेवा के लिए यहां काम करते हैं. करीब 1500 गायें इस गौशाला में हैं. कई बीमार हैं. किसी को दिखता नहीं तो किसी का पैर टूटा है. हम सेवा कर रहे हैं.’’
इस गौशाला की देखभाल की जिम्मेदारी वीएचपी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष रमेश कुमार गुप्ता के पास है. न्यूज़लॉन्ड्री ने गुप्ता से जब नोटिस को लेकर पूछा तो वे कहते हैं, ‘‘हमारे यहां तो वन विभाग के लोग कभी तोड़ने आए नहीं. हां एक नोटिस आया था जिसमें पूछा गया कि ये गौशाला कब की बनी हुई है. हमने उन्हें बता दिया कि यह साल 1991 से चल रही है. इसके अलावा उन्होंने हमसे कोई सवाल नहीं पूछा.’’
जिस जगह पर आपकी गौशाला है वो जमीन पीएलपीए के तहत सुरक्षित है. यहां किसी तरह का ठोस निर्माण नहीं हो सकता है? इस सवाल पर गुप्ता कहते हैं, ‘‘यह जमीन हमने खरीदी है. श्रीगोपाल गौशाला की रजिस्ट्री है. जहां तक रही ठोस निर्माण की तो इसको लेकर मुझे खास जानकारी नहीं है. हालांकि हम तो चाहते हैं कि वन विभाग से ज्यादा से ज्यादा जमीन गौशाला को मिल जाए.’’
वहीं जगह-जगह गोबर जमा करने के सवाल पर गुप्ता कहते हैं, ‘‘हम जगह-जगह गोबर तो खासकर इसलिए डालते हैं क्योंकि इससे जमीन और ज्यादा उपजाऊ होती है. अभी आप देखिए हमारे यहां कितने पेड़ लगे हुए हैं. गोबर की कृपा से ये पेड़ लगे हैं. लोग तो आजकल गोबर के दीवाने हो रहे हैं.’’
हैरानी की बात है कि इन गौशालाओं में फरीदाबाद नगर निगम भी गायें भिजवाता है. फरीदबाद के बड़े-बड़े नेता इन गौशालाओं में दान पुण्य करने आते हैं. गुप्ता बताते हैं, “यहां 30 साल से गौशाला चल रही है. यहां जो कुछ बना उसके लिए कभी किसी ने रोका नहीं. हमारे यहां अधिकारी और राजनेता दान पुण्य करने के लिए आते रहते हैं. मनोहर लाल खट्टर साहब तो नहीं आए लेकिन कृष्णपाल गुर्जर साहब तो जब विधायक नहीं थे तब से आ रहे हैं.’’
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद वन विभाग द्वारा की जा रही कार्रवाई को लेकर गुप्ता कहते हैं, ‘‘जो भी निर्माण हुए हैं, चाहे वो बड़े-बड़े औषधालय हों या देवालय. ये सब एनओसी लेकर ही बने होंगे न. तो उस वक्त सरकार एनओसी नहीं देती. अब सुप्रीम कोर्ट को चक्कर में डाल रखा है. सुप्रीम कोर्ट आदेश देता है तो ये सोए रहते है. कोई कार्रवाई नहीं करते हैं. अब भी नए निर्माण तो हो रहे हैं. ड्रोन लगाकर उसे रोके ना.’’
एक तरफ जहां वन विभाग 2008 से गोपाल गौशाला को अवैध निर्माण के लिए नोटिस दे रहा है वहीं मनोहर लाल खट्टर सरकार का गो सेवा आयोग यहां शेड लगाने के लिए साल 2018-19 में 10 लाख का अनुदान दे चुका है.
इस अनुदान को लेकर गुप्ता कहते हैं, ‘‘हां, जी 10 लाख रुपए तो दिए थे. लेकिन जहां तक मुझे याद है तब कांग्रेस की सरकार थी. हुड्डा साहब आए थे उन्होंने यहां की तीन गौशालाओं को 10-10 लाख रुपए देने की घोषणा की थी. इसके अलावा राज्य सरकार हमें प्रति गाय सलाना 15 रुपए खर्च के लिए देती है. हालांकि 15 रुपए सालाना से होता ही क्या है?’’
यह तथ्य सरकारी व्यवस्था पर ही सवाल उठाता है कि आखिर जब आपका ही एक विभाग अरावली में निर्माण को अवैध मान रहा है तो वहां शेड लगाने के लिए अनुदान देकर क्या सरकार निर्माण को बढ़ावा नहीं दे रही है?
श्री सिद्धदाता आश्रम और नारायण गौशाला
गुरुग्राम-फरीदाबाद रोड पर मेवला महाराजपुर में एक विशालकाय मंदिर बना हुआ है. जिसका नाम श्री सिद्धदाता आश्रम श्री लक्ष्मीनारायण दिव्यधाम है. इसके संस्थापक स्वामी सुदर्शनाचार्य जी महाराज हैं. 2007 में सुदर्शनाचार्य के निधन के बाद यहां के प्रमुख इनके बड़े बेटे हरियाणा पीठाधीश्वर रामानुजचार्य पुरुषोतमचार्य देख रहे हैं.
वन विभाग द्वारा तैयार अवैध निर्माण की सूची में इस मंदिर का नाम भी शामिल है. न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद दस्तावेज के मुताबिक जिस जमीन पर मंदिर का निर्माण हुआ है वो पीएलपीए के अधीन आती है. दस्तावेज के मुताबिक यहां करीब छह एकड़ जमीन पर निर्माण हुआ है. हालांकि आसपास रहने वाले जानकारों की माने तो यह मंदिर, जिसमें मुख्य मंदिर, महंतों के रहने के लिए कमरा और करीब 2.73 एकड़ में फैली नारायण गौशाला है. गौशाला सड़क के दूसरी तरफ बनी हुई है.
लक्ष्मीनारायण दिव्यधाम के सामने पास एक प्राकृतिक झील है, जिसे यहां आने वाले श्रद्धालुओं ने प्लास्टिक से भर दिया है. यह खूबसूरत झील अब कचरा फेंकने का सेंटर बन गई है.
वीएचपी की गौशाला से एक किलोमीटर दूर नारायण गौशाला का निर्माण साल 1990 में हुआ है. आश्रम की वेबसाइट के अनुसार, “यहां 300 गायें हैं. इन गायों के दूध में हानिकारक विकिरण से बचाव की शक्ति होती है.”
इस गौशाला को 1 अगस्त 2021 को जिला वन अधिकारी ने नोटिस देकर बताया कि यह निर्माण अवैध है. इस नोटिस में प्रशासन ने गौशाला हटाने और उस भूमि को मूल स्थिति में बहाल करने का आदेश दिया था.
वन विभाग द्वारा बनाई गई रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2007 और 2008 में इस मंदिर को नोटिस दिया गया था. नारायण गौशाला को 2014 में नोटिस दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अगस्त 2021 में वन विभाग ने इन्हें नोटिस दिया. एक तरफ जहां वन विभाग नोटिस दे रहा था वहीं मंदिर प्रबंधन लगातार इसका निर्माण करता रहा. बेहतर सड़कें बनाई गईं. बड़े-बड़े गेट लगाए गए.
नारायण गौशाला को लेकर जहां वन विभाग के नोटिस में बताया गया है कि इसका खसरा नंबर 100 है. वहीं नारायण गौशाला ने नोटिस के जवाब में बताया है कि खसरा नंबर 100 का मालिकाना हक हमारे पास कभी नहीं रहा. वास्तव में नारायण गौशाला खसरा नंबर 109/2/95, 110/2/11/1 और 20/3 पर बना है. जिसका क्षेत्रफल 8 कनाल (1 एकड़), 5 कनाल (0.625 एकड़) और 4 कनाल ( 0.5 एकड़ ) है. उक्त भूमि का स्वामित्व जमाबंदी में विधिवत दर्शाया गया है. जिसकी कॉपी भी गौशाला की तरफ से वन विभाग को जमा कराई गई है.
इसके बाद लिखा गया है कि पीएलपीए अधिनियम के तहत 18-9-1992 को जारी अधिसूचना से बहुत पहले, नारायण गौशाला की शुरुआत साल 1990 में हुई थी. इसके आगे अपने जवाब में नारायण गौशाला की तरफ से बताया गया है कि गो सेवा एक 'नोबल' काम है. और फरीदाबाद प्रशासन ने समय-समय पर यहां सौ से ज्यादा गायें सेवा के लिए भेजी हैं. साथ ही यहां कोई भी मदबूत निर्माण नहीं किया गया है. गायों की छांव के लिए सिर्फ टीन शेड लगाए गए हैं. हमने यहां कई जगहों पर पेड़ भी लगाए हैं.
इसी तरह के तर्क के साथ नारायण गौशाला के लोग पीएलपीए का किसी भी तरह से उल्लंघन के आरोपों से इंकार कर देते हैं. गौशाला की तरफ से जिस शख्स ने यह जवाब सौंपा है उनका फोन नंबर भी दर्ज है. जब न्यूज़लॉन्ड्री ने उन्हें कुछ सवालों के साथ फोन किया तो उन्होंने बात करने से साफ इंकार कर दिया.
श्री सिद्धदाता आश्रम ने गौशाला को लेकर अपने पक्ष में कहा कि उन्होंने ठोस निर्माण नहीं किया है. सिर्फ टीन शेड लगाए हैं. वहीं मंदिर को लेकर मिले नोटिस में क्या जवाब दिया गया? इस कागजात को आश्रम ने न्यूज़लॉन्ड्री से साझा करने से मना कर दिया.
श्री सिद्धदाता आश्रम का दावा है कि उनका निर्माण "निजी कृषि भूमि" पर है और इसलिए उन्हें वन क्षेत्र के रूप में नहीं माना जाना चाहिए. आश्रम ने फरीदाबाद प्रशासन को लिखे पत्र में कहा, "माननीय सुप्रीम कोर्ट ने बीएस संधू बनाम भारत सरकार और अन्य (2014) 12 एससीसी 172 में अपने आदेश में कहा कि पीएलपीए की धारा 3 से 5 के तहत अधिसूचना निर्णायक रूप से साबित नहीं करती है कि यह भूमि ‘वन भूमि’ है."
जिस 'बीएस संधू बनाम भारत सरकार' का जिक्र मंदिर द्वारा किया गया वो 2018 के बाद से सवालों के घेरे में है. एमसी मेहता बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए माना कि बीएस संधू मामले को अवैध कब्जा करने वालों ने अपने पक्ष में इस्तेमाल किया गया.
तत्कालीन जस्टिस मदन बी लोकुर और दीपक गुप्ता ने स्पष्ट रूप से कहा कि पीएलपीए के तहत भूमि को वन क्षेत्र के रूप में माना जाना चाहिए. उन्होंने कहा, “हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि पीएलपीए अधिनियम के प्रावधानों के तहत हरियाणा राज्य द्वारा अधिसूचित भूमि को 'वन' और 'वन भूमि' माना जाना चाहिए. हरियाणा राज्य ने कई दशकों से ऐसा ही माना है.''
डीसी तंवर, आश्रम कमेटी के जनरल सेकेट्री हैं. नगर निगम फरीदबाद में सीनियर पद पर रह चुके तंवर रिटायरमेंट के बाद मंदिर में 'सेवा' करते हैं. न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में तंवर कहते हैं, ‘‘यह जमीन मंदिर के नाम पर है. इसके भूमि उपयोग में परिवर्तन (सीएलयू) लिया जा चुका है. ऐसे में यहां निर्माण करना अवैध नहीं है. हमने वन विभाग को जवाब दे दिया है.’’
जब हमने तंवर से पूछा कि किस साल में आपने सीएलयू लिया. क्या सीएलयू लेने के बाद वन क्षेत्र में ठोस निर्माण की इजाजत है, साथ ही हमने उनसे मांग की कि क्या वे वन विभाग को दिया गया अपना जवाब हमसे साझा कर सकते हैं? इस सवाल पर वे खफा हो जाते हैं और जवाब देने के बजाय हमसे ही सवाल पूछने लगते हैं.
वर्त्तमान में मंदिर के प्रमुख पुरुषोत्तमाचार्य की कई तस्वीरें बीजेपी नेताओं के साथ नजर आती हैं. साथ ही पुरुषोत्तमाचार्य भाजपा सरकार को समर्थन करते भी नजर आते है. जब जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाई गई तब इन्होंने इसका समर्थन किया था.
वासुदेव रामकृष्ण धाम एवं बाल कृष्ण गौशाला
गोपाल गौशाला के अलावा मेवा महाराजपुर में ही श्रीवासुदेव रामकृष्ण धाम एवं बाल कृष्ण गौशाला है. जेवर के रहने वाले धर्म सिंह यहां लंबे समय से रह रहे हैं. उन्होंने बताया कि यहां मंदिर और गौशाला जनवरी 2004 से है.
मुख्यमार्ग से यह गौशाला महज पांच सौ मीटर की दूरी पर है. यहां जाने का रास्ता बेहद संकरा है. यहां भी एक बड़ा सा गेट लगा हुआ है. जिसके ऊपर ‘श्री वासुदेव रामकृष्ण धाम’ का बोर्ड लगा हुआ है. बोर्ड पर दी गई जानकारी के मुताबिक इसकी स्थापना वासुदेवाचार्य जी महाराज ने की थी और वर्तमान में इसके महंत स्वामी रामकृष्णचार्य महाराज हैं. गेट से अंदर जाने पर वासुदेवाचार्य जी की समाधि बनी है. यहां रहकर शिक्षा हासिल कर रहे युवाओं के लिए कमरा बना है. इसी एक कमरे में रामकृष्णचार्य रहते हैं.
इस गौशाला को भी वन विभाग की तरफ से अवैध मानकर कई बार नोटिस दिया गया है, लेकिन अब तक किसी अधिकारी ने यहां आकर पूछताछ नहीं की है. दो एकड़ में फैले इस गौशाला में 40-50 के करीब गायें हैं. और आठ छात्र रहकर पढ़ाई करते हैं.
रामकृष्णचार्य, न्यूज़लांड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘हमें नोटिस आया था जिसमें पूछा गया कि जब यहां बनाने की इजाजत नहीं है तो आपने बनाया कैसे. इसका तो कोई जवाब नहीं है. हालांकि यह जमीन हमारी है. अभी तक हमें कोई परेशान करने नहीं आया है. सिर्फ फार्म हाउस और गार्डन वालों का तोड़ा जा रहा है. बाकी प्रभु की कृपा. अगर आते हैं तोड़ने तो छोड़कर चले जाएंगे.’’
आश्रम में बिजली की व्यवस्था और पानी के लिए लगवाए गए ट्यूबेल को लेकर प्रशासन की तरफ से अगस्त के पहले सप्ताह में नोटिस दिया गया. क्या आपको इस बात का डर नहीं कि शायद किसी दिन वन विभाग तोड़ने के लिए आ जाएगा? इस सवाल पर आचार्य कहते हैं, ‘‘अब जो होगा वो प्रभु पर निर्भर है. हालांकि हम लोग तो कोई बिजनेस कर नहीं रहे हैं. गो-सेवा कर रहे हैं.’’
रामकृष्णचार्य आगे क्या होगा इसको लेकर अपने वकील चंद्रपाल पारस से बात करने के लिए कहते हैं. हालांकि पारस से बात नहीं हो पाई.
परमहंस आश्रम
पूर्व कैबिनेट मंत्री विपुल गोयल के फार्म हाउस के बगल में ही परमहंस आश्रम है. फरीदाबाद के अधिकारियों ने अवैध निर्माण की जो सूची जारी की है उसमें इस आश्रम का भी नाम है. न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद दस्तावेज के मुताबिक यह आश्रम करीब 4.69 एकड़ में फैला हुआ है.
पीएलपीए के जमीन में बने इस आश्रम को लेकर 2014 और 2016 में नोटिस जारी किया गया. अभी हाल में जब तमाम अवैध कब्जे वाले आश्रमों/फार्म हाउस को वन विभाग ने नोटिस देकर तोड़फोड़ शुरू की तो परमहंस आश्रम को भी नोटिस दिया गया था. हालांकि यहां कोई तोड़फोड़ नहीं की गई.
आश्रम के एक सेवक की माने तो एक दिन वन विभाग के अधिकारी आए जरूर थे, लेकिन तोड़फोड़ के इरादे से नहीं.
मुख्य मार्ग से करीब दो किलोमीटर अंदर जंगल में परमहंस आश्रम बना है. यहां जाने के दो रास्ते हैं. दोनों ही कच्चे. बारिश होने के बाद कच्चे रास्ते पर जगह-जगह पानी भरा दिखता है. आश्रम के बाहर लाइन में कई गाड़ियां नजर आती हैं. जिसमें से एक पर भारत सरकार लिखा हुआ है.
दरअसल ये गाड़ियां दिल्ली और गुरुग्राम से परहमहंस आश्रम के प्रमुख स्वामी अड़गडानंद महराज के दर्शन करने आए लोगों की हैं. जो दो दिन पहले ही मिर्जापुर से यहां आए हुए हैं. महाराज की राजनीतिक ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि गृहमंत्री रहते हुए राजनाथ सिंह इनसे मिलने गए थे. मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो सिंह करीब दो घंटा उनके आश्रम में रुके, इस दौरान दोनों ने संस्कृति और धर्म पर चर्चा की थी.
वहीं जब बीते साल सितंबर 2020 में स्वामी परमहंस कोरोना पॉजिटिव हुए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फोन पर बात कर उनका हाल चाल लिया था. कोरोना होने के बाद वे फरीदाबाद स्थित आश्रम में आए. ठीक होने के बाद वह वापस हेलिकॉफ्टर से मिर्जापुर चले गए.
गुरुग्राम-फरीदाबाद के अरावली क्षेत्र में लंबे समय से काम कर रहे पर्यावरणविद सुनील हरसाना न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए बताते हैं, ‘‘जमीन कब्जाने के लिए यहां दो उपाय सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाते हैं, एक मंदिर बना लो और दूसरा गौशाला बना लो. मंदिर बनेगा तो रोड भी बन जाएगी. रोड बनते ही मंदिर के आसपास की जगहों को लोग कब्जा कर लेते हैं. गौशाला के साथ भी यहीं होता है. यहां नाम के लिए गौशाला चल रही है. गौशाला के नाम पर दस एकड़ में कब्जा किया गया. उसमें से एक एकड़ में दस गायें बांध दी गईं. बाकी में अपने हित में निर्माण करा लेते हैं. मामला धार्मिक होता है इसलिए उसे कोई जल्दी तोड़ भी नहीं सकता है.’’
यह सिलसिला कब से शुरू हुआ. इसको लेकर सुनील कहते हैं, ‘‘हमारे पास 2002-03 तक का गूगल इमेज उपलब्ध है. उसमें अगर देखे तो कोई खास अवैध निर्माण नजर नहीं आता. सबसे पहले यहां मानव रचना यूनिवर्सिटी बनी. उसके बाद सड़क का निर्माण हुआ. सड़क बनते ही लोगों को अरावली के बीच में जाने में आसानी होने लगी. जिसका असर यह हुआ कि अवैध निर्माण बढ़ते गए.’’
अवैध रूप से बने जिन गौशालाओं या मंदिरों को नोटिस दिया गया उनपर क्या कार्रवाई हुई. इसको लेकर जब हमने फरीदाबाद के जिलाधिकारी वन अधिकारी राजकुमार से बात की तो वे कहते हैं, ‘‘अभी तोड़फोड़ पर रोक लगी हुई है क्योंकि कोर्ट में मामले चल रहे हैं.’’ क्या गौशालाओं और मंदिरों का निर्माण जमीन कब्जा करने का एक माध्यम है. इस सवाल पर राजकुमार कहते हैं, ‘‘मेरा काम ओपिनियन देना नहीं है. आप खुद देख सकते हैं.’’
आस्था बनाम पर्यावरण
अवैध निर्माण की जानकरी होने के बावजूद गौशाला और मंदिर प्रशासन की पहुंच से दूर हैं. इस बीच अरावली में जंगलों का अतिक्रमण जारी है और एक बहुमूल्य पारिस्थितिक संपत्ति को लगातार खत्म किया जा रहा है.
प्रशासन द्वारा गौशालाओं के खिलाफ की गई मामूली कार्रवाई का दूरगामी प्रभाव हो सकता है. जैसे की वीएचपी के कोषाध्यक्ष गुप्ता ने दावा किया, “गड्ढों में गोबर से भरने से जमीन अधिक उपजाऊ बन जाएगी. आप देखिए हमारे यहां जो पेड़ हैं वो गोबर की खाद से बढ़े हैं. लोग इन दिनों गाय के गोबर के दीवाने हो रहे हैं.”
हालांकि जल संरक्षणवादी और भारतीय वन सेवा के पूर्व अधिकारी मनोज मिश्रा इसे गलत मानते हैं. उनके मुताबिक गुप्ता के दावे का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. मिश्रा कहते हैं, “यह (गाय का गोबर) केवल पानी में कोलीफॉर्म के स्तर को जोड़ता है, ठीक वैसे ही जैसे मानव मल को पानी में फेंक दिया जाए. कोलीफॉर्म से हानिकारक बैक्टीरिया उत्पन्न होता है. अगर हम उस पानी का सेवन करते हैं, तो कई समस्याएं हो सकती हैं.”
हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि इन सब से गौशाला में रह रही गायों को कितना फायदा हो रहा है. लेकिन इतना तो साफ हैं कि इन गौशालाओं को चलाने वाले वाले पीएलपीए का उल्लंघन कर रहे हैं. गौशालाओं की आड़ में कई नेता और ताकतवर लोग अरावली को बर्बाद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है और प्रशासन नोटिस पर नोटिस जारी कर सिर्फ खानापूर्ति कर रहा है.
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इस एनएल सेना प्रोजेक्ट में हमारे पाठकों ने सहयोग किया है. यह राजदीप अधिकारी, शुभम केशरवानी, कुंजू नायक, अभिमन्यु सिन्हा, हिमांशु बधानी, मसूद हसन खान, तन्मय शर्मा, पुनीत विश्नावत, संदीप रॉय, भारद्वाज, साई कृष्णा, आयशा सिद्दीका, वरुणा जेसी, अनुभूति वार्ष्णेय, लवन वुप्पला, श्रीनिवास रेकापल्ली, अविनाश मौर्य, पवन निषाद, अभिषेक कुमार, सोमसुभ्रो चौधरी, सौरव अग्रवाल, अनिमेष चौधरी, जिम जे, मयंक बरंदा, पल्लवी दास, मयूरी वाके, साइना कथावाला, असीम, दीपक तिवारी, मोहसिन जाबिर, अभिजीत मोरे, निरुपम सिंह, प्रभात उपाध्याय, उमेश चंदर, सोमशेखर सरमा, प्रणव सत्यम, हितेश वेकारिया, सावियो वर्गीस, आशुतोष मौर्य, निमिश दत्त, रेशमा रोशन, सतकर्णी और अन्य एनएल सेना के सदस्यों द्वारा संभव हो पाया है.
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