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सरकारी दावे से उलट किसानों को नहीं मिल रही यूरिया समेत अन्य खादें
केंद्र सरकार ने 10 दिसंबर को संसद में यूरिया की कमी को लेकर सात सांसदों द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब दिया. रसायन और उर्वरक मंत्री मनसुख मांडविया ने यूरिया की देश में पर्याप्त मात्रा के सवाल पर कहा, देश में यूरिया की कोई कमी नहीं है. इस दौरान उन्होंने रबी फसल के लिए यूरिया की आवश्यकता, उपलब्धता और बिक्री की भी राज्यवार जानकारी दी.
संसद में यूरिया और डाई अमोनियम फास्फेट (डीएपी) को लेकर सांसदों ने छह सवाल पूछे थे. इन सांसदों में महाराष्ट्र के हेमंत पाटिल, सुशील कुमार सिंह, रामदास तडस, पूनम महाजन, पश्चिम बंगाल से देबाश्री चौधरी, नुसरत जहां और पंजाब से सांसद भगवंत मान थे.
सरकार ने बताया कि यूरिया के आयात पर साल 2020-21 में 25049.62 करोड़ खर्च किए गए. साल 2016-17 के बाद यह सबसे ज्यादा राशि है. एक सवाल के जवाब में सरकार ने बताया कि सभी राज्यों को कितना उर्वरक दिया जाना है उसकी गणना कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा किया जाता है.
हकीकत यह है कि सरकार के इन दावों के बावजूद लोगों को यूरिया समेत अन्य खाद मिलने में समस्या हो रही है.
मध्यप्रदेश के सतना के पिपराछा गांव के रहने वाले 45 वर्षीय किसान बाबूलाल सिंह खाद की उपलब्धता को लेकर नाराजगी व्यक्त करते हैं. न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में कहते हैं, “जब भी फसल का सीजन आता है खाद खत्म हो जाती है. सहकारी संस्थाओं में खाद नहीं मिलती लेकिन बाजार में मिल जाएंगी”.
बाबूलाल यूरिया को लेकर कहते हैं, “अभी सीजन में हमें जरूरत थी यूरिया की लेकिन नहीं मिला. 270 रुपए में मिलने वाला यूरिया बाजार में 350 में मिल रहा है उसके लिए भी लाइन लगानी पड़ती है. वहीं डीएपी की जरूरत पांच क्विंटल थी लेकिन मिला सिर्फ दो क्विंटल.”
पिपराछा गांव के ही 35 वर्षीय मनीष पटेल कहते हैं, “बड़े किसानों को सोसाइटी पर खाद मिलता है. छोटे किसानों को यहां बहुत मुश्किल से खाद मिल पाता है, इसलिए हम लोग बाजार से लाते हैं. जो यूरिया बाजार में 350 रुपए में मिलता वो सोसाइटी में 270 में मिल जाता है.”
70 वर्षीय किसान रामअनुज सिंह यूरिया को लेकर कहते हैं, “आपके पास पैसा है तो जब चाहें तब बाजार से यूरिया मिल जाता है लेकिन सोसाइटी पर नहीं मिलता. हमारे गांव से सोसाइटी करीब पांच किलोमीटर दूर है. इस बार हमें डीएपी भी नहीं मिला, इसलिए बाजार से 1400-1500 तक बोरी के भाव से खरीदना पड़ा.”
भारत सरकार के उर्वरक पोर्टल पर मध्यप्रदेश के अक्टूबर से दिसंबर के बीच खाद की उपलब्धता और सप्लाई को लेकर जानकारी दी गई है. इसके मुताबिक मध्यप्रदेश को तीन महीनों में 17.35 लाख मेट्रिक टन (एमटी) यूरिया की जरूरत थी जिसमें से 14.29 लाख एमटी सप्लाई हुआ है. वहीं डीएपी 7.09 लाख एमटी की जरूरत थी लेकिन सप्लाई सिर्फ 5.95 लाख एमटी ही हुई.
गेंहू और चने की बुवाई के समय किसान यूरिया संकट का सामना कर रहे हैं. हाल ही में मध्यप्रदेश के तराना का एक वीडियो भी वायरल हुआ था जिसमें खाद लेने आए किसानों पर पुलिस डंडे बरसा रही है. हालांकि उज्जैन जिला प्रशासन ने यूरिया सकंट से इंकार कर दिया.
सिर्फ उज्जैन ही नहीं देवास में भी यूरिया की कमी है. देवास जिले की टोंकखुर्द तहसील में यूरिया को लेकर किसानों ने बीते महीने ही नेशनल हाईवे जाम कर विरोध प्रदर्शन किया था. उनका कहना था कि फसल को खाद की जरूरत है लेकिन सोसाइटी में खाद नहीं मिल रहा है.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, खाद की मांग को लेकर किसानों ने सागर जिले के बीना में ट्रेन रोक दी, वहीं बंडा में कानपुर हाईवे जाम कर दिया. यह विरोध प्रदर्शन इसलिए हुआ क्योंकि राज्य की 3400 सहकारी संस्थाओं में खाद नहीं के बराबर था.
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के होला का पुरवा गांव के 50 वर्षीय रामपूजन यादव करीब 15 बीघे में खेती करते हैं. वह कहते हैं, "सरकार कोई भी हो उर्वरक की कमी की समस्या जस की तस है. करीब दो दिन तक लाइन में लगने के बाद भी खाद मिल पाई है."
रामपूजन आगे कहते हैं, "सहकारी समितियों में खाद अलग-अलग दामों पर बेची जा रही है. यूरिया की बात करें तो इसकी कीमत किसी जगह 275 रुपए प्रति बोरी है, तो कहीं 280 रुपए प्रति बोरी, जबकि इफको केंद्र पर इसकी कीमत 266 रुपए है. वहीं प्राइवेट में इसकी कीमत 320 रुपए प्रति बोरी है. ऐसा ही डीएपी के साथ भी है. 1200 रुपए में मिलने वाली बोरी निजी दुकानों पर 1400 रुपए में मिल रही है."
यूरिया के दाम को लेकर वह कहते हैं, "सरकार कहती है कि यूरिया के दाम कम कर दिए हैं, जबकि सच्चाई ये है कि दाम कम करने के साथ-साथ बोरी से पांच किलोग्राम खाद भी कम कर दिया है. जो बोरी पहले 50 किलो की थी वह अब 45 किलो की हो गई है."
रामपूजन कहते हैं, "कई जगहों पर जिंक उर्वरक (जिंक सल्फेट मोनोहाइड्रेट) के बिना डीएपी और यूरिया नहीं दे रहे हैं. जिंक की कीमत 100 रुपए प्रति किलोग्राम है, जितनी बोरी खाद आप ले रहे हैं उतने किलोग्राम जिंक आपको लेना ही पड़ेगा, भले ही आपको इसकी जरूरत है या नहीं."
सरकारी वेबसाइट पर यूरिया की जरूरत से ज्यादा सप्लाई दिखाई गई है. अक्टूबर से 27 दिसंबर के बीच 21.34 लाख एमटी की जरूरत थी लेकिन सप्लाई 24.36 लाख एमटी हुई है. वहीं डीएपी की जरूरत 13.08 लाख एमटी की थी और सप्लाई 15.32 लाख एमटी की गई.
सरकारी आंकड़ों में भले ही खाद की कमी न दिख रही हो लेकिन किसान परेशान हैं. बाराबंकी में किसान सहकारी दुकान के बाहर दो-तीन दिन से चक्कर लगा रहे हैं. सुबह से लाइन में लगने के बावजूद भी खाद नहीं मिल रहा है. बुंदेलखंड के ललितपुर में अक्टूबर महीने में चार किसानों की मौत खाद संकट के कारण हो गई. एक किसान ने फांसी लगा ली तो वहीं तीन किसान कई दिन तक खाद के लिए लाइन में खड़े रहे, जिसके चलते उनकी तबीयत खराब हो गई और बाद में उनकी मौत हो गई.
इस घटना के बाद से विपक्ष सरकार पर हमलावर है. प्रियका गांधी ने मृतक किसानों के परिवारों से मुलाकात की. कांग्रेस महासचिव ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, "किसान मेहनत कर फसल तैयार करे तो फसल का दाम नहीं. किसान फसल उगाने की तैयारी करे, तो खाद नहीं."
प्रतापगढ़ जिले के बाबू सराय गांव के अतहर अली न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, “मैं जब यूरिया लेने सहकारी समिति लोकापुर (नेवाड़ी) गया तो वहां बताया गया कि यूरिया खत्म हो गया है. हालांकि वहां पर 20 से 25 बोरी खाद रखी हुई थी जबकि मुझे दो ही बोरी कि जरूरत थी. पूछने पर बताया गया कि यह किसी और का खाद है, करीब आधे घंटे बहस के बाद मुझे सिर्फ दो बोरी खाद मिली.”
एक सहकारी समिति के सचिव नाम न छापने की शर्त पर न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, “यूरिया की तो नहीं लेकिन डीएपी की शॉर्टेज जिले में चल रही है.” गांव में किसान यूरिया की भी कमी की शिकायत क्यों कर रहे हैं? इस पर सचिव कहते हैं, “बात ये है कि जिला स्तर पर यूरिया उपलब्ध है जब तक वो सप्लाई नहीं करते हैं तब तक ग्रामीण इलाकों में इसकी कमी बनी रहेगी.” सचिव से बात करते समय उन्हीं के गोदाम में न तो यूरिया थी और ना ही डीएपी, हालांकि वो शॉर्टेज न होने की बात कह रहे थे.
छत्तीसगढ़ में भी सरकारी वेबसाइट पर दिए गए आकड़ों में खाद पर्याप्त मात्रा में है. प्रदेश में अक्टूबर से 27 दिसंबर तक 0.57 लाख एमटी यूरिया की जरूरत थी और सप्लाई 0.98 लाख एमटी हुई है. उसी तरह डीएपी समेत अन्य खाद की भी जरूरत से ज्यादा सप्लाई हुई है.
राज्य के महासमुंद्र जिले के चंडी गोना गांव के 44 वर्षीय कैलाश पटेल कहते हैं, “इस साल यूरिया नहीं मिला. सोसाइटी में 265 रुपए दाम है वहीं जहां बाजार में मिल भी रहा था वह लोग 650 रुपए में बेच रहे थे.”
महासमुंद जिले में सहकारी उर्वरक कंपनी इफको के एक कर्मचारी नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, “छत्तीसगढ़ में यूरिया की इतनी अभी जरूरत नहीं है क्योंकि यहां धान की खेती होती है. धान में डीएपी ज्यादा लगता है. सरकार का फोकस अब नैनो यूरिया तरल पर है, जो यूरिया की किल्लत को कम कर देगा. हम लोग अभी उसी पर ज्यादा काम कर रहे है.”
प्रदेश में यूरिया की कमी को लेकर कांग्रेस सरकार ने केंद्र सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था. कांग्रेस ने दावा किया कि केंद्र की भाजपा सरकार समय पर खाद की सप्लाई नहीं कर रही है. वहीं यूरिया की समस्या को लेकर ही बीजेपी भी कांग्रेस सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर चुकी है.
देश में खाद की कमी या आवंटन में समस्या?
भारतीय किसान यूनियन के मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र मलिक कहते हैं, “जितना खाद हम आयात करते थे उसमें करीब 50 प्रतिशत की कमी आई है. भले ही संसद में सरकार कोई आंकड़े दे, मूल समस्या आयात में कमी होना है. अभी तो केंद्र सरकार जहां चुनाव हैं वहां खाद भेज दे रही है और दूसरे राज्यों में झगड़े चल रहे हैं.”
धर्मेंद्र आगे कहते है, “अगर कमी नहीं है तो फिर किसान खाद की दुकानों के बाहर लाइन में क्यों खड़े है? अगर मिल रहा होता तो किसानों की लाइन में खड़े रहने के कारण मौत नहीं होती. चुनावीं राज्य में कुछ बैलेंस करने की कोशिश कर रहे हैं.”
संसद में यूरिया और अन्य उर्वरकों को लेकर जो सवाल सांसदों ने किए हैं उनमें सबसे ज्यादा सांसद महाराष्ट्र के है. महाराष्ट्र के किसान नेता और स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के प्रमुख राजू शेट्टी न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, “महाराष्ट्र में यूरिया समेत अन्य खाद की कमी है. इनके दाम पिछले दो साल में लगभग दोगुने हो गए हैं, जिससे किसान बहुत तंग है.”
राजू शेट्टी आगे कहते हैं, “खाद की समस्या पूरे राज्य में है. खासकर यूरिया का बहुत दुरुपयोग होता है क्योंकि वह सब्सिडी पर मिलता है. यूरिया में जो नाइट्रोजन होता है उसका उपयोग बड़ी फैक्ट्ररियों में होता है. इसलिए कालाबाजारी ज्यादा होती है.”
राजू शेट्टी कहते हैं, “सरकार खपत और सप्लाई के जो आंकड़े बताती है उसमें दोनों का आंकड़ा लगभग बराबर रहता है, लेकिन उसके आवंटन में गड़बड़ी की जाती है, जिसके कारण ही किसानों तक यूरिया समेत दूरे खाद नहीं पहुंच पा रहे हैं.”
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