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मोहल्ला क्लिनिक: क्या है बच्चों की मौत और खराब दवाई का मामला
हाल ही में केंद्र सरकार के डायरेक्टर जनरल हेल्थ सर्विसेज (डीजीएचएस) द्वारा दिल्ली सरकार को लिखी एक चिट्ठी में सामने आया है कि डेक्स्ट्रोमिथोर्फन सिरप पीने से 16 बच्चों की तबीयत बिगड़ गई, और इनमें से तीन बच्चों की मौत हो गई. इन सभी बच्चों को यह दवा दिल्ली के मोहल्ला क्लिनिक में दिया गया था. सभी बच्चों की उम्र एक से छह साल थी. तबियत बिगड़ने के बाद सभी बच्चे 29 जून से 21 नवंबर के बीच दिल्ली के कलावती सरन अस्पताल में भर्ती हुए थे.
यह मामला तब सामने आया जब डीजीएचएस ने 7 दिसंबर को दिल्ली सरकार को एक पत्र लिखा. इस घटना के बाद केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने सिरप की जांच की. जांच में सिरप की गुणवत्ता ठीक नहीं पाई गई. इस सिरप का उत्पादन ओमेगा फार्मास्यूटिकल कंपनी द्वारा किया जाता है.
हमने इन परिवारों से बात कर इस मामले को समझने की कोशिश की है.
जुलाई महीने की बात है. 27 वर्षीय हेमा साय अपनी छः साल की बेटी गरिमा को लेकर बुराड़ी के अमृत विहार स्थित मोहल्ला क्लिनिक आई थीं. उनकी बेटी को खांसी और जुकाम था. करीब 12 बजे उनकी बेटी दवा खाकर सो गई. जब वह सोकर नहीं उठी तब हेमा ने गरिमा को हिलाया और महसूस किया कि उसका शरीर गर्म है. उसे बुखार था और पेट फूला हुआ था. हेमा और उनके पति तुरंत गरिमा को लेकर स्थानीय डॉक्टर के पास भागे जहां डॉक्टर ने उन्हें दूसरे अस्पताल में रेफर कर दिया.
हेमा बताती हैं, "मैं घबरा गई थी कि गरिमा को क्या हुआ. कपिल अस्पताल में डॉक्टर ने इलाज करने से मना कर दिया. फिर वहां हमने एंबुलेंस की और जगजीवन अस्पताल गए. वहां भी इलाज से मना कर दिया और हमें हिंदू राव अस्पताल जाने की सलाह दी."
हेमा बताती हैं कि वो हिंदू राव अस्पताल से वापस कलावती सरन बाल अस्पताल अपनी बेटी को लेकर जा रही थी. लेकिन रास्ते में ही गरिमा ने दम तोड़ दिया.
आठ साल पहले वह अपने पति के साथ नेपाल से दिल्ली आई थीं. उनके पति कैटरिंग कंपनी में काम करते हैं और महीने का 15 से 20 हजार रुपए कमाते हैं.
हेमा रोते हुए बताती हैं, "जब गरिमा छः महीने की थी तब उसे दिमाग की बीमारी के कारण पैरालिसिस अटैक आया था. कई साल इलाज के बाद वह ठीक हुई. वह होशियार थी. इलाज के बाद खुद से चलने की कोशिश करती थी. वह मुझे हमेशा कहती थी कि मम्मी मैं अब खुद से टॉयलेट चली जाती हूं, किताब पढ़ लेती हूं. वह पूरा दिन उछलती-कूदती रहती थी. उसका यह सब करना मुझे बहुत याद आता है."
28 अगस्त को गरिमा का जन्मदिन था. हेमा उसके लिए एक महीने से तैयारी कर रही थीं. लेकिन गरिमा इस दुनिया में नहीं रही.
जन्मदिन के तीन दिन बाद मौत
32 वर्षीय लक्ष्मी देवी जवाहर कैंप में अपने बच्चों और पति के साथ एक कमरे की झुग्गी में रहती हैं. लक्ष्मी 10 अक्टूबर को पानी भरने के लिए अपने घर से निकली थीं. इस दौरान उनकी दो वर्षीय बेटी अनन्या ने डेक्स्ट्रोमेथोर्फन सिरप की आधी बोतल पी ली.
लक्ष्मी न्यूज़लॉन्ड्री से कहती हैं, "मैं शाम को पानी भरने के लिए गई थी. और मेरे तीनों बच्चे घर पर ही थे. जब मैं घर वापस आई तो मैंने देखा अनन्या मेरी दवाई पी रही थी. मैंने तुरंत उसके हाथों से बोतल छीनकर फेंक दी. लेकिन आधे घंटे बाद ही उसे तेज बुखार हो गया."
शाम को सात बजे लक्ष्मी ने अपने भाई, प्रमोद को कॉल कर के घर बुलाया. वे और उनकी मकान मालकिन, जो उनके घर के नीचे ही एक कमरे में रहती हैं, उसे लेकर स्थानीय डॉक्टर के पास गए. डॉक्टर ने अनन्या का इलाज करने से मना कर दिया और तुरंत उसे कलावती सरन बाल अस्पताल ले जाने को कहा.
लक्ष्मी और चिंता देवी तुरंत अनन्या को कलावती सरन अस्पताल लेकर पहुंचे जहां तीन दिन इलाज के बाद 13 अक्टूबर को अनन्या की मृत्यु हो गई.
10 अक्टूबर के पहले से ही लक्ष्मी को खांसी-सर्दी हो रही थी. उनके भाई लक्ष्मी को पटेल नगर स्थित मोहल्ला क्लिनिक दवा दिलवाने ले गए थे जहां डॉक्टर ने लक्ष्मी को डेक्स्ट्रोमेथोर्फन सिरप दिया था.
लक्ष्मी रोते हुए कहती हैं, "10 अक्टूबर को अनन्या का जन्मदिन था. मैं उसके लिए पैसे जोड़कर एक फ्रॉक लाई थी. वह बहुत खुश थी. लेकिन जिस दिन उसका जन्मदिन था उसी दिन यह हादसा हो गया."
लक्ष्मी के पति फैक्ट्री में मजदूरी करते हैं. उनकी छह वर्षीय बड़ी बेटी एक पैर से अपाहिज है.
दिल्ली में डेक्स्ट्रोमेथोर्फन प्वाज़निंग के कई मामले
दिल्ली के प्रेम नगर में भी डेक्स्ट्रोमेथोर्फन सिरप पीने से कई बच्चे बीमार पड़े थे. हम उनमें से कुछ परिवारों से मिले.
चार वर्षीय यश को उनकी 28 वर्षीय मां सोनी देवी 4 अगस्त को करीब 11 बजे अमृत विहार स्थित मोहल्ला क्लिनिक लेकर गई थीं. उन्होंने तीन दिन पहले भी अपने बेटे को उसी मोहल्ला क्लिनिक में दिखाया था लेकिन तबीयत में कोई सुधार न होने के बाद वह अपने बेटे की जांच कराने फिर से गई थीं.
सोनी बताती हैं, "डॉक्टर ने मेरे बेटे को दवाई दी थी. मैंने रात को सोने से पहले यश को डेक्स्ट्रोमेथोर्फन दवा पिलाई थी जिसके बाद वह गहरी नींद में सो गया. पांच अगस्त की सुबह पांच बजे जब यश के पिता प्रमोद और सोनी की आंख खुली तब उन्होंने देखा कि यश के हाथ और पैर ठंडे हो रहे थे और उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी. सुबह 6 बजे तक करीब एक घंटे तक घर पर ही इलाज करने के बावजूद यश की तबीयत बिगड़ती चली गई. प्रमोद ने जब महसूस किया कि यश की नसें धीमी चल रही हैं तब वह तुरंत उसे लेकर पास में स्थित कपिल अस्पताल ले गए.”
प्रमोद बताते हैं, “मैं सुबह 7:20 बजे बेटे को लेकर कपिल अस्पताल पहुंचा. यहां डॉक्टरों ने यश को देखने के बाद ही इलाज करने से मना कर दिया. डॉक्टरों ने कहा कि उनके पास आईसीयू और जांच के लिए मशीन नहीं है. पांच अगस्त की सुबह हमने एंबुलेंस की और तुरंत मुनि माया राम जैन अस्पताल (पीतमपुरा) ले गए जहां यश को भर्ती किया गया."
मुनि माया राम जैन अस्पताल में यश का इलाज करीब एक सप्ताह तक चला लेकिन उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ. इस सबके बीच सात अगस्त को अमृत विहार के उसी मोहल्ला क्लिनिक से प्रमोद को कॉल आया जिसकी रिकॉर्डिंग उन्होेंने न्यूज़लॉन्ड्री के साथ साझा की है. वो बताते हैं, "जब मुझे कॉल आया तब मेरा बच्चा आईसीयू में था. उधर से मोहल्ला क्लिनिक की एक महिला कर्मचारी कह रही थीं वह दवा मुझे क्लिनिक में वापस कर दें क्योंकि उसकी जांच होनी है."
यश की तबीयत में सुधार नहीं होने के चलते 9 अगस्त को प्रमोद अपने बेटे को कलावती सरन बाल अस्पताल लेकर पहुंचे. जहां उन्हें बताया गया कि डेक्स्ट्रोमेथोर्फन कफ सिरप के दुष्प्रभाव से उनके बेटे की यह हालत हुई है. यश को एक सितंबर को कलावती सरन बाल अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है लेकिन उसे अब भी दौरे आते हैं.
जब 23 दिसंबर को हम प्रमोद के घर पहुंचे तब उनका बेटा यश बहुत रो रहा था और चिल्ला रहा था. मां-बाप का कहना है कि इस बीमारी से यश की मानसिक स्थिति पर असर पड़ा है. सोनी बताती हैं, "इसे पहले का कुछ याद नहीं. इसकी याददाश्त कमजोर हो गई है. यह बात सुन लेता है लेकिन प्रतिक्रिया देने में समय लगाता है. खाना नहीं खाता है. यह चिड़चिड़ा हो गया है, साथ ही इसकी नजर भी कमजोर हो गई है."
प्रमोद बहुत दुख के साथ कहते हैं, "इसके इलाज में मेरी आठ साल की जमा पूंजी खत्म हो गई. अब मैं कर्ज लेकर आगे का इलाज करा रहा हूं."
25 वर्षीय रीता सिंह शीश महल (प्रेम नगर) में रहती हैं. उनकी दो साल की बेटी है जिसे कुछ दिनों से खांसी हो रही थी. 20 नवंबर की सुबह वह मोहल्ला क्लिनिक से अपनी बेटी अर्पिता के लिए दवा लेकर आई थीं. उन्हें डेक्स्ट्रोमेथोर्फन सिरप दिया गया था. उन्होंने हमें दवा की शीशी की फोटो भी दिखाई जो उन्होंने अर्पिता को पिलाई थी.
"तीन दिन पहले ही हम लोग गोरखपुर से एसी ट्रेन से दिल्ली आए थे. उसके बाद से मेरी बेटी को जुकाम हो गया. 20 नवंबर को मैं मोहल्ला क्लिनिक से सुबह 8:30 बजे दवा लेकर आई और रात को एक चम्मच पिला दी. उसके बाद वह बेहोश हो गई. उसके हाथ-पैर ऐंठ गए. हम भागे-भागे उसे संजय गांधी अस्पताल ले गए जहां से कलावती सरन अस्पताल रेफर कर दिया. उसे वहां दो दिन आईसीयू में रखा और फिर 25 नवंबर को डिस्चार्ज किया." रीता ने बताया.
हमने इलाके में और लोगों से बात की और पता चला कि अर्पिता जैसे कई और मामले भी इस इलाके में हुए. 25 वर्षीय शबाना खातून, रीता सिंह के घर से कुछ ही दूरी पर रहती हैं. उनका दो साल का बेटा रहीम है. शबाना बताती हैं कि नवंबर के आखिरी सप्ताह में उनके बेटे को भी जुकाम की शिकायत थी. उन्होंने भी मोहल्ला क्लिनिक से ही दवा ली थी.
"नवंबर का आखिरी सप्ताह था. मैं दोपहर 12 बजे दवाई लाई थी जिसे पिलाने के कुछ ही देर बाद रहीम की आंखें ऊपर हो गईं, शरीर ठंडा पड़ने लगा और यह ठीक से चल भी नहीं पा रहा था. मैं भागते हुए अपने पति के पास गई जो एक फैक्ट्री में सिलाई का काम करते हैं. हम तुरंत अपने बेटे को स्थानीय डॉक्टर के पास ले गए जहां एक हफ्ता इसका इलाज चला." शबाना बताती हैं.
रहीम अब ठीक है और चलने की स्थिति में है.
खराब दवा का बैच
30 वर्षीय कुणाल गुप्ता उन तीन डॉक्टरों में से एक हैं जिन्हें दिल्ली सरकार ने इस मामले में निलंबित किया है. कुणाल 2020 से शीशमहल मोहल्ला क्लिनिक में नियुक्त थे, और साल 2016 से अलग-अलग अस्पतालों में डॉक्टरी कर रहे हैं.
डॉ कुणाल कहते हैं, "मुझे इस बात की कोई सूचना नहीं दी गई है कि किस बच्चे की मौत हुई है. सरकार ने इतना बताया है कि डेक्स्ट्रोमेथोर्फन प्वाइज़निंग में मेरा नाम है, इसलिए मुझे हटाया जा रहा है. पीछे से किसी दवा की जांच नहीं होती. सारा दोष डॉक्टर पर डाल दिया जाता है."
न्यूज़लॉन्ड्री ने अलग-अलग मोहल्ला क्लिनिक के डॉक्टरों से बात की और पाया कि सरकार समय-समय पर डेक्स्ट्रोमेथोर्फन के अलग-अलग बैच के खराब होने की जानकारी देती थी. अगस्त महीने में दवा की दो बैच पर सवाल उठे थे. जीएल 0015 और जीएल 0016 बैच की जांच के लिए इन्हें मोहल्ला क्लीनिकों से वापस मंगाया गया था. इसके बाद दूसरा मेल दिल्ली सरकार द्वारा नवंबर में मोहल्ला क्लीनिक के डॉक्टरों भेजा गया जो अलग बैच के लिए था.
डॉ कुणाल ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “डेक्स्ट्रोमेथोर्फन की जांच बहुत समय से हो रही है. हमें बताया गया था कि जीएल-0023 बैच की दवाई को तुरंत फेंक दीजिए. मेरे पास वो बैच था ही नहीं. मेरे पास जीएल 0060 था. फिर भी नवंबर में जब पहली बच्ची बीमार हुई उसके बाद से मैंने किसी बच्चे को वो दवाई नहीं दी और सारा बैच अलग रखवा दिया. मैंने तुरंत इसका संज्ञान लिया और आशा वर्कर्स को भी बताया था कि जो भी डेक्स्ट्रोमेथोर्फन से बीमार हो रहा है उसकी दवा की बोतल लेकर फेंक दो."
यानि डॉक्टर कुणाल के मुताबिक डेक्स्ट्रोमेथोर्फन की 0015, 0016 और 0023 के अलावा दूसरे बैच की दवा भी खराब हो सकती है क्योंकि उन्होंने 0060 बैच की दवा दी थी और उससे भी बच्चे के बीमार होने की घटना सामने आई. लेकिन सरकार की तरफ से इन तीन बैच के अलावा और किसी बैच की गड़बड़ी के बारे में कोई सूचना नही दी गई थी.
26 वर्षीय फॉर्मासिस्ट सूरज कुमार मंगोलपुरी खुर्द मोहल्ला क्लिनिक में काम करते हैं. वह बताते हैं, “हर साल डेक्स्ट्रोमेथोर्फन का कोई न कोई बैच खराब निकलता ही है. हम दूसरी दवाओं की मांग करते हैं लेकिन वो अक्सर हमें डेक्स्ट्रोमेथोर्फन दे देते हैं, ये कहकर की यही उपलब्ध है."
हमने अमृत विहार मोहल्ला क्लिनिक में कार्यरत डॉ रितिका से भी संपर्क किया. उन्हें भी इस घटना के बाद निलंबित कर दिया गया है. उन्होंने बात करने से मना कर दिया. अगस्त के बाद से इस मोहल्ला क्लिनिक को बंद कर दिया गया था. हाल ही में इसे नए स्टाफ के साथ दोबारा खोला गया है. वहीं दिल्ली सरकार की जांच जारी है. इसी तरह शीशमहल (प्रेम नगर) मोहल्ला क्लिनिक भी दो महीने तर बंद था.
दिल्ली सरकार पर सवाल
यह मामला अब राजनीतिक रंग ले चुका है. भारतीय जनता पार्टी और उनके समर्थकों ने पूरे इलाके में 23 दिसंबर को जगह-जगह मोहल्ला क्लिनिक के खिलाफ पोस्टर लगाए गए हैं.
पूर्वी दिल्ली से सांसद गौतम गंभीर ने ट्वीट कर कहा, "अगर मोहल्ला क्लिनिक के नाम पर वोट केजरीवाल मांगते हैं, तो गलत दवाई से वहां हुई बच्चों की मौत की ज़िम्मेदारी भी केजरीवाल की है."
वहीं उत्तर-पूर्वी दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी ने भी प्रेस नोट जारी कर सीएम अरविंद केजरीवाल पर हमला बोला. तिवारी ने कहा, “दिल्ली के मोहल्ला क्लीनिक में गलत दवा देने से तीन बच्चों की मौत हो चुकी है और 13 बीमार हैं. दिल्ली सरकार को तुरंत एक्शन लेना चाहिए. जो दिल्ली की दो करोड़ जनता को नहीं संभाल पा रहा, वो पंजाब और यूपी का सपना देखने गया है."
20 दिसंबर को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने दिल्ली सरकार से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि शहर में डेक्स्ट्रोमेथोर्फन की आपूर्ति या इस्तेमाल नहीं किया जाए.
कैसे होती है मोहल्ला क्लिनिक में डॉक्टरों की नियुक्ति?
27 वर्षीय डॉ नवीन बुराड़ी में मोहल्ला क्लिनिक में डॉक्टर हैं. वह बताते हैं, "मोहल्ला क्लिनिक में डॉक्टर का एक पद होता है जिसे मेडिकल अफसर (एमओ) कहा जाता है. इसके लिए सरकार एप्लीकेशन निकालती है. इस पद के लिए कम से कम एमबीबीएस पास होना जरूरी है. दस्तावेज जमा कराए जाते हैं जिसके बाद सीडीएम ऑफिस में इंटरव्यू होता है, उसके बाद ही किसी डॉक्टर की नियुक्ति होती है. नियुक्ति के बाद उसे इलाके का ऑप्शन दिए जाते हैं, जहां वो काम करना चाहता है."
हर मोहल्ला क्लिनिक में चार लोगों का स्टाफ होता है. एमओ यानी डॉक्टर, एक फार्मासिस्ट, एक मोहल्ला क्लिनिक असिस्टेंट (एमसीए) और एक मल्टी टास्क वर्कर (एमटीडब्लू). सभी को 75 मरीज प्रति दिन के हिसाब से न्यूनतम वेतन मिलता है.
हर मोहल्ला क्लिनिक में दवाइयां अलग-अलग अस्पतालों से आती हैं. जैसे अमृत विहार में महर्षि वाल्मीकि अस्पताल से और प्रेम नगर में गुरु तेग बहादुर अस्पताल से दवाइयां आती हैं. हर बीमारी के लिए दवाइयों की सूची हर मोहल्ला क्लिनिक के पास मौजूद होती है.
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