Newslaundy Explained
पूर्वाग्रह और तटस्थता: वैचारिकी के भूगोल में न्यूज़लॉन्ड्री की ज़मीन
"तटस्थता" और "पूर्वाग्रह" यह दो शब्द अक्सर समाचार मीडिया के संदर्भ में इस्तेमाल होते हैं. और उससे भी ज्यादा इन दोनों शब्दों का दुरुपयोग अक्सर नेक नीयत वाले ईमानदार पत्रकारों द्वारा किया जाता है, अपनी पत्रकारिता को 'निष्पक्ष', या खुद को 'तटस्थ' बताने के लिए.
निर्लज्ज पक्षधरता और ट्विटर ट्रोल्स को छोड़ दीजिए, हम सभी के लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम अपनी-अपनी सीमाओं, खामियों के बारे में थोड़ा जान लें, क्योंकि न तो इसे नकारा जा सकता है ना ही इसे टाला जा सकता है. मैंने पत्रकारिता में तटस्थता के मसले पर एक पूरा पॉडकास्ट किया है. इस विषय पर बीते कई दशकों के दौरान काफी बातचीत हुई है, जिनमें से कुछ का उल्लेख मैंने पॉडकास्ट में किया है.
सच यह है कि मनुष्य में हमेशा तटस्थता की कमी रहेगी. यही बात हर मानव-निर्मित तकनीक पर भी लागू होगी. गणित के अलावा कुछ भी तटस्थ या पूर्वाग्रह से बचा नहीं है.
बाकी विज्ञान में भी हम तत्वों और यौगिकों की बात करते समय एसटीपी (मानक तापमान दबाव) जैसी शब्दावलियों का प्रयोग करते हैं. जब स्थितियां बदलती हैं, तो उस पदार्थ की विशेषताएं भी बदल जाती हैं जिसे हम परिभाषित या वर्गीकृत कर रहे हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि संदर्भ ही सब कुछ है. और मनुष्य तत्वों या यौगिकों की तुलना में कहीं अधिक जटिल है.
मेरे जीवन के अधिकांश भाग में मेरे विचारों (जो कि तटस्थ नहीं हैं) का झुकाव उदारवादी पत्रकारिता की ओर रहा है. यह बात मैं बतौर न्यूज़ पेशेवर भी कह सकता हूं और बतौर न्यूज़ उपभोक्ता भी कहता हूं. यह अच्छी बात है. मीडिया को दकियानूस होने की बजाय अधिक प्रगतिशील होना चाहिए क्योंकि अपनी तमाम अभिव्यक्तियों में मीडिया वह प्रक्रिया है जिसके जरिए आम लोग अपने आस-पास की दुनिया को राजनैतिक, सामाजिक और कलात्मक नजरिए से समझते हैं.
मानवता का इतिहास भयावह क्रूरता और बर्बरता से एक हद तक सभ्य सामाजिक ढांचे और मूल्यों की तरफ बढ़ने का रहा है. सूचना का प्रवाह (यहां समाचार) इस विकास की प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाता है. जहां भी सूचना और समाचार का प्रसार उल्टी दिशा में होने लगता है, हम पाते हैं कि छोटे-छोटे समूह वापस उन्हीं आदिम नीतियों और कृत्यों की तरफ लौट जाते हैं, भले ही दुनिया का सामान्य प्रवाह उदारवादी और प्रगतिशील बना रहता है.
उदारवादी पृष्ठभूमि के लोगों में पत्रकारिता की ओर आकर्षित होने की प्रवृत्ति होती है. मुझे नहीं पता इसका कारण क्या है, लेकिन मुझे विश्वास है कि इसे समझाने वाले कई लेख मिल जाएंगे. भारत में बड़ा झुकाव एक अनोखी और विक्षिप्त विचारधारा की ओर दिख रहा है जो न तो रूढ़िवादी है और न ही प्रगतिशील. यह सिर्फ सत्ता के आगे घिसटती रहती है. इसके इतर भी हर रिपोर्ट और हर पत्रकारिता के अपने पूर्वाग्रह हैं. यह किसी व्यक्ति या समूह द्वारा जुटाई गई जानकारी का उत्पाद है- ऐसे व्यक्ति या समूह जिनका दुनिया को देखने का अपना नजरिया है, अपनी आस्थाएं हैं, अपनी प्राथमिकताएं हैं और कुछ अपने मूल्य हैं.
किसी रिपोर्ट को इन प्रभावों से बचाया नहीं जा सकता. हमारी दृष्टि से लेकर वह सब कुछ जिसे हम 'सामान्य', विश्वसनीय या तटस्थ मानते हैं, वह हमारे जीवन के अनुभवों से आता है.
आपको एक सरल उदाहरण देता हूं: जब मैं छोटा था, मेरा एक मित्र सोचता था कि सेना को बहुत लाड़-प्यार मिलता है, और फौजियों को कैंटीन में भारी छूट पर मिलने वाली वस्तुओं और मदिरा पर रोक लगनी चाहिए.
मुझे उसकी बातें बेतुकी लगती थी. लाड़-प्यार और सेना को?
जब हम जवान हुए तो मैं उस समूह का हिस्सा बना जो सूचना के अधिकार को अधिक सुलभ और ताकतवर बनाने की लड़ाई लड़ रहा था. तब मेरे उस मित्र का विचार था कि आरटीआई एक खतरनाक विचार है, यह सरकारी कर्मचारियों पर कागजी कार्रवाई का बोझ डालेगा और उनके कामकाज में बाधा उत्पन्न करेगा.
जाहिर है उसके पिता नौकरशाह थे और मेरे पिता फौजी. हममें से कोई भी अज्ञानी या बुरा या भ्रष्ट या शराबी नहीं था. हम दोनों अपनी-अपनी परिस्थितियों में गढ़े गए थे.
यही कारण है कि अधिक पढ़ने और खुद को विभिन्न विचारों और नजरियों से अवगत कराने पर हमारा दृष्टिकोण बेहतर होता है और हम बेहतर निर्णय कर पाते हैं. एक टीम जितनी अधिक समावेशी और विविध होगी, वह अपना सामूहिक कार्य पूरा करने के उतना ही करीब होगी.
न्यूज़लॉन्ड्री एक प्रयास है उस दिशा में बढ़ने का जहां हम अपने नजरिए को निरंतर विकसित करते हुए परिपक्व विश्वदृष्टि हासिल कर सकें. पत्रकारिता इस संगठन का प्राथमिक काम है- और इसका सरोकार केवल तथ्यात्मक, सटीक और जनहित की कहानियां कहने से है. इस काम में लगी टीम के पास यदि विभिन्न प्रकार के अनुभव, दृष्टिकोण और पृष्ठभूमियां हैं, तो यह हम सभी को बेहतर बनाता है.
समावेशी होने का मतलब यह नहीं है कि केवल संतुलन बनाने के लिए घृणा फैलाने वाले विचारों को भी यहां स्थान दिया जाय. यह झूठी और मूर्खतापूर्ण कल्पना है. न्यूज़लॉन्ड्री में समानता की वकालत करने वाले व्यक्ति और छुआछूत या जाति व्यवस्था का समर्थन करने वाले व्यक्ति को एक तराजू पर नहीं तौला जाता. यह केवल एक उदाहरण है, ऐसे कई और भी हैं.
सोशल मीडिया के कारण नफरत का विस्तार हुआ है. राजनीतिक दलों और मीडिया प्लेटफॉर्म ने हाशिए पर रहे घृणाप्रेरित समूहों को अब मुख्यधारा में स्थान दिला दिया है. यही कारण है कि सबसे घिनौनी आवाजें और टिप्पणियां भी खबरों में स्थान पा जाती है. यहां हम क्लिकबेट और ट्रैफिक के लिए बुनियादी मानवीय मूल्यों और सिद्धांतों का त्याग नहीं करेंगे. सभी पक्षों को समान महत्व देने की आवश्यकता नहीं है. कुछ आवाजें डिजिटल युग की नहीं बल्कि पाषाण युग की प्रतिध्वनि हैं, बस उनका क्षणिक पुनर्जागरण हो गया है.
इसलिए, एक संगठन के रूप में न्यूज़लॉन्ड्री को वामपंथी, दक्षिणपंथी या मध्यमार्गी नहीं कहा जा सकता- जबकि न्यूज़लॉन्ड्री के साथ काम करने वाले विभिन्न व्यक्तियों के बारे में ऐसी धारणा बनाई जा सकती है. हालांकि भारत में वामपंथी और दक्षिणपंथी की पहचान करना मुश्किल है. हमारे सहयोगियों का झुकाव और विश्वास विभिन्न राजनैतिक विचारधाराओं की ओर है, और यह हमारे पाठकों से छिपा नहीं हैं. हम एक अधिक समावेशी कार्यस्थल की कल्पना करते हैं, जहां दो विपरीत अनुभवों का आपस में मेलजोल हो और एक ऐसा माहौल बने जहां हम सभी एक-दूसरे से और अपने सब्सक्राइबर्स से सीख सकें.
हमारे पॉडकास्ट और हैंगआउट इसका जरिया हैं. पारदर्शिता के हमारे प्रयास का नतीजा है हमारे पॉडकास्ट जहां आप हमारे संपादकों और पत्रकारों के असंपादित विचारों को सुन सकते हैं. उपभोक्ताओं के साथ हमारे हैंगआउट और जूम कॉल भी यही करते हैं. यह हमें अपने न्यूज़ उपभोक्ता के नजरिए से परखने का अवसर देते हैं. वह बेहद ईमानदार और विनम्र हैं, न्यूज़लॉन्ड्री के उपभोक्ता बेहद खास हैं. हमारे झुकाव, पूर्वाग्रह और नजरिए सभी के सामने हैं, ताकि प्रत्येक व्यक्ति के काम को देखा जा सके और तटस्थता की सीमाओं के साथ तालमेल बिठा सकें.
लेकिन तथ्यों से कभी समझौता नहीं होना चाहिए. न्यूज़लॉन्ड्री में हम इसे एक अनुशासन के तौर पर बरतते हैं. क्योंकि हम अपने सब्सक्राइबर्स के ऋणी हैं. उन्होंने इस समाचार मॉडल को बदला है, जिसे कभी असंभव माना जाता था. इसे सामान्य रूप से व्यावहारिक बनाने के लिए हमें यह दिखाना होगा कि जब रिपोर्टिंग विज्ञापनदाताओं और ट्रैफिक की मोहताज न हो तब इसकी गुणवत्ता बेहतर होना तय है.
न्यूज़लॉन्ड्री का लक्ष्य यही है. हम ऐसा इसलिए करते हैं ताकि आप हमें बेहतर तरीके से जान सकें, हम आपकी बेहतर तरीके से सेवा कर सकें, और पत्रकारिता जनहित का उद्यम बना रहे, और बने रहना चाहिए.
(न्यूज़लॉन्ड्री एक्स्प्लेंड लेखों की एक श्रृंखला है जो हमारे संपादकीय विज़न और सब्सक्रिप्शन मॉडल से संबंधित सवालों का विश्लेषण करती है.)
इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
Also Read
-
The Cooking of Books: Ram Guha’s love letter to the peculiarity of editors
-
What’s Your Ism? Ep 8 feat. Sumeet Mhasker on caste, reservation, Hindutva
-
TV Newsance 250: Fact-checking Modi’s speech, Godi media’s Modi bhakti at Surya Tilak ceremony
-
‘1 lakh suicides; both state, central govts neglect farmers’: TN farmers protest in Delhi
-
What India should have learned from the pandemic years – but didn’t