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उत्तर प्रदेश: जिस शख्स के निधन पर मुख्यमंत्री ने शोक पत्र लिखा, उन्हें 15 साल बाद दोबारा मरा बताकर जमीन पर किया कब्जा
उत्तर प्रदेश के कानपुर में 1980-90 के दशक में ‘सियासत जदीद’ नाम का अखबार चर्चित था. इसके संस्थापक मौलाना इसहाक इल्मी थे. 24 अक्टूबर 1992 को दिल का दौरा पड़ने से उनका का निधन हो गया. ‘हिंदी सियासत’ अखबार में 25 अक्टूबर को छपी खबर के मुताबिक ‘‘देर रात मौलाना दफ्तर से उठकर आराम करने के लिए घर के अंदर गए कि अचानक से दिल का दौरा पड़ा और वे सबको बिलखता छोड़कर इस जहाने फानी से कूच कर गए.’’
मौलाना इसहाक इल्मी के निधन पर उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल सत्यनारायण रेड्डी और मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने शोक पत्र भेजा. दोनों ने इल्मी को उर्दू पत्रकारिता का बड़ा हस्ताक्षर बताया था. न्यूजलॉन्ड्री के पास कल्याण सिंह द्वारा इल्मी परिवार को लिखा पत्र मौजूद है, जिसमें वे लिखते हैं, ‘‘इसहाक इल्मी जी केवल उर्दू दैनिक ‘सियासत जदीद’ के प्रधान संपादक ही नहीं थे बल्कि वो उर्दू के जाने माने विद्वान और उर्दू पत्रकारिता के क्षेत्र में एक प्रमुख हस्ताक्षर भी थे.’’
इनके अलावा यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने भी तब संवेदना प्रकट करते हुए इल्मी को अपना दोस्त बताया था. निधन के बाद इल्मी अपने पीछे अपनी पत्नी नौशादा इल्मी, पांच बेटे और चार बेटियों को छोड़ गए. इसरार इल्मी के दामाद आरिफ मोहम्मद खां हैं. खां वर्तमान में केरल के राज्यपाल हैं, और पूर्व में केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं. इसके अलावा बीजेपी नेता और पूर्व पत्रकार शाजिया इल्मी उनकी चार बेटियों में से एक हैं.
इसहाक इल्मी के बेटे एजाज इल्मी पेशे से डॉक्टर हैं और पूर्व में बीजेपी के सदस्य रह चुके हैं. इल्मी न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘पिताजी के निधन के बाद जैसे-तैसे हम आगे की तरफ बढ़ रहे थे. करीब 15 साल बाद 2007 में एक ऐसी जानकारी सामने आई जिससे हम सब हैरान रह गए.
लखीमपुर खीरी में हमारी करीब 12 एकड़ की एक जमीन है. उसकी देख-रेख हमने वहीं के एक शख्स को दी थी. एक रोज उसने बताया कि वो जमीन तो बिक गई है. हम जब इस मामले की तह में गए तो और हैरान थे. दरअसल जमीन बेचने के लिए इस्तेमाल हुए डॉक्यूमेंट के मुताबिक पिताजी का निधन 2007 में हुआ था. और निधन के समय उनका कोई नहीं था जबकि हम नौ भाई-बहन और मेरी मां अब भी हैं.’’
जमीन को अपने नाम कराने वाले शख्स का नाम इकराम हुसैन है. एजाज इल्मी न्यूज़लॉन्ड्री से वसीयतनामा साझा करते हैं, जो कथित तौर पर और इसहाक इल्मी ने इकराम हुसैन को लिखा था. 13 मार्च 2007 में बने इस वसीयतनामा में इसहाक इल्मी के हवाले से लिखा गया है कि मेरी उम्र अब 65 साल हो चुकी है. कब मैं बीमार पड़ जाऊं. ऐसे में मैं चाहता हूं कि अपनी संपत्ति का माकूल इंतजाम कर दूं. मेरी पत्नी का निधन पहले ही हो चुका है. मेरा कोई बेटा-बेटी नहीं है. ऐसे में मेरी देखभाल मेरे भांजे इकराम हुसैन ने की. मैं उसकी सेवा से खुश हूं. मेरे जिंदा रहने तक मैं अपनी जमीन का मालिक खुद रहूंगा और मेरे निधन के बाद सब इकराम हुसैन की होगी.
जो इसहाक इल्मी उर्दू के जानेमाने विद्वान रहे हैं. जिनको उर्दू पत्रकारिता का बड़ा नाम माना जाता रहा है. उनके इस कथित वसीयतनामे पर हस्ताक्षर की जगह अंगूठे का निशान लगा हुआ है. 2007 में 13 मार्च को यह कथित वसीयतनामा बनाया गया है. वहीं दो दिन बाद 15 मार्च को ही कथित तौर पर इल्मी का निधन हो गया और उनकी वसीयत इकराम हुसैन के नाम हो गई.
एजाज इल्मी आरोप लगाते हैं कि फर्जीवाड़े के जरिए जमीन को अपने नाम कराने के लिए सिर्फ फर्जी वसीयतनामा ही नहीं बनवाया गया बल्कि मृत्युप्रमाण पर भी बनाए गए. एजाज न्यूज़लॉन्ड्री से दो मृत्यु प्रमाण पत्र साझा करते हैं. एक जो 24 अक्टूबर 1992 को उनके निधन के बाद कानपुर प्रशासन ने बनाया था. दूसरा जो इकराम हुसैन ने 2007 में बनवाया.
इसके अलावा एजाज न्यूज़लॉन्ड्री से एक एफिडेविट भी साझा करते हैं जो 2019 में इकराम हुसैन द्वारा दिया गया. जिसमें हुसैन लिखते हैं,‘‘इसहाक इल्मी की सेवा इकराम हुसैन करते थे. इन्हीं ने इकराम इल्मी का कफन दफन किया.’’
एजाज इल्मी इसको लेकर कहते हैं, ‘‘जिस इंसान का निधन 1992 में हो गया. जिनके निधन पर मुख्यमंत्री से लेकर तमाम लोगों ने संवेदना व्यक्त की उनका फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र बनाया गया. यहां सबसे बड़ा सवाल स्थानीय प्रशासन पर उठता है कि हुसैन ने किस शख्स का कफन दफन किया. किस कब्रिस्तान में किया और लखमपुरी खीरी प्रशासन ने क्या देखकर मृत्यु प्रमाण पत्र जारी कर दिया.’’
इकराम हुसैन ने खसरा-खतौनी में भी जमीन को अपने नाम करा लिया है. इसरार इल्मी के बेटे और वर्तमान में ‘सियासत जदीद’ के संपादक इरशाद इल्मी न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘जब उसने जमीन को अपने नाम कराया तब हमें सूचना मिली. उसके बाद से इसपर विवाद चल रहा है.’’
इकराम ने इल्मी से अपना रिश्ता भांजे का बताया है. क्या इल्मी परिवार पहले से इकराम को जानता था. इस सवाल पर इसरार कहते हैं, ‘‘नहीं, बिल्कुल नहीं. हम उसे पहली बार तब जाने जब जमीन का मामला सामने आया.’’
अंतहीन संघर्ष जारी
उत्तर प्रदेश में दबंगों द्वारा जमीन कब्जाने का सिलसिला लंबे समय से चल रहा है. हालांकि ये दबंग अक्सर उन लोगों को अपना शिकार बनाते हैं जो कमजोर हैं और उन्हें भरोसा होता है कि इन्हें दबाया जा सकता है. वो लंबे समय तक कानूनी लड़ाई नहीं लड़ सकते. इस मामले में एक ऐसे परिवार की जमीन को निशाना बनाया गया जिसकी राजनीतिक पकड़ बेहद मजबूत रही है. उस शख्स का फर्जी मृत्युप्रमाण पत्र बनवाया गया जिसके निधन पर मुख्यमंत्री ने दुख जताते हुए पत्र लिखा था.
जब इल्मी परिवार को इस फर्जीवाड़े की जानकारी मिली तो उन्होंने इसको लेकर लड़ाई शुरू की. एजाज इल्मी बताते हैं कि हमने पहले बातचीत से चीजों को सुलझाने की कोशिश की लेकिन असफल रहे तो 7 सितंबर 2009 को एफआईर दर्ज कराई. जो एफआईआर इकराम हुसैन पर दर्ज हुई है उसका नंबर 1152/09 है. आईपीसी की धारा 420 और 419 के तहत एफआईआर दर्ज होने के बाद हुसैन जेल भी गए. लगभग छह महीने तक जेल में रहने के बाद इकराम जमानत पर वापस आ आए.’’
2009 में एफआईआर दर्ज होने के बाद से यह विवाद अभी तक जारी है. एजाज इल्मी कहते हैं, ‘‘बार-बार आदेश मिलने के बाद स्थानीय अधिकारियों की मिलीभगत से मामला अटक जाता है.’’
2008 में इस फर्जीवाड़े की जानकारी मिलने के बाद एजाज इल्मी के बड़े भाई राशिद इल्मी ने 18 जुलाई 2008 को तहसीलदार न्यायिक न्यायालय में पुनर्स्थापना प्रार्थना पत्र दिया. एजाज बताते हैं कि इस दौरान इसरार दावेदारी छोड़ने के लिए लगातार धमकी देता रहा. वहीं इल्मी परिवार अधिकारियों को जल्द से जल्द न्याय के लिए पत्र लिखता रहा. 2009 में बहराइच से बसपा विधायक वारिस अली ने तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती को भी इस संबंध में पत्र लिखा और पूरे मामले की जानकारी दी. तमाम कोशिशों के बाद 10 अगस्त 2015 को जमीन का नामांतरण आदेश निरस्त कर पुनर्स्थापित करने का आदेश पारित कर दिया. इसके बाद इकराम हुसैन ने उपजिला मजिस्ट्रेट के यहां अपील दायर की जिसे न्यायालय ने 11 मई 2016 को रद्द कर दिया.
मामले में कार्रवाई न हो उसके लिए अपील इकराम के लिए नया हथियार बन गया है. एजाज बताते हैं, ‘‘लखीमपुर खीरी उपजिलाधिकारी कार्यालय ने कई बार इकराम को उपस्थित होने का नोटिस भेजा लेकिन वो उपस्थित होने की बजाय अपील लगाकर मामले को कुछ दिन के लिए टाल देते हैं. 2017 में भी उपजिलाधिकारी ने इकराम को साक्ष्यों के साथ मामले में अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया. नोटिस में कहा गया कि समय पर नहीं आने पर समझा जाएगा कि आपको इस संबंध में कुछ नहीं कहना है. इसके बाद आप पर कार्रवाई होगी. उस बार भी वो नहीं आया.’’
इसी साल सितंबर महीने में राजस्व परिषद के आयुक्त एवं सचिव की तरफ से लखीमपुर खीरी के जिलाधिकारी को पत्र लिखा गया. जिसमें बताया गया कि प्रार्थी द्वारा अवगत कराया गया कि जिलाधिकारी के आदेश दिनाक 27 जुलाई 2015 एवं अपर आयुक्त के आदेश दिनांक 31 अगस्त 2021 के बावजूद तहसीलदार न्यायालय में लंबित पड़ा हुआ है और कोई कार्रवाई नहीं हो रही है. तत्काल इस मामले में कार्रवाई कर परिषद को जानकारी दें.
इस दौरान उत्तर प्रदेश में तीन सरकार बदल गईं. 2017 में जब यूपी में बीजेपी की सरकार आई तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि भू-माफियों की हमारी सरकार में कोई जगह नहीं होगी. लेकिन एजाज इल्मी की यह कहानी बताती है कि भू-माफियाओं की कितनी पकड़ है. और कैसे तमाम सरकारें उनपर लगाम लगाने में असफल रहीं.
एजाज कहते हैं, ‘‘इस मामले में क्या कार्रवाई हुई इसकी जानकारी हमें नहीं है. 2015 जिलाधिकारी द्वारा सख्त आदेश के बावजूद स्थानीय स्तर के अधिकारी इस मामले को खत्म नहीं करना चाहते. क्योंकि उन्हें मालूम है कि तत्कालीन स्थानीय अधिकारियों की इस पूरे मामले में मिलीभगत है. 2015 में जिलाधिकारी ने कहा था कि शीघ्र की ही इस मामले का निपटारा किया जाए. शीघ्र निपटारा करते-करते छह साल हो गए. अब परिषद ने तत्काल कार्रवाई करने का आदेश दिया है. देखना होगा कि तत्काल कितने दिन चलता है.’’
व्यवस्था से खफा एजाज आगे कहते हैं, ‘‘अपनी जमीन की लड़ाई हम बीते 14 साल से लड़ रहे हैं. लेकिन कोई फैसला नहीं हो रहा है. वर्तमान में जमीन प्रशासन के कब्जे में है. व्यवस्था का दुष्चक्र ऐसा है कि आम आदमी इसमें बंधकर रह जाए. जिस शख्स के निधन पर हजारों लोग शामिल हुए. मुख्यमंत्री से लेकर तमाम लोगों ने शोक जाहिर किया. जिनका एक नाम था. उनके निधन के 16 साल बाद उनके नाम पर फर्जीवाड़ा हुआ और प्रशासन ने चुपचाप होने दिया.’’
न्यूज़लॉन्ड्री ने इकराम हुसैन से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन बात नहीं हो पाई. वहीं लखीमपुर खीरी के जिलाधिकारी महेंद्र बहादुर सिंह से इस मामले को लेकर सवाल किया तो वे कहते हैं, ''आप हमें इस मामले का डॉक्यूमेंट भेज दीजिए. हम उसे देखकर जवाब देंगे.’’
हमने उन्हें सितंबर 2021 में राजस्व परिषद के आयुक्त एवं सचिव द्वारा भेजा पत्र साझा किया है. अगर उनका जवाब आता है तो खबर में जोड़ दिया जाएगा.
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