Opinion

मारिया रेसा : 'आप सत्य के लिए क्या बलिदान कर सकते हैं?'

सम्माननीय महाराज, राज परिवार के सदस्य, नॉर्वे की नोबेल कमेटी के सम्मानीय सदस्य, मौजूद महामहिम और सम्माननीय अतिथि गण.

मैं आपके सामने दुनिया के हर पत्रकार की प्रतिनिधि बनकर खड़ी हूं जिसे डटे रहने, अपने मूल्यों और अभियान के प्रति ईमानदार रहने के लिए बहुत कुछ बलिदान करना पड़ता है. ताकि हम सत्ता की जवाबदेही तय कर सकें और आप तक सच ला सकें. मुझे याद है जमाल खशोगी का क्रूरता से टुकड़े-टुकड़े किए जाना, माल्टा में डैफनी कारूआना गालीजिया की हत्या, वेनेजुएला में लज मेली रेयेस, बेलारूस में रोमन प्रोतसेविच (जिनको गिरफ्तार करने के लिए उनका हवाई जहाज अगवा कर लिया गया), हांगकांग की जेल में सड़ते जीमि लाए और सनी स्वे, जिन्होंने सात साल से अधिक समय जेल में बिताने के बाद बाहर आकर फिर से एक समाचार संस्था शुरू कर दी. अब वो म्यांमार से वे पलायन के लिए मजबूर हैं. और मेरे अपने देश में 23 वर्षीय फ्रेंची मे कम्पियो, जो लगभग दो साल से जेल में हैं और 36 घंटे पहले खबर मिली कि मेरे पुराने साथी जेस मालाबनन को गोली मार दी गई.

हमें सुरक्षित रखने और काम करते रह पाने के लिए धन्यवाद के पात्र बहुत सारे लोग हैं. प्रेस की स्वतंत्रता रक्षा कर रहे #HoldTheLine समूह जिसमें 80 से ज्यादा देशों के संगठन हैं, और तमाम मानवाधिकार संस्थाएं जो घटनाओं पर प्रकाश डालने में हमारी मदद करते हैं. आपके लिए भी इसकी कीमत है: फिलीपींस में, वकील कहीं ज्यादा संख्या में मारे गए हैं. 2016 में राष्ट्रपति रोड्रिग ड्यूटेरटे के पदस्थ होने के बाद 22 पत्रकारों की तुलना में 63 वकीलों की हत्या हुई है. कैरापाटैन, जो हमारे #CourageON मानवाधिकार गठबंधन का हिस्सा हैं, के 16 लोगों की हत्या हुई है और सीनेटर लीला डे लीमा जेल में अपना पांचवा साल बिता रही हैं, क्योंकि उन्होंने सवाल करने की जुर्रत की थी. या फिर ABS-CBN, हमारा सबसे बड़ा प्रसारक, वह न्यूज़रूम जिसका कभी वे नेतृत्व करती थीं, और जिसने पिछले साल काम करने से रोक दिया गया.

मैंने जनवरी में 10 पूरा करने जा रहे रैपलर नाम के एक स्टार्टअप की शुरुआत करने में उनकी मदद की थी. दुनिया में जो भी गलत हो रहा है, उस सिक्के के दोनों पहलुओं को एक साथ दिखा पाने का यह हमारा प्रयास था. 21वीं सदी के लिए कानून और जनतांत्रिक दृष्टिकोण दोनों की अनुपस्थिति से निपटने के लिए. यह सिक्का हमारे सूचना तंत्र को दर्शाता है, जो हमारी दुनिया की बाकी सभी चीजों को निश्चित करता है.

पुराने पहरेदार यानी पत्रकार, इस सिक्के का एक पहलू हैं. दूसरा पहलू तकनीक है, जिसने अपनी लगभग ईश्वरीय ताकत से हम सबको झूठ के वायरस से संक्रमित कर दिया है, हमें एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा कर हमारे डर, क्रोध और नफरत को बाहर ले आया है और पूरे विश्व में सत्तालोभी शासकों और निरंकुश तानाशाहों के उदय के लिए मंच तैयार कर दिया है.

हमारी आज की सबसे बड़ी आवश्यकता उस नफरत और हिंसा को बदलना है, हमारे सूचना तंत्र की रगों में बह रहे इस ज़हर को निकाल बाहर करना है. यह नफरत फैलाकर, हमारे अंदर की बुराई को जगा कर मुनाफा कमाने वाली अमेरिकी कंपनियों की प्राथमिकता है... इसका मतलब है हमें कहीं ज्यादा मेहनत करनी है. अच्छा बनने के लिए हमें यह भरोसा करना पड़ेगा कि दुनिया में अच्छाई मौजूद है.

मैं 35 वर्षों से ज्यादा समय से पत्रकारिता कर रही हूं. मैंने एशिया के टकराव और युद्ध क्षेत्रों में काम किया है, सैकड़ों आपदाओं पर रिपोर्ट की है. हालांकि मैंने बहुत कुछ बुरा देखा है, लेकिन मैंने बहुत कुछ अच्छा भी दर्ज किया है. ऐसे लोग जिनके पास कुछ भी नहीं है वो आपको उनके पास जो कुछ थोड़ा-बहुत होता है वह देना चाहते हैं. पिछले पांच सालों के दौरान रैपलर को सरकारी हमले से बचे रहने के पीछे एक कारण अजनबियों की दयादृष्टि भी है. खतरे के बावजूद उनकी मदद के कारण, उनकी मदद करने की इच्छा है जिसके बदले में वो कुछ नहीं चाहते. यह हमारे बीच के सबसे खूबसूरत उदाहरण हैं, मानवता का वह हिस्सा जो चमत्कारों को सच करता है. डर और हिंसा से भरी दुनिया में रहकर हम इसे खो रहे हैं.

पिछली बार एक पत्रकार को यह पुरस्कार 1936 में मिला था और कार्ल वाॅन औस्सिट्जकी कभी ओस्लो पहुंच नहीं पाए क्योंकि वह नाजी कैंप में सड़ रहे थे. तब उम्मीद है कि हम वहां से एक कदम आगे आ गए हैं क्योंकि हम यहां पर मौजूद हैं.

आज यह पुरस्कार पत्रकारों को देकर नोबेल कमेटी ऐसे ही एक और ऐतिहासिक क्षण की ओर इशारा कर रही है. जनतंत्र के लिए एक और तलवार की धार पर खड़े होने वाला समय. दमित्री और मैं भाग्यशाली हैं कि हम इस समय आपके सामने बोल सकते हैं लेकिन बड़ी संख्या में पत्रकार अंधेरे में प्रताड़ित किए जा रहे हैं जहां उनके पास न आवाज़ है और न ही सहारा, और सरकारें बेपरवाह से पूरी ताकत से उनके पीछे पड़ी हैं. इसको गति देने वाली तकनीक है, उस समय जब रचनात्मक ध्वंस के नए ही मायने हैं.

हम पुरानी दुनिया के मलबे पर खड़े हैं और हमारे अंदर इतनी दूरदर्शिता और साहस होना चाहिए कि हम कल्पना कर सकें कि आगे क्या होगा. हमें अभी जागना होगा और वह दुनिया बनानी होगी जहां ज्यादा दया, समता और टिक सकने वाली व्यवस्था हो.

ऐसा करने के लिए, कृपया अपने आप से वही सवाल पूछें इसका सामना मैंने और मेरी टीम ने 5 वर्ष पहले किया था: "आप सत्य के लिए क्या बलिदान कर सकते हैं?"

मैं अपने जवाब तक कैसे पहुंची यह मैं आपको तीन बिंदुओं में बताऊंगी: पहला, मेरा संदर्भ और इन हमलों ने मुझे कैसे बदला; दूसरा, सबके सामने खड़ी समस्या; और अंत में इसका उपाय ढूंढ़ना- क्योंकि वह हमें ढूंढना ही पड़ेगा!

दो साल से कम समय में फिलीपींस की सरकार ने मेरे खिलाफ 10 गिरफ्तारी के वारंट जारी किए. मुझे केवल अपना काम करने के लिए 10 बार जमानत लेनी पड़ी. पिछले साल, मुझे और मेरे एक सहकर्मी को साइबर अपराध का आरोप उस कहानी के लिए झेलना पड़ा जो हमने आठ साल पहले प्रकाशित किया था. उस समय जिस कानून का हमने कथित तौर पर उल्लंघन किया वह अब मौजूद ही नहीं है. सब कहने सुनने के बाद, मेरे ऊपर जो आरोप लगे हैं वह मुझे करीब 100 वर्षों के लिए जेल भेज सकते हैं.

लेकिन मुझ पर मेरी पत्रकारिता की वजह से जितने ज्यादा हमले किए गए, मेरा निर्णय और भरोसा उतना ही दृढ़ होता गया. मेरे पास सत्ता के दुरुपयोग का जीता जागता सबूत था. रैपलर और मुझे डराने के लिए जो किया गया उसने हमें और सशक्त बनाया.

पत्रकारिता के मूल में, एक पारस्परिक सम्मान की भावना होती है. और मेरी भावना दुनिया की तमाम परतों से मिलकर बनी है- मसलन जब मैं बड़ी हुई, जब मुझे पता चला कि मैं सही या गलत थी; कॉलेज से, जो परस्पर सम्मान मैंने वहां सीखा; और रिपोर्टर के रूप में बिताया गया मेरा वक्त, जो स्तर और ईमानदारी के नियम मैंने जाने और लिखे. इन सबके साथ फिलिपींस का विचार उतांग ना लूब को भी जोड़ दें- इसका अर्थ है आत्मा का कर्ज या अपने सर्वश्रेष्ठ स्वरूप में, परोपकार को आगे बढ़ाते रहने का एक तंत्र.

नफ़रत, झूठ और विभाजन के लिए अनुकूल मौजूदा समय को भी सत्य और नैतिक बल, किसी तीर की तरह भेद देते हैं. इस पुरस्कार को पाने वाली केवल 18वीं महिला होने के नाते, मेरा आपको यह बताना जरूरी है कि लैंगिक आधार पर गलत सूचनाएं आज एक नया खतरा हैं जो महिलाओं, लड़कियों, किन्नर और दुनिया भर के एलजीबीटीक्यू+ लोगों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर एक बहुत बड़ा बोझ बन गया है. महिला पत्रकार इस खतरे के बिल्कुल बीच में खड़ी हैं. नफरत और नारी द्वेष की इस महामारी को अभी रोकना जरूरी है. वहां पर भी हम शक्ति को ढूंढ़ सकते हैं.

देखा जाए तो आप सही में क्या हैं, यह आप नहीं जानते जब तक आपको उसके लिए लड़ना नहीं पड़ता.

तो मैं अब खुलकर बोलती हूं जिससे यह स्पष्ट हो जाए कि हम सबके सामने परेशानी क्या है और वह यहां तक कैसे पहुंची?

रैपलर के खिलाफ हमले पांच साल पहले शुरू हुए, जब हमने दो मुद्दों पर कोई जवाबदेही न होने के कारण खत्म करने की मांग की. ड्यूटेरटे की ड्रग्स के खिलाफ लड़ाई और मार्क जुकरबर्ग का फेसबुक.

आज स्थिति और ज्यादा बिगड़ चुकी है- सिलीकॉन वैली के पाप अमेरिका में 6 जनवरी को हुए कैपिटल हिल पर दंगे के रूप में फलीभूत हुए हैं. सोशल मीडिया पर जो भी होता है वह केवल वहीं नहीं रुकता, ऑनलाइन होने वाली हिंसा असली दुनिया की हिंसा है.

सोशल मीडिया ताकत और पैसे का एक खतरनाक खेल है, जिसे शोषाना जुबौफ निगरानी का पूंजीवाद कहती हैं, हमारी निजी जिंदगियों को बड़े कॉरपोरेट फायदे के लिए बाहर निकाल लेना. हमारे व्यक्तिगत अनुभवों को एक डेटाबेस में निकाल लिया जाता है जिसको एक कृत्रिम चेतना इकट्ठा करती है और फिर उसे सबसे ज्यादा बोली लगाने वाले को बेच दिया जाता है. मानवीय चुनाव के अधिकार को नगण्य बनाने के लिए, बड़े फायदे वाले सूक्ष्म स्तर तक निशाना बनाने के ऑपरेशनों को सुनियोजित तरीके से तैयार किया जाता है- व्यवहार को बदल देने का एक तंत्र जिसमें हम पावलोव के कुत्तों की तरह हैं, जिन पर लगातार प्रयोग हो रहे हैं. इसका म्यांमार, भारत, श्रीलंका और मेरे देश जैसे कई और देशों में भयानक परिणाम देखने को मिले हैं. इन विध्वंसक कॉरपोरेशनों ने समाचार समूह से पैसा खींच लिया है और आज वह बाजारों व चुनावों के सामने मौलिक खतरा बने खड़े हैं.

फेसबुक दुनिया में खबरों का सबसे बड़ा डिस्ट्रीब्यूटर है और इसके बावजूद कई अध्ययनों ने यह दिखाया है कि गुस्से और नफरत से भरे झूठ सोशल मीडिया पर सत्य से कहीं ज्यादा दूर तक जाते हैं.

इस वैश्विक सूचना के तंत्र को नियंत्रित करने वाली यह अमेरिकी कंपनियां तथ्यों और पत्रकारों के खिलाफ दुर्भावना रखती हैं. वह अपने ढांचे के हिसाब से हमें बांट रही हैं और कट्टरवादी बना रही हैं.

बिना तथ्यों के आप सत्य तक नहीं पहुंच सकते, और बिना सत्य के आप विश्वसनीय नहीं हो सकते. विश्वास के बिना एक साझा समझ, एक जनतंत्र नहीं हो सकता और दुनिया के सामने खड़ी विकट समस्याओं का सामना करना असंभव हो जाता है. पर्यावरण, कोरोना वायरस और सत्य की लड़ाई.

जब मुझे 2019 में पहली बार गिरफ्तार किया गया, तो अफसर ने कहा, "मैम, मैं केवल अपना काम कर रहा हूं." फिर उसने मुझे मेरे अधिकार बिल्कुल फुसफुसाते हुए बताए. ऐसा करते हुए वह बहुत असहज था. मुझे उसके ऊपर तरस आ रहा था. स्पष्ट रूप से आस्था और मुझे उस पर शायद तरस आ जाता, लेकिन वह मुझे सिर्फ इसलिए गिरफ्तार कर रहा था क्योंकि मैं पत्रकार थी.

वह अफसर सत्ता का एक औजार था, इस बात का उदाहरण कि एक अच्छा आदमी कैसे बुरा बन जाता है- कैसे भयानक अत्याचार जन्म लेते हैं. हानाह् आरेण्डट् ने हिटलर के आदेशों का पालन करते हुए आदमियों का वर्णन करते हुए, बुराई के मामूलीपन के बारे में लिखा था कि कैसे अपने कैरियर का ध्यान रखने वाले नौकरशाह बिना किसी आत्मा के काम कर सकते हैं क्योंकि वह कहते हैं कि वह केवल आदेशों का पालन कर रहे हैं.

एक देश या दुनिया इस तरह अपनी आत्मा खोती है

आपको पता होना चाहिए आप किन मूल्यों के लिए लड़ रहे हैं, आपको अपनी सीमाएं जल्दी खींच लेनी पड़ती हैं- अगर आपने अभी तक ऐसा नहीं किया है, तो कर लें: जहां इस तरफ आप अच्छे हैं, दूसरी तरफ बुरे हैं. कुछ सरकारों का अब कुछ नहीं किया जा सकता, अगर आप तकनीकी दुनिया में काम कर रहे हैं तो यह मैं आपसे कह रही हूं.

जब आपके पास तथ्यों की प्रमाणिकता नहीं है तो चुनावों की प्रमाणिकता कैसे हो सकती है?

अगले साल जिन देशों में चुनाव हैं उनके सामने यह समस्या है: इनमें ब्राजील, हंगरी, फ्रांस, अमेरिका और मेरा फिलीपींस भी है, जहां 9 मई को होने वाले राष्ट्रपति के चुनाव में हम करो या मरो की स्थिति में हैं. फरडिनैंड मार्कोस को जनक्रांति से निकाले जाने और उनके परिवार को निर्वासित करने के 35 साल बाद, उसका बेटा फरडिनैंड मार्कोस जूनियर इस दौड़ में सबसे आगे है- और उसने सोशल मीडिया पर अपना एक बड़ा गलत जानकारी फैलाने वाला तंत्र खड़ा कर लिया है जिस का खुलासा रैपलर ने 2019 में किया. यह हमारी आंखों के सामने इतिहास बदलते देखने जैसा है.

गलत जानकारी स्थानीय और वैश्विक दोनों ही तरह की परेशानी है, इसे समझने के लिए चीन के सूचना ऑपरेशन को देखें जिन्हें फेसबुक ने सितंबर 2020 में हटाया: वे एआई के द्वारा बनाए गए फोटो लेकर जाली खाते अमेरिकी चुनावों के लिए बना रहे थे, मार्कोस की छवि साफ कर रहे थे, ड्यूटेरटे की बेटी के लिए प्रचार कर रहे थे और मुझ पर और रैपलर पर हमला कर रहे थे.

तो हम क्या करेंगे?

हमारे सूचनातंत्र के अंदर एक अदृश्य एटम बम फूट गया है और दुनिया को वैसे ही बर्ताव करना चाहिए जैसा उसने हिरोशिमा के बाद किया था. उस समय की तरह ही हमें संयुक्त राष्ट्र की तरह एक नई संस्था खड़ा करना होगा. वैश्विक मानव अधिकारों की तरह ही हमारे मूल्यों को परिभाषित करते नए मानक स्थापित करने पड़ेंगे जिससे कि मानवता अपने सबसे बुरे स्वरूप की तरफ अग्रसर न हो. यह सूचनातंत्र के अंदर हथियारों की होड़ है. इसे रोकने के लिए बहुआयामी तरीके चाहिए जिसका हिस्सा हम सबको बनना पड़ेगा. इसकी शुरुआत तथ्यों को पुनर्स्थापित करने से होती है.

हमें सोचना कि वह तंत्र चाहिए जो तथ्यों और केवल तथ्यों को ही महत्व दें. हम सामाजिक प्राथमिकताओं को पत्रकारिता को दोबारा खड़ा करने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके साथ नफरत और झूठ से मुनाफा कमाने वाली, ताकझांक वाली अर्थव्यवस्थाओं को नियंत्रित और तड़ीपार करना होगा.

हमें स्वतंत्र पत्रकारिता को जिंदा रखने के लिए मदद की जरूरत है. पहला पत्रकारों को निशाना बनाने वाली सरकारों से कहीं ज्यादा सुरक्षा देकर और दूसरा ऐसी सरकारों के खिलाफ खड़े होकर. इसके बाद हमें पत्रकारिता के विज्ञापन केंद्रित मॉडल को ढहाने पर ध्यान देना होगा. यह भी एक कारण है जिसकी वजह से मैंने इंटरनेशनल फंड फॉर पब्लिक इंटरेस्ट मीडिया की सह अध्यक्षता स्वीकार की जो ओवरसीज डेवलपमेंट असिस्टेंट फौंट्स के जरिए और पैसा इकट्ठा करने की कोशिश कर रही है.

आज पत्रकारिता पर चौतरफा हमला हो रहा है. ओडीए यानी ऑफिशियल डेवलपमेंट असिस्टेंट का केवल 0.3% ही पत्रकारिता पर खर्च हो रहा है. अगर हम इसे किसी तरह खींच कर 1% पर ले आएं तो हम समाचार संस्थाओं के लिए एक बिलियन डॉलर प्रति वर्ष निकाल सकते हैं. यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी.

पत्रकारों को तकनीक को अपनाना होगा. इसीलिए गूगल न्यूज़ इनिशिएटिव के साथ मिलकर रैपलर ने दो हफ्ते पहले एक नया मंच खड़ा किया है. यह काम करने वाले समुदायों को जोड़ने के लिए डिजाइन किया गया है. पत्रकारों के हाथ में तकनीक होगी लेकिन वायरल नहीं होगी, बल्कि यह आपकी सब्जियों की तरह होगी जो आपकी बेहतरी के लिए होगी. इसका लक्ष्य केवल मुनाफा नहीं बल्कि तथ्य, सत्य और विश्वास भी होगा.

रही कानून की बात. यूरोपियन यूनियन का अपने डेमोक्रेसी एक्शन प्लान के तहत इस क्षेत्र में नेतृत्व करने का धन्यवाद. अमेरिका के लिए, उन्हें अपने अनुच्छेद 230 को रद्द करना या उसमें सुधार करना होगा जो सोशल मीडिया को एक नैसर्गिक उपयोगिता की तरह देखता है. यह एक संपूर्ण इलाज नहीं है लेकिन इससे शुरुआत हो सकती है क्योंकि यह सभी ऑनलाइन मंच वितरण के स्तर पर ही महत्व देते हैं. इसलिए जहां आम विमर्श डाली जाने वाली सामग्री पर केंद्रित है, असली गड़बड़ पहले ही हो जाती है जहां जानकारी को आगे तक बांटने की एल्गोरिदम, निहित स्वार्थ रखने वाले इंसानों के द्वारा लिखी जाती हैं. उनका संपादकीय एजेंडा मुनाफे को ध्यान में रखकर चलता है और उसका क्रियान्वयन बड़े स्तर पर मशीनें करती हैं. इसका प्रभाव वैश्विक है, जहां सोशल मीडिया पर सस्ती सेनाओं ने कम से कम 81 देशों में जनतंत्र को तार-तार कर दिया है. इस उच्छृंखलता का रुकना अति आवश्यक है.

जनतंत्र, व्यक्ति दर व्यक्ति आज हमारे हमारे मूल्यों की सुरक्षा का कवच बन गया है. हम एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जहां हम इसी रास्ते पर चलना जारी रख फासीवाद के गर्त में और गिर सकते हैं, या हम एक बेहतर दुनिया के लिए लड़ने का विकल्प चुन सकते हैं.

ऐसा करने के लिए आपको अपने आप से पूछना होगा: आप सत्य के लिए क्या बलिदान कर सकते हैं?

मुझे नहीं मालूम था कि मैं आज यहां पर होऊंगी. मैं हर दिन इस खतरे में जीती हूं कि मेरी बाकी ज़िंदगी जेल की सलाखों के पीछे इसलिए गुजरेगी क्योंकि मैं पत्रकार हूं. जब मैं घर जाऊंगी तो मुझे नहीं पता कि भविष्य में क्या होगा, लेकिन यह खतरा उठाने लायक है.

ध्वंस हो चुका है. यह समय निर्माण का है- जैसी दुनिया हम चाहते हैं उसे बनाने का.

अब कृपया, मेरे साथ अपनी आंखें बंद करें. और कल्पना करें ऐसी दुनिया की जैसी वह होनी चाहिए. एक शांति, विश्वास और संवेदना की दुनिया, जो हमारे भीतर छिपे सबसे अच्छे स्वरूप को बाहर लाए.

आइए अब चलें, इसे साकार करें. आइए, मिलकर इस सीमारेखा पर दृढ़ता से डट जाएं.

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