Report
सिंघु बॉर्डर: स्थानीय लोगों और दुकानदारों के साथ एक दिन
पिछले करीब एक साल से विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ किसान दिल्ली से सटे बॉर्डरों पर आंदोलन कर रहे हैं. सिंघु बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे किसानों को रोकने के लिए पुलिस ने उनके मेन स्टेज से करीब 1.5 किलोमीटर पहले ही बैरिकेड लगाया हुआ है. इस एक साल ने जितना किसानों पर प्रभाव डाला है उतना ही असर वहां स्थित फैक्ट्रियों, दुकानों, व्यापारियों, यात्रियों और निवासियों पर भी डाला है. बैरिकेडिंग के कारण आवाजाही प्रभावित हुई है. बता दें कि लोगों को बॉर्डर पर जाने से रोका गया है और उन्हें अलग मार्ग दिया गया जो घुमावदार और असुरक्षित है.
लेकिन अब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीनों विवादास्पद कानूनों को निरस्त करने की घोषणा कर दी गई है तो लोगों को उम्मीद है कि राष्ट्रीय राजमार्ग- 44 का यह हिस्सा आवाजाही के लिए दोबारा शुरू हो जाएगा. सिंघु बॉर्डर इसी हाईवे पर पड़ता है.
विरोध स्थल के आसपास खेत हैं. साथ ही इस क्षेत्र में तीन गांव- सिंघु, सिंगोला और कुंडली आते हैं. यहीं स्थित ग्रेटर कुंडली औद्योगिक क्षेत्र अनुमानित 1,800 कारखानों का अड्डा है, इनमें से अधिकांश कोल्ड स्टोरेज, कपड़ा छपाई, स्टील और निर्यात सामग्री से संबंधित हैं.
सिंघु बॉर्डर एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग है और रात के समय यहां पर यातायात बहुत अधिक रहता है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने स्थानीय लोगों और दुकानदारों से बात की और उनसे पूछा कि विरोध शुरू होने के एक साल बाद उनका जीवन और व्यवसाय कितना प्रभावित हुआ है?
"पुलिस गाड़ियों को बैरिकेडिंग से लौटा देती है. यहां कोई ट्रक या गाड़ी नहीं आती है, क्योंकि पिछले एक साल से ढाबा नहीं चल रहा. मुझ पर 20 लाख रुपए का कर्जा चढ़ चुका है.” अमन कहते हैं.
न कोई गाड़ी आने देते हैं, ना बिक्री हो रही है
20 वर्षीय अमन शर्मा नरेला के रहने वाले हैं. तीन साल पहले उन्होंने सिंघु बॉर्डर पर एक छोटी सी दुकान की शुरुआत की थी. वह कोल्ड ड्रिंक और खाने के पैकेट बेचा करते थे. देखते ही देखते उनका कारोबार बढ़ता चला गया इसके बाद उन्होंने दुकान को और बड़ा करने का फैसला किया. पिछले साल 2020 में अमन ने जन्माष्टमी के दिन ढाबे की शुरुआत की थी. उनका सब ठीक चल रहा था क्योंकि रात के समय ज्यादातर ड्राइवर ट्रक रोककर उसके ढाबे पर खाने के लिए रुका करते थे. यह ढाबा जिसका नाम 'केरा द ढाबा' है, पुलिस बैरिकेडिंग से सिर्फ 50 मीटर दूर है. उनका कहना है कि किसान आंदोलन ने उनकी आगे की राह को मुश्किल बना दिया है.
18 नवंबर की दोपहर जब हम अमन के ढाबे पर पहुंचे तो वह अकेले बैठे हुए थे. उनकी दुकान पर एक अन्य व्यक्ति था जो बर्तन समेट रहा था. यात्रियों के खाने की जगह पर बैठने के लिए चेयर रखी थीं लेकिन सभी खाली थीं. अमन ने मायूसी से बताया, "मै पिछले तीन साल से यह दुकान और ढाबा चला रहा हूं. रोज 30 हजार रूपए कमा लिया करता था, लेकिन पिछले साल से किसान बॉर्डर पर आकर प्रदर्शन कर रहे हैं जिसके चलते पुलिस ने बॉर्डर पर बैरिकेडिंग कर रास्ता बंद कर दिया है. इसके कारण मेरे लिए रोज का खर्चा निकाल पाना भी मुश्किल हो गया है. अब केवल आसपास फैक्ट्रियों में काम करने वाले लोग ही कभी-कभी आ जाते हैं"
दोपहर के एक बज रहे थे. अमन की अब तक कोई कमाई नहीं हुई थी. वह आगे बताते हैं, "पहले ढाबे पर 11 आदमी काम किया करते थे. अब तीन लोग बचे हैं. यहां तक की मैं खाना भी खुद बना रहा हूं क्योंकि कुक नहीं हैं. हालात इतने खराब हैं कि घर पर रखी गाड़ी (चार पहिया) बेचने की सोच रहा हूं. लाइट कटने वाली थी. कल ही किसी तरह 15000 रूपए जमा कर बिल भरा है."
अमन पहले कबाड़ी का काम करते थे लेकिन उन्हें उस काम में दिलचस्पी नहीं थी इसलिए अपना ढाबा खोल लिया. वह कहते हैं, "मुझे नहीं पता यह आंदोलन किस लिए हो रहा है. मैं बस इतना चाहता हूं कि पुलिस रास्ता खोल दे."
अमन की दुकान से लगभग 500 मीटर की दूरी पर सिडनी ग्रांड होटल और जस्ट चिल वाटरपार्क है. यह विरोध स्थल और पुलिस बैरिकेडिंग के बीच एकमात्र होटल है जो 10 साल से चल रहा है. होटल में 28 कमरे हैं, जिनमें से अभी केवल पांच में लोग रह रहे हैं. वहीं लॉकडाउन के कारण मार्च 2020 से वाटरपार्क को बंद कर दिया गया और अब किसान आंदोलन के कारण पुलिस बैरिकेडिंग के चलते ग्राहक नहीं आ रहे हैं.
होटल की बुकिंग मैनेजर, 35 वर्षीय नमिता पसरीचा ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि वह पुलिस के साथ बहस करते-करते थक चुकी हैं.
“किसान यहां से एक किलोमीटर दूर बैठे हैं. मुझे नहीं पता कि इतने लंबे बैरिकेड्स की क्या जरूरत है. 26 नवंबर से पहले दिल्ली के हमारे ग्राहक आ जाया करते थे. लेकिन अब पुलिस हमारे ग्राहकों को बैरिकेडिंग पर ही रोक देती है. होटल तक पहुंचने का दूसरा मार्ग गांव से घूमकर आता है जिसमें आधा घंटा अधिक लगता है. इसलिए लोग होटल तक नहीं आना चाहते. इसके चलते कोई भी आमदनी नहीं हो रही है" वह कहती हैं.
साल 2020 में कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन लगने के बाद होटल बंद हो गया था जो अगस्त 2020 में वापस खुला. लेकिन 26 जनवरी 2021 को हुई हिंसा के बाद पुलिस ने सिंघु बॉर्डर पर बैरिकेडिंग बढ़ा दी जिसके कारण होटल दोबारा बंद करना पड़ा.
नमिता आगे कहती हैं, "उस समय बैरिकेड्स विरोध स्थल के करीब थे इसलिए हमने होटल को खुला रखा. लेकिन गणतंत्र दिवस की हिंसा के बाद, पुलिस ने बैरिकेडिंग बढ़ा दी और हमें फिर से होटल बंद करना पड़ा"
सिडनी ग्रैंड ने भी पिछले एक साल में अपने 94 कर्मचारियों को खो दिया. अब केवल छह कर्मचारियों के साथ होटल जैसे-तैसे चल रहा है. नमिता ने बताया, "हमारे यहां लगभग 40 कर्मचारी महिलाएं हुआ करती थीं. लेकिन विरोध शुरू होने के बाद, महिलाओं ने शाम तक रुकने से इनकार कर दिया क्योंकि पुलिस द्वारा दिया गया वैकल्पिक मार्ग लम्बा है. उस पर स्ट्रीट लाइट नहीं है और असुरक्षित है. इसलिए अब, मैं यहां अकेली महिला कर्मचारी हूं."
आंदोलन स्थल के आस-पास व्यवसाय प्रभावित
किसानों के मुख्य मंच के पास जहां से विरोध स्थल शुरू होता है, वहीं प्रेम प्रकाश की छोटी सी दुकान है, जो कोल्ड ड्रिंक और स्नैक्स बेचते हैं. जब न्यूज़लॉन्ड्री की टीम वहां पहुंची तो दुकान पूरी तरह से खाली थी और 52 वर्षीय प्रकाश प्लास्टिक की कुर्सी पर बाहर बैठे थे.
प्रेम प्रकाश ने यह दुकान 2007 में शुरू की थी. 14 साल बाद फरवरी 2021 में उन्होंने इसे बंद कर दिया.
"इसे खुला रखने का कोई मतलब नहीं था. पुलिस बैरिकेडिंग के कारण मेरी कोई भी गाड़ी अंदर नहीं आ सकती थी. गाड़ी में दुकान का सामान होता था. साथ ही बिक्री भी कम हो गई थी." प्रेम प्रकाश कहते हैं.
उन्होंने आगे बताया, "वास्तव में, इस बाजार की सभी दुकानें, जो विरोध स्थल के दोनों ओर अगले 500-700 मीटर तक बनी हैं, मार्च का महीना आते-आते बंद हो गईं. करीब 20 दुकानों को मैं जानता हूं जो बंद हो गई हैं."
जब उनसे कोविड के प्रभाव के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, “कोविड ने हमें इतना प्रभावित नहीं किया जितना इस आंदोलन ने प्रभावित किया. लॉकडाउन ने कुछ बिक्री कम कर दी लेकिन विरोध प्रदर्शन ने बिक्री पूरी तरह से बंद कर दी."
अमन शर्मा की तरह ही प्रेम प्रकाश भी किसान आंदोलन खत्म होने का इतंजार कर रहे हैं ताकि दुकान दोबारा शुरू करने की सोच सकें.
50 वर्षीय श्याम सुंदर ने भी कुछ ऐसी ही कहानी सुनाई. वह धरना स्थल से करीब दो किलोमीटर दूर एक दुकान पर काम करते हैं. जब न्यूज़लॉन्ड्री की टीम ने दोपहर तीन बजे उनसे मुलाकात की तो दुकान पर कोई ग्राहक नहीं था. सुंदर ने कहा कि अभी तक एक भी ग्राहक नहीं आया है.
स्टोर की शुरुआत सितंबर 2020 में 25 कर्मचारियों के साथ हुई थी. इस स्टोर में कपडे, जूते, और घर की जरूरत का सभी सामान मिलता है. अब, इसमें केवल तीन कर्मचारी काम कर रहे हैं, जिनमें एक सुंदर हैं. उनके मुताबिक दुकान को करीब 90 फीसदी का नुकसान हो रहा है लेकिन फिलहाल मालिक ने इसे बंद करने से मना कर दिया है. यह पूछे जाने पर कि वह सरकार से नाराज हैं या किसानों से, सुंदर ने कहा, “मैंने कानून नहीं पढ़े हैं इसलिए मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है. लेकिन मुझे केवल इतना पता है कि हमने इस सरकार को चुना है और अब उन्हें हमारे जीवन की कोई परवाह नहीं है."
न्यूज़लॉन्ड्री ने कृषि कानूनों को वापस लिए जाने के ऐलान के एक दिन बाद सुंदर से फोन पर भी बात की. उन्होंने कहा, "नुकसान इतना हुआ है कि मैं प्रदर्शनकारियों के वापस जाने और हमारी दुकान के फलने-फूलने का इंतजार नहीं कर सकता."
गांववासियों को आंदोलन स्थल पर जाने से रोकती है पुलिस
इस सबके विपरीत सिंघु गांव के निवासियों ने कुछ और ही कहानी सुनाई. गांव के कई लोग किसानी करते हैं जो गोभी, पालक जैसी फसलें उगाते हैं. इन लोगों ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि वे विरोध का समर्थन करते हैं.
35 साल की रमा देवी कहती हैं, "हमारी जिंदगी नहीं बदली है. हम अब भी अपने खेत में काम कर रहे हैं. हां, मण्डी जाने के लिए परिवहन कभी-कभी एक समस्या होती है लेकिन यह कोई बड़ी समस्या नहीं है."
कई ग्रामीणों ने यह भी कहा कि वे दिल्ली पुलिस से परेशान हैं. "वे (पुलिस) हमें आंदोलन स्थल पर जाने से रोकती है. हम अब अपनी सड़कों पर आजादी से चल भी नहीं सकते." 55 वर्षीय सिंघु गांव के निवासी जगदीश प्रसाद बताते हैं.
सिंगोला गांव में न्यूज़लॉन्ड्री ने चार महिलाओं के एक समूह से मुलाकात की जो पास के सरकारी स्कूल से कोविड वैक्सीन लगवाकर लौट रही थीं.
40 वर्षीय माया देवी कहती हैं, "अगर प्रदर्शनकारियों और पुलिस ने सड़क जाम नहीं किया होता तो हमें 10 से 15 मिनट का समय लगता. लेकिन अब हम एक घंटे से पैदल चलकर आ रहे हैं." माया के पति पेट्रोल पम्प पर काम करते हैं जो की आंदोलन स्थल से करीब 200 मीटर की दूरी पर ही है. वह पहले 16 हजार रुपए प्रति महीना कमाया करते थे लेकिन आंदोलन के बाद बैरिकेडिंग के कारण पेट्रोल पम्प की सेल में 50 फीसदी की गिरावट आने से उन्हें अब केवल नौ हजार रुपए मिलते हैं. माया के तीन बच्चे भी हैं और उनके पति घर में अकेले कमाने वाले हैं.
बस्ती के लोगों ने आंदोलन में बना लिए नए दोस्त
न्यूज़लॉन्ड्री ने विरोध स्थल से लगभग 600 मीटर की दूरी पर एक छोटी, धूल भरी सड़क के किनारे एक झुग्गी बस्ती का भी दौरा किया. बस्ती के बगल से एक बदबूदार नाला भी बहता है. यहां बंगाल के करीब 30 परिवार पिछले 25 साल से रह रहे हैं. इनमें से ज्यादातर कूड़ा बीनने का काम करते हैं तो कुछ रिक्शा चालक हैं.
यहां हमारी मुलाकात 22 वर्षीय सबीना खातूम और 18 वर्षीय सागर खान से हुई. सागर ने आंदोलन में कई दोस्त बना लिए हैं जिनके साथ शाम को काम से घर लौटते समय वह 'फ्री फायर' मोबाइल गेम खेला करता है. अब जब आंदोलन अपने आखिरी चरण में माना जा रहा है तो सागर कहते हैं, “मुझे बुरा लगेगा जब आंदोलन के बाद किसान घरों को लौट जाएंगे, क्योंकि बस्ती के कई लोग विरोध स्थल पर लंगर में मुफ्त में खाना खाने जाते हैं."
Also Read: किसान आंदोलन में निहंग सिखों की भूमिका?
Also Read
-
TV Newsance 304: Anchors add spin to bland diplomacy and the Kanwar Yatra outrage
-
How Muslims struggle to buy property in Gujarat
-
A flurry of new voters? The curious case of Kamthi, where the Maha BJP chief won
-
Reporters Without Orders Ep 375: Four deaths and no answers in Kashmir and reclaiming Buddha in Bihar
-
Lights, camera, liberation: Kalighat’s sex workers debut on global stage