Report
'ना हम थके हैं ना हमें जल्दी है', क्या है किसानों की आगे की रणनीति?
"मै सुबह दस बजे सोकर उठा था. रोजाना की तरह साफ-सफाई कर रहा था. तभी मेरे घर से कॉल आया. उन्होंने मुझे बताया कि पीएम मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया है. लेकिन मुझे खुशी नहीं हुई. मोदी ने कई झूट बोले हैं. मैं उनकी बात पर यकीन नहीं करता. जब तक किसान नेता कानून रद्द होने की घोषणा स्टेज से नहीं कर देते हम आंदोलन से वापस घर नहीं जाएंगे," 60 वर्षीय बलदेव सिंह कहते हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को गुरु नानक जयंती के अवसर पर देश को सुबह नौ बजे संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया. उन्होंने कहा कि तमाम कोशिशों के बावजूद उनकी सरकार कृषि कानूनों को समझाने में असफल रही और इस महीने के अंत में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में इस कानून को वापस लेने की संवैधानिक प्रक्रिया को अंजाम दिया जाएगा. प्रधानमंत्री के इस ऐलान के बाद सिंघु बॉर्डर पर खुशी की लहर दौड़ गई. किसानों के चहरे पर मुस्कान थी. युवा किसान गाने बजाकर नाच रहे थे. लोग मिठाई बांटकर एक दूसरे को गले लगा रहे थे. लंगर बांटा जा रहा था.
किसानों के चहरे पर मुस्कान है क्योंकि यह सफलता करीब एक साल के संघर्ष और सत्याग्रह के बाद मिली है. इस दौरान उनके सरकार और उसके समर्थकों की तरफ से हर तरह के कीचड़ उछाले गए, सात सौ से ज्यादा किसानों की इस दौरान जान चली गई. इसलिए किसान मानते हैं कि अभी उनका संघर्ष पूरा नहीं हुआ है.
पीढ़ियों के जहन में जिंदा रहेगा आंदोलन
दोपहर के दो बज रहे थे. जलालाबाद पूर्व के निवासी बलदेव अपने दोस्तों के साथ बैठे थे. वह पिछले एक साल से अपने ट्रैक्टर के साथ सिंघु बॉर्डर पर बीजेपी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन में शामिल हैं. गांव में उनकी पांच बीघा जमीन है जिस पर वह गेहूं और धान की खेती करते हैं. उनका कहना है कि जब तक सरकार लिखित में कानून को नहीं हटा देती वह और उनके साथी वापस घर नहीं लौटेंगे. "हमें घर लौटने की कोई जल्दी नहीं है और न ही हम थके हैं. कृषि कानून जिस तरह पास हुए उसी तरह संवैधानिक प्रक्रिया से वापस भी होने चाहिए. जब तक ऐसा नहीं हो जाता आंदोलन पीछे नहीं हटेगा." बलदेव ने कहा.
बलदेव आगे कहते हैं, "गुरुपर्व एक बहाना था. उनकी नजर चुनाव पर है. पंजाब और उत्तर प्रदेश में अगले साल चुनाव है." मोदी सरकार के कानून वापस लेने से चुनाव पर कोई असर पड़ेगा या नहीं? इस सवाल पर बलदेव कहते हैं, "बिलकुल पड़ेगा. जब हम वोट डालने जाएंगे तो आंदोलन हमारे दिमाग में रहेगा कि कैसे सरकार ने हमारा इम्तिहान लिया. मेरे गांव का एक व्यक्ति अजीत सिंह भी आंदोलन में भाग लेने आया था. लेकिन उनकी तबीयत खराब हो गई. वह इतना बीमार हो गया कि उसकी मौत यहीं बॉर्डर पर हो गई. ऐसे करीब 700 किसानों की मौत आंदोलन के दौरान हुई है. लेकिन सरकार को होश नहीं आया."
कुछ दूर बैरिकेड के पास हमारी मुलाकात रणजीत सिंह से हुई. आकर, पटियाला के रहने वाले रणजीत कहते हैं, "हमारी पीढ़ियां 700 शहीद किसानों की कुर्बानी को याद रखेंगी. हम जब भी वोट डालने जाएंगे हमारे जहन में आंदोलन रहेगा कि किस तरह भाजपा ने किसानों पर अत्याचार किया.
संवैधानिक प्रकिया से जब तक नहीं हट जाता कानून, हम भी नहीं हटेंगे
आने वाली 26 नवंबर को किसान का आंदोलन दिल्ली की सीमा पर अपना एक साल पूरा करने जा रहा है. इस से पहले ही पीएम नरेंद्र मोदी ने कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी. 5 जून, 2020 को कृषि क्षेत्र में सुधार के नाम पर सरकार ने दो अध्यादेश जारी किए थे. इसे 17 सितम्बर को कानून में तब्दील कर दिया गया. ये तीन कानून हैं- पहला है कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम 2020. दूसरा- कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम 2020 और तीसरा है- आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम 2020.
26 नवंबर को मुख्यतः पंजाब और हरियाणा से किसान सिंघु बॉर्डर पहुंचे थे. इस दौरान प्रशासन द्वारा उन्हें जगह- जगह रोकने का प्रयास किया गया. उन पर लाठी चार्ज किया गया, आंसू गैस के गोले और वाटर कैनन से रोकने की कोशिश की गई. लेकिन किसान सभी बैरिकेडिंग तोड़कर दिल्ली आ गए. किसान पिछले एक साल से दिल्ली से सटे सिंघु, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं.
25 वर्षीय अनमोल सिंह पिछले 11 महीनों से खालसा ऐड के साथ वालंटियर कर रहे हैं. वह कहते हैं, "सरकार ने हमें पहले भी ऐसे दिलासे दिए हैं. आज हमें खुशी है कि सरकार ने कानून वापस लेने की बात कही लेकिन जब तक संसद में इसे रद्द नहीं किया जाएगा हम नहीं जाएंगे. साथ ही हमारी मांग है कि एमएसपी पर भी कानून बनाया जाए. जब तक ऐसा नहीं हो जाता आंदोलन जारी रहेगा."
एक साल से सिंघु बॉर्डर पर रोजाना लंगर चल रहा है. ऐसे ही एक लंगर के पास हमारी भेट तरन तारन की रहने वाली 60 वर्षीय बलवीर कौर से हुई. वह 15 दिन पहले सिंघु बॉर्डर पर आई हैं. हालांकि उनके परिवार के अन्य लोग पिछले एक साल से बॉर्डर पर ही बैठे हैं. उनके पति उन्हें छोड़कर चले गए थे क्योंकि वह बच्चा पैदा नहीं कर पाईं. तब से बलवीर अपने बड़े भाईयों के साथ रह रही हैं. वह कहती हैं, "बॉर्डर पर रहना बहुत कठिन है. लेकिन यह पहली बार नहीं जब मुझे संघर्ष करना पड़ रहा है. हर जगह महिलाएं संघर्ष करती हैं. मुझे घर पर रहने के लिए अपनी जेठानी और देवरानी से लड़ना पड़ता था. अगर महिलाएं घर पर लड़ सकती हैं तो आंदोलन में भाग लेने भी आ सकती हैं. मैं हमेशा से आंदोलन का भाग बनना चाहती थी. मैं खुश हूं कि इस आंदोलन की जीत होती दिखाई दे रही है."
वहीं उनके साथ खड़ीं मोगा जिले की 70 वर्षीय जगीर कौर कहती हैं, "मैं यह सुनकर बहुत खुश हूं कि सरकार काले कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए राजी हो गई है. अब मैं अपने बच्चों के पास लौट सकती हूं."
क्या है आंदोलन की आगे की रूपरेखा?
रणदीप ने हमें बताया कि अलग-अलग गांव से जत्थे दिल्ली आ रहे हैं. सभी लोग 22 तारीख को बॉर्डर पर पहुंच जाएंगे. आने वाले हफ्ते में संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा तय कार्यक्रम उसी तरह होंगे जैसे तय किये गए थे.
प्रधानमंत्री के ऐलान के बाद संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) द्वारा जारी प्रेस रिलीस में कहा गया, "संयुक्त किसान मोर्चा इस निर्णय का स्वागत करता है और उचित संसदीय प्रक्रियाओं के माध्यम से घोषणा के प्रभावी होने की प्रतीक्षा करेगा. अगर ऐसा होता है, तो यह भारत में एक वर्ष से चल रहे किसान आंदोलन की ऐतिहासिक जीत होगी. हालांकि, इस संघर्ष में करीब 700 किसान शहीद हुए हैं. लखीमपुर खीरी हत्याकांड समेत, इन टाली जा सकने वाली मौतों के लिए केंद्र सरकार की जिद जिम्मेदार है."
साथ ही एसकेएम ने मांग की है कि एमएसपी पर सरकार कानूनी गारंटी दे और बिजली संशोधन विधेयक को भी वापस लिया जाए. जब तक ऐसा नहीं हो जाता, किसान बॉर्डर छोड़कर नहीं जाएंगे.
Also Read: किसान आंदोलन में निहंग सिखों की भूमिका?
Also Read
-
TV Newsance 304: Anchors add spin to bland diplomacy and the Kanwar Yatra outrage
-
How Muslims struggle to buy property in Gujarat
-
A flurry of new voters? The curious case of Kamthi, where the Maha BJP chief won
-
South Central 34: Karnataka’s DKS-Siddaramaiah tussle and RSS hypocrisy on Preamble
-
Reporters Without Orders Ep 375: Four deaths and no answers in Kashmir and reclaiming Buddha in Bihar