Opinion

जो 50 थैंक्यू कहने से रह गये हैं मोदी जी…

मेरे वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट पर आपकी तस्वीर टंकी हुई है. बहुत सारी बातों के लिए आप खुद ही अपने विज्ञापनों में अपना धन्यवाद करवाते रहे हैं. अब तो आपके मंत्री भी अपने चेहरों की जगह आप ही का फोटो लगवाने लगे हैं. शायद धन्य महसूस करते भी होंगे. आप के जाने के बाद जो भी नेता आपकी पार्टी और विचारधारा को मिलेगा, वह शायद ही इतना सौभाग्यशाली हो. कौन सोच सकता है कि भारत के भक्तगण, भारत का मीडिया, भारत के उद्योगपति, भारत के फौजी जनरल, भारत के सुप्रीम कोर्ट जज, भारत के नौकरशाह कभी अमित भाई या योगी जी पर इस तरह से पुष्प-वर्षा और स्तुतिगान गा सकेंगे. कुछ तो धन्यवाद आपने, आपकी पार्टी और सरकार ने अपना खुद ही करवा लिया है. यह एक अधूरी फेहरिस्त है, उन सारी बातों की जिनका धन्यवाद देने से रह गया है. आपके कई मास्टरस्ट्रोक हैं, जिनकी गाथा ठीक से नहीं लिखी गई है. आपके अकाउंट में ट्रांसफर की जा रही है. उम्मीद है इन्हें लेकर भी आप उतना ही गदगद और सुख का अनुभव करेंगे, जितना प्रायोजित सरकारी विज्ञापनों में प्रकाशित धन्यवाद प्रस्तावों से लगता है.

1. आपके आने के बाद से दुनिया की ज्यादातर रिपोर्ट्स में भारत का प्रदर्शन पिछड़ा हुआ है. ये भी लोकतंत्र में कम ही होता होगा, कि लोगों का अपने नेता से प्यार कुछ इस तरह से है, कि उसके नेता के प्रदर्शन से कोई लेना देना ही न हो. सरकारी प्रवक्ता बहुत सारा वक्त इन रिपोर्ट्स को खारिज करने में ही लगाए रहते हैं, चाहे बैंक की हो, रेटिंग एजेंसियों की हो, गरीबी की हो, आजादी की हो, या फिर नागरिक अधिकारों की या कानून- व्यवस्था की. मुमकिन है कि ये सब सोची समझी साजिश के तहत आपका प्रताप और भारत की महिमा कम करने की मंशा के साथ किया जा रहा हो. पर ये मंशा क्यों है, हमारी सरकार ऐसे कौन से तीर मार रही है जिसके कारण पूरी दुनिया जल के राख होने लगे और आपके नम्बर कम करने लगे. आपके पिछले कार्यकाल के दौरान संसद में दिये गये आश्वासनों को पूरा न करने में 300% की बढ़ोतरी हुई. उसके बाद भी और अधिक जनसमर्थन के साथ सत्ता में आना लोगों का आपको धन्यवाद ही है. इस सबके बावजूद आपकी लोकप्रियता और शान में कोई खास कमी नहीं आ रही. भारत चाहे जितने भी ग्राफ़ और रिपोर्ट्स में लुढ़क रहा हो, आपका चमत्कार बना हुआ है. ये एक शानदार बात है. भारत को, या कहें दुनिया के सभी लोकतांत्रिक देशों को पहली बार ऐसा नेता मिला है.

2. भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी आमदनी बांग्लादेश से कम हो जाने पर तो धन्यवाद बनता है. कल तक जिन्हें हमारे गृहमंत्री दीमक कह रहे थे, (उनका आशय सभी भारतीयों को मनुष्य कहना ही रहा होगा बिना इस अंदाजे के कि दीमक इंसान से आगे निकल जाएंगे), उनका हमारे नागरिकों से आगे निकल जाना आपकी कड़ी मेहनत, कुशल प्रबंध, और निर्णायक नेतृत्व का परिणाम है. उसके लिए धन्यवाद स्वीकार करें. बांग्लादेश से भारत आये लोगों को भी आपने इस अफसोस में डाल ही दिया, कि वे वहीं रहते तो ज्यादा कमा रहे होते. इसके लिए तो आपका थैंक्यू है सर जी.

3. भूख के इंडेक्स पर 116 देशों में से भारत के 101 तक लुढ़कने पर. सिर्फ 15 देश बचे हैं जो भारत से नीचे हैं. इस साजिश को देख पाना कि भारत पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से बहुत नीचे है. जबकि सरकार का दावा है कि वह 80 करोड़ लोगों को मुफ्त खाना मुहैया करवा रही है और यह रिपोर्ट झूठी है कि हमारे बच्चे कुपोषण, निर्बलता, कम वजन और अधिक बाल मृत्यु दर के शिकार हैं. थैंक्यू इस बात का कि इस रिपोर्ट को लेकर कोई शिकन, कोई परेशानी सरकार के माथे पर नहीं दिखाई पड़ी. उसे इस समस्या की तरफ देखने की जरूरत नहीं थी, उसे सिर्फ रिपोर्ट को झूठा करार देना था.

4. ये आपका लचीलापन ही है कि जिस मनरेगा को आप पानी पीते हुए कोस रहे थे, उसी मनरेगा पर आपने सरकारी खर्च को लगभग तिगुना कर दिया. जब देश में महामारी के चलते बेरोजगारी और भुखमरी बढ़ी तो आपकी सरकार ने ही मनरेगा के मद में 1,11,000 करोड़ रूपए खर्च किये जबकि 2014 में ये 32,000 करोड़ रुपए था और स्कीम बंद की जाने वाली थी. ऐसी नीतिगत उलटबांसी खाने की मजबूरी के बाद भी आपके दिल में गरीब जनता का ख्याल बना रहा, इसके लिए तो धन्यवाद जितना भी कहा जाए, कम है. मनरेगा के तहत रोजगार मांगने वाले पंजीकृत परिवारों में से 95% लोगों को पूरे 100 दिनों का रोजगार नहीं मिल पाया. सेडा के सर्वेक्षण मुताबिक 2018 में जो लोग मनरेगा के तहत काम मांग रहे थे, उनमें 18-30 आयु वर्ग के 20 फीसदी लोग थे, जो बढ़ के 37% हो चुके हैं.

5. देश में बेरोजगारी बढ़ी है. सरकार खुद मान रही है कि काम कर सकने वाली आबादी में से सिर्फ 40% लोग ही या तो रोजगार में हैं या काम तलाश रहे हैं. यहां भी हम पाकिस्तान और बांग्लादेश से पीछे हैं. बाकी 60 फीसदी लोगों के पास न रोजगार है न रोजगार के मौके. 2016 में जहां काम कर सकने वाली 42 फीसदी आबादी के पास रोजगार थे, जो अब 36% पर फिसल चुका है.

6. भारत की आधी आबादी 28 साल और उसके नीचे है. आपने उनके लिए अनेक योजनाओं का ऐलान किया (स्टार्ट अप, स्किल अप, आत्मनिर्भर वगैराह). याद हो न याद हो आप हर साल 2 करोड़ रोजगार पैदा करने की बात करते होते थे. नहीं हो पाया और बात है, पर सोचा और उसका वादा किया, इसके लिए भी आपको थैंक्यू मिलना चाहिए. इतनी घोषणाएं पहली बार भारत के लोगों के साथ की गईं, और उनका पेट घोषणाओं से ही भर गया. घोषणाओं से अघाया हुए देश अपनी खट्टी डकारों के साथ आपको धन्यवाद कह रहा है.

7. आप ने रोजगार की अर्थव्यवस्था के बीच पकौड़ानॉमिक्स का जुमला उछाला था. वह भूख, बेरोजगारी, बेकारी के ऊपर भारी पड़ रहा है, ये भी कम मास्टर स्ट्रोक नहीं है. प्रजा खुश है. काम हो न हो, उसे आपसे और आपके जुमलों से बेइंतहा प्यार है.

8. भारत के लोग चाहे जितने भी गर्त में गिर जाएं, आपने जुमलों की बहार कम न होने दी. उनकी सप्लाई ताबड़तोड़ बनी रही. एक के बाद दूसरा झुनझुना पकड़ाया जाता रहा. लोग गदगद होकर झुनझुने पहले तो बजाते रहे, फिर खुद ही झुनझुनों में बदल गये, जिसका सुबूत हर सुबह व्हाट्सएप पर आने वाले गुड मॉर्निंग संदेशों के साथ आने वाले आपके महिमा मंडन से चालू हो जाता है. आप न होते तो लोग पता नहीं व्हाट्सएप पर क्या कर रहे होते? हमारा काम कैसे चलता. सोशल मीडिया आपके बिना बैठ जाता. जो व्याख्या आपके और आपके कारण भारत में चल रहे व्हाट्सएप समूहों में होती है, वैसी तो दुनिया में किसी भी नेता या अभिनेता को नहीं मिल सकती. जब तक व्हाट्सएप, फेसबुक और जुकरबर्ग हैं, आपका प्रताप बना रहने वाला है. जो लोग आपको फॉलो करते हैं, और उनमें से कुछ को आप भी फॉलो करते हैं, देश का नवनिर्माण वहीं से हो रहा है. देश सबसे सही व्हाट्सएप पर ही चल रहा है. हर हार वहां पर जीत में बदल जाती है.

9. बेरोजगारी के साथ महंगाई की मार भी कम नहीं है. महाराष्ट्र में पेट्रोल अंग्रेजी शराब से भी महंगा हो गया है और कई लोग ट्विटर पर ये कहते पाये जा रहे हैं ‘ड्रिंक, डोंट ड्राइव’ बजाय ‘डोंट ड्रिंक एंड ड्राइव’. आपके मास्टरस्ट्रोक से पता चला है कि देश के लोग तेल और रसोई गैस के लिए बिना हुज्जत किये इतने सारे पैसे दे सकते थे. कोई बुरा ही नहीं मान रहा, जबकि 2014 से पहले ये कहां मुमकिन था. देश के लोगों की क्रय शक्ति बढ़ाने के लिए आपका कितना सारा थैंक्यू है मोदी जी. उपभोक्ता सूचकांक आसमान छू रहा है और आपके लिए जो देशवासियों की मुहब्बत, इज्जत और कृतज्ञता है, कम ही नहीं हो रही है. आपका जादू हम सब पर चल चुका है.

10. नोटबंदी एक ब्रह्मास्त्र की तरह रहा भारत के भ्रष्ट और काले धन पर. भले ही उसमें देश ही जल के राख हो गया हो. पर लोगों को पूरा यकीन हो गया कि भारत की अर्थव्यवस्था पूरी तरह स्वच्छ भारत का हिस्सा बन गई. आपके इस विचार, उस पर विश्वास, उसके बारे में मजे लेकर चुटकुले सुनाना, आपके कहकहे इतने गजब के थे कि पूरी दुनिया चकित हो गई थी. आपने उस वक्त 50 दिन मांगे थे, ‘नहीं तो जिस चौराहे पर कहेंगे, वहां सजा के लिए तैयार हूं.’ हालांकि जिसे काला कह रहे थे, वह सारा पैसा बैंकों में लौट आया है. मैं पांच साल बाद भी उस बूढ़े व्यक्ति की तस्वीर नहीं भूल पा रहा जो पैसे निकालने की कतार से अपनी जगह खोकर रो रहा था. पता नहीं आपने वह तस्वीर देखी भी है या नहीं. क्या आप अभी भी नोटबंदी को लेकर हंस रहे हैं? क्या आपका मन कभी करता है, उन लोगों से भी कभी स्पीकर फोन पर बात करें, उनका हाल-चाल पूछें. शायद वे भी आपका थैंक्यू करें.

11. आपकी फकीरी वाली अदा पर सवा सौ करोड़ की आबादी फिदा है. महामारी, भुखमरी, बेकारी के वक्त में पहली बार किसी लोकतांत्रिक तौर पर चुने गये नेता ने अपने लिए महंगे और आलीशान जहाज खरीदे हैं. पहली बार राहत कोष का रास्ता बदल एक ऐसा पीएमकेयर बनाया गया, जिसके बारे में सरकार न तो पारदर्शी है, न जवाबदेह. उसके पैसे से खरीदे गये वेंटीलेटरों ने लोगों की जिंदगी के साथ जो घपला किया, उसके लिए मरीज न सही, पर आपदा में अवसर तलाशने वालों का धन्यवाद आप तक जरूर पहुंचता होगा. भूख से बिलबिलाते, काम मांगते, मजबूर देश के लोकतंत्र के लिए संसद के भवन का काम नहीं रुक सकता था. आप देर रात अकेले अपने फोटोग्राफर के साथ वहां मुआयना करने भी गये थे.

12. फोटोग्राफर की बात पर याद आया कि कई बार आपको चाहने वाले लोगों को भी ये दुविधा होती होगी, कि आपका पहला प्यार देश के लोग हैं या कैमरा. आपके और कैमरे के बीच कोई नहीं आ सकता, मार्क जुकरबर्ग भी नहीं. आपको हमेशा पता होता है कि कैमरा कहां रखा है, कहां से पैन करेगा, टेली-प्रॉम्पटर कहां रखा है. आप देखते कैमरे में हैं, और देश को और मुझको लगता है, आप हमें देख रहे हैं. हम उपकृत होते हैं. भले ही आपने कोई सीधी प्रेस कान्फ्रेंस नहीं की, और न ही उन सवालों के जवाब दिये, जो लोगों के जहन में घुमड़ते हैं, पर आप हर जगह छाये हुए हैं. आपने सार्वजनिक छवि निर्माण के तरीकों को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है, और आपके आगे कोई भी नहीं टिक सकता. जितना सचेत और जागरूक आप कैमरे को लेकर होते हैं, उतना ही अगर सरहद पर चीनी घुसपैठ को लेकर होते तो भारत आज कहीं ज्यादा सुरक्षित होता.

13. फौज की बात चले और चीन की नहीं, तो गलत होगा. ये आपकी ही कुशल कूटनीति, रणनीतिक चतुराई और सूझबूझ का परिचायक है कि जहां चीन की फौज लद्दाख और दूसरे मोर्चों पर भारत की सीमाओं के साथ खुले तौर पर छेड़छाड़ कर रही है, आपने अद्भुत संयम और शांतिदूत होने का परिचय दिया है. उसका थैंक्यू भी बनता है. फौजी तो अपने कर्तव्य से बंधे हैं, पर उनके परिवारों की तरफ से धन्यवाद आपके लिए खास तौर पर है.

14. फौजी परिवारों को खास तौर पर आपका थैंक्यू इसलिए भी करे हैं कि चीन-भारत का व्यापार इस साल 100 बिलियन डॉलर को पार करने वाला है. चीन हमारा सरहद पर दुश्मन है, बाजार में दोस्त है. भले ही दोनों मोर्चों पर सौदा घाटे का ही हो. भारत को व्यापार घाटा 46.55 बिलियन डॉलर का हो रहा हो, जो झूला आपने अपने दोस्त शी जिनपिंग के लिए अहमदाबाद में सजाया था, वह दोस्ती सीमा की मुश्किलों के बाद भी बरकरार है. इस बीच आपकी वोकल फ़ॉर लोकल की बात करना सोने पर वह सुहागा है जिसे व्याकरण में श्लेष या वक्रोक्ति कई तरह के अलंकरण लक्षित होते हैं.

15. दुनिया में दो ही देश हैं जिनकी आबादी सौ करोड़ से ज्यादा है. उन दो देशों में टीकाकरण की दर और तेजी देखें तो हमारा प्रदर्शन भयानक लद्धड़ और पिछड़ा है. इसमें एक वह टीका भी शामिल है, जिसकी अभी विश्व में मान्यता ही नहीं है और उसे लेकर ब्राजील के दक्षिणपंथी राष्ट्रपति और उनके बेटों और टीके के दलालों पर भ्रष्टाचार और जनता के साथ धोखा करने का मामला चल रहा है. हमारे यहां हवाई जहाजों में आपकी फोटो के साथ आरती उतारी जा रही है. आपके मंत्री ही कहते हैं कि तेल के दाम सबको कोविड वैक्सीन देने के लिए बढ़ाए जा रहे हैं, उधर आपके फोटो लगे विज्ञापनों में टीकों को मुफ्त बताया जा रहा है. आपके विज्ञापन तो झूठ नहीं बोल सकते. ये मास्टर स्ट्रोक है. थैंक्यू मोदी जी!

16. सौ करोड़ लोगों को वैक्सीन मुफ्त लगवाने का तो आपने श्रेय ले लिया, वैसे ही उन सारे मृत्यु प्रमाणपत्रों के जरिये भी कृतज्ञता ज्ञापित की जा सकती थी, जो दवा, वेंटीलेटर, ऑक्सीजन, अस्पताल में बिस्तर, श्मशान में जगह के लिए तरसते रहे. वे तस्वीरें भी भूले जाने लायक नहीं हैं. पता नहीं वे तस्वीरें आपको दिखाई गईं या नहीं और आपको उनके बारे में क्या महसूस हुआ? कैसा लगा होगा जब मृतकों की संख्या आपके ही गुजरात में दबाई- छुपाई गईं. हमें पता है उन खबरों और तस्वीरों को छापने वालों के साथ आगे क्या हुआ? कैसे उन्हें सच छापने की सजा दी गई. डाटा को छुपाने-दबाने में भारत का नाम ऊंचा करने के लिए भी आपका शुक्रिया.

17. देश जब कोरोना से लड़ते हुए जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा था तब नीम हकीम रामदेव अपने चूरन की गोली कोरोनिल को कोविड से लड़ने की असरकारक दवा बता रहे थे. जब विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारतीय मेडिकल एसोसिएशन के लोग उसकी संदिग्धता के बारे में बात कर रहे थे, आपके मंत्रीमंडल के लोग एक नीम हकीम का चूरन बेचने के लिए फोटो खिंचवा रहे थे. महामारी के फैलते वक्त इस तरह का भ्रम फैलाने में योगदान फैलाने के लिए उन मंत्रियों और आपका शुक्रिया रहेगा.

18. अर्थव्यवस्था पर आपकी पकड़ और समझ कुछ इस कदर मजबूत रही कि दुनिया के सबसे पढ़े-लिखे और कुशल समझे जाने वाले अर्थशास्त्री अपना कार्यकाल खत्म होने से पहले ही आपसे खूंटा तुड़ा कर भाग खड़े हुए. इनमें रघुराम राजन, अरविंद सुब्रमण्यम, उर्जित पटेल, विरल आचार्य जैसे लोग शामिल हैं, जिन्होंने दुनिया में अपने काम के बूते खासा नाम कमाया पर उन्हें लगा कि उनके बिना भी भारत का काम आपके नेतृत्व में ठीक चल सकता है. स्वदेशी प्रतिभा की आत्मनिर्भरता की जो मिसाल हमने कायम की है, उसका भी आपको तहेदिल से शुक्रिया मिल ही रहा होगा.

19. सिर्फ अर्थशास्त्री ही नहीं, भारत छोड़कर जाने वाले डॉलर मिलियनेयर्स (साढ़े सात करोड़ रूपए से ज्यादा कूवत रखने वाले) की तादाद 30,000 पार कर चुकी है. वे जहां गये हैं, आपही का नाम जपते हुए थैंक्यू कहे जा रहे हैं. कुछ पर तो आपकी मेहरबानी रही है (नीरव और कई दूसरे), पर बहुत से ऐसे हैं, जिन्हें लग रहा था कि आपके कुशल प्रबंधन में धंधा पानी करने के वे लायक नहीं रह गये हैं. कुछ तो आपने ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ बढ़ाई है, जिससे ये हुआ है. आपने एक बार उद्योगपतियों और व्यापारियों के लिए थोड़ा गुजरातोचित तरीके से कहा था कि वे फौजियों से ज्यादा हिम्मत वाले हैं. जाहिर है वे देश छोड़कर जा रहे हैं तो जहां जाएंगे, भारत का नाम ऊंचा करेंगे. इसका श्रेय आपको ही मिलेगा और विदेशों में रोड शो करने में भी सहूलियत होगी. मास्टरस्ट्रोक इतना बारीक और गहरा हो सकता है, ये अब पता चल रहा है.

20. देश के हित में टाटा उद्योग समूह को आपके मंत्री द्वारा खुलेआम गुस्सा दिखाना और बाद में इंटरनेट से उसकी क्लिप हटवाना भी एक तरह से देश में पहली बार हुआ है. साथ ही भारत के कॉरपोरेट जगत को राष्ट्र-विरोधी करार देना भी एक नई तरह की भाषा है, जो कोई भी प्रगति के पथ पर अग्रसर देश की सरकार अपने उद्योगपतियों से शायद ही करती होगी. ये वही टाटा ग्रुप है जो आपके कहने पर अपनी नैनो कार का प्रोजेक्ट ममता बनर्जी वाले पश्चिम बंगाल से हटाकर गुजरात के साणंद लेकर आ गया था. ये अलग बात है कि नैनो प्रोजेक्ट असफल रहा. उद्योगपतियों पर सरकार की धौंस और दबदबा दिखाने के पीछे जो भरोसा है दुनिया के बहुत से नेताओं और रणनीतिकारों को हक्का बक्का करने के लिए काफी है. बल्कि इसके जरिये देश के तमाम उद्योगपतियों को भी आपने उनकी जगह बता दी है, जिसके लिए बहुत सारा शुक्रिया बनता है.

21. आपके राज में आर्थिक असमानता बढ़ी है. अमीर और अमीर हुए हैं. गरीब और गरीब. इस खाई को पाटना सरकार का काम होता है. पर जैसा कि ज्यादातर संकेतों और सूचकांकों से देखा जा सकता है, इसके आसार काफी कम हैं. आपदा में अवसर देखने वाली बात यहां ठीक से लागू हो रही है, जो आप ही ने कही थी. जिन लोगों की आमदनी आपके राज में बढ़ी उनका आपको बड़ा वाला थैंक्यू है ही.

22. इसी बीच में जापानी कम्पनी टोयोटा ने भी आपकी टैक्स पॉलिसी को देखते हुए भारत में अपना विस्तार करने की योजना रद्द कर दी. टोयोटा के मुताबिक उन्हें लगता था कि सरकार उनसे भारत में धंधा करना नहीं चाहती. इतनी बड़ी कम्पनी को घुटने टिकवाना कोई छोटी बात नहीं होती. बहुत कलेजा चाहिए होता होगा. बहुत सारा घाटा उठाकर फोर्ड ने तो भारत से अपनी दुकान ही समेट ली. देश की अर्थव्यवस्था कैसी चल रही है इसका पता देश में वाहनों की बिक्री से लगता है. ये बाजार भी लुढ़कन पर है. थैंक्यू को बनता है.

23. आपके राज में देश में दस साल के मुसलमान बच्चे से भी हिंदू खतरे में चले जा रहे हैं. ऐसा शायद ही कोई दिन हो जिस दिन किसी मुस्लिम औरत, बुजुर्ग, नौजवान, लड़के-लड़कियों के साथ हिंसा, बदतमीजी का वीडियो वायरल नहीं होता है. उसमें आपकी विचारधारा, आपके प्रशंसक, आपके सरकारी कारिंदे शामिल पाये जाते हैं. अब तक जिसे फ्रिंज कहा जाता था, वही मेनस्ट्रीम हो चुका है. कभी किसी को कोई अंडे बेचने से रोक रहा है, कोई मोहल्ला खाली करने को कह रहा है. कोई सड़क चलते इंसान को पीटने लगता है, कहीं पुलिस लाठी बरसाते हुए राष्ट्रगान सुनाने की फरमाइश पेश कर रही है. दंगा होता है तो मरते भी ज्यादा संख्या में मुसलमान हैं और गिरफ्तार भी उन्हीं को ज्यादा संख्या में किया जाता है.

जब हम पड़ोसी देशों के लोगों को शरण देने की बात करते हैं, तो उसमें सिर्फ एक धर्म का नाम नहीं लिया जाता. आप खुद अपनी स्टाइल में कभी कपड़ों से तो कभी श्मशान-कब्रिस्तान से लोगों को पहचानने लगते हैं. पूरी दुनिया में आपके राज की इस विकृत मानसिकता की बात हो रही है. आपके ही मंत्रीमंडल के सदस्य रहे मी-टू मामले के आरोपी और एक पूर्व पत्रकार ने कहीं इसीलिए तो आपकी तुलना हिटलर से नहीं की थी. ये गजब की बात है कि हमारे देश में बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यकों से खतरा है. इस खतरे का ढिंढोरा सबसे ज्यादा आपके राज में पीटा जा रहा है. मुसलमानों को एक सोचे समझे तरीके से न नागरिक होने का अधिकार मिल रहा है, न इंसान रहने की गरिमा. चाहे असम हो, उत्तर प्रदेश हो, मध्य प्रदेश हो या कर्नाटक, पहले हौवा खड़ा किया जाता है, फिर हैवानियत दिखाई जाती है. ये कैसा हिंदुत्व है जिसे न देश के कानून की परवाह है न इंसानियत की. इनमें से बहुत से मुसलमान ऐसे हैं, जो गांधी और नेहरू के कहने पर देश में रुके हैं. वे कहीं और के नहीं है. वे बेहतरीन इंजीनियर, फौजी, खिलाड़ी, अभिनेता, कलाकार, कामकाजी, शिल्पकार हैं और दिन रात तमाम सौतेले बर्ताव के बावजूद अपनी रोटी शांति से कमाना चाहते हैं.

उनका आपको थैंक्यू इसलिए है कि अगर ये सब न किया जाता तो हम शाहीन बाग और दूसरी जगहों पर सरकारी ज्यादतियों के खिलाफ वह आंदोलन नहीं देख पाते, जिसने न सिर्फ पूरी दुनिया में शोहरत कमाई बल्कि आपके उस कानून को भी लागू होने से रोक दिया. आपका राज्य उस हिंदू राष्ट्र का पूरा प्रारूप है, जिसकी आबादी के कुछ हिस्से को लम्बे समय से आकांक्षा तो थी, पर साथ ही पूरी दुनिया देख रही है कि उसके चक्कर में नागरिकता, समानता, संविधान, मानवाधिकार का क्या हो रहा है.

24. एक बड़ा थैंक्यू कश्मीरियों का है, जिन्हें महीनों कर्फ्यू में, बिना इंटरनेट के, उनके नेताओं की गिरफ्तारियों के बीच, वहां के पत्रकारों पर दमनकारी कार्रवाइयों के साथ लोकतंत्र, शांति और विकास की बहाली आपकी सरकार ने की है. गृहमंत्री कह रहे हैं कि ये हमने कश्मीरियों के भले के लिए किया है. जब धारा 370 हटाने की और राज्य की सरकार बर्खास्त कर उसे यूनियन टेरीटरी बनाने की बात हो रही थी, जब कहा जा रहा था कि वहां विकास होगा, आतंकवाद रुकेगा, व्यापार खुलेगा और कश्मीरी पंडित घाटी वापस लौटेंगे, नौजवान मुख्यधारा में आएंगे, लोगों की जिंदगी में थोड़ा अमन चैन आएगा. दुनिया और कश्मीर के लोग भले ही ये नहीं देख पा रहे हों, पर आपने कहा है तो आ ही गया होगा. थैंक्यू. जो अभी तक कश्मीरियों के साथ कोई न कर सका, आपने कर दिखाया.

25. एक फिल्मी सितारे के बेटे के व्हाट्सएप मैसेज के आधार पर उसे नशेड़ी करार कर तीन हफ्ते जमानत न देना और गिरफ्तार रखना इंसाफ है, भले ही उसके नाम में खान जुड़ा है, पर एक बंदरगाह पर 20,000 करोड़ की ड्रग्स बरामद हुई, उनका क्या हुआ पता भी नहीं चलता. ये पता नहीं किस तराजू और अनुपात से तय होता है. जो संदिग्ध पृष्ठभूमि वाला अफसर आर्यन खान के खिलाफ मामला बना रहा है, देखा जा सकता है कि उसके साथ किस पार्टी और नीयत वाले लोग हैं. और ये बात सिर्फ शाहरुख़ और आर्यन की नहीं हैं, ये बात हर उस मां बाप के लिए है, जिनके बच्चे आपके भारत में बड़े हो रहे हैं. आर्यन खान के जरिये सबके लिए ये संदेश है कि अपनी पर उतरे तो सरकार उनके बच्चों के साथ कुछ भी कर सकती है. और जब शाहरुख़ जैसे रसूख वाली हस्ती को नहीं छोड़ा जाता तो हम किस खेत की मूली हैं. सरकार का ये बड़ा हासिल है कि निरपराध लोग भी खौफ में रहें. खास तौर पर अगर वे अल्पसंख्यक हों. ये थैंक्यू देश की जवान हो रही पीढ़ी की तरफ से.

26. इधर मोहम्मद शमी जैसे धुरंधर बॉलर को खास तौर पर पाकिस्तान से टी-20 मैच हारने के लिए इकलौते तौर पर जिम्मेदार ठहराया जा रहा है और आपकी सरकार तालिबानी मुस्टंडों के साथ बात कर रही है. उधर आपके एक बड़बोले मुख्यमंत्री तालिबान पर हवाई हमले करने की बात हांक रहे हैं. पहले भी आपकी पार्टी उन तालिबानियों के साथ आतंकियों का सौदा कर चुकी है. विश्वगुरू होने का श्रेय आखिर आपने और आपके सवा सौ करोड़ों ने यूं ही थोड़ी दिया है. अफगानिस्तान की दारी जुबान में थैंक्यू के लिए कहते हैं ‘तशाकुर!’ (मुझे नहीं पता था- गूगल किया).

27. इधर हिंदुओं की आस्थाएं इस कदर नाजुक और टची हो गई हैं कि आपके ही सांसद को दिवाली को जश्न ए रिवाज कहना बुरा लग जाता है. एक मंत्री को मंगलसूत्र का विज्ञापन खल जाता है. किसी को औरतों के बिंदी न पहनने से दिक्कत है. किसी को समलैंगिकों के करवाचौथ से दिक्कत है, किसी को हिंदू-मुस्लिम एकता दिखलाने से. समाज में सहिष्णुता जिस सोच के कारण कम हुई है, उसका भी थैंक्यू बनता है.

28. रोम में पोप से गले मिलकर, उनके यहां पवित्र बाइबल को अपने सर से लगा, उनको भारत आने के न्यौता देने से कुछ ही दिन पहले एक रिपोर्ट भारत के प्रताड़ित ईसाइयों ने जारी की थी. जिसके मुताबिक इस साल ईसाई लोगों, उनके गिरिजाघरों पर हमलों की 300 शिकायतें दर्ज हुई हैं. साल खत्म होने में अभी दो महीने बाकी हैं.

29. अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय धार्मिक आजादी के लिए बने आयोग (यूएससीआईआरएफ) ने गांधी और बुद्ध के भारत को उन 15 देशों में पिछले साल शामिल कर लिया, जिन्हें लेकर ‘खास तौर पर चिंता’ जताई गई है. इस साल भी हम वहीं पर हैं. जहां उस आयोग के लोगों की ये चिंता भारत में अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों को लेकर है, भारत सरकार ने उस आयोग को ही पक्षपाती बताकर पल्ला झाड़ने की कोशिश की है.

30. इकोनॉमिस्ट पत्रिका की इंटेलिजेंस यूनिट डेमोक्रेसी इंडेक्स ने भारत को 27 से उठाकर 53 पर पटक दिया. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सरकार ने इसे मामूली करार दिया. दुनिया भर के देशों पर नजर रखने वाली संस्था फ्रीडम हाउस ने भारत के आजाद देशों के समूह से हटाकर आंशिक तौर पर आजाद देशों की फेहरिस्त में डाल दिया है. उसके मुताबिक जम्मू-कश्मीर में पहले आंशिक आजादी थी, अब वह आजाद नहीं की श्रेणी में है.

31. आपके निजाम में प्रेस फ्रीडम रिपोर्ट में भी भारत की हालत कोई अच्छी नहीं है. 180 देशों में हम पहले 133 पर थे, अब 142 पर हैं. रिपोर्टर्स सान फ्रंटियर नामक संस्था की इस सालाना रिपोर्ट के मुताबिक भारत ठीक तरह से काम करने वाले पत्रकारों के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से है. कुछ लोगों के साथ जरूर ऐसा हुआ है, जिन पर नजर रखी गई, कुछ की पिटाई करवाई गई, कुछ को हवालात भी भिजवाया गया और कुछ की रिपोर्टिंग पर सवाल उठाये गये, पर यह श्रेय आप ही को जाता है कि अक्षय कुमार नाम के कनाडाई नागरिक और प्रसून जोशी जैसे जिंगलकार को पत्रकार बनने की ट्रेनिंग दी. उसमें आम को काट के या चूस के खाने जैसे गंभीर विकल्पों पर चर्चा हुई और आपमें एक फकीरी देखने की क्षमता जोशी के साथ-साथ बहुत से देशवासियों में भी विकसित होती पाई गई.

32. इन तमाम चुनौतियों के बावजूद आपका आशावाद गजब का है. सबसे बड़ा मास्टर स्ट्रोक तो ये है कि जब भी कोई चुनौती सामने आये, उसे पहचानने से ही इंकार कर दिया जाए. कुछ और बात करने लगें तो चुनौती अपने आप खत्म हो जाती है. दुनिया भर के सारे आंकड़े भारत विरोधी बताने और भारत में जुटाए गये आंकड़ों को छुपा कर देश का हौसला बुलंद बनाये रखने के लिए तो आपका बहुत ही ज्यादा थैंक्यू है मोदीजी. जितना प्रचार आपकी सरकार ने आपका किया, तमाम प्रतिकूल स्थितियों के बावजूद, जितना पैसा जलाया, जितना हल्ला मचवाया, उससे हो सकता है सब को सच का पता नहीं चले, पर वह छिप कैसे जाएगा, समझ से परे है.

33. जब आप मानवाधिकारों की दुहाई देते हैं, तो उसका थैंक्यू तो बहुत सारा बनता है. पूरी दुनिया देख रही है कितने सारे लोगों (खास तौर पर नौजवान, मुसलमान और सामाजिक कार्यकर्ताओं को) जेल में बिना पूछे, बिना बताए डाल दिया जाता है. अब साबित होने तक निरपराधी कोई नहीं है. निरपराधी होने का सबूत मिलने तक हर आरोपी अपराधी है. और न भी हो तो अदालतें ही मामला घसीट कर उसे सजा बना देती है. सबसे बड़ा धन्यवाद तो इस बात का कि अनिश्चितकाल के लिए चल रहे मामले में किसी को जमानत भी मिल जाए, तो वे उसे इंसाफ की जीत समझने लगे हैं. और ये कानून सिर्फ उन लोगों पर ही लगता है, जो आपकी तरफ खड़े होकर आपकी जय-जयकार नहीं कर रहे हैं. बाकी लोग जो भी कह लें, जो भी कर लें कानून एक का सगा है, दूसरे का सौतेला. देश की कानून-व्यवस्था का ये हाल करने का श्रेय और किसे दिया जा सकता है, आपके अलावा. वर्ल्ड जस्टिस प्रोजेक्ट की रूल ऑफ लॉ इंडेक्स के मुताबिक कानून के ग्राफ में भी भारत दक्षिण एशिया में ही नेपाल और श्रीलंका से पीछे है और तीन पायदान लुढ़क कर 139 देशों में से 79 पर पहुंच गया है.

34. मानवाधिकार कानूनों की बात करते वक़्त आप उसके ‘सलेक्टिव’ होने पर सवाल करते हैं, यह कहते हैं कि नागरिकों के कर्तव्य के बिना अधिकार नहीं हो सकते, पर अगर आपके स्पीच राइटर इस कानून के बारे में थोड़ा जांच परख कर लेते तो देखते कि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून की जवाबदेही सरकारों की होती है, व्यक्ति की नहीं. उधर पूरी दुनिया कश्मीर और उत्तर पूर्व में दमन और मानवाधिकार हनन की बात कर रही है, हमारे मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष सरकार की स्तुति में लगे हुए हैं. पहले भी सुप्रीम कोर्ट के जज होते हुए वे आपकी सार्वजनिक मंचों से प्रशंसा करते पकड़े गये थे. जो हमारे समाज के कांशसकीपर रहे हैं, जिन्होंने अपने निजी सुख और स्वार्थ छोड़कर कतार के आख़िरी लोगों के लिए अपनी जिंदगी दी है, वे आतंकवादी बताए जा रहे हैं. न्यूयार्क टाइम्स के मुताबिक आतंकवाद विरोध के नाम पर यूएपीए आपके सबसे दमनकारी कानूनों में से एक है, जिसमें पिछले पांच सालों में 8,300 से ज्यादा लोग गिरफ्तार किये गये हैं.

35. आपने विश्वविद्यालयों में अनुशासन लाने के लिए जो ऐतिहासिक और निर्णायक पहल की है, जिस तरह से सड़क पर विरोध करने उतरे नौजवान लड़के-लड़कियों को उठाकर जेल में बंद करवाया, जिस तरह से उनकी बेल नहीं होने दी, जिस तरह से वहां पढ़ा रहे अध्यापकों पर मुकदमे ठोंके, जिस तरह से उन्हें परेशान किया गया, जिस तरह से आपकी विचारधारा से जुड़े छात्रसंघ के लड़कों ने हिंसा की, जिस तरह से थोड़ी भी कूंकां करने वाले जजों का रातों रात तबादला किया, वह तो किसी चाणक्य को भी सदमे में डाल दे. जामिया मिलिया की लाइब्रेरी पर पुलिसिया हमला दुनिया की सबसे विचित्र किन्तु सत्य किस्म की तस्वीर लेकर आई थी. पढ़ने-पढ़ाने, विचार करने वाले सवाल उठाने वालों के प्रति आपका अगाध प्रेम लगातार झलकता रहा है, जिसके लिए यह देश कभी भी पूरी तरह आपका आभार नहीं जता पाएगा.

36. पुलिस जिस तरह से इधर चार्जशीट बना कर अदालतों में पेश कर रही है, और अदालतें उन पर यकीन भी कर लेती हैं, उन आरोपपत्रों को कालांतर में साहित्यिक समारोहों और पुरस्कारों में ‘फ़िक्शन कैटेगरी’ में ईनाम भी दिलवाया जाय. जैसे एक में कहा गया है कि ट्रैक्टरों की बिक्री इसलिए बढ़ी क्योंकि किसानों को लाल किले पर हमला बोलना था. पुलिस की तफतीशों और एफआईआर में लालित्य और कल्पना-शक्ति की जो कमी अब तक दिखाई पड़ती थी, आपके प्रताप से उनके लेखकों ने इस समय के ऊबे और उदासीन साहित्यकारों को बहुत पीछे छोड़ दिया है. जिस तरह से तथ्यों को नजरंअदाज किया गया, सुबूतों को अनदेखा किया गया, कुछ लोगों को फंसाया गया, कुछ को जाने दिया गया... सब मिलकर अदालतों और पुलिस थानों में निरंतर चलता हुआ रियलिटी शो ही है. साथ ही तथ्यों को भी ये कानून और व्यवस्था को एक नये स्तर पर ले जाने का उपक्रम है, जिसके कारण बहुत सारे भले, नौजवान और मासूम लोगों की दुआएं आप तक पहुंच ही रही होंगी. और उनके परिवारों की भी.

37. सबसे गजब की बात ये है कि दिल्ली की देहरी पर बैठे किसानों ने साल भर से अपना धरना लगाया हुआ है. कई बार उन पर लाठियां चलीं. 600 से ज़्यादा किसान मर गये. उन्होंने मोटे तौर पर बहुत ही शांतिपूर्ण तरीके से अपना आंदोलन चलाया और अपनी बात रखने की कोशिश की. पर आपकी सरकार उस कानून को लेकर अपनी स्थिति पर डटी रही. एक कृषि प्रधान देश में एक सरकार और उसके प्रधानमंत्री का ये अडिग रवैया मिसाल कायम करने वाला है. आपके नौकरशाह खुले आम किसानों के सिर फोड़ने की बातें करते सुनाई पड़े. जब देखो तब उन पर हमले किये गये, उनके खिलाफ साजिशें की गईं, जिनमें खुद आपके कृषि मंत्री शामिल समझे जा रहे हैं. एक राज्यपाल खुले आम सरकार के विरोध में उतर आये हैं. आप ही की पार्टी के एक सांसद भी. आपके कारण ये सवाल लोगों के जहन में पहली बार आया है कि सरकार अगर किसान की नहीं हैं, उसके हितों की रक्षा नहीं कर सकती, उसकी बात नहीं सुन सकती, तो फिर ये सरकार किसकी है. इस हठधर्मिता के कारण दुनिया के सबसे बड़े और लम्बे आंदोलनों में से इसकी गिनती होती रही है. और जैसा कि शाहीन बाग के जरिए हुआ था, इस आंदोलन ने भी यह साफ दिखा दिया कि जीवट वाली जनता पर सरकार जितना भी दुष्प्रचार कर ले, जितने भी डंडे भांज ले, उनके सर फोड़ने के कलक्टरी हुक्म जारी कर दे, जितनी भी राह मुश्किल करती रहे, जीत तो उनकी ही होती है. आपने आजाद भारत और लोकतंत्र में सत्याग्रह की आत्मा को जिस तरह से मजबूत किया है, उसका थैंक्यू जितना भी किया जाए, कम ही पड़ेगा.

38. प्रदेशों में चुनावों के आसपास नेपाल और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में जाकर हिंदू मंदिरों में अर्चना, हिंदुओं की यकायक चिंता करना भी एक तरह से मास्टर स्ट्रोक है. न आचार संहिता का इससे उल्लंघन होता है, न वोट बैंक की राजनीति का इलज़ाम लगता है. इधर आपकी पोप से मिलने की तस्वीर को भी लोग गोवा के चुनाव से जोड़ कर देख रहे हैं, जो कुछ ज्यादा ही हवाबाजी है. जिस बात में हवाबाजी नहीं है, वह ये भारत की छवि को बनाये रखने के लिए देश के मुख्यमंत्रियों को विदेश यात्रा जाने की इजाजत न दी जाए. थोड़ा बारीक है, पर है तो मास्टर स्ट्रोक ही.

39. आपकी संवेदनशीलता के लिए कुत्तों की तरफ़ से भी बहुत सारा थैंक्यू है मोदीजी. एक समय था आपको कुत्ते के गाड़ी के नीचे आने का भी दुख होता था. पर लखीमपुर खीरी में एक मंत्री पुत्र की गाड़ी ने इरादतन किसानों की रौंद कर जो हत्या की, उस पर देश के प्रधान सेवक का एक बोल भी न फूटा. मजाल है आपके ट्विटर और मन की बात में उनके बारे में भी कोई बात निकल जाए. किसानों को सरेआम धमकी देने वाला मंत्री अभी भी आपकी कैबिनेट में बना हुआ है. हालांकि वहां के तमाम नौकरशाहों का तबादला कर दिया गया. प्रजा के प्रति तंत्र की निष्ठा जो झलकती है, उसकी मिसाल दुनिया में शायद ही कहीं मिले. कहा तो ये भी जा रहा है कि टेनी को हटाएंगे तो उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण वोट भाजपा को नहीं मिलेंगे, जो बेसिरपैर की बात है. यूपी के ब्राह्मण का तुष्टिकरण सिर्फ़ टेनी के पद पर बने रहने से होगा, आखिर आपकी पार्टी तो वोट बैंक की राजनीति से ऊपर और परे है.

40. जिस साध्वी के गोडसे समर्थक होने के कारण आप मन से माफ नहीं कर पाए, वह आतंकवादी हमले में आरोपी को अदालत में बुलाए जाने पर खांसते हुए बीमार पड़ जाती है, संसद में व्हील चेयर पर घूमती है और फिर बीमारी के बहाने ज़मानत लेकर गरबा नाचने लगती है. मन से माफ़ न करने के बाद भी अपनी पार्टी के सांसदों को अभिव्यक्ति की ये आजादी देना भी आपकी दरियादिली का परिचायक है. आप कहते हैं कि आतंकवादी हिंदू हो ही नहीं सकता. जो हिंदू नहीं हैं, उनमें से बहुत से हैं जो बहुत से मामलों में बिना चार्जशीट और सुबूत के आतंकवाद से जुड़े कानूनों के तहत जेल में सड़ते रहे हैं. शायद सारी तफतीश, सारी अदालतें, सारा कानून झूठा है या फिर कोई ऐसी मजबूरी है, जो समझ में तो आती है, बताई भले न जा रही हो. आप दुनिया को गांधी का पाठ भी पढ़ाते रहते हैं. गजब का संतुलन है, जिसके लिए जितना भी धन्यवाद दिया जाए, कम ही पड़ेगा.

41. स्त्रियों के खिलाफ अपराध को लेकर आपका एक विज्ञापन हुआ करता था, पर हकीकत कुछ और है. लॉकडाउन के समय को छोड़ दें, तो महिलाओं पर अपराध बढ़े ही हैं. यूपी में आपकी पार्टी के मुख्यमंत्री औरतों को देवी की तरह देखने की बात करते हैं और आपकी पार्टी के ही नेता और उनके सरकारी कारिंदे बताते हैं कि महिलाओं को देवी की तरह कैसे देखें. उसी राज्य में बलात्कार और हत्या की शिकार की लाशें पुलिस परिवार को दिये बिना जला देती है. वहीं पर कई बाबा (और आप ही की पार्टी के सांसद भी) लोग यौन शोषण करने के सबूत पेश करने के बाद छूट जाते हैं. आपके पार्टी के पूर्व एमएलए भी औरतों में देवी देखते हुए दुष्कर्म के आरोप में जेल काट रहे हैं और आपकी पार्टी ने उसी की पत्नी को टिकट दिया है. देश के गृहमंत्री बता रहे हैं कि देर रात को स्कूटी में गहनों से लदी 16 साल की लड़की बिना किसी ख़तरे के यूपी की सड़कों पर निकल सकती है. इसमें कितने सारे अलंकारों का प्रयोग किया है, ये अनुसंधान का विषय हो सकता है. देश का ध्यान इस तरफ़ दिलाने का तो शुक्रिया बनता ही है, साथ ही उन स्पीच राइटर्स का भी, जो कहां-कहां की बात कर लेते हैं. खुद को क्लीन चिट देने वाले यौन शोषण के आरोपी एक मुख्य न्यायाधीश को राज्यसभा का टिकट देना भी दर्शाता है कि आपकी पार्टी किस कदर स्त्रियों का सम्मान करती है. साथ ही कानून जानने वालों का भी.

42. आपने हाल में कहा कि आप अपनी आलोचना के गंभीरता से लेते हैं. इसके लिए आप धन्यवाद के पात्र हैं. आपकी सरकार को इशारा ही काफी होता है इस गंभीरता का मतलब ताड़ लेने के लिए. तभी जो भी आपसे असहमत होता है या दबे हुए सच को उघाड़ने की कोशिश करता है, उसके पीछे पूरा तंत्र तेल लेकर पड़ जाता है. चाहे पत्रकारिता करने वाले संस्थान हों या मानवाधिकारों के लिए लड़ने वाले व्यक्ति या संगठन, अपने हक के लिए लड़ रहे किसान हों, या अपनी संवैधानिक नागरिकता के लिए विरोध कर रही औरतें. ये भूल कर कि वे प्रजा के ही हिस्से हैं, तंत्र उनसे दुश्मनों से भी बुरा बर्ताव करता है. गंभीरता से लेने का क्या खूब अंदाज है कि जेल में बंद किये ताउम्र आदिवासियों के हक़ के लिए एक बीमार बूढ़े आदमी को सहूलियत के लिए एक सिपर गिलास देने के लिए भी अदालत का मत्था टेकना पड़ता है. क्या फादर स्टेन स्वामी की जेल में मौत उस गंभीरता का परिणाम है, जो आपने अपने आलोचकों के लिए तय कर रखी है. जब उनके सामने आपकी ही पार्टी के नेता खुले आम हिंसा, नफ़रत, सांप्रदायिकता फैला रहे होते हैं, तो कानून और उसके रखवाले मुंह में दही जमा कर बैठ जाते हैं. उनकी जो आलोचना होती है उस पर कोई कार्रवाई होती नहीं दिखती. सरकार जिस तरह से उद्योगपतियों और व्यवसाइयों के अलावा उन सारे नेता, आंदोलनकारियों के खिलाफ सीबीआई, एनआईए, इनकम टैक्स और ईडी के लोगों के लगा देती है, वह भी मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस की बड़ी मिसाल है. इसी बीच आपकी ही पार्टी के एक नेता का ये कह देना आपकी अघोषित नीति की पुष्टि ही करता है, कि जो अपने होंगे उनका बाल भी बांका नहीं होगा. आपको लेकर जो वफ़ादारियां देश में जागी हैं, यह उसी धन्यवाद की अभिव्यक्ति है, जो आपको दिया जा रहा है.

43. जवाहर लाल नेहरू से कुछ तकलीफ हमेशा ही थी. आपके समर्थक देश की हर दिक्कत के लिए भारत के पहले प्रधानमंत्री को जिम्मेदार ठहराते हैं. भले ही वो शीर्षासन कर लेते थे, और अपन ठीक से पद्मासन में भी नहीं बैठ पाते. कुछ के लिए जिन्ना का पहला प्रधानमंत्री बनाया जाना ज्यादा मंजूर था. ये सवाल कांग्रेस के नेताओं को वाजिब लगता है कि जब कुछ किया ही नहीं तो उनके दौरान बने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम बेचे क्यों जा रहे हैं, वो भी जो मुनाफे में हैं. चाहे एयरपोर्ट अथॉरिटी हो, या जीवन बीमा निगम, इनका निजीकरण और विनिवेश जनहित में कैसे अच्छा है, ख़ास तौर पर तब जब बेरोजगारी का संकट रिकॉर्ड तोड़ रहा है. निजी हाथों में जाने के बाद नौकरियों का क्या होता है, सब जानते हैं. और आरक्षित नौकरियों का क्या, इसका भी.

44. लोकतंत्र को विपक्ष मुक्त करने की दिशा में आपके प्रयासों की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है. दरअसल उसे ‘टू मच डेमोक्रेसी’ से निजात दिलवाने की कोशिश की तरह देखा जाना चाहिए, जहां बहस और चर्चाएं करने जैसी फालतू बातों में वक्त खराब किये बिना देश के लिए तमाम ज़रूरी फैसले फटाफट कर लिए जाएं (नोटबंदी, धारा 370, तीन तलाक, अयोध्या, कृषि अधिनियम, सीएए) ताकि देश एक निर्णायक तरीके से आगे बढ़ सके. विपक्ष नक्कारखाने की तूती बनकर रह गया है जिससे लोकतंत्र मजबूत ही हुआ होगा, इसका आपको धन्यवाद.

45. आपके राज में आर्थिक असमानता बढ़ी है. अमीर और अमीर हुए हैं. गरीब और गरीब. इस खाई को पाटना सरकार का काम होता है. पर जैसा कि ज्यादातर संकेतों और सूचकांकों से देखा जा सकता है, इसके आसार काफी कम हैं. आपदा में अवसर देखने वाली बात यहां ठीक से लागू हो रही है, जो आप ही ने कही थी. जिन लोगों की आमदनी आपके राज में बढ़ी उनका आपको बड़ा वाला थैंक्यू है ही. जिनकी कम हुई है, उनका छोटा वाला पैक आपके लिए है. अभी इसी से काम चलाना पड़ेगा.

46. पैगासस के बारे में अभी भले ही भारत में तहकीकात पूरी नहीं हुई है, पर दूसरे देशों की जांच और सुप्रीम कोर्ट और संसद में सरकार की हुज्जत से संकेत साफ़ हैं कि सरकार ख़ुद उन सारे लोगों के मोबाइल में जा कर ताका-झांकी कर रही है, जिनसे उसे तकलीफ है. इसमें विपक्षी नेता राहुल गांधी भी हैं और पूर्व मुख्य न्यायाधीश पर यौन शोषण का आरोप लगाने वाली सरकारी कर्मचारी भी, पत्रकार, आपके मंत्री और समाजसेवी भी. सरकार जितना भी मुकर रही हो, पर इजरायल ने सरकारी तौर पर कहा है कि यह सॉफ्टवेयर सिर्फ सरकारों को ही बेचा जा सकता है. अनधिकृत तौर अपने ही नागरिकों की जासूसी करना, उनकी निजता का अतिक्रमण करना और उनके ख़िलाफ़ इस्तेमाल करना जिस रौशनी में भारत को उसके लोगों और दुनिया के सामने रखता है, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है. भारत में चाहे अदालतें ढीला रवैया दिखलाएं, पर दुनिया के कई लोकतांत्रिक देश इस पर कार्रवाई कर रहे हैं. अगर चोरी छुपानी नहीं होती, तो हमारी सरकार भी अपने नागरिकों के बुनियादी और संवैधानिक अधिकारों के क्षरण को लेकर सक्रिय और संवेदनशील होती. एक बड़ा थैंक्यू इस सीनाज़ोरी का, कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सरकार लोगों के साथ जो मन आये कर सकती हैं और उन पर सवाल किया जाना आपराधिक हो सकता है.

47. उस फिलिप कोटलर अवार्ड के लिए जो पहली बार आपके उत्कृष्ट योगदान के लिए मिला और अंतिम बार भी. इसका जन अभियान चलाया ही जाना चाहिए कि फिलिप कोटलर अवार्ड को फिर से चालू करवाया जाए और हर साल वह आप ही को मिले. हमेशा. हर साल. देश-विदेश के कई लोग हर साल सोचते हैं कि आपको कोई तो नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिए. शांति का नहीं तो अर्थशास्त्र और अर्थशास्त्र का नहीं तो भौतिक विज्ञान का सही. एक ठीक-ठाक अर्थव्यवस्था को इतनी जल्दी गर्त में कैसे पहुंचाया जा सकता था, आपके इस चमत्कार पर दुनिया के शीर्ष विशेषज्ञों को अध्ययन करना ही चाहिए.

48. विज्ञान और टेक्नोलॉजी के प्रति आपका अगाध प्रेम भी हम सबकी श्रद्धा का विषय है. आपने 1988 में डिजिटल कैमरे का इस्तेमाल उसके बाज़ार में आने से पहले ही कर लिया था और ईमेल का इस्तेमाल अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से भी 10 साल पहले. फौजी अफसरों, रडार विज्ञानियों और मौसम विशेषज्ञों से पहले ही आप जान गये थे कि बादलों की ओट की वजह से पाकिस्तानियों को पता ही नहीं चलेगा कि हम बालाकोट पर हवाई हमला करने वाले हैं. भले ही तथ्यों की पुष्टि करने वालों को इससे दिक्कत हो, पर आप समय से काफ़ी आगे रहे. जैसा कि आप ख़ुद कह रहे थे, कि खुद आडवानीजी भी चकित रह गये थे.

49. आपकी आलिंगन कूटनीति का भी जवाब नहीं है. इसलिए बहुत सारा थैंक्यू भारत के बाहर से भी आपके लिए आता है. भारत में पता नहीं आपने कितने लोगों को गले लगाया हो (राहुल गांधी ने जरूर कोशिश की थी), पर विदेशी राष्ट्राध्यक्षों को गले लगाने में आपका कोई सानी नहीं है. सब नेताओं ने भले ही आपके साथ वैसी गर्मजोशी नहीं दिखलाई (जिनपिंग याद आते हैं). पर उनके साथ दोस्ती गांठने, पलक पांवड़े बिछाने में आपने कभी कोई कसर नहीं छोड़ी. चाहे नवाज शरीफ के यहां बिन बुलाए जा धमकना हो, या ओबामा को बराक कहके बुलाना या ट्रम्प के हाथ पर हंसते हुए छेड़छाड़ के अंदाज में हाथ मारना, आपने डिप्लोमैसी को एक बेलौस बेतकल्लुफी वाला अंदाज दिया है. भले ही कुछ लोगों को वो नजदीकियां नहीं भाती शायद कोविड समय में बिना मास्क लगाए गले लगने के कारण. राष्ट्रहित में आपने इस बात की परवाह भी नहीं की कि उनमें से बहुत से लोग गोमांस पसंद करते हैं. आपने एक खांटी गोमांस-भक्षी के लिए परिपाटी छोड़कर उनका चुनाव प्रचार भी किया. राष्ट्रहित में ही किया होगा, भले ही अमेरिका ने उसे चलता कर दिया. आपका अहसान उससे कम नहीं हो जाता.

50. आपने खुद को भारत के लिए भाग्यशाली बताया था. इस भाग्यशाली होने की बड़ी वजह कमजोर और बंटा हुआ विपक्ष भी है. अगर इस नेता की तरह कोई विपक्ष में होता तो थैंक्यू इतने सारे हो रहे होते कि सरकार चलाना मुश्किल हो जाता. उदाहरण के लिए देखें ये, ये और ये. अगर वह अभी भी मुख्यमंत्री होता तो केन्द्र सरकार के हर गिरते ग्राफ, हर मनमानी, हर नाइंसाफी, हर चुप्पी के खिलाफ न सिर्फ आवाज उठाता, बल्कि शायद वैसी ही खाट खड़ी करता, जैसा उसने यूपीए के आखिरी सालों में किया था.

जो भाग्य भारत के लिए आप लेकर आये हैं, उससे भारत कभी भी पूरी तरह उऋण नहीं हो सकता. उसे सामान्य होने में ही बहुत वक्त लगने वाला है. इन सारी बातों का श्रेय किसी और को नहीं दिया जा सकता है. क्योंकि सवा सौ करोड़ लोगों के देश में आपके प्रधानमंत्री बनने तक देश मक्खी ही मार रहा था. जो हुआ आप ही की छत्र-छाया में हुआ. सारा श्रेय आप ही का. अभी तो दो साल बचे हैं. देश यानी हम सब मरे जा रहे हैं आपकी तरफ थैंक्यू सरकाने के लिए. अभी तो पता नहीं क्या क्या होना है.

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