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बीएचयू का छात्र डेढ़ साल से लापता, यूपी पुलिस की भूमिका पर संदेह

उत्तर प्रदेश पुलिस पर आए दिन कोई न कोई आरोप लगते ही रहते हैं. कभी पुलिस हिरासत में मौत, तो कभी पुलिस द्वारा धमकाने, वसूली करने, गलत तरह से जांच करने और कई बार दोषियों को बचाने के आरोप लगते रहे है. लेकिन यह मामला थोड़ा अलग है. यूपी पुलिस की भूमिका पर गहरा संदेह है.

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में बीएससी द्वितीय वर्ष के छात्र शिव कुमार त्रिवेदी को यूपी पुलिस ने बीते साल फरवरी महीने में कथित तौर पर विश्वविद्यालय के गेट से उठा लिया था. उसके बाद से शिव का कोई अता-पता नहीं है. शिव को पुलिस लंका थाने ले गई थी लेकिन वह थाने से कभी वापस नहीं लौटा. शिव के पिता मध्य प्रदेश के पन्ना जिले के रहने वाले हैं. वह डेढ़ साल बाद भी अपने बेटे की तलाश में जगह-जगह धूल फांक रहे हैं, कोर्ट कचहरी के चक्कर लगा रहे हैं.

क्या है मामला?

शिव के 50 वर्षीय पिता प्रदीप कुमार त्रिवेदी पूरी कहानी बताते हैं. इस दौरान वह यह तक नहीं पूछते कि हम कौन हैं, कहां से हैं और क्यों पूछ रहे हैं. उनके भीतर भावनाओं की बाढ़ चल रही है. कहते हैं, "13 फरवरी, 2020 को रात करीब आठ बजे मेरे बेटे को पुलिस बीएचयू के गेट से उठाकर ले गई. गेट के पास मेरा बेटा वहीं के ही एक छात्र अर्जुन सिंह को मिला था. अर्जुन को लगा कि शिव या तो बीमार है या फिर कोई नशा किए है. इसके बाद अर्जुन ने 112 नंबर पर कॉल करके पुलिस को बुला लिया. पुलिस ने ले जाते हुए कहा था कि अगर यह बीमार है तो इसे अस्पताल में छोड़ देंगे और अगर नशे में है तो सुबह तक इसका नशा उतर जाएगा. हम कॉलेज को सूचना देकर इसे सुबह छोड़ देंगे. इसके बाद पुलिस ने कोई जानकारी नहीं दी कि मेरा बेटा कहां गया."

गुमशुदगी का पोस्टर

प्रदीपजी की आखिरी बार अपने बेटे से 12 फरवरी, 2020 को फोन पर बात हुई थी. लेकिन इसके बाद कभी शिव का नंबर नहीं लगा. इससे परिवार को काफी चिंता हो गई. पिता शिव की तलाश में बनारस आ गए. जब शिव नहीं मिला, तो उन्होंने बनारस में गुमशुदगी के पोस्टर लगवाए और सोशल मीडिया पर बेटे के बारे में जानकारी साझा की.

बनारस के लंका थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट

वह कहते हैं, "मैं 16 फरवरी को बीएचयू आ गया. मुझे वह यहां नहीं मिला तो मैंने उसी दिन लंका थाने में गुमशुदगी की शिकायत लिखवाई. लेकिन थाने वालों ने कोई मदद नहीं की. न ही यह बताया कि उनका बेटा यहां आया था. उसके बाद 17 फरवरी को हमने अखबार में निकलवाया, दीवारों पर पोस्टर लगवाए और सोशल मीडिया पर कैंपेन चलाया. तब अर्जुन नाम के एक लड़के ने हमें कॉल किया. हम अर्जुन को पहले से नहीं जानते थे. फोन पर उसने कहा कि जिस लड़के को आप तलाश रहे हैं उसे मैंने ही पुलिस को फोन करके पकड़वाया था. फिर अर्जुन ने हमें उस रात की पूरी जानकारी दी कि कौन गाड़ी शिव को थाने ले गई थी. उसके बाद मैं फिर से लंका थाने गया, और कहा कि आपके यहां की गाड़ी मेरे बेटे को पकड़ कर लाई है और गाड़ी का नंबर यह है."

प्रदीप आगे कहते हैं, "पुलिस वालों ने कहा कि उन्हें नहीं पता. उन्होंने मुझे चेतगंज थाने में भेज दिया. चेतगंज थाने गया तो उन्होंने कहा कि वह उनके थाने का मामला नहीं है. आप सीर गेट चौकी में पता करें. वहां गया तो उन्होंने कहा कि यह हमारे यहां का मामला नहीं है, आप कंट्रोल रूम में जाएं और पता लगाएं कि ये गाड़ी किस थाने की है और लड़के को कहां ले गई है. मैं कंट्रोल रूम गया तो वहां बताया गया कि हमें जानकारी नहीं है, आप एसपी सहाब के पास जाएं. मैं 22 फरवरी को तत्कालीन एसएसपी प्रभाकर चौधरी के पास गया. तब उन्होंने उन गाड़ी वालों को बुलवाया. इसके बाद वहां आए एक एसआई उमेश चंद्र यादव थे जिन्होंने यह बात स्वीकर की कि हां हमने उस लड़के को पकड़ा था और पकड़कर लंका थाने में दे दिया था. इस बात की उन्होंने थाने से रिसीविंग भी ली थी."

प्रदीप त्रिवेदी के मुताबिक इसके बाद फिर एसएसपी ने लंका थाने वालों को बुलवाया. उस समय भारत भूषण तिवारी एसएचओ थे. उन्होंने कहा कि हां लड़का थाने आया था और हमने उसे पागल समझकर छोड़ दिया था. इस दौरान एसएसपी ने कहा कि अब आप इनके साथ थाने चले जाइए यह आपको लड़के को ढूंढकर दे देंगे. शिव के पिता का आरोप है कि जब वह थाने गए तो एसएचओ भरत भूषण तिवारी ने उनके साथ गाली-गलौच की और कहा कि तुमको मध्य प्रदेश में कॉलेज नहीं मिलते हैं, जो तुमने पागल लड़के को यहां भेज दिया पढ़ने के लिए.

इसके बाद उन्हें थाने से भगा दिया गया. अगले छह महीने तक प्रदीप ऐसे ही भटकते रहे. पुलिस ने उनकी कोई मदद नहीं की.

हर तरफ से थक-हारकर आखिरी उम्मीद के साथ उन्होंने एडवोकेट सौरभ तिवारी की मदद से हाईकोर्ट का रुख किया. मामले का संज्ञान लेकर 25 अगस्त, 2020 को कोर्ट ने एसएसपी, डीएम और थाना प्रभारी को तलब किया. तब मौजूदा एसएसपी अमित पाठक ने कोर्ट में कहा कि लड़के को लंका थाने में ले जाया गया और उसे पागल समझकर छोड़ दिया गया था.

संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की तैयारी कर रहे शिव के भाई 24 वर्षीय उमाशंकर त्रिवेदी कहते हैं, "भैया से मेरी आखिरी बार बात 12 फरवरी की रात को ही हुई थी. जब पुलिस ने कहा कि हमने पागल समझकर छोड़ दिया तो हम भैया को पागल खाने और जेल में भी देखने गए. हम भाई की तलाश के लिए गली-गली, घाट, आश्रम और मंदिर सभी जगह गए. किसी ने बताया कि मिर्जापुर में है तो हम वहां भी गए, मतलब जिसने जहां बताया हम वहीं गए. लॉकडाउन में भी पिताजी ने बहुत ढूंढ़ा लेकिन कहीं कुछ पता नहीं चला."

मामला हाईकोर्ट में जाने के बाद पुलिस सक्रिय हुई, लेकिन कुछ कर नहीं पाई. इस दौरान हमारे घर भी पुलिस आई थी. नवंबर 2020 में यूपी पुलिस से केस सीबीसीआईडी के पास चला गया. उमाशंकर का आरोप है कि वहां जांच को प्रभावित किया गया. इसकी शिकायत उन्होंने (डीजी) से भी की. शिकायत के बाद अगस्त 2021 में केस सीबीसीआईडी के मुख्यालय को ट्रांसफर कर दिया गया.

"पहले तो पुलिस मना करती रही कि लड़का हमारे पास नहीं आया था. लेकिन बाद में पुलिस ने कोर्ट में स्वीकार किया कि लड़का आया था. एक बार तो पुलिस वाले एक 40 साल के लड़के को लेकर कोर्ट में पहुंच गए कि यह इनका ही बेटा है. यहां तक कहा गया कि इनके पिता जी के साथ डीएनए टेस्ट कराना है. इसके बाद कोर्ट ने पुलिस को फटकार लगाई कि 40 साल और 23 साल में अंतर नहीं होता है. लड़का 23 साल का है और तुम 40 साल के व्यक्ति को इनका बेटा बता रहे हो, मुर्ख समझा है कोर्ट को." उमाशंकर ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया.

वह बताते हैं कि तत्कालीन एसएचओ भारत भूषण तिवारी आज भी उनके ऊपर केस वापस लेने का दबाव बनाते रहते हैं.

शिव का केस लड़ रहे बनारस निवासी एडवोकेट सौरभ तिवारी फोन पर न्यूजलॉन्ड्री से बातचीत में कहते हैं, "फेसबुक पर रणभेरी अखबार की एक कटिंग काफी शेयर हो रही थी. जिसके माध्यम से मुझे इस घटना का पता चला. यह एक गरीब परिवार है. इसके बाद मैंने इस मुकदमे को फ्री में लड़ने का फैसला लिया. 17 अगस्त 2020 को मैं पीड़ित परिवार से मिला. इस केस को मैं इलाहाबाद हाईकोर्ट लेकर गया. पुलिस ने इस मामले को जीडी (जनरल डायरी) तक में एंट्री नहीं किया. चार नवंबर को यूपी पुलिस ने सीबीसीआईडी को मामला ट्रांसफर कर दिया. इसके बाद अब यह केस सीबीसीआईडी की मुख्यालय में है, जहां पर एक आईपीएस देख रहे हैं. हम आने वाली चार नवंबर का इंतजार कर रहे हैं और चाहते हैं कि मामला में अब सीबीआई जांच करें."

वह कहते हैं, "पुलिस मामले में शुरू से ही लापरवाही दिखा रही है. उन्होंने सीसीटीवी फुटेज की भी जानकारी छिपा ली हैं. जबकि सीसीटीवी सक्रिय था. इस मामले की जांच कर रहे आईओ छह महीने तक उस हॉस्टल तक में नहीं गए जहां पर शिव रहा करता था.

सीसीटीवी सक्रिय थे, आरटीआई से मिली जानकारी

थाने में सीसीटीवी एक्टिव था जबकि लड़के के पिता से कह दिया गया कि सीसीटीवी खराब था. सौरभ तिवारी को आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक लंका थाने में तीन सीसीटीवी कैमरे लगे हैं जो कि जो 13 और 14 फरवरी 2020 को सक्रिय थे.

वह कहते हैं पुलिस ने उनसे कई बार संपर्क किया और दवाब बनाने की कोशिश भी की गई कि मैं इस केस से पीछे हठ जाऊं. मुझे पैसे और दवाब में लाने की कोशिश की गई. वह कहते हैं कि जहां तक हमें लग रहा है कि यह लड़का पुलिस कस्टडी में मर गया है इसलिए हम कोशिश करेंगे कि मामले में अब सीबीआई जांच हो.

पुलिस हिरासत में हुईं मौतें

इंडियास्पेंड की एक रिपोर्ट के मुताबिक 27 जुलाई को लोकसभा में पूछा गया कि देश में कितने लोगों की मौत पुलिस और न्‍यायिक हिरासत में हुई. इसके जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राष्‍ट्रीय मानवाध‍िकार आयोग (एनएचआरसी) के आंकड़े पेश किए. इन आंकड़ों के मुताबिक, हिरासत में मौत के मामलों में उत्‍तर प्रदेश पहले नंबर पर है. उत्‍तर प्रदेश में पिछले तीन साल में 1,318 लोगों की पुलिस और न्‍यायिक हिरासत में मौत हुई है.

एनएचआरसी के आंकड़े बताते हैं कि यूपी में 2018-19 में पुलिस हिरासत में 12 और न्‍याय‍िक हिरासत में 452 लोगों की मौत हुई. इसी तरह 2019-20 में पुलिस हिरासत में 3 और न्‍याय‍िक हिरासत में 400 लोगों की मौत हुई. वहीं, 2020-21 में पुलिस हिरासत में 8 और न्‍याय‍िक हिरासत में 443 लोगों की मौत हुई है.

पिछले तीन साल में हुई इन मौतों को जोड़ दें तो उत्तर प्रदेश में कुल 1,318 लोगों की पुलिस और न्‍याय‍िक हिरासत में मौत हुई है. उत्तर प्रदेश का यह आंकड़ा देश में हुई हिरासत में मौत के मामलों का करीब 23% है. देश में प‍िछले तीन साल में पुलिस और न्‍याय‍िक हिरासत में 5,569 लोगों की जान गई है.

इस मामले में हमने अर्जुन सिंह से भी बात की. अर्जुन सिंह वही छात्र हैं जिनके फोन पर पुलिस शिव को लंका थाने ले गई थी.

अर्जुन द्वारा यूपी पुलिस हेल्पलाइन 112 नंबर पर की गई कॉल

बनारस निवासी अर्जुन कहते हैं, "वो 13 फरवरी की एक सर्द शाम थी, रात के करीब 8-9 के बीच का समय होगा. उस दिन मैं रोज की तरह बीएचयू में ही रनिंग करने गया था. बीएचयू के गेट पर जैसे ही मैंने अपनी साइकिल खड़ी की तभी मेरा ध्यान गेट के पास ही बने नाले पर गया. जिसमें एक लड़का घुटनों से ऊपर तक के पानी में खड़ा था. तब बहुत ठंड थी. जब मैंने लड़के को आवाज दी तो वह कुछ नहीं बोला. तब तक कुछ और लोग भी वहां आ गए. लोगों की मदद से लड़के को हाथ पकड़कर बाहर निकाला. उसने एक पायजामा और जैकेट पहना हुआ था, जबकि उसके जूते नाले में ही तैर रहे थे. जब हमने उससे बात करने की कोशिश की तो वह कुछ नहीं बोल पा रहा था. इसके बाद हमने पुलिस को 112 नंबर पर फोन किया. पुलिस की काले रंग की गाड़ी आई जिसमें एक महिला कांस्टेबल सहित चार लोग थे. हमने पुलिस को सारी जानकारी दी."

"पुलिस ने भी लड़के से कुछ बात करने की कोशिश की लेकिन वह कुछ नहीं बोल पा रहा था. इसके बाद पुलिस उसे अपने साथ ले गई. तब पुलिस ने कहा था कि हम इसे लंका थाने ले जा रहे हैं नशा होगा तो उतर जाएगा और मेंटली डिस्टर्ब होगा तो पुलिस वाले देखेंगे क्या करना है. उसके बाद उसे पुलिस ले गई और मैं रनिंग करके घर आ गया." अर्जुन ने कहा.

वह आगे कहते हैं, "19 फरवरी को मैं फेसबुक स्क्रॉल कर रहा था तभी उसी लड़के का फोटो और गुमशुदगी की जानकारी मेरे सामने आई. मुझे याद आया कि यह तो वही लड़का है जिसकी मैंने ही पुलिस को फोन करके जानकारी दी थी. फिर मैंने फेसबुक पर ही उनके पापा और भाई का नंबर लिया. और उनको कॉल करके सारी जानकारी दी. उसके बाद मैंने उनसे मुलाकात भी की."

22 मार्च को लॉकडाउन लग गया तो मामला ठंडे बस्ते में चला गया. इस बीच किसी से कोई बात नहीं हुई. लॉकडाउन खत्म होने के बाद बीएचयू के लोगों ने मुहिम छेड़ी की कैसे लड़का गायब हो गया. अर्जुन भी लड़के को ढूंढ़ने में मदद करने लगे. अर्जुन बताते हैं कि यूपी पुलिस और सीबीसीआईडी उनसे इस मामले में पूछताछ कर चुकी है.

वह आगे कहते हैं, "जब मैं थाने में गया था तो मुझसे एक बार पुलिस ने कहा कि अरे आप इस चक्कर में क्यों पड़ रहे हैं. आप अपनी पढ़ाई लिखाई पर ध्यान दीजिए. तो मैंने कहा कि मैंने किसी की मदद करके कोई गुनाह किया है क्या? इस पर पुलिस ने कहा कि गलत नहीं किया है लेकिन ये मामला पुलिस का है इसलिए इसमें आप मत पड़िए. मुझे उन्होंने बयान से पलटने के लिए कहा."

शिव के पिता प्रदीप कुमार त्रिवेदी फोन पर कहते हैं, “तत्कालीन थाना प्रभारी भारत भूषण हम पर दबाव बना रहे हैं. हमारे घर पर उन्होंने दो लोग भेजे थे. उन्होंने कहा कि हम भारत भूषण के भाई हैं. आप 10 लाख रुपए ले लीजिए और शांति से घर बैठ जाइए या अपना बयान बदल दीजिए. वह हमारे गांव के सरपंच को लेकर आए थे. तब मैंने कहा कि मैं पैसे नहीं लूंगा. मेरा बेटा अगर जिंदा है तो उसे तलाश कर लाओ और अगर मर गया है तो आप साफ-साफ बताओ, फिर मैं केस वापस ले लूंगा."

वह आगे कहते हैं, “कर्ज लेकर बच्चों को पढ़ा रहा हूं. कर्ज के चलते बीते 20 सिंतबर को जो कुछ जमीन बची थी अब वह भी बिक गई है. अब मजदूरी करके बच्चे की पढ़ाई और घर का खर्चा चला रहा हूं. हम मूल रूप से बरगड़ी खुर्द, जिला पन्ना मध्य प्रदेश के हैं. कर्ज लेकर बच्चे के न्याय के लिए यहां से बनारस और इलाहाबाद जाना पड़ता है.

हमने उस नंबर पर भी फोन किया जो लोग शिव के घर पर आए थे और अपने आप को भरत भूषण तिवारी का भाई बता रहे थे. वह फोन पर कहते हैं, हां मैं भरत भूषण तिवारी का भाई पप्पू तिवारी हूं. जब हमने उनसे कुछ और सवाल किए तो वह कहने लगे कि अब हमारी उनसे (भारत भूषण) ज्यादा बात नहीं होती है. वह यह भी कहते हैं कि वो शिव के घर नहीं गए थे.

इस मामले में जांच कर रहे अधिकारी श्याम वर्मा कहते हैं, “हम बीती 27 अक्टूबर को बनारस गए थे. इस मामले में हमने कई लोगों के भी बयान लिए हैं. एक अज्ञात शव के बारे में भी जानकारी मिली है. जिसका उन दिनों पोस्टमार्टम हुआ था. यह शव रामनगर थाना क्षेत्र में मिला है. जो लंका थाने से करीब 6-7 किलोमीटर की दूरी पर है. जांच चल रही है, जल्दी ही कुछ नतीजा निकलेगा.”

हमने लंका थाने के वर्तमान एसएचओ महातम सिंह यादव से बात की. वह कहते हैं मैं यहां नया नया आया हूं. मुझे आए अभी एक ही महीना हुआ है इसलिए मैं कोई जानकारी नहीं दे सकता हूं.

इसके बाद हमने लंका थाने के तत्कालीन एसएचओ भारत भूषण तिवारी से भी बात की. इस मामले पर वह कहते हैं, "तब 16 फरवरी को पीएम मोदी का दौरा था, हम उसी में व्यस्त थे. इस बीच उसी दिन शिव के पिता प्रदीप कुमार त्रिवेदी थाने गुमशुदगी लिखवाने आए थे. जिसके बाद हमने जांच शुरू की, इसके चांज अधिकारी कुंवर सिंह थे. हालांकि शिव की कोई जानकारी नहीं मिली. फिर बाद में लॉकडाउन लग गया. फिर अगस्त में दोबारा ये सभी चीजें सामने आईं. इस बीच मेरा ट्रांसफर भी हो गया था. बाद में ये मामला हाईकोर्ट चला गया और सीबीसीआईडी से जांच शुरू की. इस जांच में मुझे, डे अफसर, नाइट अफसर, जांचकर्ता अधिकारी और मुंशी को देरी करने और शिव का नहीं पता कर पाने के कराण लापरवाही का दोषी मानते हुए सजा दी गई. फिलहाल मैं सजा पर हूं और एटीएस लखनऊ में कार्यरत हूं."

112 नंबर पर कॉल की गई थी, जिसके बाद पुलिस लड़के को लेकर लंका थाने गई. और जिस लड़के ने कॉल की थी अब वह भी सामने आ गया है. तब आप थाना इंचार्ज थे उस रात लड़के के साथ क्या हुआ? इस सवाल पर वह कहते हैं, "देखिए ये भी एक एंगल है. एक लड़का अर्जुन को नाले के किनारे मिला था, जिसकी अर्जुन ने 112 नंबर पर कॉल करके सूचना दी थी. तब पीआरबी गई थी तो मुझे भी कॉल किया गया, और लड़के के बारे में बताया गया. तब मैंने कहा कि इसे थाने ले आइए. क्योंकि पीएम मोदी आने वाले थे और वह वीआईपी रूट पर था. लेकिन ये कोई नहीं जानता कि वह शिव त्रिवेदी थे. क्योंकि न ही उसको कोई जानता था और न ही उनका कोई फोटो था. इसलिए यह नहीं कह सकते हैं कि वह शिव त्रिवेदी थे."

जो लड़का थाने लाया गया वह कहां गया? वह कहते हैं, "जो लड़का आया था उसने रात को कपड़ों में ही लेट्रीन कर दी थी. ठंड का समय था तो हमने उसे एक कंबल दिया था. थाना छोटा है वहां गंदगी हो गई तो इसलिए उसे सुबह सफाई के चलते बाहर बैठा दिया था, तभी वह वहां से मिस हो गया. लेकिन वह शिव त्रिवेदी थे इसकी कोई जानकारी नहीं है."

क्या थाने में सीसीटीवी कैमरा नहीं थे? इस पर वह कहते हैं, "सीसीटी थे लेकिन उस समय काम नहीं कर रहे थे. यह जांच में भी सबित हुआ है कि सीसीटीवी चालू नहीं थे."

लेकिन न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद दस्तावेज में ये साबित होता है कि उस समय सीसीटीवी कैमरा चालू थे? इस पर वह कहते हैं, देखिए मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता हूं. क्योंकि उनका संचालन कहीं और से होता है थाने से नहीं.

हालांकि वह इस दौरान अपनी गलती मानते हुए यह भी कहते हैं कि हमसे एक मानवीय भूल हुई है जो वह लड़का थाने से गायब हो गया. इसके लिए हमें अफसोस है. इस गलती का मुझे दंड भी मिल गया है. वरना आज मैं एटीएस में नहीं होता किसी थाने में होता. वो जो हुआ वह मेरा और मेरी टीम का फाल्ट था.

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