Report
कॉप-26: भारत में 25 गुना तक बढ़ जाएगा लू का कहर!
जी20 देशों पर जारी एक अंतरराष्ट्रीय जलवायु रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि कार्बन उत्सर्जन तेजी से बढ़ता रहा तो सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में 4 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि हो सकती है. जिसके चलते 2036 से 2065 के बीच भारत में लू का कहर कहीं ज्यादा बढ़ जाएगा. अनुमान है कि इसके सामान्य से 25 गुना अधिक समय तक रहने की आशंका है.
इस रिपोर्ट को 30 से 31 अक्टूबर के बीच रोम में होने वाले जी20 शिखर सम्मेलन से पहले लॉन्च किया गया है. इस चर्चा के दौरान वैश्विक उत्सर्जन में कटौती के एजेंडे को आगे बढ़ाने की संभावना है. इस सम्मेलन में भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई वैश्विक नेताओं के भाग लेने की संभावना है.
गौरतलब है कि जी20 एक अंतर-सरकारी मंच है, जिसमें 19 देश और यूरोपीय संघ शामिल हैं. यह संगठन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वित्तीय स्थिरता, जलवायु परिवर्तन को रोकथाम और सतत विकास से जुड़े आर्थिक मुद्दों को संबोधित करने के लिए काम करता है.
यह रिपोर्ट यूरो-मेडिटेरेनियन सेंटर ऑन क्लाइमेट चेंज से जुड़े 40 से अधिक वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा तैयार की गई है. यह शोध केंद्र इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के इतालवी केंद्र बिंदु के रूप में कार्य करता है. इस रिपोर्ट के अनुसार भविष्य में जलवायु परिवर्तन का जी20 के प्रत्येक सदस्य पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा.
जलवायु परिवर्तन की मार से सुरक्षित नहीं कोई भी देश
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि जलवायु में आ रहा बदलाव पहले ही जी20 देशों को प्रभावित कर रहा है. पिछले 20 वर्षों के दौरान सभी जी20 देशों में गर्मी से संबंधित मौतों में कम से कम 15 फीसदी की वृद्धि हुई है. जबकि जंगल में लगने वाली आग ने कनाडा से करीब डेढ़ गुना ज्यादा क्षेत्र को नष्ट कर दिया है.
रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि समुद्र के बढ़ते जल स्तर से लेकर साफ पानी की घटती उपलब्धता और डेंगू के कहर से लेकर भीषण गर्मी के कारण होने वाली मौतों तक जीवन का ऐसा कोई पहलू नहीं होगा जो जी20 देशों में जलवायु परिवर्तन से अछूता रह जाएगा.
रिपोर्ट में यह भी जानकारी दी गई है कि अगले 30 वर्षों के भीतर जलवायु परिवर्तन दुनिया की सबसे अमीर अर्थव्यवस्थाओं पर गंभीर असर डालेगा. यदि ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन को रोकने के लिए अभी तत्काल कार्रवाई न की गई तो लू, सूखा, समुद्र के बढ़ते जल स्तर, खाद्य आपूर्ति में आती कमी और पर्यटन पर बढ़ते खतरे से कोई भी देश नहीं बच पाएगा. ऐसे में रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाने के लिए जी20 देशों को अपने उत्सर्जन में तेजी से कटौती करने की जरूरत है, जोकि वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 80 फीसदी है.
भारत पर पड़ेगा सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव
इस बारे में जलवायु वैज्ञानिक और आईपीसीसी की नवीनतम रिपोर्ट के प्रमुख लेखकों में से एक अंजल प्रकाश ने जानकारी देते हुए बताया कि भारत में कई जलवायु हॉटस्पॉट हैं.
यह 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा से लेकर उत्तर और पूर्वी भारत के कई राज्यों में हिमालय तक फैले हैं. वहीं लगभग 54 फीसदी शुष्क क्षेत्र में लू की संभावना है. उनके अनुसार इस मामले में भारत बेहद असुरक्षित है और यदि तत्काल कार्रवाई नहीं की जाती तो स्थिति जल्द खराब हो सकती है.
रिपोर्ट की मानें तो यदि वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि चार डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाती है तो भारत में 2036 से 2065 के बीच लू का कहर सामान्य से 25 गुना अधिक समय तक रहेगा. वहीं यदि तापमान में हो रही वृद्धि दो डिग्री सेल्सियस तक भी पहुंच जाती है तो भी लू का कहर पांच गुना अधिक समय तक रहेगा. यही नहीं यदि हम तापमान में हो रही वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोकने में कामयाब हो भी जाते हैं तो भी लू का कहर करीब डेढ़ गुना बढ़ जाएगा.
साथ ही देश में गर्मी का बढ़ता कहर लोगों की आजीविका को भी बुरी तरह प्रभावित करेगा. अनुमान है कि 2050 तक कम उत्सर्जन परिदृश्य में भी 2050 तक श्रम उत्पादन में करीब 13.4 फीसदी की गिरावट आ जाएगी. वहीं मध्यम उत्सर्जन परिदृश्य के तहत 2080 तक यह आंकड़ा बढ़कर 24 फीसदी तक जा सकता है. वहीं उच्च उत्सर्जन परिदृश्यों के मामले में यह स्थिति और ज्यादा गंभीर हो सकती है.
यदि तापमान में हो रही वृद्धि 4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ती है तो 2050 तक कृषि के लिए पानी की मांग करीब 29 फीसदी बढ़ जाएगी. वहीं 2036 से 2065 के बीच कृषि संबंधित सूखा 48 फीसदी बढ़ जाएगा. वहीं दो डिग्री सेल्सियस वृद्धि के परिदृश्य में यह समान समयावधि में 20 फीसदी तक गिर जाएगा.
इसी तरह कम उत्सर्जन परिदृश्य में 2050 तक पकड़ी जाने वाली मछलियों में 8.8 फीसदी की गिरावट आ सकती है. वहीं उच्च उत्सर्जन परिदृश्य में यह गिरावट 17.1 फीसदी तक जा सकती है.
विकास कार्यों में जो प्रगति हुई है उसे नुकसान पहुंचा सकता है जलवायु परिवर्तन
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यदि देश में जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए प्रयास न किए गए तो हाल के दशकों में विकास को लेकर जो काम किए गए हैं यह उसे गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है.
रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक जलवायु परिवर्तन के मध्यम परिदृश्य में भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का करीब 0.8 से दो फीसदी तक हिस्सा खो देगा. वहीं उच्च उत्सर्जन परिदृश्य में यह लागत दोगुनी हो सकती है, जो 10 फीसदी तक बढ़ सकती है.
यदि उत्सर्जन में वृद्धि तीव्र गति से होती रही तो 2050 तक देश में करीब 1.8 करोड़ लोग नदियों में आने वाली बाढ़ की जद में होंगे, जोकि वर्तमान की तुलना में करीब 15 गुना ज्यादा है. गौरतलब है कि वर्तमान में करीब 13 लाख लोगों पर इस तरह की बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है.
इसी तरह उच्च उत्सर्जन परिदृश्य में सदी के अंत तक अतिरिक्त मृत्युदर में करीब 10 फीसदी का इजाफा हो जाएगा. यह प्रति वर्ष करीब 15.4 लाख अतिरिक्त मौतों के बराबर है. वहीं मध्यम उत्सर्जन परिदृश्य के तहत इस आंकड़े में 80 फीसदी तक की गिरावट आने की संभावना है.
(साभार- डाउन टू अर्थ)
Also Read
-
Two years on, ‘peace’ in Gaza is at the price of dignity and freedom
-
4 ml of poison, four times a day: Inside the Coldrif tragedy that claimed 17 children
-
Delhi shut its thermal plants, but chokes from neighbouring ones
-
Hafta x South Central feat. Josy Joseph: A crossover episode on the future of media
-
Encroachment menace in Bengaluru locality leaves pavements unusable for pedestrians