Report
हसदेव अरण्य वन: कोयला खनन परियोजनाओं के खिलाफ सड़कों पर क्यों हैं स्थानीय आदिवासी?
‘छत्तीसगढ़ का फेंफड़ा’ कहे जाने वाले हसदेव अरण्य वन क्षेत्र के स्थानीय निवासी बीते एक दशक से आंदोलन कर रहे हैं. यह आंदोलन बीते दिनों तब और तेज हो गया जब केंद्र सरकार ने यहां कोयला खनन की परियोजनाओं को मंजूरी देने की शुरुआत की. स्थानीय लोगों की माने तो ये मंजूरी पर्यावरण कानूनों की अनदेखी और स्थानीय लोगों से बिना राय लिए की जा रही है.
स्थानीय लोगों के मुताबिक कोयला खनन परियोजनाओं को हासिल करने के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति की प्रक्रिया के दौरान फर्जी ग्रामसभाओं का आयोजन कर फैसला लिया गया. दरअसल इन क्षेत्रों में जमीन अधिग्रहण के लिए ग्रामसभाओं की अनुमति जरूरी है.
यह फर्जी ग्राम सभाएं कैसे होती है इसको लेकर हसदेव अरण्य बचाओ आंदोलन के प्रमुख उमेश्वर सिंह अर्मो न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, ‘‘ग्रामसभा किसी और मुद्दे पर हुई थी. हमने जो हस्तक्षर किए वे दूसरे मुद्दे थे, लेकिन ग्रामसभा के बाद सरपंच और सचिव पर दबाव बनाकर उदयपुर गेस्ट हाउस में बुलाया गया और वहां एसडीएम के द्वारा दबाव बनाकर यह प्रस्ताव ग्रामसभा में जोड़ दिया गया. ऐसे में जिन मुद्दों पर चर्चा ही नहीं हुई ग्रामसभा में उसे उसके फैसले में जोड़ दिया गया.’’
फर्जी ग्रामसभा को लेकर पहले यहां के लोगों ने आंदोलन किया, लेकिन जब किसी ने उनकी नहीं सुनी तो उन्होंने अपना विरोध दर्ज कराने के लिए रायपुर तक पैदल यात्रा की. यहां मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और राज्यपाल अनुसुइया उइके से मिलकर अपनी बात रखी. इससे पहले जून 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था, लेकिन वहां से भी कोई जवाब नहीं आया. थक हार कर आंदोलन कर रहे लोगों का प्रतिनिधितमंडल 28 अक्टूबर को दिल्ली आया और अपनी बात रखी.
28 वर्षीय मुनेश्वर सिंह पोर्ते भी इसी प्रतिनिधित मंडल के हिस्सा थे. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए वे कहते हैं, ‘‘मोदी जी यहां अपने लिए इतना बड़ा घर बनवा रहे हैं. और वहां हमारा घर छीन रहे हैं. आखिर ऐसा क्यों कर रहे हैं. हमारा जंगल जिसपर हम निर्भर हैं वो हमसे छिना जा रहा है.’’
हसदेव अरण्य वन क्षेत्र को बचाने को लेकर चल रहे आंदोलन में 'छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन' भी भूमिका निभा रहा है. इसके संयोजक आलोक शुक्ला से न्यूज़लॉन्ड्री ने विस्तार से बात कर यह जानने की कोशिश कि आखिर इस क्षेत्र में खनन का क्या असर होगा. और जिस क्षेत्र को पर्यावरण मंत्रालय ने 2010 में नो गो क्षेत्र घोषित किया था वहां कैसे खनन की मंजूरी मिलने लगी है?
Also Read
-
Mandate 2024, Ep 2: BJP’s ‘parivaarvaad’ paradox, and the dynasties holding its fort
-
The Cooking of Books: Ram Guha’s love letter to the peculiarity of editors
-
TV Newsance 250: Fact-checking Modi’s speech, Godi media’s Modi bhakti at Surya Tilak ceremony
-
What’s Your Ism? Ep 8 feat. Sumeet Mhasker on caste, reservation, Hindutva
-
‘1 lakh suicides; both state, central govts neglect farmers’: TN farmers protest in Delhi