Media
खबरों की शक्ल में विज्ञापन परोसकर पाठकों को गुमराह कर रहा अमर उजाला
अखबारों का कर्तव्य है कि खबरों के माध्यम से पाठकों तक सही और तथ्यपूर्ण सूचना पहुंचाए. लेकिन कुछ अखबारों ने पाठकों को खबर के नाम पर सूचना की जगह विज्ञापन परोसना शुरू कर दिया है जिसमें बाकायदा बाइलाइन भी प्रकाशित होती है.
इससे पहले दैनिक जागरण ऐसा करता आ रहा है लेकिन अब अमर उजाला भी उसी श्रेणी में आ गया है जो विज्ञापन को खबर बनाकर, पाठकों को भ्रमित कर रहा है. अखबार में यूपी सरकार द्वारा किए गए कामों को खबरों के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है. जिसमें सिर्फ सरकार की तारीफ होती है.
अखबार में जिसे आप खबर समझकर पढ़ रहे होते हैं दरअसल वह विज्ञापन होता है. यही नहीं इन विज्ञापनों को बाइलाइन के साथ भी प्रकाशित किया जाता है. खास बात यह है कि इन सबको लिखने वाले लोग अमर उजाला के रिपोर्टर नहीं हैं! इसलिए यह जानना जरूरी है कि ये लोग कौन हैं जिनकी बाइलाइन से खबरें प्रकाशित हो रही हैं? और अमर उजाला ऐसा क्यों कर रहा है?
इससे पहले ये बताएं कि ये लोग कौन हैं जिनके नाम से विज्ञापन को खबर के रूप में छापा जा रहा है, पहले समझ लेते हैं कि अमर उजला यह सब कैसे करता है.
3 अक्टूबर
3 अक्टूबर को अमर उजाला अखबार के दिल्ली और लखनऊ एडिशन में 10 और 11 पेज पर हू-ब-हू एक ही तस्वीर और लेख हैं. इस पेज पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की एक बड़ी सी तस्वीर है और साथ ही मोटे अक्षरों में लिखा है, 'अब एक्सप्रेस प्रदेश के नाम से जाना जा रहा उत्तर प्रदेश.' इस पेज पर दो लेख बिलकुल खबर के रूप में प्रकाशित हुए हैं. जिनमें बाकायदा बाइलाइन दी गई है. पहला विज्ञापन एयरपोर्ट के विकास पर, अतरबास सिंह की बाइलाइन के साथ है. वहीं दूसरा विज्ञापन जो प्रदेश में बिजली उत्पादन में मिली सफलता के बारे में बताता है, श्वेता मिश्रा की बाइलाइन के साथ है. पेज के निचले कोने में छोटे अक्षरों में 'मीडिया सॉल्यूशन इनीशिएटिव' लिखा है.
9 अक्टूबर
छह दिन बाद नौ अक्टूबर को खबरों के बीच यही पेज दोबारा प्रकाशित होता है. इस बार अलग-अलग लेख के जरिए योगी सरकार की कृषि नीतियों की तारीफ की गई है. जैसे- 'खेतों में लहराई खुशहाली की फसल'. इस लेख को अर्चना की बाइलाइन के साथ छापा गया है. दूसरा लेख, ‘45.44 लाख गन्ना किसानों को 1. 44 लाख करोड़ का भुगतान’ को समर्थ की बाइलाइन के साथ छापा है. इसके अलावा दोबारा श्वेता मिश्रा की बाइलाइन के साथ, 'खेतों में लहराने लगा गन्ना, चीनी में लौटी मिठास' प्रकाशित हुआ है.
वहीं अखबार में 'विशेष रिपोर्ट' के साथ चार अन्य लेख भी प्रकाशित हुए हैं. इन सभी में योगी सरकार की कृषि नीतियों की तारीफों के पुल बांधे गए हैं.
11 अक्टूबर
अभी तक यह विज्ञापन अखबार के बीच वाले पन्नों पर प्रकाशित किया जा रहा था. लेकिन 11 अक्टूबर को इसे अखबार के पहले पेज पर छापा गया. जिसका शीर्षक था 'विकास के पथ पर उत्तर प्रदेश'. इसमें यूपी सरकार की अलग-अलग योजनाओं का बखान है. इसमें सीएम योगी आदित्यनाथ की हंसते हुए बड़ी सी तस्वीर प्रकाशित की गई है. इस पेज पर यूपी सरकार की औद्योगिक और विदेशी निवेश नीतियों से जुड़े विज्ञापन हैं.
इसके अगले पन्ने पर योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर के साथ शीर्षक, 'पारदर्शी व्यवस्था से योगी सरकार बनी निवेश मित्र' के साथ छापा या है. हालांकि इसमें किसी को बाइलाइन नहीं दी गई. इसे 'विशेष रिपोर्ट' के नाम से छापा गया है.
11 अक्टूबर को केवल पहले और दूसरे ही नहीं, बल्कि 10 और 11 पेज पर भी इन विज्ञापनों को जगह दी गई है. इस बार का विषय था, 'विकास के पथ पर उत्तर प्रदेश.' इन्हें भी 'विशेष रिपोर्ट' के नाम से प्रकाशित किया गया है. इस बार इन विज्ञापनों में ग्रामीणों के नाम और उनकी तस्वीरों के साथ प्रकाशित किया गया है. जिसमें पीएम किसान सम्मान योजना, मनरेगा, आदि से उन्हें मिले फायदे गिनवाए जा रहे हैं.
17 अक्टूबर
17 अक्टूबर को अमर उजाला के पेज नंबर 6 पर एक्सपो-मार्ट के बारे में विज्ञापन छापा गया. इसके साथ ही दो छोटे विज्ञापन रोजगार पर थे. इन सभी को 'विशेष रिपोर्ट' के नाम से प्रकाशित किया गया.
17 अक्टूबर को ही दिल्ली वाले पन्ने पर भी आधे पेज का एक विज्ञापन प्रकाशित हुआ. इसका शीर्षक था, 'गांव-गांव घर-घर खुशहाली का रास्ता.' हालांकि इसमें किसी को बाइलाइन नहीं दी गई थी.
20 अक्टूबर
20 अक्टूबर को दिल्ली की खबरों वाले पन्ने पर एक बार फिर आधे पेज का विज्ञापन छपा. जिसका शीर्षक पिछली बार 17 अक्टूबर को छपे विज्ञापन वाला ही था, 'गांव- गांव घर-घर खुशहाली का रास्ता.' दोनों का कंटेंट भी एक ही था बस तस्वीरें बदल दी गईं. यह विज्ञापन भी बिना बाइलाइन के ही छापा गया.
24 अक्टूबर
इसी तरह 24 अक्टूबर को छपे विज्ञापन का शीर्षक था, 'निराश्रित गोवंश के लिए सहारा बनी योगी सरकार.' इस खबर में सहभागिता योजना को मजूरी देने की बात कही गई है. हालांकि बता दें कि इस योजना को जनवरी में ही मंजूरी मिल गई थी. लेकिन अखबार इस योजना की तारीफ अब योगी सरकार के इस विज्ञापन के जरिए कर रहा है. यह विज्ञापन 'विशेष रिपोर्ट' के साथ छापा गया है.
मीडिया सॉल्यूशन इनीशिएटिव है क्या?
'मीडिया सॉल्यूशन इनीशिएटिव' है क्या है? और इसमें ये बाइलाइन लेने वाले लोग कौन हैं? न्यूज़लॉन्ड्री ने इसकी पड़ताल की है. दरअसल मीडिया सॉल्यूशन अमर उजाला के मार्केटिंग विभाग का नाम है. खबरों को विज्ञापन के रूप में दिखाने के सन्दर्भ में हमने मीडिया सॉल्यूशन विभाग में प्रदीप सोलंकी से बात की. वह कहते हैं कि यह पेज विज्ञापन के लिए निर्धारित है.
प्रदीप ने बाइलाइन के सवाल पर न्यूज़लॉन्ड्री से कहा, "मुझे याद नहीं है कि यह लेख बाइलाइन के साथ प्रकाशित हो रहे हैं, लेकिन यह सभी विज्ञापन हैं. हमें एजेंसी से विज्ञापन और कंटेंट आता है जिसे हम हू-ब-हू प्रकाशित कर देते हैं. इसमें हमारी कोई भागीदारी नहीं होती."
न्यूज़लॉन्ड्री ने अलग-अलग शहरों में काम कर रहे अमर उजाला के रिपोर्टरों से भी बात की. लेकिन श्वेता मिश्रा, साधना वर्मा और समर्थ जिन्हें इन विज्ञापनों में बाइलाइन दी जी रही है को कोई नहीं जानता है.
अमर उजाला के वरिष्ठ अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, "सभी अखबारों जैसे दैनिक जागरण और हिंदुस्तान में आजकल इस तरह के पन्ने छापे जा रहे हैं जिसमें सरकार की योजनाओं पर लेख लिखे रहते हैं. यह कोई विज्ञापन नहीं है. यह एक 'एडवटोरियल' है जिसे अखबार लिखता है और सरकारी एजेंसी अप्रूव करती है. सरकार चाहती है कि जो लोग सरकार के लिए अच्छा लिख रहे हैं उनका नाम भी प्रकाशित हो इसलिए बाइलाइन दी जाती है."
वह आगे बताते हैं, "हम पेज के निचले हिस्से में मीडिया सॉल्यूशन इनीशिएटिव लिखते हैं यानी यह एक एडवटोरियल है."
इस तरह के विज्ञापन देना कितना सही?
अमर उजाला और दैनिक जागरण द्वारा विज्ञापन को खबर की तरह दिखाना कितना सही या गलत है इस पर हमने भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) में प्रॉफेसर और पाठ्यक्रम निदेशक आनंद प्रधान से बात की.
आनंद कहते हैं, "अखबार और अखबार के पाठक के बीच एक विशवास का रिश्ता होता है. पाठक को लगता है कि अखबार छानबीन करके सच्ची जानकारी देंगे. एक अखबार द्वारा किसी का प्रचार छापना नैतिक मानकों के साथ समझौता है और एक तरह से पाठक को धोखा देना है. एक जमाने में 'पेड न्यूज़' ऐसे ही शुरू हुई थी. उसकी बहुत आलोचना भी हुई थी. जैसे सेक्युलर स्टेट में धर्म और राज्य के बीच स्पष्ट विभाजन रेखा होनी चाहिए वैसे ही समाचार पत्र में होनी चाहिए. किसी भी मीडिया माध्यम के लिए समाचार और विज्ञापन के बीच एक क्लियर-कट, बहुत ही स्पष्ट विभाजन रेखा होनी चाहिए. अगर उसका पालन नहीं किया जा रहा है और उसका उलंघन हो रहा है, तो वह अनैतिक और अनुचित है."
Also Read
-
The polarisation of America: Israel, media and campus protests
-
‘1 lakh suicides; both state, central govts neglect farmers’: TN farmers protest in Delhi
-
Mandate 2024, Special Ep: The 4 big distortions in the PM’s ‘infiltrator’ speech
-
Hafta 482: JDS-BJP in Karnataka, inheritance tax debate, issues with PMLA
-
TV Newsance 250: Fact-checking Modi’s speech, Godi media’s Modi bhakti at Surya Tilak ceremony