Opinion
मानव और प्रकृति के बीच का रिश्ता एक खतरनाक मोड़ पर खड़ा है
बीते 21 महीने से कोरोना विषाणु हमारे जीवन का सबसे बड़ा मानवीय संकट बना हुआ है. एक अत्यंत सूक्ष्म विषाणु से पैदा हुए इस संकट की घड़ी में हमें सत्ता से सच कहने में सक्षम होने की जरूरत है.
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह विषाणु एक जगह से दूसरी जगह उछाल लगाने वाली प्रजाति है. हमें नहीं भूलना चाहिए कि यह विषाणु एक वन्य जीव से निकलकर आया, संभवतः एक चमगादड़ से मनुष्यों में यह पहुंचा हो. आज मानव और प्रकृति के बीच का रिश्ता एक खतरनाक मोड़ पर खड़ा है.
जंगल में बसावट से लेकर खाद्य उद्योगों के निर्माण तक प्रकृति के साथ हमारा रिश्ता त्रासदी को बढ़ाने वाला है. यह जोखिम भरा रिश्ता उन सभी दीवारों को गिरा रहा है, जिसमें मानव और विषाणुओं के बीच एक उचित दूरी कायम थी. हमें ध्यान रखना चाहिए कि जीवों से मनुष्यों में पहुंचने वाली बीमारियां यहीं ठहरने वाली हैं और हमें इसके क्यों को बेहतर तरीके से समझना होगा.
कोरोना विषाणु के कारण उपजी व्यक्तिगत त्रासदियों और दर्द को हमें नहीं भूलना चाहिए. यह भारी मानवीय पीड़ा का दौर रहा है. हम सभी ऐसे लोगों को जानते हैं, जिन्होंने अपने किसी करीबी और प्रिय को महामारी में हमेशा के लिए खो दिया है या फिर वह मृत्यु के द्वार को छूकर वापस लौटे हैं. उस बदहवास वक्त में डराने वाली स्मृतियों ने स्पष्ट संकेत दिया है कि सरकार को सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में मजबूती के लिए निवेश करना चाहिए. बीमारी का प्रबंधन करने के लिए हमारे निगरानी की प्रणाली को बेहतर करने पर जोर देना चाहिए.
बीमारियों से बचाव के लिए यह स्पष्ट है कि सेहत के लिए जरूरी स्वच्छ पानी, स्वच्छता, वायु प्रदूषण नियंत्रण पर काम करना होगा. कुपोषण और मोटापे की समस्या के लिए पौष्टिक भोजन पर ध्यान केंद्रित करना होगा. हमें उन श्रमिकों के चेहरों को नहीं भूलना चाहिए जो चले गए क्योंकि हमने उनसे मुंह फेर लिया था. उनकी आजीविका ढह गई, उनके पास अपना कहने के लिए कोई घर नहीं था.
वे मीलों तक चलें और यहां तक कि रेल की पटरियों पर थक-हार कर लेट गए और अंततः मर भी गए. इन अदृश्य लोगों की दुर्दशा हमारी संयुक्त स्मृति में जरूर दहकनी चाहिए-ताकि उनकी स्थिति में सुधार हो. यह सच है कि सिंगापुर से लेकर दिल्ली तक हमारे शहरों में श्रम सस्ता है और हमें काम और उत्पादन की मरम्मत करने की जरूरत है ताकि लागत का भुगतान किया जा सके.
इसके लिए आवास और बुनियादी ढांचे और सभी के लिए पर्यावरण सुरक्षा उपायों में निवेश की जरूरत है. इससे कारोबार करने की लागत बढ़ेगी हालांकि यह भविष्य के लिए काफी अहम है. उन क्षेत्रों में आजीविका और मजबूती के लिए भी निवेश की आवश्यकता है जहां से प्रवास शुरू होता है. हम जलवायु परिवर्तन के जोखिम भरे समय में रहते हैं जब चरम मौसम की घटनाएं जीवन को पंगु बना रही हैं.
इसका मतलब यह होगा कि विकास योजनाओं की सामान्य गति और पैमाने को जारी रखने के अलावा और भी कुछ करना होगा. इसका मतलब होगा प्रकृति और पारिस्थितिकी सुरक्षा में भारी निवेश करना जो कि नौकरियों का निर्माण करेगी और जिससे आर्थिक सुरक्षा भी होगी. हमें दुनिया के सबसे गरीब लोगों पर महामारी के असमान प्रभाव को नहीं भूलना चाहिए.
इस बीमारी से उनकी जान चली गई है और उनकी आजीविका चली गई है. इस विषाणु वर्ष ने देशों को कई बरस पीछे ढकेल दिया है. इसने जीवन को बेहतर बनाने के लिए किए गए वर्षों के विकास कार्यों को मिटा दिया है. इसने हमारी दुनिया में गरीबी को इस कदर बढ़ाया है जैसा पहले कभी नहीं हुआ था.
हमें एक बंद अर्थव्यवस्था में प्रदूषण कम होने के कारण मसहूस की गई स्वच्छ हवा की गंध और साफ नीले आसमान के नजारे को नहीं भूलना चाहिए. उसी दौरान ट्रैफिक का शोर कम होने पर पक्षियों की चहचहाहट को भी नहीं नजरअंदाज करना चाहिए. प्रकृति ने हमारी दुनिया में अपने स्थान को दोबारा हासिल करने और खुद को नवीन करने के लिए मौन का एक क्षण लिया. इसने हमें संकट के क्षणों में भी खुशी दी.
हमें उस मानव वैज्ञानिक उद्यम को नहीं भूलना चाहिए जिसने हमें एक वर्ष के भीतर टीके उपलब्ध कराए. लेकिन जब हम इस उपलब्धि का जश्न मनाते हैं, तब भी हमें त्रासदियों की निरंतर उस प्रहसन को नहीं भूलना चाहिए जहां विषाणु और उसके स्वरूप दुनिया में टीकाकरण की दर से आगे निकल रहे हैं, जो हमें एक असुरक्षा के ख्याल में छोड़ते हैं.
“कोई भी सुरक्षित नहीं है जब तक कि सभी सुरक्षित न हों.” यह कोविड-19 की घात लगाए हुए दुनिया में एक सिर्फ नारा भर नहीं है. सभी को सुरक्षित बनाने के नारे में हमारा स्पष्ट स्वार्थ निहित है कि टीके जितनी जल्दी हो सके दुनिया के सबसे गरीब और दूरदराज हिस्सों में पहुंच जाएं. इसके बावजूद हम ऐसा नहीं कर रहे हैं. इससे हमें अपनी मूलभूत और घातक कमजोरी के बारे में कुछ सबक सीखना चाहिए कि हमारी आर्थिक व्यवस्था अमीरों द्वारा संचालित है और अमीरों के लिए है. कोविड-19 विकास के हमारे दोषपूर्ण मॉडल से बदला ले रहा है.
अंत में, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कोविड-19 ने हमारी दुनिया को आईना दिखाया है. इसने हमें दुख, आशा और प्रार्थना में भी साथ खड़ा किया है. हमें वापस बेहतर, हरित और अधिक समावेशी विश्व के निर्माण के लिए इसका उपयोग करना चाहिए. हम पहले कभी न देखे गए व्यवधान के इस समय में जी रहे हैं. यह नवीनीकरण और नव-अभियांत्रिकी के लिए वह समय है जैसा पहले कभी नहीं था, हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए.
(साभार- डाउन टू अर्थ)
Also Read: कोयला संकट: क्या बिजली गुल होने वाली है?
Also Read
-
TV Newsance 324 | Putin Fever, Rupee Crash & Parliament Dogfight
-
2 UP towns, 1 script: A ‘land jihad’ conspiracy theory to target Muslims buying homes?
-
‘River will suffer’: Inside Keonjhar’s farm resistance against ESSAR’s iron ore project
-
Who moved my Hiren bhai?
-
I was at the India-Pakistan Oxford Union Debate and here’s what happened.