NL Tippani
विषय: सावरकर, प्रोफेसर: राजनाथ सिंह, शोधार्थी: सुधीर, अंजना, दीपक और अन्य
बीते दिनों किसानों के आंदोलन से एक दिल दहला देने वाली ख़बर आई. लखबीर सिंह नामक एक दलित युवक की निर्मम तरीके से सिंघु बॉर्डर पर हत्या कर दी गई. कथित तौर पर आरोप है कि युवक ने गुरु ग्रंथ साहेब की बेअदबी की थी. इस घटना के कई पहलु हैं जिन्हें थोड़ा ठहर कर समझने की जरूरत है. आरोप या अपराध चाहे कितना भी संगीन हो, सज़ा देने का अधिकार सिर्फ देश की अदालतों को है. इसलिए बिना किसी किंतु परंतु के जिन भी लोगों ने इस अमानवीय कृत्य को अंजाम दिया है उन्हें इसकी सख्त से सख्त सज़ा मिलनी चाहिए. संयुक्त किसान मोर्चे ने इस मौके पर वाजिब काम किया. उन्होंने वक्त रहते साफ शब्दों में हत्या के आरोपियों से खुद को अलग कर लिया और इसकी निंदा की.
लेकिन किसान मोर्चा को इसके अलावा भी बहुत कुछ करना होगा. अव्वल तो यह आंदोलन पूरे देश के किसानों का आंदोलन है. इसे अलग-अलग हिस्सों के किसान अपना समर्थन दे रहे हैं. इसलिए यह संदेश नहीं जाना चाहिए कि यह सिर्फ पंजाब या किसी क्षेत्र विशेष के किसानों का आंदोलन है. किसान मोर्चे की यह जिम्मेदारी भी बनती है कि यह आंदोलन किसी भी तरह के धर्मिक कट्टरपंथियों के चंगुल से आज़ाद रहे.
बीते हफ्ते रक्षामंत्री राजनाथ सिंह इतिहास के अंड बंड संस्करण से थोड़ा आगे की चीज ले आए. उन्होंने 'वीर सावरकर पर एक किताब का विमोचन किया. इस दौरान उन्होंने एक नया वितंडा खड़ा कर दिया. सावरकर द्वारा लिखे गए माफीनामों को गांधीजी से जोड़ दिया. उन्होंने कहा सावरकर से महात्मा गांधी ने कहा था कि दया याचिका दायर कीजिए. महात्मा गांधी के कहने पर उन्होंने दया याचिका दी थी.
गांधीजी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे और सावरकर 1911 में अंडमान की सेलुलर जेल पहुंचने के डेढ़ महीने के भीतर ही पहला माफीनामा अंग्रेजों को लिख चुके थे. सावरकर के व्यक्तित्व में कई परतें हैं जो बहुत ही विवादित हैं. जिन्ना और मुस्लिम लीग ने 1940 दो राष्ट्रों का प्रस्ताव पारित किया था, लेकिन सावरकर ने उसके बहुत पहले ही हिंदू-मुस्लिमों के दो अलग राष्ट्र का विचार आगे बढ़ा दिया था. 1923 मेें वो अपनी किताब एसेंशियल्स ऑफ हिंदुत्व में हिंदू और अन्य धर्मों की पितृभू और पुण्यभू के नाम पर द्विराष्ट्रवाद की विस्तार से पैरवी करते हैं. इसलिए देश के बंटवारे की तोहमत गांधी या कांग्रेस पर डालने वालों से सावधान रहिए.
सावरकर के अतीत पर एंकर-एंकराओं ने किस तरह से रौशनी डाली, इस टिप्पणी में उस पर भी बात होगी.
Also Read
-
How Muslims struggle to buy property in Gujarat
-
A flurry of new voters? The curious case of Kamthi, where the Maha BJP chief won
-
टीवी रेटिंग प्रणाली में बदलाव की तैयारी, सरकार लाई नया प्रस्ताव
-
I&B proposes to amend TV rating rules, invite more players besides BARC
-
Scapegoat vs systemic change: Why governments can’t just blame a top cop after a crisis