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सिंघु बॉर्डर के चश्मदीद: 'अगर मैं लखबीर को बचाता तो निहंग मुझे भी मार देते'
शुक्रवार सुबह दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर धरना दे रहे किसान आंदोलन से कुछ दिल दहला देने वाली तस्वीरें सामने आईं. यहां पंजाब के तरन तारन जिले के रहने वाले लखबीर सिंह की बेरहमी से हत्या कर उनका शव बैरिकेड से लटका दिया गया. हत्या का आरोप निहंग सिखों के एक समूह पर लगा. इस समूह के सदस्यों के तमाम वीडियो और कबूलनामे सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं जिसमें वो हत्या की जिम्मेदारी लेते दिख रहे हैं. निहंगों का आरोप है कि लखबीर सिंह ने गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की थी.
चश्मदीदों के मुताबिक मुख्य स्टेज के पास एक घंटे तक अधमरे लखबीर सिंह को लटकाये रखने के बाद यहां से घसीटकर पांच सौ मीटर दूर ले जाया गया था. जहां उन्हें फिर से बैरिकेड पर लटका दिया गया. दोपहर के वक़्त जब हम सिंघु बॉर्डर पहुंचे तब भी वह बैरिकेड वहीं खड़ा नजर आया. बैरिकेड के सामने ही टेंट के अंदर गुरु ग्रंथ साहिब की पालकी रखी हुई थी. आरोप है कि यहीं से लखबीर सिंह ने गुरु ग्रंथ साहिब उठाकर ले जाने की कोशिश की थी.
टेंट के अंदर हम बलविंदर सिंह से मिले. बलविंदर सिंह खुद को पंथ अकाली निर्वैर खालसा उडना दल का प्रधान बताते हैं. घटना के बारे में बताते हुए वो कहते हैं, ‘‘हमारा ग्रंथि सिंह नहाने के लिए गया था. तभी वो (लखबीर सिंह) अंदर पालकी साहब में घुस गया और एक रुमाला (जिससे पवित्र ग्रंथ को ढका जाता है), एक तलवार और एक ग्रंथ साहिब को लेकर भाग गया. हमने उसे पकड़ लिया. वहां काफी भीड़ हो गई. किसी ने हाथ काटा, किसी ने पांव काटा. किसी ने कुछ और किया. उसकी इतने में मौत हो गई.’’
बलविंदर सिंह को इस हत्या पर गर्व है. बलविंदर कहते हैं, ‘‘हमारे गुरु ग्रंथ साहब को उठाकर वो भाग गया हमें बस इसी बात का अफसोस है. उसके बाद संगत ने उसे जो सजा दी, उसको काटा उसका हमें अफसोस नहीं है. आगे भी अगर कोई ग्रंथ साहिब के साथ ऐसा करेगा उसके साथ भी ऐसा ही होगा.’’
टेंट के अंदर बलविंदर सिंह के साथ बैठे बाकी लोग जिसमें चार महिलाएं भी थीं, सबको इस हत्या का अफसोस होने की बजाय गर्व था. शुक्रवार की देर शाम सरबजीत सिंह नाम के एक निहंग सिख ने हत्या की जिम्मेदारी लेते हुए पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. उसने भी आत्मसमर्पण करते हुए कहा कि इस हत्या का मुझे कोई अफसोस नहीं है.
चश्मदीदों की जुबानी: ‘मैंने अपने आंखों से पैर काटते देखा’
जब हम सिंघु बॉर्डर के उस इलाके में पहुंचे जहां इस घटना को निहंगों ने अंजाम दिया था, तो कोई भी खुलकर बात करने से कतरा रहा था. जो लोग इस घटना को जायज बता रहे थे, सिर्फ वही खुलकर बातें कर रहे थे. ऐसे तमाम लोग हमें मिले जिनका मानना था कि लंबे समय से गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी हो रही है. पुलिस बेअदबी करने वालों को मानसिक रूप से बीमार बताकर कुछ दिन जेल में रखती है और फिर छोड़ देती है. ऐसे में इस तरह की सजा देना जायज है. कुछ लोग ऐसे भी मिले जिनकों इस घटना में सरकार की साजिश लगती है.
एक पक्ष ऐसा भी है जो मानता है कि इस घटना का संबंध पंजाब के चुनावों से हैं. अतीत में भी कथित तौर पर सिख धार्मिक-राजनीतिक समूह चुनावों के वक्त इस तरह के हथकंडे अपनाकर चुनावी लाभ लेने की कोशिश करते रहे हैं.
उस इलाके में काफी समय तक घूमने के दौरान हमारी मुलाकात इस पूरे घटनाक्रम के एक चश्मदीद समीर (सुरक्षा कारणों से हमने नाम बदल दिया है) से हुई. समीर आठ महीने से किसान आंदोलन में शामिल हैं और अपने गांव से आए किसानों के साथ स्टेज के पास ही बने टेंट में रहते हैं.
वो कहते हैं, ‘‘रात करीब 3:30 बजे के करीब यह बात सामने आई कि किसी ने गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी कर दी है. मैं अपने टेंट में सोया हुआ था. कुछ लोग उसे स्टेज के पीछे, जहां निहंग सिख रहते हैं वहां उसे लेकर जा रहे थे. तब तक वह बिल्कुल ठीक था. मुझे लगा की कोई चोरी की होगी. ऐसे में हम वहां नहीं गए. 10-15 मिनट बाद वो उधर से वापस लौटे तब उसका हाथ कटा हुआ था. एक निहंग सिख उसका कटा हाथ लेकर चल रहा था. स्टेज के पास पहुंच कर उन्होंने उसे बाएं तरफ के पोल में उल्टा लटका दिया.’’
समीर आगे कहते हैं, ‘‘स्टेज पर एक घंटे तक टांगे रखा. वह ज़िंदा था. उसके माथे और आंख से खून निकल रहा था. थोड़ी देर में वहां कुछ और निहंग आ गए. उन्होंने आपस में सलाह किया और उसे उतारकर थोड़ा आगे ले गए. फिर उन्होंने उसका पैर काट दिया. उसका पैर अलग नहीं हुआ, लेकिन काफी खून निकल रहा था. यह भोर में 5:30 बजे के आस-पास की बात है. पैर काटने के बाद उन लोगों ने जयकारे लगाए और उसे घसीटकर करीब 500 मीटर अंदर धरने वाले इलाके में ले गए. वहां फिर से उसे टांग दिया. जब स्टेज से लेकर गए तब तक वह जिंदा था. बाद में उसकी मौत हो गई.’’
क्या इस दौरान किसी ने उन लोगों को रोका नहीं. इस सवाल पर समीर कहते हैं, ‘‘यहां ज़्यादातर लोग सुबह पांच बजे तक जग जाते हैं. जब उसे स्टेज के सामने रखा गया तब अख़बार आने का वक़्त हो गया था. लोग अख़बार लेने के लिए पहुंचने लगे थे लेकिन कोई कुछ बोल नहीं रहा था. निहंगों से सब डरते हैं. एक बुजुर्ग ने जरूर उन्हें रोका था लेकिन उन्हें डांटकर हटा दिया. जो कुछ हमारे आंखों के सामने हो रहा था वो गलत था. लेकिन निहंगों से कौन लड़ता. उस समय तो वो किसी को भी मार सकते थे.”
‘लखबीर ने हमसे मदद मांगी थी’
सिंघु बॉर्डर पर ही हमें एक और चश्मदीद मिला. वह भी अपना नाम उजागर नहीं करना चाहता था. उसने हमें बताया कि देर रात जब कथित बेअदबी के आरोप में निहंगों ने लखबीर सिंह को फोर्ड के शो रूम के पास से पकड़ा और मारने लगे तब वह भागकर रोहन (बदला हुआ नामा) और उनके कुछ साथियों के पास मदद के लिए गया था.
निहंगों का उग्र, हिंसक रूप देख कर रोहन और उनके साथियों की मदद करने की हिम्मत नहीं हुई. उसके बाद निहंग उन्हें पकड़कर अपने टेंट की तरफ ले गए. रोहन मदद नहीं कर पाने का अफसोस जताते हैं. वे कहते हैं, ‘‘जब वह मुझसे मदद मांगने आया तो दो निहंग और एक कोई आदमी उसके साथ थे. लखबीर ने भी निहंगे वाले कपड़े पहने हुए थे, लेकिन उसकी दाढ़ी और बाल नहीं थे. उसने मुझसे कहा, मुझे बचा लो. इससे पहले नौ लोगों को मैं निहंग सिखों से बचा चुका हूं. लेकिन कल रात मामला बेअदबी का था. मेरे सामने उसके पास से सर्व लोक ग्रंथ मिला. निहंग बेहद गुस्से में थे. ऐसे में अगर मैं बचाने की कोशिश करता तो वे मुझे भी मार देते.’’
जब निहंग, लखबीर सिंह को पकड़ कर ले गए तो रोहन को लगा कि एकाध थप्पड़ मारकर छोड़ देंगे. उसके हाथ-पैर काटकर हत्या कर देंगे इसका अंदाजा नहीं था.
वो कहते हैं, ‘’जब वे उसे लेकर चले गए तो मैं अपने टेंट में आ गया. सुबह के 5 बजकर 38 मिनट का समय था जब बहुत तेज़ शोर हुआ. मैं बाहर निकलकर आया तो सात-आठ लोग लखबीर सिंह को घसीटते हुए ले जा रहे थे. वो खून से लथपथ था. उसका हाथ और पैर काटा जा चुका था. वो कुछ बोल नहीं पा रहा था.’’
‘हाथ पैर काटकर एक संदेश देना चाहते थे’
सिंघु बॉर्डर पर प्रवेश करते ही निहंगों का डेरा है. यहां बड़ी संख्या में घोड़े बंधे हुए हैं. नीले रंग का कपड़ा पहने और कमर में तलवार लटकाये निहंग यहीं रहते हैं और खुद को आंदोलन का रक्षक बताते हैं.
पूरे घटना के चमश्दीद रहे गौरव (बदला हुआ नाम) न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं कि यहां निहंगों का कई पंथ बैठता है. इसमें चम्पा साहब, चमकाण साहब, बाबा बुढ़ा दल छियानवे करोड़ी, बाबा राम सिंहजी और बाबा नारायण सिंह हैं. हत्या करने का आरोप अपने माथे पर लेने वाले सरबजीत सिंह, बाबा बुढ़ा दल छियानवे करोड़ी से जुड़े हुए हैं.
गौरव बताते हैं, ‘‘हाथ तो इधर ही लाकर काटा गया. पैर स्टेज के सामने काटा गया. दरअसल उनका इरादा हत्या करने का नहीं था. जब वे मार-काट रहे थे तब मैं वहीं था. वे कह रहे थे कि इसको ऐसी सजा दो कि ये जिंदगी भर याद रखे और इसे देखकर कोई दूसरा बेअदबी का ना सोचे. उन्हें अंदाजा ही नहीं था कि मौत हो जाएगी. हालांकि जब सुबह मौत हुई तब वहां मौजूद सरबजीत ने कहा कि यह मैं अपने सर पर लूंगा.’’
क्या हाथ-पैर सरबजीत ने ही काटे थे. इस सवाल पर गौरव कहते हैं, ‘‘जी, उन्होंने ने ही काटा था.’’
शव को जहां लटकाया गया था वहां से कुंडली पुलिस स्टेशन पास ही है. वहां करीब आठ बजे तक लखबीर का शव टंगा रहा किसी ने पुलिस को सूचना दी तब पुलिस उसे ले गई. इसके बाद दिन भर पुलिस टीम घटनास्थल और निहंगों के टैंट के आसपास का दौरा करती रही.
दोपहर में पुलिस ने इस मामले में अज्ञात लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और 34 (जब एक आपराधिक कृत्य सभी व्यक्तियों ने सामान्य इरादे से किया हो) के तहत मामला दर्ज किया है. पूरे दिन कुंडली थाने में सीनियर अधिकारियों की बैठक चलती रही. लेकिन वहां कोई भी अधिकारी इस मामले पर बोलने के लिए तैयार नहीं था.
शाम साढ़े छह बजे के करीब कई सीनियर अधिकारी निहंगों के टेंट के पास पहुंचे और वहां सरबजीत सिंह ने खुद को पुलिस को सौंप दिया. इस दौरान वहां सैकड़ों के संख्या में निहंग मौजूद थे. किसी को भी इस हत्या पर कोई दुःख नहीं था.
कौन है लखबीर सिंह?
लखबीर सिंह पंजाब के तरन तारन जिले के चीमा कलां के रहने वाले दलित थे. इस गांव में सौ के करीब दलित परिवार रहते हैं. लखबीर की पत्नी और तीन बेटियां हैं. ग्रामीणों के मुताबिक पत्नी कुछ सालों से बेटियों को लेकर अलग हो गई है. सिंह अपनी बहन के साथ चीमा कलां गांव में रहते हैं. बहन के पति का भी निधन हो चुका है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने उनके परिवार से बात करने की कोशिश की लेकिन इस हादसे के सदमे के कारण उनकी बहन बात करने की स्थिति में नहीं थी.
चीमा कलां लखबीर सिंह का गांव नहीं है. इस गांव के रहने वाले हंसपाल सिंह ने फोन पर बातचीत में न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, ‘‘इनकी बुआ महेंद्र कौर और फूफा हरनाम सिंह का कोई बच्चा नहीं था. जिसके कारण उन्होंने इन्हें करीब पांच साल की उम्र में गोद लिया था. तब से वे यहीं रह रहे थे. इनके फूफा आर्मी में हुआ करते थे. उनकी मौत करीब 26 साल पहले हो गई थी और बुआ की मौत तीन-चार साल पहले हो गई.’’
हंसपाल सिंह बताते हैं, ‘‘15 साल पहले इनकी शादी हुई थी. तीन बेटियां हैं, लेकिन बीते चार-पांच साल से इनकी पत्नी बेटियों को लेकर अलग रहती है. शादी के बाद लखबीर मुंबई गया. वहां उसे नशे की लत लग गई. वहां से पिंड आया. यहां भी नशा करता था. आगे चलकर ज़्यादा ही नशा करने लगा. जिस कारण पत्नी अलग हो गई और मायके में जाकर रहने लगी.’’
आमदनी को लेकर हंसपाल कहते हैं, ‘‘किसी के यहां चारा काट कर तो किसी के भैंस को पानी डालकर पैसे कमाता था. जिसके यहां काम करता था उसी के यहां रोटी खा लेता था.’’
बीबीसी हिंदी से बात करते हुए लखबीर के फूफा बलकार सिंह ने कहा, ‘‘अब घटना यहां पर तो हुई नहीं है. घटना बहुत दूर हुई है. हम आपको क्या बताएं कि क्या हुआ होगा. मैं तो समझता हूं कि वो वहां पहुंच ही नहीं सकता. ज़रूर किसी ने उसको नशा दिया होगा, वहां लोग लेकर गए होंगे और बरगलाया होगा. वो ये काम नहीं कर सकता. दोषियों को पकड़ा जाना चाहिए और परिवार का ध्यान रखा जाना चाहिए.’’
लखबीर सिंह के गांव वालों के जेहन में भी यहीं सवाल है कि आखिर वो दिल्ली पहुंचा कैसे.
हंसपाल न्यूज़लॉन्ड्री से बताते हैं, ‘‘मैंने 11 अक्टूबर को उसे गांव में देखा था. उसके बाद ही गया होगा. गांव के लोग कह रहे हैं कि चोरी कर सकता है, लेकिन बेअदबी वाला काम नहीं करेगा. सिख धर्म को छोड़ो और किसी भी धर्म का भी बेअदबी नहीं कर सकता. ये अपनी मौज में रहने वाला इंसान था. ये भी कह रहे हैं कि दिल्ली जाने के लिए इसके पास पैसा कहां से आया. इनकी बहन को भी नहीं मालूम की ये दिल्ली कब गया.’’
गांव के रहने वाले सतनाम सिंह बाजवा भी न्यूज़लॉन्ड्री से फोन पर बात करते हुए कहते है, ‘‘यह गांव में बड़ा रहस्य बना हुआ है कि ये सिंधु कैसे चला गया. हमारे गांव से कोई किसान वहां गया भी नहीं है. इनको या तो किसी ने लालच देकर भेजा है या लेकर गया है. यह समझ नहीं आ रहा है.’’
किसान संगठनों ने हत्या की निंदा करते हुए खुद को निहंगों से अलग किया
आंदोलन का संचालन कर रहे किसान संगठनों ने इस हत्या की निंदा करते हुए खुद को इससे अलग कर लिया है. संयुक्त किसान मोर्चा ने इस पूरे मामले पर एक प्रेस रिलीज जारी कर कहा, ‘‘इस नृशंस हत्या की निंदा करते हुए एसकेएम यह स्पष्ट कर देना चाहता है कि इस घटना के दोनों पक्षों, निहंग समूह/ग्रुप या मृतक व्यक्ति, का संयुक्त किसान मोर्चा से कोई संबंध नहीं है.’’
प्रेस रिलीज में आगे कहा गया, ‘‘हम किसी भी धार्मिक ग्रंथ या प्रतीक की बेअदबी के खिलाफ हैं, लेकिन इस आधार पर किसी भी व्यक्ति या समूह को कानून अपने हाथ में लेने की इजाजत नहीं है. हम यह मांग करते हैं कि इस हत्या और बेअदबी के षड़यंत्र के आरोप की जांच कर दोषियों को कानून के मुताबिक सजा दी जाए. संयुक्त किसान मोर्चा किसी भी कानून सम्मत कार्यवाही में पुलिस और प्रशासन का सहयोग करेगा.’’
इस घटना ने पंजाब में राजनीति और धर्म के घालमेल का बदसूरत चेहरा दिखाया है. किसान मोर्चे ने इस घटना की निंदा करके एक सही क़दम उठाया है लेकिन उसे इस बाबत और कड़ा रवैया अपनाना होगा. एक तरफ नौ महीने का सत्याग्रह चले और दूसरी तरफ कंगारू कोर्ट जहां विधि व्यवस्था और कानून को पैरों तले रौंदा जाय, दोनों बाते साथ-साथ नहीं चल सकती.
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