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यूपी पुलिस नहीं बता रही कि "जस्टिस फॉर हाथरस" वेबसाइट का सिद्दीकी कप्पन से क्या संबंध है?

इस महीने पत्रकार सिद्दीकी कप्पन को जेल में एक साल बीत गया. उत्तर प्रदेश पुलिस ने 4,500 से ज्यादा पन्नों के आरोप पत्र को दाखिल किया जो सबूतों के बजाय अटकलों के आधार पर कप्पन को आरोपी की तरह पेश करता है. उनके वकील मधुवन दत्त चतुर्वेदी ने इस आरोप पत्र को अच्छी तरह से जांचा है. उनसे विस्तृत बातचीत के आधार पर ही उत्तर प्रदेश पुलिस के आरोपों का अवलोकन करती हुई न्यूज़लॉन्ड्री की यह सीरीज.

इस तरह के हल्के सबूतों का एक उदाहरण सिद्दिकी कप्पन और अतीकुर रहमान के द्वारा पुलिस हिरासत में दिए हुए वक्तव्य हैं, जिनमें उन्होंने कथित तौर पर "जस्टिस फॉर हाथरस विक्टिम" वेबसाइट की जिम्मेदारी ली है. पिछले वर्ष सूत्रों पर आधारित मीडिया रिपोर्टों में यह कहा गया था कि उत्तर प्रदेश पुलिस का मानना है कि यह वेबसाइट हाथरस के आधार पर हिंसक प्रदर्शन और दंगे फैलाने के लिए बनाई गई थी. यहां यह बात ध्यान रखने लायक है कि सीआरपीसी के अनुच्छेद 161 के अंतर्गत दिए गए वक्तव्यों को अदालत तथ्य के रूप में नहीं मानती. पहले कई अवसरों पर अदालतों ने यह कहा है कि, हिरासत में पुलिस के द्वारा लिए गए वक्तव्यों को आरोपी के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. इतना ही नहीं, ऐसा कोई साक्ष्य भी उपलब्ध नहीं है जो वेबसाइट और आरोपियों के बीच किसी संबंध की पुष्टि करता हो.

4 नवंबर 2020 के एक नोट में यूपी स्पेशल टास्क फोर्स ने कप्पन का एक वक्तव्य दाखिल किया जिसमें उन्होंने कथित तौर पर कहा कि यह पता चलने के बाद कि हाथरस में दलित युवती के बलात्कार और हत्या के पीछे अगड़ी जाति के लोगों का हाथ है, "जस्टिस फॉर हाथरस विक्टिम" वेबसाइट "दलितों को भड़काने और दंगे फैलाने" के लिए शुरू की गई.

इस नोट में कप्पन के हवाले से यह भी कहा गया कि, उनका थेजस नाम के अखबार से संबंध है और "चरमपंथी मुस्लिम सोच वाले लोगों को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया या पीएफआई से जोड़ना" भी उनके काम में शामिल है.

वेबसाइट की स्थापना

अपने वक्तव्य में कप्पन को यह कहते हुए बताया गया कि वे और अतीकुर रहमान, व्हाट्सएप और फेसबुक पर कई समूहों के सदस्य थे जहां उन्होंने कथित तौर पर - जाति संबंधित और भड़काऊ सांप्रदायिक सामग्री "दंगे फैलाने" की मंशा से "लोगों को सरकार के खिलाफ भड़काने" के लिए पोस्ट कीं.

इस वक्तव्य में यह भी कहा गया कि अपने को पुलिस की कार्यवाही से बचाने के लिए" जस्टिस फॉर हाथरस विक्टिम" वेबसाइट Carrad.co नाम की होस्ट वेबसाइट पर बनाई गई.

इस साल अप्रैल में यूपी एसटीएफ ने बताया कि उसने चारों आरोपियों, अतीकुर रहमान, मोहम्मद आलम, सिद्दिकी कप्पन और मसूद अहमद से हिरासत में लेते समय 1717 दस्तावेज बरामद किए थे. पुलिस के द्वारा बरामद किए गए दस्तावेजों में जस्टिस फॉर हाथरस विक्टिम वेबसाइट के प्रिंट आउट भी शामिल थे.

पुलिस हिरासत में दिए गए वक्तव्य के अनुसार कप्पन ने यह भी कहा कि वे "इस्लामिक स्टेट के पक्षधर हैं और कट्टरवाद को बढ़ाने के लिए काम करते हैं."

29 सितंबर 2020 को दिल्ली में हाथरस बलात्कार पीड़िता की मृत्यु के बाद हुई घटनाओं का ज़िक्र करते हुए इस वक्तव्य में कहा गया कि, "जस्टिस फॉर हाथरस विक्टिम" वेबसाइट 4 अक्टूबर को बंद कर दी गई. यह रिपोर्ट किया जा चुका है कि Carrad.co वेबसाइट एक ऑनलाइन मंच है, जिसे ब्लैक लाइव्स मैटर प्रदर्शन जैसे कई इंटरनेट आधारित जनाधिकार प्रदर्शनों के लिए कई बार इस्तेमाल किया जा चुका है.

Carrd.co का जवाब

फाइलों की जांच कर चुके वकील के अनुसार 29 अक्टूबर 2020 के एक नोट में, एक उत्तर प्रदेश पुलिस अफसर ने Carrd.co वेबसाइट से संबंधित जानकारी दाखिल की.

यूपी एसटीएफ के जांच अधिकारी ने कहा कि उन्होंने वेबसाइट से उनकी ईमेल आईडी ticket-support@carrd.co के जरिए संपर्क किया. इसके जवाब में वेबसाइट ने एसटीएफ को सूचित किया कि उन्हें "जस्टिस फॉर हाथरस विक्टिम" से संबंधित एक "दुर्व्यवहार की रिपोर्ट" मिली थी. उन्होंने अपने नियमों और शर्तों के अनुच्छेद 5(सी), जो लोगों के द्वारा डाली गई जानकारी के अपराधिक होने से संबंधित है. जिसमें स्पष्ट किया कि 4 अक्टूबर 2020 को वेबसाइट क्यों बंद कर दी गई थी.

Carrd.co ने अपने जवाब में यह भी बताया कि उनके पास "जस्टिस फॉर हाथरस विक्टिम" वेबसाइट का नाम खरीदने वाले के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

हमें बताया गया कि जांच अधिकारी ने आरोप पत्र में कहा है, "कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला है. वेबसाइट का इस्तेमाल, दंगे कैसे भड़काए जाएं और खुद को उनमें कैसे बचाया जाए, से जुड़ी स्पष्ट जानकारी अपलोड करने के लिए हुआ है."

3 दिसंबर 2020 के एक और नोट में यह दोबारा से बताया गया कि होस्ट करने वाली वेबसाइट की तरफ से नाम, पता, मोबाइल नंबर और आईपी एड्रेस की कोई जानकारी नहीं मिली है. इस नोट में यह भी कहा गया, "ऐसा लगता है कि अपने आप को पुलिस की कार्रवाई से बचाने के लिए ही वेबसाइट को बंद कर दिया गया."

अधिकारी ने इस तथ्य की तरफ भी इशारा किया कि उन्होंने Carrd.co से ईमेल के जरिए 29 अक्टूबर, 31 अक्टूबर, 6 नवंबर और 9 नवंबर को संपर्क करने की कोशिश की लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

अतीकुर रहमान का वक्तव्य

दूसरे आरोपी अतीकुर रहमान का वक्तव्य भी लगभग सिद्दिकी कप्पन के वक्तव्य जैसा ही लगता है.

उसमें रहमान ने कथित तौर पर कहा है, "हम कट्टरवादी मुस्लिम सोच रखने वालों से इस्लामिक स्टेट स्थापित करने के लिए संबंध स्थापित करना चाहते हैं." "जस्टिस फॉर हाथरस विक्टिम" वेबसाइट शुरू करने के पीछे के कारणों को समझाते हुए रहमान के हवाले से बताया गया कि, उनकी विचारधारा सरकार के लिए अस्थिरता पैदा करना होने की वजह से ही उन्होंने अपने को पुलिस कार्रवाई से बचाने के लिए वेबसाइट को शुरू किया था.

लेकिन जब 4 अक्टूबर को वेबसाइट बंद कर दी गई तो उन्होंने हाथरस जाने का निर्णय लिया. वक्तव्य में इस तरफ भी इशारा है कि कप्पन, रहमान और बाकी लोग हाथरस गए तो लेकिन वे वहां से लौट आए क्योंकि "उनके पास दंगे फैलाने के लिए आवश्यक हथियार और पेट्रोल नहीं था."

इस वक्तव्य में इस बात को नहीं खंगाला गया कि क्या रहमान या कप्पन ने Carrd.co को "जस्टिस फॉर हाथरस विक्टिम" वेबसाइट नाम खरीदने के लिए भुगतान किया भी था या नहीं.

हाथरस में चश्मदीदों के बयान

आरोपपत्र में हाथरस से चार चश्मदीदों के बयान हैं जिन्होंने कथित तौर पर सिद्दिकी कप्पन और अतीकुर रहमान की पहचान उन लोगों में की है, "जो दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में हाथरस बलात्कार पीड़िता की मृत्यु के बाद उसके गांव आए थे." ये वक्तव्य 7 नवंबर 2020 को एक नोट के रूप में दाखिल किए गए थे.

कप्पन के मामले में बचाव पक्ष के वकील मधुवन दत्त चतुर्वेदी इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हैं, क्योंकि उनका कहना है कि कप्पन और बाकी लोगों को हाथरस जाते समय रास्ते में ही गिरफ्तार कर लिया गया था.

सभी चश्मदीद गवाहों ने हिंसा फैलाने की कोशिश करते शरारती तत्वों को "बाहरी लोग" कहकर संबोधित किया और बताया कि "उनके निशाने पर ठाकुर समुदाय के लोग थे."

न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में सिद्दिकी कप्पन के वकील विल्स मैथ्यूज़ ने कहा, "डिस्क्लोजर बयान सबूत के रूप में मान्य नहीं होते. और इस मामले में तो बयान अप्रत्याशित और विरोधाभासों से भरे हुए हैं."

क्या इन बयानों को आरोप पत्र में जोड़ देना जांच एजेंसी के द्वारा खेला गया एक पैंतरा है, मैथ्यूज़ जवाब में कहते हैं, "लगभग सभी अपराधिक मुकदमों में आरोपों को सही ठहराते हुई कहानियां गढ़ी जाती हैं लेकिन असली परीक्षा मुकदमा ही होता है. आमतौर पर यह कहानियां मुकदमे के दौरान गलत साबित होती हैं."

मैथ्यूज़ इस बात पर जोर देते हैं कि उन्हें आरोप पत्र अभी तक नहीं मिला है और कहते हैं, "उसने (कप्पन) ने अपने को निर्दोष साबित करने के लिए खुद ही नारको परीक्षण या कोई और वैज्ञानिक टेस्ट के लिए पेशकश की है."

बयानों का दुरुपयोग

आरोपपत्र में शामिल अपराध स्वीकारने वाले बयान हाल ही में 2020 दिल्ली दंगों के मुकदमों के दौरान सवालों के घेरे में आए. स्क्रोल की एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल रतन लाल की मौत के मामले में गिरफ्तार किए गए 17 मुसलमान युवकों में से सात के बयान एक जैसे थे, जिससे इन वक्तव्यों की सत्यता पर सवाल उठते हैं.

न्यूज़लॉन्ड्री ने पहले रिपोर्ट की है कि कैसे ज़ी, प्रिंट और एएनआई ने कई बार, आम आदमी पार्टी के पूर्व सभासद ताहिर हुसैन, जामिया के विद्यार्थी नीरन हैदर और आसिफ इकबाल तन्हा व दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा गुलफिशा फातिमा के कानूनन अमान्य वक्तव्यों को "कबूलनामा" बताकर प्रस्तुत किया.

यूपी एसटीएफ के द्वारा मथुरा में दर्ज एफआईआर संख्या 199/2020 से जुड़े दाखिल आरोप पत्र में भी ऐसे ही बयानों का पुलिस के अनुमानों को सत्यापित करने के लिए दुरुपयोग हुआ जान पड़ता है.

पुलिस की हिरासत में दिए गए बयानों की विश्वसनीयता पर उच्चतम न्यायालय के वकील अबू बकर सब्बाक ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुच्छेद 25 के अंतर्गत डिस्क्लोजर बयान आरोपी के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किए जा सकते. तब भी पुलिस इन्हें नोट करती है और आरोप गढ़ने के लिए उन्हें ही आधार बनाती है."

मोहम्मद नसरुद्दीन जिन्हें 1994 में टाडा के तहत गिरफ्तार किया गया था का उदाहरण देते हुए सब्बाक कहते हैं, "22 साल बाद 11 मई 2016 को उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में निर्णय दिया. यह देखा गया कि इस मामले में इकलौता साक्ष्य जांच अधिकारी के सामने दिया गया डिस्क्लोजर बयान था, जिसको साबित नहीं किया जा सका और आरोपी बरी हो गया."

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