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सुशांत मास्टर की अशांत पाठशाला

कहा जाता है कि एक अच्छा शिक्षक ही अच्छे छात्रों का निर्माण करता है. लेकिन जब शिक्षक ही दुराग्रह से ग्रस्त हो, एकतरफा चीजों को तोड़ मरोड़ कर पेश करे तो छात्रों के भविष्य की कल्पना की जा सकती है. हम जिस ‘शिक्षक’ की बात कर रहे हैं उनका नाम है सुशांत सिन्हा. ये ‘न्यूज़ की पाठशाला’ चलाते हैं. मतलब टाइम्स नाउ नवभारत पर इनके शो का यही नाम है.

सुशांत सिन्हा के इस शो में आपको न्यूज़ के साथ-साथ कई गाने और डायलॉग भी सुनने को मिलेंगे. इस शो में सुशांत अपने एक अलग अंदाज में कहते है, ‘‘ज्ञान भी मिलेगा और मजा भी आएगा इसलिए आया करिए पाठशाला में.’’

सुशांत मज़ा देने का दावा कुछ इस अंदाज में करते हैं जो उस मास्टर की याद दिलाता है जो नया स्कूल खुलने पर पहले बच्चो को टॉफी देकर स्कूल आने के लिए परकाता है और फिर कुछ दिन बीतते बीतते मरकहवा मास्टर के नाम से बच्चों में बदनाम हो जाता है.

शुक्रवार यानी की 8 अक्टूबर को न्यूज़ की पाठशाला में सुशांत ने टाटा ग्रुप द्वारा एयर इंडिया को खरीदने जाने पर एक शो किया. शो के टिकर थे, “एयर इंडिया की घर वापसी पर जरूरी नोट्स”, “घाटे वाली एयर इंडिया को टाटा उड़ाएगा कैसे?”

शो की शुरुआत में सुशांत ने सबसे पहले टाटा ग्रुप ने भारत सरकार से एयर इंडिया को कितने रुपए में खरीदा यह बताया. इसके बाद एंकर ने इस खरीद की शर्ते, एयर इंडिया के पास कितनी प्रापर्टी है, भारत सरकार का अधिग्रहण और लाभ में रहने वाली कंपनी का नुकसान में जाने का जिक्र किया. साथ ही मनमोहन सिंह और कांग्रेस पर निशाना साधते हुए वर्तमान सरकार के गुणगान और अंत में टाटा ग्रुप का भी गुणगान किया.

यानी देश को सुधार देने का दावा करने वाली सरकार सात साल में एयर इंडिया को बेंच रही है तो उस सरकार की तारीफ और बिकने की नौबत क्यों आई इसके लिए सात साल पहले जो सरकार थी उसकी बुराई. इसी तरह की बेतुकी, दुराग्रही बातें इस पाठशाला में हर दिन चलती हैं.

सुशांत शो में कहते हैं- “1980 में सबसे पहले एयर इंडिया को 15 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था. कहानी बिगड़ने की शुरूआत हो चुकी थी, लालफीताशाही, प्रोफेशनलिज्म, टाइम पर सर्वेिस सब खत्म हो चुका था. यह वह समय था जब नेताओं ने हमारे यहां के महाराजा (एयर इंडिया) को दरबारी बनाना शुरू कर दिया.”

इसके बाद वह 90 के दशक की बात करते हैं- “जब एयर इंडिया की चमक फिर से लौटी, 1993 में कंपनी को 333 करोड़ रुपए का फायदा हुआ.” इसके बाद फिर वह सीधे 2004 की बात करते हैं, यानी की बीते 10 सालों में कितना नुकसान हुआ, कितने का लाभ इसे उन्होंने अपने छात्रों को नहीं बताया. छात्र यानी की दर्शक.

साल 1980 में जब कंपनी को पहली बार 15 करोड़ का घाटा हुआ था, उसका कारण एंकर ने नहीं बताया. उन्होंने कमियां गिनवाई लेकिन घाटा क्यों हुआ इसका कारण नहीं बताया. बता दें कि तब के एयर इंडिया के चेयरमैन रघु राज ने इंडिया टुडे से बातचीत में 1980 के घाटे के बारे में विस्तार से बताया था. वह कहते हैं, “सिर्फ एयर इंडिया घाटे में नहीं है बल्कि वैश्विक स्तर पर कई कंपनियों के लिए यह बुरा साल रहा. ओपेक ने ईंधन में करीब 100 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर दी. साथ ही हमारी योजना टीम ने बताया था कि पर्यटक यातायात में 15 प्रतिशत की वृद्धि होगी लेकिन वह सिर्फ 5.4 प्रतिशत ही हुई. इस प्रकार हमारे पास एक विशाल प्लेन का बेड़ा था लेकिन ले जाने के लिए लोग कम थे.”

ओपेक तेल उत्पादन करने वाले अरब और अन्य देशों का एक संगठन है. इसकी स्थापना साल 1960 में बगदाद में हुए सम्मेलन में ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब और वेनेज़ुएला द्वारा की गई थी. यह संगठन तेल के दामों को अपने मुताबिक निर्धारित करता है. जब ओपेक ने तेल की कीमतों में बढ़ोतरी की, तब वह 78 यूएस सेंट प्रति गैलन से बढ़कर 146.6 सेंट प्रति गैलन हो गई. इसके कारण 1978-79 में 34.09 करोड़ का लाभ कमाने वाली कंपनी 1979-80 में 15 करोड़ के घाटे में आ गई.

1980 में 15 करोड़ के घाटे के बाद 1993 में कंपनी को 333 करोड़ रुपए का फायदा हुआ जैसा सुशांत ने शो में बताया, तो इसका मतलब है कि कंपनी सही काम कर रही थी. लेकिन जो सुशांत ने ‘लालफीताशाही, प्रोफेशनिलिज्म, समय पर सर्वेिस सब खत्म हो चुकी है.’ इन लाइनों का जिक्र क्यों किया, इसका जवाब वही दे सकते हैं. यहां उन्होंने यह नहीं बताया कि 333 करोड़ के लाभ के वक्त एक कांग्रेसी सरकार थी, लेकिन उन्होंने यह जरूर बताया कि इसे बेचने वाली सरकार बहुत सही है.

अब बात करते हैं 1993 से 2004 के बीच की. इस समय देश में अस्थिर सरकारें थीं. तीसरे मोर्चे की सरकार, फिर एक साल के लिए (1998-99) अटल बिहारी प्रधानमंत्री बने और अंत में 1999-2004 जब बीजेपी गठबंधन के जरिए सत्ता में आई.

साल 1995-1997 के बीच एयर इंडिया का संयुक्त घाटा 671 करोड़ था. जबकि साल 2001 में एयर इंडिया को 38.4 करोड़ का नुकसान हुआ. उससे ठीक एक साल पहले कंपनी को 54.29 करोड़ का मुनाफा हुआ था. लेकिन यह बात एंकर गायब कर गए, उन्होंने ऐसा क्यों किया यह सोचने का विषय है.

इस लिहाज से पाठशाला का मास्टर खुद अधकचरे ज्ञान वाला है और नाम से भले ही सुशांत हो पर मन से बहुत अशांत है. वो आगे बताते हैं, “कैसे एयर इंडिया पर घाटा बढ़ता चला गया, जिसके कारण मोदी सरकार ने इसे बेचने का फैसला किया. टाटा ग्रुप कैसे कर्ज में डुबी कंपनी को चलाएगी?

शो में वह एयर एशिया और विस्तारा एयरलाइन के बारे में भी बताते हैं. जो कि टाटा ग्रुप की हैं और दोनों लाभ में हैं. साथ में कंपनी के विजन और अन्य बातें करते हैं.

पहली बात जो हमें समझनी चाहिए वह यह है कि एयर इंडिया सरकारी कंपनी है जबकि टाटा प्राइवेट. दोनों में फर्क यह है कि प्राइवेट कंपनी हमेशा अपने फायदे का सोचती है. लेकिन सरकार का मुख्य उद्देश्य व्यापार करना नहीं होता है, वह लोगों को सुविधाएं देते हुए अपना प्रॉफिट निकालती है. दूसरा एयर इंडिया सरकारी कंपनी है जिसका उपयोग मंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक, सरकार के उच्च अधिकारी और अन्य कर्मचारी सरकारी कामकाज के लिए करते है. अब अगर टाटा ग्रुप उसे खरीद लेगा तो सरकार को इन सभी को सफर कराने के लिए टाटा को पैसे देने होंगे, जबकि पहले उन्हें रियायतें मिलती थीं.

एक आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक, खुद सरकार ने एयर इंडिया के विमानों के उपयोग के बदले 598.55 करोड़ का भुगतान नहीं किया है.

दूसरी बात जो एंकर द्वारा दोनों एयरलाइन्स के प्रॉफिट के बारे में कही गई. विस्तारा एयरलाइन को टाटा ग्रुप ने सिंगापुर एयरलाइन के साथ 2015 में शुरू किया था. इसका 51 प्रतिशत टाटा और 49 प्रतिशत हिस्सा सिंगापुर एयरलाइन के पास है. हिंदू बिजनेस लाइन की ख़बर बताती है कि साल 2016 से 2020 तक कंपनी का घाटा साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है. ख़बर के मुताबिक, 2016 में जो घाटा 400.9 करोड़ का था वह 2020 में बढ़कर 1813.38 करोड़ हो गया.

जिस तरह से सरकार एयर इंडिया को चलाने के लिए पैसे दे रही थी, उसी तरह घाटे में चल रही विस्तारा एयरलाइन को चलाने के लिए टाटा ग्रुप अलग से पैसा दे रहा है. कंपनी ने साल 2021 के लिए 585 करोड़ रुपए दिए हैं.

अगर बात एयर एशिया इंडिया की करें तो यह एयरलाइन टाटा ग्रुप ने मलेशिया की एयरलाइन्स कपंनी एयर एशिया के साथ मिलकर शुरू की थी. इसे साल 2014 में शुरू किया गया. शुरुआत में टाटा के पास 51 प्रतिशत और एयर एशिया के पास 49 प्रतिशत हिस्सेदारी थी. लेकिन साल 2020 में टाटा ग्रुप ने 32.67 प्रतिशत हिस्सेदारी और खरीद ली. जिसके बाद अब टाटा ग्रुप के पास 83.67 प्रतिशत हिस्सेदारी हो गई.

यह कंपनी भी घाटे में है. साल 2016 में कंपनी को 181.70 करोड़ और 2017 में 140.32 करोड़ का घाटा हुआ. साल 2018 में 125 करोड़ वहीं साल 2019 में यह घाटा बढ़कर 670 करोड़ हो गया.

यह आंकड़े बताते हैं कि टाटा के तमाम विजन और बिजनेस में विशेषज्ञता होने और सिर्फ फायदे के लिए काम करने वाली कंपनी को भी घाटा हो रहा है. यह घाटे एयर इंडिया के मुकाबले काफी कम हो सकते हैं लेकिन दोनों एयरलाइन्स को मिलाकर भी वह एयर इंडिया के प्लेन कि संख्या, कर्मचारियों की संख्या और रूट्स का मुकाबला नहीं कर सकते.

आधी-अधूरी जानकारियों के जरिए सरकार द्वारा एयर इंडिया को बेचे जाने को सही ठहराने की कोशिश में सुशांत अपने “छात्रों” को गलत जानकारी भी देते हैं. टाटा के जिन एयरलाइन्स को मुनाफे में बताते हैं दरअसल वह घाटे में है.

यही नहीं, एयर इंडिया पर 31 अगस्त 2021 तक कुल बकाया 61,525 करोड़ रुपए है. जबकि टाटा ग्रुप ने एयर इंडिया को 18 हजार करोड़ रुपए में खरीदा है. यानी की सरकार पर अभी भी कुल बकाया 46,262 करोड़ का है. इन 18 हजार करोड़ में टाटा लोन के 15,300 करोड़ रुपए चुकाएगा और बाकी सरकार को नकद के रूप में देगा.

यह तमाम बारीकियां सुशांत सिन्हा की पाठशाला में नहीं बताई गईं. उनकी क्लास में शामिल होने पर ऐसा लगता है मानो किसी पार्टी से खुन्नस खाए या किसी पार्टी के प्रेम में एंकर महोदय अपनी भड़ास एयर इंडिया और टाटा ग्रुप के जरिए निकाल रहे हैं. इस दौरन उन्होंने पिछले सात सालों से सत्ता पर काबिज मोदी सरकार से एक भी सवाल नहीं किया कि आखिर बेचना क्यों शान की बात है?

पुरखों की संपत्ति नाकारा पीढ़ियां बेचती हैं, योग्य लोग उसे बढ़ाते हैं.

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