Lakhimpur Kheri
लखीमपुर खीरी हिंसा: दहशत और बाहुबल पर खड़ा महाराज अजय मिश्र टेनी का किला
लखीमपुर खीरी के बनवीरपुर में महिषादेवी सरस्वती माध्यमिक विद्यालय नाम का एक स्कूल है. जिसमें आसपास के इलाकों जैसे निघासन, बनवीरपुर और तिकुनिया से कई बच्चे पढ़ने आते हैं. यह स्कूल गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी का है. यहां कक्षा छह में पढ़ने वाली पायल बताती हैं, "मेरी कक्षा में चार सरदार बच्चे पढ़ते हैं. कुछ दिनों से वो पढ़ने नहीं आ रहे हैं,"
इससे साफ पता चलता है कि लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा का असर स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों पर भी पड़ा है. यही नहीं यहां इलाके का माहौल शांत है और लोगों में फिलहाल अजीब सा डर और खौफ है.
बनवीरपुर, नेपाल सीमा से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर है. पिछले एक सप्ताह से यह गांव राजनीतिक लड़ाई का केंद्र बना हुआ है.
बता दें कि यहां 3 अक्टूबर को, तीन गाड़ियों के एक काफिले ने विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों की भीड़ को टक्कर मार दी थी. इस घटना में आठ लोगों की मौत हो गई, जिनमें चार किसान, दो भाजपा कार्यकर्ता, एक ड्राइवर और एक पत्रकार थे. इन तीनों में से दो गाड़ियां अजय मिश्र टेनी की हैं. कई चश्मदीदों का आरोप है कि एक वाहन में मंत्री का बेटा आशीष मिश्र भी मौजूद था.
काफी जन आक्रोश और राजनीतिक दबाव के बाद 9 अक्टूबर को अजय मिश्र टेनी के बेटे आशीष मिश्र को गिरफ्तार कर लिया गया है.
किसानों और भाजपा के बीच एक घटना के रूप में शुरू हुई यह लड़ाई अब हिंदुओं और सिखों के बीच दुश्मनी में बदल गई है. मंत्री के अपने गांव, बनवीरपुर में तनाव साफ देखा जा सकता है.
मिश्र का गृह नगर बनवीरपुर
गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी का गांव बनवीरपुर, तिकुनिया घटना स्थल से केवल तीन किलोमीटर दूर है. ग्राम पंचायत बनवीरपुर में अलग- अलग धर्म और जाति के लोग रहते हैं. 8000 हिंदू लोगों के इस गांव में ज्यादातर राणा समुदाय के लोग (जो सामान्य श्रेणी में आते हैं लेकिन अनुसूचित जाति का दर्जा चाहते हैं) बसे हैं. पर कुछ सिख घर भी हैं.
बनवीरपुर तीन भागों में बंटा हुआ है- रामनगर, मुंझा और दाराबोझी. रामनगर और मुंझा में अधिकतर राणा, राठौर, कुर्चिया, यादव, विश्वकर्मा, और भुर्जी रहते हैं. वहीं अजय मिश्र टेनी के घर से सौ मीटर की दूरी पर मुसलमान परिवारों की बस्ती है. यहां इनके 20 या 22 घर हैं. इलाके में हिंदुओं के 3800 वोट, मुसलामानों के 185 वोट और बचे 350 वोट सिख समुदाय के हैं. सभी 400-450 सिख परिवार के लोग दरबोझी की तरफ बसे हैं. यह सभी खेती, मजदूरी और व्यवसाय के लिए एक दूसरे पर निर्भर हैं.
बनवीरपुर भी दिखने में उत्तर प्रदेश के किसी और आम गांव जैसा ही लगता है. पतली और खुरदरी सड़कें और चारों तरफ खेत हैं. इन खेतों में गन्ना, धान और गेहूं की फसल उगाई जाती है. यहां रहने वालों का मुख्य पेशा किसानी है. कुछ लोग किराने और कपड़े की दुकान भी चलाते हैं.
31 वर्षीय आकाश मित्तल बनवीरपुर ग्राम पंचायत के प्रधान हैं. उनकी किराने की दुकान है जो उनकी मां संभालती हैं. यह दुकान अजय मिश्र टेनी के पिता द्वारा स्थापित राइस मिल 'श्री अम्बिका राइस मिल' के सामने बनी हुई है. यहां आसपास चाट के ठेले और मिठाई की भी दुकानें हैं.
बनवीरपुर में अजय मिश्र टेनी को टेनी ‘महाराज' कहकर बुलाया जाता है. 'महाराज' क्योंकि वो ना केवल ऊंची जाति से हैं बल्कि गांव के लोग उन्हें पूजते भी हैं. गांव के ही एक किसान 34 वर्षीय राम सागर कहते हैं, “हम किसी पार्टी को वोट नहीं देते. हम टेनी महाराज को वोट देते हैं. भले ही वह कांग्रेस या समाजवादी पार्टी में चले जाएं, फिर भी हमारा वोट टेनी जी को ही जाएगा,”
भाजपा के कुर्मी नेता और निघासन के पूर्व विधायक पटेल रामकुमार वर्मा अजय मिश्र टेनी के राजनीतिक गुरु कहे जाते हैं. बनवीरपुर में परंपरा थी कि कोई बाहर का व्यक्ति यहां आकर चुनाव लड़ता था. इसके बाद गांव वालों ने एकजुट होकर 'बाहरी भगाओ, क्षेत्रीय बनाओ' का नारा दिया. इसके बाद साल 2005 में पहली बार टेनी ने राजनीति में कदम रखा.
अजय मिश्र टेनी ने जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ा मगर वह हार गए, लेकिन जब पलिया निघासन से अलग हुआ तब जाकर दूसरी बार चुनाव लड़ रहे टेनी जीत गए.
साल 2012 में रामकुमार वर्मा के बसपा (बहुजन समाज पार्टी) में जाने के बाद, टेनी ने उस वर्ष निघासन से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और विधायक बने. क्षेत्र में उनके बढ़ते दबदबे को देखते हुए साल 2014 में उन्हें लखीमपुर खीरी लोकसभा का प्रत्याशी चुना गया और वो सांसद बन गए.
बनवीरपुर में अजय मिश्र के दो घर हैं. एक घर उनके पिता का है. वहीं बगल वाला घर उन्होंने बनवाया है. टेनी के पिता अम्बिका प्रसाद मिश्र किसानी किया करते थे. करीब 25 साल पहले उन्होंने अपने पिता की सहायता से गांव के पहले राइस मिल, 'श्री अम्बिका राइस मिल' की नीव रखी थी. जिसे बाद में अजय मिश्र टेनी देखने लगे और अब उनका बेटा आशीष इसे देखता है.
बनवीरपुर में अजय के परिवार का हमेशा से वर्चस्व रहा है. उनके दो बेटे और एक बेटी है. छोटा बेटा डॉ. अभिमन्यु लखीमपुर में बच्चों के डॉक्टर हैं. वहीं टेनी की सबसे छोटी बेटी रश्मि लखीमपुर कोऑपरेटिव बैंक में नौकरी करती हैं. स्थानीय सपा नेता 48 वर्षीय चंद्रभान सिंह बताते हैं कि रश्मि की लव मैर्रिज हुई थी. 38 वर्षीय आशीष, टेनी के सबसे बड़े पुत्र हैं. उनकी दो बेटियां हैं. आश्चर्य की बात यह है कि गांव में किसी ने भी टेनी के परिवार की औरतों को कभी नहीं देखा
प्रधान आकाश मित्तल बताते हैं कि रोज़ सुबह 7 से 8 बजे तक सांसद के घर सभा लगती है. इस सभा में पहले अजय मिश्र टेनी फैसला लिया करते थे लेकिन उनके सांसद बनने के बाद से आशीष सभा की अध्यक्षता करते हैं. आकाश मित्तल बताते हैं, "गांव के सभी विवाद और फैसलों का निर्णय टेनी के घर लिया जाता है. गांव में भ्रष्टाचार, जमीन विवाद, पारिवारिक मसले, किसानी से जुड़े मुद्दे और सभी छोटे- बड़े विवाद टेनी ही सुलझाते हैं. वो पुलिस के पास जाकर मामला सुलझा देते हैं. सांसद बनने के बाद से टेनी जी का कार्यभार आशीष ने संभाल लिया है."
यहीं से आशीष का राजनितिक सफर शुरू होता है. गांव में सब लोग उन्हें 'मोनू भैया' के नाम से पहचानते हैं. लेकिन किसी ने उन्हें एक नेता की दृष्टि से नहीं देखा. उनके पिता के सांसद बनने के बाद से मोनू भैया खुद को नेता की छवि में दिखाने लगे हैं.
आशीष सफेद कुर्ता पजामा पहनते हैं. उनके साथ हर वक्त दो बॉडी गार्ड रहते हैं. लखीमपुर से निघासन घुसते ही बड़े-बड़े होर्डिंग पर पिता अजय मिश्र टेनी के साथ मोनू भैया की तस्वीर दिख जाएंगी. बनवीरपुर की हर दीवार पर 'अबकी बार मोनू भैया की सरकार' लिखा हुआ है.
हिंदू बहुसंख्यक बनवीरपुर में सिख परिवार कैसे आए? इस पर आकाश कहते हैं, "सिख साल 1998 और 2000 के बीच बनवीरपुर आए. इनके बुजुर्ग पकिस्तान से पंजाब आए थे. पंजाब में जमीनें महंगी थीं. बनवीरपुर में उस दौरान खेती के लिए जमीन बहुत सस्ती मिलती थी. सिखों ने राणा और कुर्चिया से 80 हजार रुपए एकड़ जमीन खरीदी थी. अब उसी जमीन की कीमत 10 लाख रुपए प्रति एकड़ (5 बीघा) है. गंगानगर की तरफ कई सिखों ने अवैध अतिक्रमण किया हुआ है. यह जमीन वन विभाग की है. इन्होंने पेड़ उखाड़ दिए और गन्ना, धान और गेहूं उगाने लगे. सरकार को इसके बारे में पता है. कई बार तो टेनी ने इन्हें बचाया है."
वह आगे कहते हैं, “अजय मिश्र टेनी के घर से सौ मीटर दूर मुसलिम समुदाय के लोग रहते हैं. इन सभी के पास जमीनें बहुत कम है. अधिकतर ये लोग मजदूरी, बाल काटने, और टेलर का काम करते हैं. इनके घरों के बीच मंदिर बना है और उसके ठीक सामने मस्जिद है. मुसलामानों के लिए भी टेनी 'महाराज' हैं.”
31 वर्षीय मोहम्मद मारूफ बताते हैं, “आशीष मिश्र को खेलों में दिलचस्पी थी और वो गांव के सभी बच्चों के साथ रोजाना क्रिकेट खेला करते थे. वो किसी धर्म के साथ भेदभाव नहीं करते. गांव के मुसलमान, हिंदू और सिख बच्चे मैदान में क्रिकेट और वॉलीबॉल खेला करते थे. आशीष भैया खुद से सबको इनाम देते थे. दो और तीन अक्टूबर को आयोजित कुश्ती दंगल में भी आशीष भैया ही संयोजक थे."
50 वर्षीय मोबीन अहमद किसान हैं. उनकी 4 एकड़ ज़मीन है. उनके चार बेटे और एक शादीशुदा बेटी है. उनका कहना है, “अजय मिश्र टेनी ने बनवीरपुर के विकास के लिए बहुत कुछ किया है. उन्होंने राइस मिल खोली जहां किसान अपना गन्ना बेचने जाता है. उनका सबके साथ पारिवारिक नाता है. वो सबकी काम दिलवाने में मदद करते हैं."
तीन ऑक्टूबर के दिन मोबीन दंगल में थे. उन्होंने वहां खाना बनाने और देख-रेख में मदद की थी. उन्होंने हमें बताया, "घटना के बाद से हमारी और सिखों की बातचीत बंद है. हमें डर लगता है वो हम पर हावी हो जाएंगे. सिख इस इलाके में अपना दबदबा बनाना चाहते हैं. ये लोग अमीर हैं. इनके बच्चे विदेश पढ़ने जाना चाहते हैं."
30 वर्षीय दीपक अपने बेटे और पत्नी के साथ बाइक से गुजर रहे थे. हमें देखकर वो रुक गए और कहने लगे, "सिख लोग मोदी की लोकप्रियता से डरते हैं. वो लोग भाजपा समर्थक नहीं हैं. हमें डर है कि अगर फैसला इनके पक्ष में नहीं आया तो ये कुछ भी कर सकते हैं."
गांव में 3 अक्टूबर से पहले कोई विवाद या सांप्रदायिक हिंसा नहीं हुई हैं.
पास में खड़े एक व्यक्ति ने चिल्लाते हुए कहा, "सिख लोग खालिस्तानी होते हैं. हमने एक न्यूज़ में देखा है उस दिन प्रदर्शन कर रहे किसान की शॅर्ट पर खालिस्तान लिखा था. ये लोग आतंकी होते हैं." जब हमने पूछा कि उन्होंने ऐसा कहां देखा या सुना है तो उन्होंने बताया, "सहारा, न्यूज़ 18 और ज़ी न्यूज़ पर उस दिन (3 अक्टूबर) यहीं दिखा रहे थे."
बनवीरपुर में सिखों की स्थिति
गंगानगर बनवीर ग्राम पंचायत का हिस्सा है. यहां सभी सिख परिवारों ने अपने घर खेतों के बीच बनाए हुए हैं. 32 वर्षीय हरविंदर 1993 में पीलीभीत से गंगानगर रहने आ गए. ऐसा इसलिए क्योंकि पीलीभीत में बाढ़ के कारण वहां किसानी करना मुश्किल था.
उन्होंने बताया, "2014 में यहां के सिखों ने भाजपा को वोट दिया था. ना कि अजय मिश्र टेनी को, टेनी ने यहां कोई विकास नहीं कराया है. उस दौरान मोदी लहर थी. सबने 'मोदी' के नाम पर भाजपा को वोट डाला था."
वहीं पास बैठे 50 वर्षीय जरनैल सिंह कहते हैं, "बनवीरपुर के लोग टेनी से डरते हैं. वो कभी उसके खिलाफ नहीं बोलेंगे वरना टेनी का इतिहास रहा है जो उसके खिलाफ जाता है उसे वह बहुत बेरहमी से मरवाता है. आशीष भी अपने पिता जैसा है. वह भी गरीबों को कमरे में बंद कर के पीटता है. लोग उसकी दहशत में रहते हैं." जैरनैल सिंह का कहना है कि इस बार सिख भाजपा को वोट नहीं देंगे.
48 वर्षीय चंद्रभान सिंह पास की एक छोटी सी दुकान के बाहर खड़े थे. वह बताते हैं, “गांव के सिख सभी मामले आपस में सुलझा लेते हैं. हम लोग कभी टेनी की सभा में नहीं जाते. टेनी खुद फैसला लेता है और अकेले में लोगों को मारता है. हम सिख लोग खुद बैठकर आपस के विवाद सुलझा लेते हैं."
एक विराम के बाद चंद्रभान ने हमसे पूछा, "तो क्या आपने अन्य ग्रामीणों से बात की? क्या उन्होंने कहा कि वे टेनी को कितना चाहते हैं?"
जब न्यूज़लॉन्ड्री ने इसकी पुष्टि की, तो उन्होंने कहा, “आपको इस गांव में एक भी व्यक्ति नहीं मिलेगा जो उसके खिलाफ बोलेगा. लोग उनसे और उनके बेटे से डरे हुए हैं."
पास खड़े एक अन्य सिख व्यक्ति ने कहा, "आशीष मिश्र पूरी तरह से दबंग टाइप के नेता हैं."
वहीं गांव में ज्यादातर लोगों ने 2004 में केंद्रीय मंत्री के खिलाफ दर्ज हत्या के मामले की ओर इशारा किया, जो इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित है.
जरनैल सिंह ने बताया, “यहां ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जहां अजय मिश्र और उनके आदमियों के खिलाफ बोलने वाले ग्रामीणों का अपहरण कर, उन्हें एक कमरे में बंद कर देते थे और उनकी पिटाई करते थे. उनके बेटे आशीष मिश्र भी पिता से बिलकुल अलग नहीं है. आशीष के पास अपने पिता के सभी गुण हैं. वह एक बदमाश है."
यह पूछे जाने पर कि क्या उनकी याद में कोई विशेष घटना सामने आती है, सिखों ने कहा कि ज्यादातर लोग डरे हुए हैं और मिश्र परिवार के बारे में बात नहीं करना चाहेंगे. हमने फिर पूछा तो झिझकते हुए दुकान पर खड़े सिख लोगों ने पड़ोसी गांव गंगानगर की ओर इशारा किया. "वहां जाओ, तुम वहां एक पीड़ित पाओगे. वह अभी भी जीवित है लेकिन टेनी ने उसे लगभग मार डाला,” चंद्रभान सिंह ने कहा.
टेनी का खौफ बनवीरपुर और आसपास के कई गांवों तक फैला हुआ है. न्यूज़लॉन्ड्री ने कई लोगों से बात की जो टेनी के आतंक का शिकार हुए हैं.
एक सिख पीड़ित व्यक्ति ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा, “साल 1990 में अगस्त की एक शाम मैं और मेरा छोटा भाई खेत से नहाकर घर वापिस आ रहे थे. तभी टेनी के आदमियों ने हम दोनों को उठा लिया. मैं विकलांग हूं तब भी मुझ पर उन्होंने कोई रहम नहीं खाया. टेनी के आदमी पूरे रास्ते, जो करीब दो किलोमीटर का है, हमें सड़क पर घसीटते हुए टेनी के घर तक ले गए. वहां टेनी ने हम दोनों को खूब मारा और रात को गांव के बाहर छोड़ दिया.”
“हम दोनों भाइयों ने टेनी और उसके आदमियों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराई लेकिन टेनी ने हमें परेशान कर राजीनामे पर दस्तखत करवा लिए. हमारे पास एफआईआर की कॉपी है लेकिन राजीनामा इन्होंने नहीं दिया.” वह यह सब बताते हुए वह बीच-बीच में अपने शरीर पर उस घटना के जख्म दिखा रहे थे.
गांव में ऐसे बहुत परिवार हैं जिन्हें टेनी और आशीष ने बहुत प्रताड़ित किया. हमने उनसे बात भी की. लेकिन मिश्र परिवार के खौफ के चलते उन्होंने हमें अपना नाम लिखवाने से मना कर दिया.
टेनी महाराज और मोनू भैया का खौफ
बालेंदु गौतम तिकुनिया पुलिस स्टेशन के स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) हैं, जिन्होंने सबसे पहले 3 अक्टूबर को हुई घटना की जांच की थी. “यह पहली बार है जब मैं इतने बड़े मामले को संभाल रहा हूं. इसलिए मैं ईमानदार होकर पूरी बात नहीं बता सकता.” उन्होंने कहा.
एसएचओ के अनुसार, "टेनी महाराज" के खिलाफ कई मामले दर्ज हैं, लेकिन उनके बेटे आशीष मिश्र का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है.”
गांव में मौजूदा चुप्पी के बावजूद सिखों का मानना है कि अगर आशीष मिश्र जमानत पर छूट जाते हैं या उन्हें निर्दोष घोषित कर दिया जाता है और केंद्रीय मंत्री अपने पद से इस्तीफा नहीं देते हैं, तो किसानों द्वारा क्षेत्र में विरोध प्रदर्शन किया जाएगा.
"फिलहाल हम अपना गुस्सा नहीं दिखा सकते क्योंकि हम संख्या में कम हैं. हमें अभी भी यहीं रहना है. अगर हम विरोध करते हैं और मोनू मुक्त होकर वापिस आता है, तो हमारा जीवन नरक बन जाएगा," चंद्रभान सिंह कहते हैं. .
इस बीच, क्षेत्र के हिंदुओं और मुसलमानों ने दावा किया कि वे अपने 'मोनू भैया' और 'टेनी महाराज' का समर्थन करने के लिए जो कुछ भी करना होगा वह करेंगे.
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