Book Review

पुस्तक समीक्षा: बड़बोलेपन से बचते हुए व्यक्ति के आंतरिक जगत में झांकती 'दुखांतिका'

'दुखांतिका' युवा लेखक नवनीत नीरव का पहला कहानी संग्रह है. पहलेपन की तरह इन कहानियों में उत्साह है, नए लोक खोजने की व्याकुलता है और नई दृष्टि के साथ तनिक कच्चापन भी है. यह कच्चापन, पहलेपन का सौंदर्य भी है.

'दुखांतिका' संग्रह की कहानियां बड़बोलेपन से बचते हुए व्यक्ति के आंतरिक जगत में झांकती हैं, किन्तु झांकते हुए वे भावनाओं की एकांगी दुनिया निर्मित नहीं करती, बल्कि उनमें अपने समय-समाज का रुखड़ापन भी साथ लिए चलती हैं. अर्थात वे व्यक्ति के निज से होते हुए समाज के मकड़जाल तक विस्तार पाती हैं. उन्हें समझने का प्रयत्न करती हैं. नवनीत के लेखन का ग्राफ अग्रगामी है, जिसकी पुष्टि करती है यह कथा संग्रह 'दुखांतिका'.

इन कहानियों में अपने समय को समझने की चेष्टा बराबर मौजूद है. यह चेष्टा ही पाठक को लेखक से सहज रूप में जोड़ती है. इस संग्रह की ज्यादातर कहानियां जैसे 'आंखें', 'दुश्मन', 'राम झरोखे बैठ के' तथा 'मरुस्थल' औसत लंबाई की हैं. कहानियों का ताना- बाना लेखक ने इस प्रकार बुना है कि इस 128 पन्नों का यह कथा संग्रह अपने पहले पन्ने से अपनी गिरफ्त में ले लेता है.

शीर्षक कहानी 'दुखांतिका' तथा 'अंगेया' संग्रह की सबसे लंबी कहानियां हैं. छोटी कहानियों में 'अनकही', 'सितारों के आशियाने', 'उनके बाद', 'लौटना' तथा 'अहा दाल' हैं. कहानी की जमीन पर वह तकनीक, समाज और राजनीति की नई अवधारणाओं, विकसित भाषा के औजारों का बखूबी इस्तेमाल करते हैं.

'आंखें' नब्बे के दशक के दौरान बिहार में जातीय खूनी संघर्ष के खौफनाक स्पेस को रचती कहानी है. इस खौफ में सामाजिक अधिक्रम की जटिलताएं व मनुष्य मात्र के सर्वाइवल के अंतरसूत्र भी हैं. 'दुश्मन' कहानी युवाओं के थ्रिल ढूंढ़ने से आरंभ होकर जीवन के वास्तविक रोमांच पर खत्म होती हैं. लेखक ने किसी पात्र विशेष के साथ पक्षपात रहित रहने का सर्वदा प्रयास किया है, साथ ही कथोपकथन को पात्रानुरूप रखने में सफल रहे हैं.

'राम झरोखे बैठ के' समाज के उस व्यक्ति का रेखांकन है, जो जिंदगी के हर मोर्चे पर खुद को थका हारा तथा पराजित महसूस करता है. उसके बारे में कभी भी कुछ भी कहा जा सकता है. कोई भी तोहमत लगाई जा सकती है. वहीं, 'मृतक भोज' के माध्यम से ब्राह्मणवाद के मर्म पर चोट करती कहानी है 'अंगेया'. ब्राह्मणवाद नियम तो बनाता है, किन्तु अपने लाभ-हानि के हिसाब से नियमों को आगे-पीछे सुविधानुसार खिसकाता रहता है. इसके समस्त पात्रों में पाठक स्वयं को या स्वयं के आस-पास के लोगों को देख सकता है, पहचान सकता है, अपने घर या पड़ोस में घटित मान सकता है.

संग्रह की शीर्षक कहानी 'दुखांतिका' इतिहास और वर्तमान की समानंतर यात्रा के साथ राजशाही और सत्ता का विद्रुप चेहरा दिखाती है, जहां अंतिम मनुष्य एक मुहरे से अधिक कुछ भी नहीं है. समाज और अंतर्निहित राजनीति की सिमटी सीमाओं की जो अहर्निश परीक्षा नवनीत अपनी कहानियों में लेते हैं, वह दंग करता है. कुछ इस कदर कि जैसे नए कायदों वाली दुनिया बनाई जा रही हो. 'दुखांतिका' इसकी एक मिसाल है.

छोटी कहानियों में 'अनकही' सबसे प्रभावशाली कहानी बन पड़ी है. एक शिक्षक जो एक रंगमंच का कलाकार भी है, कैसे वह कला तथा पद की जिम्मेदारियों के बीच फंसा हुआ है. उसकी विडंबना कहानी की एक पंक्ति से ही स्पष्ट है कि अपना समाज किसी कलाकार को नहीं पाल सकता!

नवनीत नीरव का यह पहला संग्रह है, लेकिन यह सामयिकता और लोकरंग से जुड़े विषयों से पगी कहानियों से समृद्ध है. जीवन और गल्प के बीच कहीं अपने को प्रक्षेपित करती यह कहानी इतनी खूबसूरती से लिखी गई है कि पढ़ने के बहुत समय बाद तक ‘ट्रांस’ में रखती है. इसे पढ़ने से पहले यह हिदायत ध्यान में रखें कि यह आपको कहीं भी और कभी भी याद आ सकती है.

पुस्तक का नाम : दुखांतिका

लेखक: नवनीत नीरव

मूल्य : 300 रुपए

पृष्ठ: 128 (हार्डकवर)

प्रकाशन वर्ष: 2021

प्रकाशक: अंतिका प्रकाशन

(समीक्षक आशुतोष कुमार ठाकुर बैंगलोर में रहतेहैं. पेशे से मैनेजमेंट कंसलटेंट हैं और कलिंगा लिटरेरी फेस्टिवल के सलाहकार हैं.)

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